Monday, September 30, 2019

CHAPTER 9.3 लोगो के बारे में अच्छा सोचे और याह छोटी तकनीक बड़ी काम कीहै

       लोगो के बारे में अच्छा सोचे और याह छोटी                             तकनीक बड़ी काम कीहै



     “यह छोटी सी तकनीक बड़े काम की है। चूंकि मैं उसे पसंद करता हूँ, इसलिए वह भी मुझे देर-सबेर पसंद करने लगता है। जल्दी ही मैं मेज़ पर उसके सामने बैठने के बजाय उसकी बग़ल में बैठा होता हूँ और हम उसकी बीमा योजना बना रहे होते हैं। वह मुझ पर विश्वास करता है। क्योंकि अब मैं उसका दोस्त बन चुका हूँ।

       “हालाँकि हमेशा मुझे पहली नज़र में ही पसंद नहीं किया जाता, परंतु मैंने पाया है कि जब तक मैं सामने वाले को पसंद करता हूँ, तब तक इस बात की संभावना रहती है कि वह भी मुझे पसंद करने लगेगा और हमारा बिज़नेस पक्का हो जाएगा।

       मेरे दोस्त ने आगे कहा, “अभी पिछले ही हफ्ते में एक सख़्त ग्राहक से तीसरी बार मिला। वह मुझे दरवाज़े पर ही मिल गया और मेरे कुछ कहने से पहले ही वह मुझ पर काफ़ी गर्म हुआ। वह अपनी बात लगातार कहता रहा और उसने मुझे कुछ बोलने का मौक़ा ही नहीं दिया। आख़िरकार उसने अपनी बात यह कहते हुए ख़त्म की, 'अब मैं आपकी सूरत भी नहीं देखना चाहता।'

      “जब उसने इतना कह दिया, तो मैंने उसकी आँखों में 5 सेकंड तक देखा, और फिर सच्चे दिल से धीमे से कहा, 'परंतु मिस्टर एस., मैं तो आज आपके दोस्त की हैसियत से मिलने आया हूँ।'

       “और कल ही उसने मुझसे 10,000 डॉलर की पॉलिसी ख़रीद ली।"

        सॉल पोक को शिकागो का अप्लायंस किंग कहा जाता है। 21 साल पहले कुछ नहीं से शुरू करने वाले सॉल पोक शिकागो में आजकल एक साल में 60 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का सामान बेचते हैं।

        सॉल पोक अपने बिज़नेस की सफलता का श्रेय ख़रीदारों के प्रति उनके व्यवहार को देते हैं। वे कहते हैं, “ग्राहकों के साथ उसी तरह से बर्ताव करना चाहिए जैसे वे हमारे घर आए मेहमान हों।"

       क्या यह लोगों के बारे में सोचने का सही नज़रिया नहीं है? और क्या हम सफलता के इस फॉर्मूले को अपने जीवन में नहीं उतार सकते ? ग्राहको के साथ उसी तरह का बर्ताव करें, जैसे वे आपके घर आए मेहमान हों।

         यह तकनीक बिज़नेस के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी काम आती है। ग्राहकों की जगह कर्मचारी रख लें और आपको यह सूत्र मिलेगा, "कर्मचारियों के साथ उसी तरह से बर्ताव करें जैसे वे आपके घर आए मेहमान हों।" अपने कर्मचारियों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करें और आपको बदले में बहुत अच्छा सहयोग मिलेगा, बहुत अच्छा टीमवर्क। अपने चारों तरफ़ के लोगों के बारे में बहुत अच्छा सोचें और बदले में आपको इसके बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।

        इस पुस्तक के शुरुआती संस्करण का रिव्यू करने वाले मेरे एक दोस्त ने यह सूत्र पढ़ने के बाद मुझसे कहा, "यह लोगों को पसंद करने और उनका सम्मान करने का सकारात्मक परिणाम है। मैं आपको अपने एक दोस्त की सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ जिससे यह साबित होता है कि अगर आप लोगों को नापसंद करते हैं तो आपको उसके परिणाम किस तरह भुगतने पड़ते हैं।"

         उसके अनुभव में दम था। ज़रा देखें!

         "मेरी फ़र्म को एक कॉन्ट्रैक्ट मिला था। हमें सॉफ्ट ड्रिंक बॉटलिंग करने वाली एक छोटी कंपनी को परामर्श सेवाएँ देनी थीं। कॉन्ट्रैक्ट काफ़ी बड़ा था, लगभग 9,500 डॉलर का। हमारा ग्राहक बहुत पढ़ा-लिखा नहीं था। उसका बिज़नेस भी ठीक नहीं चल रहा था और पिछले कुछ सालों में उसने बड़ी भारी ग़लतियाँ की थीं।

       "कॉन्ट्रैक्ट मिलने के तीन दिन बाद मैं अपने सहयोगी के साथ उस कंपनी के प्लांट में गया जो हमारे ऑफ़िस से 45 मिनट दूर था। आज तक मैं नहीं जानता कि बातें किस तरह शुरू हुईं, परंतु किसी न किसी कारण हम लोग अपने ग्राहक के नकारात्मक गुणों पर बात करने लगे।

       “हम उसकी मूर्खता पर हँस रहे थे, जिस वजह से उसने अपनी राह में दिक्कतें खडी कर लीं। उसने अपनी समस्याओं के बारे में हमसे सलाह लेने के बजाय अपनी बुद्धि पर भरोसा किया था, और उसी का नतीजा था कि आज उसके बिज़नेस का भट्टा बैठ चुका है।

         “मुझे अपनी कही हुई एक बात ख़ास तौर पर याद है- 'केवल एक " ही मिस्टर एफ़ को गिरने से रोक रही है- और वह है उनका मोटापा।' मेरे सहयोगी ने भी इस चर्चा में अपना योगदान दिया। और उसके लड़के को देखो। उसकी उम्र लगभग 35 साल होगी, परंतु अपने काम के बारे में उसकी एकमात्र योग्यता यह है कि उसे अंग्रेज़ी बोलना आता है।'

         "रास्ते भर हम सिर्फ अपने ग्राहक की बुराई करते रहे और यह सोचते रहे कि वह कितना मूर्ख था।

           तो, उस दोपहर हमारी चर्चा बहुत ठंडी साबित हुई। अब जब मैं पीछे मुड़कर सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि शायद हमारा ग्राहक यह समझ गया था कि उसके बारे में हमारी सोच नकारात्मक थी। उसने सोचा होगा : 'ये लोग सोचते हैं कि मैं मूर्ख हूँ या नासमझ हूँ और वे मुझसे चिकनी-चुपड़ी बातें करके मुझसे पैसे ऐंठना चाहते हैं।'

         “दो दिन बाद मुझे इस ग्राहक की दो लाइनों की चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था, 'मैंने फैसला किया है कि मैं आपकी परामर्श सेवाओं का लाभ नहीं उठाना चाहता। अगर आज की तारीख तक आपकी सेवाओं का कोई भुगतान मुझे करना हो, तो कृपया अपना बिल भिजवा दें।'

        "40 मिनट के नकारात्मक विचारों की क़ीमत हमें इस तरह चुकानी पड़ी कि हमारे हाथ से 9,500 डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट चला गया। इससे भी ज़्यादा दुःखद बात यह थी कि हमारे भूतपूर्व ग्राहक ने एक महीने बाद शहर के बाहर की एक फ़र्म की परामर्श सेवाएँ ले लीं।

        “अगर हमने उसके अच्छे गुणों पर अपना ध्यान केंद्रित किया होता तो हमने अपने ग्राहक को नहीं खोया होता। और उसमें अच्छे गुण थे। ज़्यादातर लोगों में होते हैं।"

         आप एक काम करें जिसमें आपको मज़ा भी आएगा और साथ ही साथ आप सफलता का यह मूलभूत सिद्धांत भी सीख सकेंगे। अगले दो दिनों तक आप जितनी चर्चाएँ सुन सकते हों, सुनें। दो बातों पर ध्यान दें: चर्चा के दौरान कौन ज़्यादा बोल रहा है और कौन ज़्यादा सफल है।

         मैंने यह प्रयोग सैकड़ों बार किया है और इसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ: वह व्यक्ति जो सबसे ज्यादा बोलता है और वह व्यक्ति जो सबसे ज्यादा सफल होता है; वे दोनों व्यक्ति शायद ही कभी एक होते हैं।

शायद इसका अपवाद भी नहीं होता। व्यक्ति जितना सफल होता है, वह चर्चा में उतना ही ज़्यादा उदार होता है, यानी कि वह सामने वाले को अपने बारे में बातें करने देता है, अपने विचार, अपनी उपलब्धियाँ, अपने परिवार, अपनी नौकरी, अपनी समस्याओं के बारे में बातें करने देता है।

       चर्चा की उदारता दो तरह से आपको ज़्यादा सफल बनाती है :

1. चर्चा की उदारता से आपके दोस्त बनते हैं।

2. चर्चा की उदारता से आपको लोगों के बारे में ज्यादा जानने का मौका मिलता है।

        याद रखें : आम आदमी दुनिया में किसी भी चीज़ से ज़्यादा खुद के बारे में बातें करना पसंद करता है। जब आप उसे इस बात का मौक़ा देते हैं, तो वह आपको पसंद करने लगता है। चर्चा में उदारता दिखाना दोस्त बनाने का सबसे आसान और अचूक तरीक़ा है।

        और चर्चा में उदारता का दूसरा लाभ भी महत्वपूर्ण है, जिसमें आप लोगों के बारे में ज्यादा जान जाते हैं। जैसा हमने पहले अध्याय में कहा है, हम अपनी सफलता की प्रयोगशाला में लोगों का अध्ययन करते हैं। हम उनके बारे में, उनकी विचार प्रक्रिया, उनके अच्छे और बुरे गुणों के बारे में, वे कोई काम क्यों और कैसे करते हैं, इस बारे में जितना ज्यादा जान लेते हैं, हमें उतना ही लाभ होता है क्योंकि इस जानकारी से हम उन्हें प्रभावित करने के तरीके आसानी से ढूँढ़ सकते हैं।

          मैं आपको एक उदाहरण देना चाहूँगा।

       बाक़ी विज्ञापन एजेंसियों की ही तरह, न्यूयॉर्क की एक एड्वर्टाइज़िंग एजेंसी भी जनता को यह बताया करती थी कि जनता को इसके विज्ञापन में बताई चीजें क्यों खरीदनी चाहिए। परंतु यह एजेंसी एक काम और करती थी। यह अपने विज्ञापन लिखने वालों को हर साल एक सप्ताह के लिए दुकान में सेल्समैन के काम पर रखती थी, ताकि वे वहाँ पर उनके द्वारा विज्ञापित चीज़ों के बारे में लोगों के विचार सुन सकें। सुनने से ही उन्हें इस बात की प्रेरणा मिलती थी कि वे बेहतर, ज़्यादा असरदार विज्ञापन लिख सकें।

          कई प्रगतिशील कंपनियाँ अपने उन कर्मचारियों का आखिरी इंटरव्य लेती हैं जो काम छोड़कर जा रहे हैं। इसका कारण यह नहीं होता है कि वे कर्मचारी को वहाँ पर रोकने का प्रयास करती हैं, बल्कि यह जानना होता है कि वे काम छोड़कर क्यों जा रहे हैं। कंपनी के कर्मचारियों के साथ संबंध सुधारने में यह इंटरव्यू बहुत काम आता है। सुनने से फायदा होता है।

        सुनना सेल्समैन के लिए भी फायदेमंद होता है। अक्सर लोग यह सोचते हैं कि अच्छा सेल्समैन वह होता है जो “अच्छा वक्ता” हो या "तेज़ बोलने वाला” हो। परंतु, सेल्स मैनेजरों पर अच्छे वक्ता का उतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना कि एक अच्छे श्रोता का पड़ता है, एक ऐसा व्यक्ति जो सवाल पूछ सकता है और उसके अपेक्षित जवाब हासिल कर सकता है।

            चर्चा में बोलने की बागडोर न थामे रहें। सुनें, दोस्त बनाएँ और सीखें।

           सामने वाले व्यक्ति के साथ चर्चा में शिष्टाचार सबसे अच्छा ट्रैक्विलाइज़र होता है। आप दूसरे लोगों के लिए जो छोटी-छोटी चीजें करते हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। अगर आपका लोगों के बारे में सोचने का नज़रिया सही हो, तो आपकी बहुत सी कुंठाएँ और आपका तनाव निश्चित रूप से कम हो जाएँगे। जब आप शांति से विचार करेंगे, तो आप पाएंगे कि आपके तनाव का कारण दूसरे लोगों के प्रति नकारात्मक भावनाएँ ही हैं। इसलिए दूसरे लोगों के प्रति अपनी सोच को सकारात्मक बनाएँ और यह खोजें कि यह संसार कितना अद्भुत है।

            लोगों के बारे में सही नज़रिए का असली इम्तहान तब आता है जब चीजें हमारे हिसाब से नहीं होतीं। आपको कैसा लगता है जब आपकी जगह किसी दूसरे व्यक्ति को प्रमोशन मिल जाता है ? या जब आप अपने क्लब के चुनाव में हार जाते हैं? या जब आपके काम की आलोचना होती है ? याद रखें : हारने के बाद आप किस तरह से सोचते हैं. इसी बात से तय होता है कि आप कितने समय बाद जीतेंगे।

           अपनी असफलता के बाद लोगों के बारे में सही तरीके से सोचने की पैरवी बेंजामिन फ़ेयरलेस ने की है। बहुत गरीब माहौल में बड़े होने के बाद मिस्टर फ़ेयरलेस युनाइटेड स्टेट्स स्टील कॉरपोरेशन के चीफ़ एक्जीक्यूटिव बन गए। लाइफ़ मैग्ज़ीन (15 अक्टूबर, 1956) में उनका यह उद्धरण छपा था:

        “सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप घटनाओं को किस तरह लेते हैं। उदाहरण के तौर पर, मैं अपने किसी टीचर से कभी नहीं चिढ़ा। हालाँकि हर विद्यार्थी की तरह मुझे भी डाँट पड़ती थी, पर मैं सोचता था कि मुझे मेरी ग़लती के कारण ही डाँट पड रही है और
अनुशासित बनना मेरे लिए अच्छी बात थी। मैंने अपने हर बॉस को भी पसंद किया है। मैंने हमेशा यह कोशिश की है कि मैं उन्हें खुश रखू और वे जितना चाहते हैं, मैं उससे ज़्यादा काम करूँ।

        "ऐसा नहीं है, कि मुझे कभी निराशा नहीं हुई। कई बार मेरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति को प्रमोशन दे दिया गया। परंतु मैंने यह कभी नहीं सोचा कि मैं 'ऑफ़िस की राजनीति' का शिकार था या मेरे प्रति किसी का पूर्वाग्रह था या मेरे बॉस का फ़ैसला ग़लत था। दुःखी होने, झल्लाने और नौकरी छोड़ देने के बजाय मैंने तार्किक दृष्टि से विचार किया। निश्चित रूप से दूसरा व्यक्ति प्रमोशन के लिए मुझसे ज़्यादा योग्य था। जब प्रमोशन का अगला मौक़ा आएगा, तब तक मैं ऐसा क्या कर सकता हूँ कि मैं उस योग्य बन जाऊँ ? साथ ही मैं कभी अपने आप पर भी नाराज़ नहीं हुआ कि मैं क्यों असफल हुआ था। मैंने कभी हीन भावना से पीड़ित होने में अपना समय बर्बाद नहीं किया।"

        जब भी कोई बात बिगड़ जाए, तो बेंजामिन फ़ेयरलेस को याद करें। सिर्फ दो काम करें :

       1. खुद से पूछे, “जब प्रमोशन का अगला मौक़ा आएगा, तब तक मैं ऐसा क्या कर सकता हूँ कि मैं उस योग्य बन जाऊँ ?"

       2. निराश या हताश होने में समय और ऊर्जा बर्बाद न करें। अपने आपको न कोसें। अगली बार जीतने की योजना बनाएँ।

संक्षेप में, आप इन सिद्धांतों को अमल में लाएँ

     1. अपने आपको हल्का रखें ताकि लोग आपको आसानी से ऊपर उठा सकें। लोगों के प्रिय बनें। लोकप्रिय बनें। इससे उनका समर्थन भी हासिल होता है और आपके सफल होने में सहयोग भी मिलता है।

        2. दोस्ती बनाने में पहल करें। हर मौके पर सामने वाले को अपना परिचय दें। यह सुनिश्चित कर लें कि आप सामने वाले का सही नाम जान लें और यह भी सुनिश्चित कर लें कि वह आपका नाम ठीक से जान ले। आप अपने जिन नए दोस्तों को बेहतर जानना चाहते हों, उन्हें चिट्ठी
लिखें या फ़ोन करें।

       3. हर इंसान अलग होता है और हर इन्सान की सीमाएँ होती हैं, इस बात को स्वीकार करें। किसी भी व्यक्ति से पूर्णता की उम्मीद न करें। याद रखें, हर व्यक्ति को अलग होने का अधिकार है। और हाँ, सुधारक बनने की कोशिश न करें।

       4. चैनल पी, यानी कि अच्छे विचारों के स्टेशन को बराबर सुनते रहें। किसी व्यक्ति की अच्छाइयों और तारीफ़ के काबिल गुणों को खोजते रहें, उसकी बुराइयों को ढूँढ़ने में अपना समय बर्बाद न करें। इसके अलावा, दूसरे लोगों को अपनी सकारात्मक सोच को नकारात्मक सोच में बदलने का मौका न दें। लोगों के बारे में सकारात्मक चिंतन करें- और आपको सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

       5. चर्चा में उदार बनें। सफल लोगों की तरह बनें। दूसरे लोगों को बोलने के लिए प्रोत्साहित करें। दूसरे व्यक्ति को अपने विचार, अपनी उपलब्धियों के बारे में बातें करने का पूरा मौक़ा दें।

      6. हर समय शिष्टाचार निभाएँ। इससे लोगों को अच्छा लगता है। इससे आपको भी अच्छा लगेगा।

       7. जब भी आप असफल हों, तो अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोष न दें। याद रखें : हारने के बाद आप किस तरह से सोचते हैं, इसी बात से तय होता है कि आप कितने समय बाद जीतेंगे।

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Sunday, September 29, 2019

CHAPTER 9.2 यहाँ ज़रा सी पहल से दोस्त बनाने के छह तरीक़ दिए जा रहे हैं :

     यहाँ ज़रा सी पहल से दोस्त बनाने के छह तरीक़ दिए जा रहे हैं :


1. हर मौके पर दूसरों को अपना परिचय दें- पार्टी में, बैठकों में, हवाई जहाज़ में, ऑफ़िस में, हर जगह।

2. यह सुनिश्चित कर लें कि सामने वाला आपका नाम ठीक से जान ले।

3. यह सुनिश्चित कर लें कि आप सामने वाले के नाम का उच्चारण ठीक से कर सकें।

4. सामने वाले का नाम लिख लें और यह सुनिश्चित कर लें कि आपने उसकी स्पेलिंग सही लिखी हो। अगर आप किसी के नाम की गलत स्पेलिंग लिखेंगे तो हो सकता है कि वह दोस्त के बजाय आपका दुश्मन बन जाए। अगर संभव हो, तो उसका पता और फ़ोन नंबर भी लिख लें।

5. आप जिन नए दोस्तों से मिलें, उनमें से आप जिससे परिचय बढाता चाहते हों, उन्हें चिट्ठी लिखें या फ़ोन करें। यह बहुत महत्वपूर्ण है। ज़्यादातर सफल लोग नए दोस्त बनाने के बाद उन्हें चिट्ठी लिखते या फिर फ़ोन पर उनसे बात करते हैं।

6. और सबसे आखिरी बात, अजनबियों से अच्छी बातें करें। इससे आपको भी अच्छा लगेगा और आपका दिन भी अच्छा जाएगा।

         इन छह नियमों पर अमल करना ही लोगों के बारे में अच्छा सोचने का सही तरीका है। एक बात तो तय है, आम आदमी इस तरह से नहीं सोचता। “आम" आदमी कभी परिचय देने में पहल नहीं करता। वह इस बात का इंतज़ार करता है कि सामने वाला पहल करे।

       पहल करें। सफल लोगों की तरह बनें। लोगों से मिलने की कोशिश करें। दब्बू या संकोची न बनें। ज़रा हटकर काम करने से न घबराइएँ। यह पता करें कि सामने वाला व्यक्ति कौन है और उसे बताएं कि आप कौन हैं। 

कुछ समय पहले मुझे और मेरे सहयोगी को किसी बिज़नेस में सेल्स जॉब के आवेदन पत्रों की स्क्रीनिंग का काम सौंपा गया। हमने पाया कि एक आवेदक, जिसे हम टेड का नाम देंगे, बहुत योग्य था। वह बुद्धिमान, आकर्षक और महत्वाकांक्षी था।

       परंतु इसके बावजूद हमने यह पाया कि हम उसे नहीं चुन सकते, कम से कम फ़िलहाल तो नहीं। टेड में सबसे बड़ी गड़बड़ यह थी : वह दूसरे लोगों से पूर्णता की उम्मीद करता था। टेड छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ जाता था, जैसे व्याकरण की ग़लती से, सिगरेट का गल खिलाने वाले लोगों से, या मैचिंग के कपड़े न पहनने वालों से इत्यादि।

        जब हमने टेड को उसकी इस आदत के बारे में बताया, तो उस आश्चर्य हुआ। परंतु वह यह काम करने को इच्छक था, इसलिए उसन। हमसे पूछा कि वह अपनी इस कमज़ोरी को किस तरह दूर कर सकता है।

       हमने उसे तीन सुझाव दिए :

     1. यह जान लें कि कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता। कई लोग बाक़ा लोगों से ज़्यादा पूर्ण होते हैं, परंतु कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं कहा जा सकता। हर एक में कुछ न कुछ कमी तो होती ही है। इंसानों को इंसान बनाने वाली चीज़ यही है कि वे ग़लतियाँ करते हैं, हर तरह की ग़लतियाँ।

       2. यह जान लें कि दूसरे व्यक्ति को अलग होने का अधिकार है। किसी भी चीज़ के बारे में सर्वज्ञानी होने का दावा न करें। लोगों को सिर्फ इसलिए नापसंद न करें क्योंकि उनकी आदतें आपसे अलग हैं, या उनके कपड़े, उनका धर्म, उनकी पार्टियाँ, उनकी कार आपसे भिन्न हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि आप सामने वाले व्यक्ति के काम की तारीफ़ करें, परंतु यह भी ज़रूरी नहीं है कि आप उसके काम को नापसंद करें।

      3. सुधारक बनने से बचें। अपनी फिलॉसफी में 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत का पालन करें। ज्यादातर लोगों को यह पसंद नहीं होता कि कोई उनकी ग़लतियाँ बताए। किसी के बारे में आपके विचार होना ग़लत नहीं है, परंतु कई बार उन विचारों को ना कहने में ज़्यादा समझदारी होती है।

       टेड ने इन सुझावों पर काफ़ी मेहनत से अमल किया। कई महीनों बाद वह पूरी तरह बदल गया। अब वह लोगों के प्रति ज्यादा उदार हो चला है। वह जान गया है कि लोग न तो पूरी तरह अच्छे होते हैं, न ही पूरी तरह बुरे होते हैं।

       वह कहता है, “पहले मैं जिस बात से चिढ़ जाता था, अब उसी बात में मुझे मज़ा आने लगा है। अब जाकर मुझे यह समझ आया है कि अगर सभी लोग एक जैसे होते और सभी पूर्ण होते तो यह दुनिया कितनी नीरस हो जाती।"

       इस आसान परंतु महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखें : कोई भी व्यक्ति पूरी तरह अच्छा या बुरा नहीं होता। पूर्ण व्यक्ति इस दुनिया में कोई नहीं होता। हम सभी आधे-अधूरे होते हैं।

      अब, अगर हम अपने चिंतन को नियंत्रित न करें, तो हमें हर व्यक्ति में बुराई दिख सकती है। परंतु अगर हम अपने चिंतन को नियंत्रित कर लेते हैं, तो हम हर व्यक्ति में अच्छाई भी खोज सकते हैं।

       इसे इस तरह से देखें। आपका दिमाग एक मानसिक ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन है। इस ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम में बराबर ताक़त वाले दो चैनल हैं जिनके माध्यम से यह आप तक संदेश पहुँचाता है : चैनल पी (positive) यानी सकारात्मक चैनल और चैनल एन (negative) यानी नकारात्मक चैनल।

        आइए अब देखें कि आपका ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम किस तरह काम करता है। मान लें कि आपके बॉस (हम उनका नाम मिस्टर जैकब्स रख लेते हैं) ने आपको अपने केबिन में बुलवाया और आपके काम का मूल्यांकन किया। उन्होंने आपके कई कामों की तारीफ़ की और साथ ही आपको कुछ सुझाव भी दिए कि आप अपने काम को किस तरह बेहतर तरीके से कर सकते हैं। आज की रात यह स्वाभाविक ही है कि आप उस बारे में सोचें।

        अगर आप चैनल एन को चालू करते हैं तो वहाँ पर उद्घोषक कुछ इस तरह की बातें करेगा : “सावधान! जैकब्स तुम्हें नीचा दिखाना चाहता है। उसे दूसरों को परेशान करने में मज़ा आता है। तुम्हें उसकी सलाह की कोई ज़रूरत नहीं है। भाड़ में जाए उसकी सलाह। याद करो जो ने जैकब्स के बारे में क्या बताया था ? वह ठीक कहता था। जैकब्स तुम्हें भी उसी तरह ज़लील करना चाहता है जिस तरह उसने जो को ज़लील किया था। उसका विरोध करो। अगली बार जब वह तुम्हें बुलाए तो तुम उसकी बात चुपचाप मत सुनो बल्कि उससे बहस करो। या इससे भी बेहतर तो यह होगा कि तुम इंतज़ार मत करो। कल खुद ही जाकर उससे मिलो और पूछो कि तुम्हारी आलोचना उसने क्यों की..."

        परंतु अगर आप चैनल पी को सुनते हैं तो वहाँ उद्घोषक कुछ इस तरह की बात करता है, “मिस्टर जैकब्स भले आदमी हैं। उन्होंने मुझे जो सुझाव दिए हैं वे सचमुच बहुत अच्छे हैं। अगर मैं उन सुझावों पर अमल करूँ तो शायद मेरा काम सुधर जाए और बाद में मेरा प्रमोशन भी हो जाए। मिस्टर जैकब्स ने तो मेरी ग़लतियाँ बताकर मुझ पर एहसान किया है। कल ही मैं जाऊँगा और उनकी रचनात्मक मदद के लिए उन्हें धन्यवाद दूंगा। बिल ठीक कहता है जैकब्स के साथ काम करना बहुत अच्छा है...।

       इस मामले में, अगर आप चैनल एन की बात सुनेंगे तो हो सकता है कि आपके संबंध आपके बॉस से खराब हो जाएँ और आप कोई ग़लत या ख़तरनाक हरकत कर बैठें। परंतु अगर आप चैनल पी की बात मानेगे तो आपके बॉस के सुझावों से आपको लाभ मिलना तय है और इसके अलावा आप उनके क़रीब भी पहुँच जाएँगे। वे आपसे मिलना पसंद करेंगे। जाएँ, कोशिश करके देखें।

       यह ध्यान रखें कि आप जितनी ज़्यादा देर तक चैनल पी या चैनल एन की बातें सुनते हैं, आप उस तरह की बातों में सचमुच दिलचस्पी लेने लगते हैं और चैनल बदलना आपके लिए उतना ही मुश्किल होता जाता है। यह सच है क्योंकि एक विचार, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, अपने जैसे कई विचारों का चेन रिएक्शन पैदा करता है।

         उदाहरण के तौर पर, आप किसी व्यक्ति के उच्चारण के बारे में नकारात्मक सोचने से शुरू कर सकते हैं और जल्दी ही आप यह सोचने लगेंगे कि उसके राजनीतिक या धार्मिक विश्वास कितने ग़लत हैं, वह कितने ग़लत ढंग से कार चलाता है, उसकी आदतें कितनी बुरी हैं और उसके अपनी पत्नी के साथ संबंध भी ख़राब हैं, यहाँ तक कि वह अपने बाल भी ठीक से नहीं काढ़ता। और अगर आप इस तरह से सोचेंगे तो निश्चित रूप से आप वहाँ नहीं पहुँच पाएँगे जहाँ आप पहुँचना चाहते हैं।

        आप ही दोनों चैनलों के मालिक हैं इसलिए अपने विचारों के ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन पर क़ाबू रखना भी आपकी ज़िम्मेदारी है। जब आप लोगों के बारे में सोचें तो चैनल पी को सुनने की आदत डाल लें।

       अगर चैनल एन बीच में आ जाए, तो उसे बंद कर दें। फिर चैनल बदल लें। चैनल बदलने के लिए आपको उस व्यक्ति के बारे में कोई अच्छी बात सोचना भर है। सच्ची चेन रिएक्शन शैली में एक विचार के बाद उसी तरह का दूसरा विचार आ जाएगा और इसी तरह एक के बाद एक विचार आते चले जाएंगे। और आप खुश होंगे।

         जब आप अकेले होते हैं, तो आप और सिर्फ आप ही यह फैसला कर सकते हैं कि आप चैनल पी सुनेंगे या चैनल एन। परंतु जब आप किसी और के साथ बात करते हैं तो आपके सोचने के तरीके पर उस व्यक्ति का भी कुछ नियंत्रण होता है।

       हमें यह याद रखना चाहिए कि ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि लोगों के बारे में सोचने का सही नज़रिया क्या होता है। इसलिए आप यह पाएँगे कि कोई व्यक्ति आपकी तरफ़ दौड़ा चला आएगा और किसी परिचित के बारे में कोई बुरी बात बताने के लिए व्याकुल होगा : आपका सहकर्मी दूसरे कर्मचारी की आपत्तिजनक बातें बता सकता है; आपका पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की घरेलू समस्याएँ बता सकता है, या ग्राहक अपने उस प्रतियोगी की बुराई बता सकता है जिससे आप मिलने जा रहे हों।

        विचार अपनी ही तरह के विचारों को जन्म देते हैं। असली खतरा यह है कि जब आप किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में नकारात्मक विचार सुनते हैं, तो आपके मन में भी उसी तरह के विचार आएँगे और आप भी नकारात्मक बातें कर सकते हैं। वास्तव में, अगर आप सावधान न हों, तो हो सकता है कि आप आग में घी डाल दें और यह कहें, “हाँ, और यही नहीं। क्या तुम्हें पता है...”

          इस तरह की बातें पलटकर वापस आती हैं, बूमरैग की तरह।

         दो तरीके हैं जिनसे हम दूसरे लोगों को हमारे पी चैनल को एन चैनल में बदलने से रोक सकते हैं। एक तो यह कि आप तत्काल विषय बदल दें और इस तरह की बात कहें, “क्षमा करें, जॉन, परंतु मैं तुमसे यह पूछना चाहता था...” दूसरा तरीक़ा यह है कि आप वहाँ से इस तरह की बात कहकर चल दें, “अभी मैं जल्दी में हूँ...” या “मुझे एक जगह पहुँचना है और मुझे पहले ही देर हो चुकी है। अब मुझे चलना चाहिए।"

        अपने आपसे एक वादा करें। दूसरों को इस बात की अनुमति न दें कि वे आपके चिंतन पर नकारात्मक प्रभाव डालें। चैनल पी को हमेशा लगाए रखें।

        एक बार आप लोगों के बारे में अच्छा सोचने की आदत डाल लेंगे, तो फिर आपकी सफलता निश्चित है। मैं आपको उस सफल बीमा सेल्समैन की बात बताता हूँ जिसने मुझे अपनी कहानी बताई थी कि किस तरह लोगों के बारे में अच्छा सोचने से उसे फायदा हुआ था।

       “जब मैं पहली बार बीमा बिज़नेस में आया," उसने कहा, "तो मुझे बहुत मुश्किल आई। पहले तो यह लगा जैसे मेरे जितने संभावित ग्राहक थे, उतने ही मेरे प्रतियोगी थे। और जल्दी ही मैंने यह जान लिया जो सभी बीमा एजेंट जानते हैं कि 10 में से 9 संभावित ग्राहकों का यह दृढ़ विश्वास होता है कि उन्हें बीमे की कोई ज़रूरत नहीं है।"

       “मेरा काम ठीक चल रहा है। परंतु मैं आपको बता दूं कि ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैं बीमे के तकनीकी पहलू का विशेषज्ञ हूँ। वह भी महत्वपूर्ण है, परंतु आप मुझे ग़लत मत समझना, मुझसे बहुत ज़्यादा समझदार लोग मेरे जितने सफल नहीं हैं। वास्तव में, मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसने बीमे पर एक पुस्तक लिखी है, परंतु वह उस व्यक्ति का बीमा भी नहीं कर पाया जो जानता था कि उसे सिर्फ पाँच दिन जिंदा रहना है।

        “मेरी सफलता का आधार सिर्फ यह है," उसने कहा, "मैं जिसे अपनी बीमा पॉलिसी बेचता हूँ, मैं उसे सचमुच पसंद करता हूँ। हाँ, मैं उसे सचमुच पसंद करता हूँ। मेरे कई साथी सेल्समैन यह नाटक करते हैं किवे सामने वाले को पसंद करते हैं, परंतु इससे कोई फायदा नहीं होता। लोग समझ जाते हैं कि आप उन्हें बेवकूफ़ बना रहे हैं। आपके हाव-भाव, आपके चेहरे के भाव, आपकी आँखों से साफ़ दिख जाता है कि आप नाटक कर रहे हैं।"

       “जब मैं किसी संभावित ग्राहक के बारे में जानकारी इकट्ठी करता हँ, तो मैं वही करता हूँ जो हर एजेंट करता है। मैं उसकी उम्र, उसके काम-धंधे, उसकी आमदनी, उसके बीवी-बच्चों इत्यादि के बारे में जानकारी हासिल करता हूँ।

         "परंतु इसके साथ ही मैं एक और चीज़ की खोज करता हूँ जिसके बारे में ज्यादा सेल्समैन परवाह नहीं करते- मैं ऐसा कारण ढूँढ़ता हूँ जिसके कारण मैं अपने संभावित ग्राहक को पसंद करने लगूं। हो सकता है कि मुझे यह कारण उसकी नौकरी में मिल जाए, या उसके पिछले रिकॉर्ड में मिल जाए। परंतु मैं हमेशा उसे पसंद करने का कारण ढूँढ़ने में कामयाब हो जाता हूँ।

         "फिर जब भी मेरा ध्यान अपने संभावित ग्राहक पर केंद्रित होता है, तो मैं उसे पसंद करने के कारणों को याद कर लेता हूँ। उससे बीमे के बारे में एक शब्द कहने से पहले ही मैं उस संभावित ग्राहक की पसंदीदा छवि बनाने की कोशिश करता हूँ।

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Saturday, September 28, 2019

CHAPTER 9.1 लोगों के बारे में अच्छा सोचें

               लोगों के बारे में अच्छा सोचें

   सफलता हासिल करने का यह एक मूलभूत नियम है। हम इसे अपने सदिमाग़ में बिठा लें और इसे हमेशा याद रखें। यह नियम है : सफलता दूसरे लोगों के सहयोग पर निर्भर करती है। आपके और आपके लक्ष्य के बीच एकमात्र बाधा दूसरों का सहयोग है।

         इसे इस तरीके से देखें : किसी अफ़सर को अपने आदेशों के पालन के लिए कर्मचारियों पर निर्भर होना पड़ता है। अगर वे उसके आदेश नहीं मानेंगे, तो कंपनी का प्रेसिडेंट उस अफ़सर को नौकरी से निकाल देगा, जबकि कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। सेल्समैन को अपना सामान बेचने के लिए ग्राहकों पर निर्भर होना पड़ता है। अगर ग्राहक उसका सामान न ख़रीदें, तो सेल्समैन असफल हो जाएगा। इसी तरह, कॉलेज का डीन भी अपने शैक्षणिक कार्यक्रम में सहयोग के लिए अपने प्रोफेसरों पर निर्भर होता है। एक राजनेता अपने चुनाव के लिए मतदाताओं पर निर्भर होता है। एक लेखक अपनी पुस्तकों की बिक्री के लिए पाठकों पर निर्भर होता है। कोई चेन स्टोर मालिक सिर्फ इसलिए चेन स्टोर मालिक बना क्योंकि कर्मचारियों ने उसे लीडर माना और ग्राहकों ने उसकी व्यावसायिक योजना को पसंद किया।

        इतिहास में ऐसे भी समय रहे हैं जब किसी व्यक्ति ने केवल अपनी ताकत के दम पर सत्ता हासिल की है। उस दौर में या तो व्यक्ति “लीडर"के  साथ सहयोग करता था, या फिर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था।

        परंतु यह जान लें कि आजकल या तो कोई व्यक्ति आपको इच्छा से सहयोग देगा या फिर वह आपको बिलकुल भी सहयोग नहीं देगा।

       अब आप यह पूछ सकते हैं, “चलिए यह मान लिया, कि मैं जो सफलता चाहता हूँ, उसे हासिल करने के लिए मुझे दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, परंतु मैं किस तरह इन लोगों को प्रेरित करूँ कि वे मुझे सहयोग दें और मुझे लीडर माने?"

        इसका जवाब एक छोटे से वाक्य में दिया जा सकता है। लोगों के बारे में अच्छा सोचें। जब आप लोगों के बारे में अच्छा सोचेंगे तो वे आपको पसंद करेंगे और आपको सहयोग भी देंगे। यह अध्याय बताता है कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं।

         दिन में हज़ारों बार इस तरह का दृश्य घटित होता है। किसी कमेटी या समूह की बैठक चल रही है। इसका लक्ष्य है किसी प्रमोशन, नई नौकरी, क्लब की सदस्यता, सम्मान के लिए नामों पर विचार जैसे कंपनी के नए प्रेसिडेंट, नए सुपरवाइज़र, नए सेल्स मैनेजर के लिए। समूह के सामने एक नाम रखा जाता है। चेयरमैन पूछता है, "इसके बारे में आपकी क्या राय है?"

        इसके बाद वहाँ बैठे सभी लोग अपनी-अपनी राय देते हैं। कई नामों के बारे में यह राय सकारात्मक होती है जैसे : “वह बढ़िया व्यक्ति है। लोग उसकी तारीफ़ करते हैं। उसका तकनीकी ज्ञान भी अच्छा है।"

      "मिस्टर एफ़.? वह मिलनसार है खुशमिज़ाज व्यक्ति। मुझे यक़ीन है कि यह व्यक्ति हमारे ऑफ़िस में ठीक तरह से फ़िट हो जाएगा।"

         कई नामों पर विचार करते समय हम नकारात्मक वक्तव्य सुन सकते हैं। "मुझे लगता है कि हमें इस व्यक्ति के बारे में अच्छी तरह खोजबीन करनी चाहिए। उसकी लोगों से पटरी नहीं बैठ पाती।"

         "मैं जानता हूँ कि उसका शैक्षणिक और तकनीकी ज्ञान अच्छा है। मुझे उसकी योग्यता पर कोई संदेह नहीं है। परंतु फिर भी मुझे इस बातकी चिंता होती है कि वह हमारी कंपनी में किस तरह फ़िट होगा। लोग न तो उसे पसंद करते हैं, न ही उसकी इज़्ज़त करते हैं।”

         यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है : दस में से नौ बार, “पसंद किए जाने" की बात सबसे पहले कही जाती है। और ज़्यादातर मामलों में "पसंद किए जाने" के तत्व को तकनीकी योग्यता से ज़्यादा महत्व दिया जाता है।

          यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर के चयन में भी यही सिद्धांत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेरे खुद के एकैडमिक अनुभव से मैं जानता हूँ कि नए फैकल्टी मेंबर के लिए नामों पर किस तरह विचार किया जाता है। जब भी नाम आता था, समूह उस पर इस तरह विचार करता था : “क्या वह फ़िट हो पाएगा?" "क्या छात्र उसे पसंद करेंगे?" “क्या वह स्टाफ़ के दूसरे लोगों को साथ लेकर चल सकेगा?"

         ग़लत? अन-एकैडमिक ? नहीं। अगर किसी व्यक्ति को पसंद नहीं किया जाता हो, तो वह अपने छात्रों को प्रभावी ढंग से नहीं पढ़ा सकता।

 
           इस बात को ठीक से समझ लें। किसी आदमी को ऊपर की तरफ़ खींचा नहीं जाता है। इसके बजाय, उसे बस सहारा दिया जाता है। आज के दौर में किसी के पास इतनी फुरसत या इतना धीरज नहीं है कि वह किसी दूसरे को नौकरी की सीढ़ी पर ऊपर खींचे। किसी व्यक्ति को इसलिए चुना जाता है क्योंकि वह बाक़ी सभी लोगों से ऊँचा नज़र आता है।

         हमें ऊपर की सीढ़ी पर चढ़ने के लिए सहारा तब दिया जाता है जब लोगों को यह लगता है कि वे हमें पसंद करते हैं। आप जब भी एक दोस्त बनाते हैं, वह आपको एक इंच ऊपर पहुँचा देता है। और चूँकि आप पसंद किए जाते हैं, इसलिए ऊपर उठाते समय सामने वाले को वज़न भी नहीं लगता।

          सफल लोगों के पास लोकप्रिय बनने की योजना होती है। क्या आपके पास है? जो लोग चोटी पर पहुँचते हैं वे इस बारे में ज़्यादा नहीं बताते कि लोगों के बारे में अच्छा सोचने की उनकी तकनीकें क्या हैं। परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बहुत से महान लोगों के पास लोगों को प्रभावित करने की एक स्पष्ट, निर्धारित, यहाँ तक कि लिखित योजना भी होती है।

          राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन का उदाहरण लें। प्रेसिडेंट बनने के बहुत पहले लिंडन जॉनसन ने सफलता का अपना दस सूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया था। इतिहास गवाह है कि वे इन सूत्रों को अपने जीवन में उतारते
थे और ये सूत्र हैं :

1. नाम याद रखने की आदत डालें। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो सामने वाले को यह लग सकता है कि आपकी उनमें रुचि नहीं है।

2. एक ऐसे आरामदेह व्यक्ति बनें, जिससे आपके साथ होने पर कोई तनाव में न रहे। मज़ाकिया, अनुभवी टाइप के व्यक्ति बनें।

3. अपने दिमाग़ को ठंडा रखने की आदत डालें ताकि कठिन परिस्थितियाँ आपको उत्तेजित या परेशान न करें।

4. बड़बोले न बनें। सामने वाले को यह एहसास न होने दें कि आप खुद को सर्वज्ञानी समझते हैं।

5. दिलचस्प बनने की आदत डालें, ताकि लोग आपके आस-पास रहना चाहें।

6. अपने व्यक्तित्व से “चुभने वाले” तत्वों को बाहर निकाल फेंकें।

7. सच्ची धार्मिक भावना से हर ग़लतफ़हमी दूर करने की पूरी कोशिश करें। अपनी शिकायतों को नाली में बहा दें।

8. लोगों को पसंद करने का अभ्यास करें, और कुछ समय बाद आप सचमुच उन्हें पसंद करने लगेंगे।

9. किसी की उपलब्धियों या सफलता पर बधाई देने का कोई मौक़ा न गँवाएँ, न ही दुःख या निराशा में संवेदना जताने का अवसर खोएँ।

10. लोगों को आध्यात्मिक शक्ति दें और वे आपको पसंद करने लगेंगे।

         इन दस आसान परंतु बेहद प्रभावी “लोगों को पसंद करने" के नियमों की वजह से प्रेसिडेंट जॉनसन को उनके मतदाताओं ने, संसद ने पसंद किया। इन दस नियमों को जीवन में उतारने से प्रेसिडेंट जॉनसन को सहारा देकर ऊपर पहुँचाना ज्यादा आसान हो गया।

       इन नियमों को एक बार फिर से पढ़ें। ध्यान दें कि यहाँ बदला लेने की बात नहीं कही गई है। यहाँ यह भी नहीं कहा गया है कि गलतफहमी दूर करने के लिए आप सामने वाले की पहल का इंतज़ार करें। यहाँ पर इस तरह का विचार भी नहीं है कि मैं ही सब कुछ जानता हूँ और बाकी सब लोग मूर्ख हैं।

          चाहे वे बिज़नेस में हों, कला, विज्ञान या राजनीति में हों, महान लोग बहुत मानवीय, खुशमिज़ाज होते हैं। उनमें ऐसी कला होती है कि लोग उन्हें पसंद करने लगते हैं।

          परंतु, दोस्ती खरीदने की कोशिश न करें क्योंकि दोस्ती बिकाऊ नहीं होती। अगर सच्ची भावना हो, अगर आप सामने वाले को सचमुच पसंद करते हों तो तोहफ़े देना अच्छी बात है। परंतु अगर ऐसा नहीं है, तो तोहफे को अक्सर रिश्वत समझ लिया जाता है।

          पिछले साल, क्रिसमस के कुछ दिन पहले मैं एक मध्यम आकार की ट्रकिंग फ़र्म के प्रेसिडेंट के ऑफ़िस में बैठा था। जब मैं विदा लेने वाला था तो वहाँ पर एक डिलीवरी मैन तोहफ़ा लेकर आया, जो उसे स्थानीय टायर-रिकैपिंग फर्म ने भिजवाया था। तोहफ़े को देखकर मेरे दोस्त का दिमाग ख़राब हो गया और उसने चिढ़कर डिलीवरी मैन से कहा कि वह तोहफे को वापस ले जाए और भेजने वाले को सौंप दे।

         जब डिलीवरी मैन चला गया तो मेरे दोस्त ने मुझसे कहा, “मुझे ग़लत मत समझना। मुझे तोहफ़े लेना और देना दोनों ही पसंद है।"

          फिर उसने मुझे उन तोहफों के बारे में बताया जो उसे उसके दोस्तों ने दिए थे।

        "परंतु,” उसने आगे कहा, “जब तोहफ़ा रिश्वत की तरह दिया जाए, अपना काम निकलवाने के लिए दिया जाए, तो मैं इसे पसंद नहीं करता।" मैंने इस फ़र्म के साथ बिज़नेस करना तीन महीने पहले बंद कर दिया था, क्योंकि उनका काम ठीक नहीं था और मैं उनके कर्मचारियों को भी पसंद नहीं करता था। परंतु उनका सेल्समैन बार-बार हमारे यहाँ चला आता था।

         "मुझे गुस्सा इस बात पर आता है," उसने कहा, “कि पिछले सप्ताह यही सेल्समैन यहाँ पर आया और उसने यह कहने की हिमाकत की, 'हम चाहेंगे कि आप हमें काम दें। मैं सांता से जाकर कहूँगा कि वह आपको इस साल कोई अच्छा सा तोहफ़ा ज़रूर भिजवा दे।' अगर मैंने यह तोहफा वापस नहीं किया होता, तो अगली बार वह सेल्समैन आकर जो पहली बात कहता वह यह होती, 'आपको तोहफ़ा तो पसंद आया, है ना?"

         दोस्ती ख़रीदी नहीं जा सकती। और जब हम इसे ख़रीदने की कोशिश करते हैं, तो हमें दो तरह से नुकसान होता है :

1. हम पैसा गँवाते हैं।

2. हम दुर्भावना पैदा करते हैं।

          दोस्ती करने में पहल करें- सफल लोग यही करते हैं। यह सोचना ज़्यादा आसान और स्वाभाविक है, “सामने वाले को पहल करनी चाहिए।" "उसे मेरे घर पहले आना चाहिए।” “पहले उसे बात शुरू करनी चाहिए।"

        दूसरे लोगों को इस तरह से नज़रअंदाज़ करना बहुत आसान होता है।

        हाँ, यह आसान है और स्वाभाविक है, परंतु लोगों के बारे में अच्छा सोचने का यह सही तरीक़ा नहीं है। अगर आप इस बात का इंतज़ार करेंगे कि दूसरा व्यक्ति दोस्ती की नींव रखे. तो आपके पास कभी ज्यादा दोस्त नहीं होंगे।

         वास्तव में, यही सच्चे लीडर की पहचान है कि वह लोगों से पहचान बढ़ाने में पहल करता है। अगली बार आप जब भी किसी बड़े समूह में खड़े हों, तो इस बात को ध्यान से देखें : वहाँ पर मौजूद सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह होता है, जो अपना परिचय देने में सबसे ज़्यादा सक्रिय होता है।

         वह व्यक्ति सचमुच सफल होगा जो आपके पास आता है, आपसे हाथ मिलाता है और कहता है, “हलो, मैं जैक आर."। इस बात पर थोड़ा विचार करें और आप पाएंगे कि वह व्यक्ति इसलिए सफल होगा क्योंकि वह दोस्ती बनाने के लिए मेहनत कर रहा है।

         लोगों के बारे में अच्छा सोचें। जैसा मेरे एक दोस्त का कहना है, "चाहे मैं उसके लिए महत्वपूर्ण न होऊँ, परंतु वह मेरे लिए महत्वपूर्ण है। इसी कारण मुझे उसे क़रीब से जानना चाहिए।"

          आपने कभी सोचा है कि लोग लिफ्ट का इंतज़ार करते समय पुतलों की तरह क्यों खड़े होते हैं? जब तक कि वे अपने किसी परिचित के साथ न हों, तब तक ज्यादातर लोग अपने आस-पास खड़े लोगों से बात ही नहीं करते। एक दिन मैंने इस बारे में छोटा सा प्रयोग करने का फैसला किया।

           मैंने अपने पास खड़े व्यक्ति से बातचीत शुरू करने का फैसला किया। मैंने 25 बार लगातार ऐसा किया और 25 बार ही मुझे इसके जवाब में सकारात्मक, दोस्ताना जवाब मिला।

         हालाँकि अजनबियों के साथ बात करने को अच्छे मैनर्स में शामिल नहीं किया जाता, परंतु ज्यादातर लोग फिर भी इस बात को पसंद करते हैं। और यह रहा इसका लाभ :

     जब आप किसी अजनबी के बारे में कोई सकारात्मक बात कहते हैं, तो उसका मूड अच्छा हो जाता है। आपको भी अच्छा लगता है। और आपको शांति और खुशी भी मिलती है। हर बार जब भी आप किसी व्यक्ति की तारीफ़ करते हैं, तो आप दरअसल अपने आपको लाभ पहुँचा रहे हैं। यह अपनी कार को जाड़े के दिनों में गर्म करने की तरह है। 

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Friday, September 27, 2019

CHAPTER 8.3 अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ

 अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ,लोगो का नाम लेने का आदत डाले




         2. लोगों का नाम लेने की आदत डालें। हर साल चतुर निर्माता दूसरे निर्माताओं से ज़्यादा ब्रीफ़केस, पेंसिल, बाइबल, और सैकड़ों दूसरे सामान बेच लेते हैं। कारण यह होता है कि वे अपने सामान पर ख़रीदार का नाम लिख देते हैं। लोगों को अपने नाम का संबोधन अच्छा लगता है। जब किसी का नाम लिया जाता है, तो उसे ऐसा लगता है जैसे उसके कानों में शहद घोल दिया गया हो।

           आपको दो ख़ास बातों का ध्यान रखना चाहिए। नाम का उच्चारण सही करें और उसकी स्पेलिंग में ग़लती न करें। अगर आप ग़लत उच्चारण करते हैं या ग़लत स्पेलिंग लिखते हैं, तो सामने वाला व्यक्ति समझ सकता है कि आपकी नज़रों में उसका कोई महत्व नहीं है।

          एक और बात का ध्यान रखें। जब भी आप ऐसे लोगों से बात करें जिन्हें आप ठीक से न जानते हों, तो नाम के पहले उचित संबोधन - मिस, मिस्टर या मिसेज़ - लगाना न भूलें। आपके ऑफ़िस का चपरासी जोन्स के बजाय मिस्टर जोन्स कहा जाना ज़्यादा पसंद करता है। यही आपके अधीनस्थ कर्मचारी के बारे में भी सही है। यही हर तरह के, हर जगह के लोगों के बारे में सही है। इन छोटे-छोटे टाइटल्स से लोग अपने आपको बहुत महत्वपूर्ण समझने लगते हैं।

         3. प्रशंसा को झपटने के बजाय इसका निवेश करें। हाल ही में मैं एक कंपनी के कार्यक्रम में अतिथि के रूप में गया। उस शाम डिनर के बाद कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट ने दो डिस्ट्रिक्ट मैनेजर्स को पुरस्कार देने की घोषणा की। इनमें एक पुरुष था और दूसरी महिला थी। इन दोनों ही
मैनेजर्स के संगठनों ने उस साल सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। फिर वाइस प्रेसिडेंट ने इन मैनेजर्स से कहा कि वे 15 मिनट में लोगों को यह बताएँ कि उनके संगठनों ने यह काम इतनी अच्छी तरह कैसे किया।

पहला डिस्ट्रिक्ट मैनेजर (मुझे बाद में पता चला कि उसे तीन महीने पहले ही मैनेजर बनाया गया था और इसलिए वह अपने संगठन के शानदार प्रदर्शन के लिए आंशिक रूप से ही ज़िम्मेदार था) उठा और उसने लोगों को बताया कि उसने ऐसा किस तरह किया।

        उसने यह जताया जैसे उसके प्रयासों से और केवल उसके प्रयासों से ही उस संगठन की बिक्री इतनी बढ़ी है। उसके भाषण में बार-बार इस तरह के वाक्य आ रहे थे, "जब मैंने काम सँभाला, तो मैंने यह किया, मैंने वह किया;" "जब मैं आया तो हर चीज़ गड़बड़ थी; परंतु मैंने सब कुछ ठीक-ठाक कर दिया;" “यह आसान नहीं था. परंतु मैंने परिस्थिति का अध्ययन किया और मैंने निश्चय किया कि चाहे जो हो मैं सफल होकर दिखाऊँगा।"

       उसके बोलते समय उसके संगठन के सेल्समैनों के चेहरे पर निराशा साफ़ दिख रही थी। डिस्ट्रिक्ट मैनेजर सफलता का सारा श्रेय खुद ही लिए जा रहा था और उन्हें नज़रअंदाज़ कर रहा था। रिकॉर्ड सेल में सेल्समैनों की कड़ी मेहनत का योगदान है, इस बात को मैनेजर ने नहीं बताया था।

        इसके बाद, दूसरी डिस्ट्रिक्ट मैनेजर ने अपनी बात कही। परंतु इस महिला की शैली बिलकुल अलग थी। पहले तो उसने बताया कि उसके संगठन को जो सफलता मिली है, वह उसकी टीम के जी-जान से किए गए प्रयासों का परिणाम है। इस सफलता के असली हक़दार तो उसके सेल्समैन हैं। इसके बाद उस मैनेजर ने अपने हर सेल्समैन को खड़े होने के लिए कहा ताकि वह हर एक को उसके प्रयास के लिए बधाई दे सके. उसकी तारीफ़ कर सके।

       दोनों के व्यवहार में कितना फ़र्क था। पहले मैनेजर ने वाइस प्रेसिडेंट की तारीफ़ झपटकर रख ली और खुद ही पूरी तारीफ़ हड़प कर गया। उसके ऐसा करने से, उसके अपने ही लोग उससे चिढ़ गए। उसके सेल्समैनों का मनोबल कम हो गया। दूसरी मैनेजर ने तारीफ़ को अप सेल्समैनों में बाँट दिया जिससे उनका मनोबल बढ़ गया और वे भविष्य में ज़्यादा अच्छा काम करने के लिए प्रेरित हुए। यह मैनेजर जानती थी कि ज़्यादा लाभ कमाने के लिए पैसे की तरह,तारीफ़ का भी निवेश करना चाहिए। वह जानती थी कि सेल्समैनों की इस तरह तारीफ़ करने से वे अगले साल और ज़्यादा मेहनत करेंगे।

          याद रखें, प्रशंसा ही शक्ति है। अपने सुपीरियर से मिलने वाली तारीफ़ का निवेश करें। अपने अधीनस्थों तक उस तारीफ़ को पहुँचा दें ताकि वे भविष्य में बेहतर काम करने के लिए प्रेरित हों। जब आप तारीफ़ बाँटते हैं, तो आपके अधीनस्थ यह समझ लेते हैं कि आप उन्हें मूल्यवान समझते हैं, उन्हें महत्व देते हैं।

        यहाँ एक दैनिक अभ्यास दिया जा रहा है जिसके बहुत ज्यादा लाभ होते हैं। अपने आपसे हर दिन यह पूछे, “मैं अपनी पत्नी और परिवार को सुखी बनाने के लिए आज क्या कर सकता हूँ?"

        यह बहुत आसान लगता है, परंतु यह बड़े काम का नुस्खा है। एक शाम, मैं सेल्स ट्रेनिंग कार्यक्रम में यह चर्चा कर रहा था, “सफल सेल्समैन बनने के लिए सही घरेलू माहौल कैसे बनाएँ।" अपनी बात को समझाने के लिए मैंने सेल्समैनों से पूछा (जो सभी शादी-शुदा थे), “आख़िरी बार, क्रिसमस को, अपनी शादी की सालगिरह को, या अपनी पत्नी के जन्मदिन को छोड़कर आपने कब उसे कोई ख़ास तोहफा दिया था ?"

         मैं भी जवाबों को सुनकर हैरान रह गया। 35 सेल्समैनों में से सिर्फ एक ने पिछले महीने अपनी पत्नी को तोहफ़ा दिया था। समूह में से कइयों का जवाब था, “तीन से छह महीने पहले"। और एक तिहाई का जवाब था, "मुझे याद नहीं कि मैंने उसे कभी कोई तोहफ़ा दिया हो।” |

         कल्पना कीजिए! और इसके बाद भी कई लोग यह ताज्जुब करते हैं कि उनकी पत्नी उनके साथ वैसा व्यवहार नहीं करती, जैसा सिंहासनपर बैठे सम्राट के साथ किया जाता है।

         मैं इन सेल्समैनों को यह समझाना चाहता था कि सच्चे दिल से दिए गए तोहफ़े में जादू की ताक़त होती है। अगली शाम को मैंने एक फूल वाले को सत्र के आखिर में बुलवा लिया। मैंने उसका परिचय अपने सेल्समैनों से करवाया और कहा, "मैं चाहता हूँ कि आज आप यह देखें कि तोहफ़ा देने से घरेलू माहौल किस तरह सुधारा जा सकता है। मैंने इस फूल वाले से कहा है कि वह आपको एक गुलाब का फूल सिर्फ 50 सेंट में उपलब्ध कराए। अगर आपके पास 50 सेंट न हों, या आप सोचते हों कि आपकी पत्नी इस लायक नहीं है कि उस पर इतनी बड़ी रकम खर्च की जाए (इस बात पर वे सब हँसे), तो मैं अपनी तरफ़ से उसके लिए गुलाब खरीद दूंगा। मैं आपसे सिर्फ यही चाहता हूँ कि आप गुलाब लेकर अपनी पत्नी के पास जाएँ और कल शाम को आकर बताएँ कि इसका उस पर क्या असर हुआ।"

        “और हाँ, उसे यह मत बताना कि आपने यह गुलाब उसके लिए कैसे और क्यों ख़रीदा।"

          वे समझ गए।

         बिना अपवाद के, हर व्यक्ति ने अगली शाम को आकर बताया कि 50 सेंट के छोटे से निवेश से उसकी पत्नी खुश हो गई।

         अपने परिवार के लिए अक्सर कुछ ख़ास करें। ज़रूरी नहीं है कि आप कोई महँगा तोहफ़ा ही ख़रीदें। महत्व इस बात का होता है कि आपको उनकी याद रही। ऐसा कुछ जो आपके परिवार के प्रति आपका प्रेम या परवाह प्रदर्शित करे, कारगर होगा।

         अपने परिवार को अपनी टीम में शामिल करें। उसका सुनियोजित रूप से ध्यान रखें।

         इस व्यस्त भागदौड़ भरे युग में कई सारे लोग अपने परिवार के लिए समय निकाल पाने में असमर्थ हैं। लेकिन अगर हम योजना बनाकर चलें, तो अवश्य ही समय निकलेगा। एक वाइस प्रेसिडेंट ने मुझे अपना तरीक़ा बताया जो उसके हिसाब से बहुत कारगर था:

        “मेरे काम में बहुत ज़िम्मेदारियाँ हैं और हर शाम को ढेर सारा काम घर ले जाने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं होता। परंतु मैं अपने परिवार को अनदेखा या नज़रअंदाज़ नहीं करता, क्योंकि वही तो मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्हीं के लिए तो मैं इतनी कड़ी मेहनत कर रहा हूँ। मैंने एक टाइम टेबल बना लिया है जिससे मैं अपने परिवार पर भी पूरा ध्यान दे पाता हूँ और अपने काम पर भी। हर शाम 7:30 से 8:30 तक मैं अपने दोनों बच्चों को समय देता हूँ। मैं उनके साथ खेलता हूँ, उन्हें कहानियाँ सुनाता हूँ, उनके साथ तस्वीरें बनाता हूँ, उनके सवालों के जवाब देता हूँ- यानी जो वे चाहते हैं, वही करता हूँ। इस एक घंटे के बाद मेरे बच्चों को तो संतोष होता ही है, मैं भी पूरी तरह तरोताज़ा हो जाता हूँ। 8:30 पर वे सोने चले जाते हैं और मैं दो घंटे तक काम करता हूँ।

         10:30 पर मैं अपना काम बंद कर देता हूँ और एक घंटा अपनी पत्नी के साथ बिताता हूँ। हम बच्चों के बारे में, उसके कामकाज के बारे में, भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हैं। दिन ख़त्म करने के लिए यह एक घंटा बहुत शानदार साबित होता है।

          “मैं रविवार को पूरी तरह अपने परिवार के लिए सुरक्षित रखता हूँ। पूरा दिन उनका होता है। मैं अपने परिवार की तरफ़ पूरा ध्यान देने के लिए योजना बनाता रहता हूँ जो न सिर्फ उनके लिए अच्छा है, बल्कि मेरे लिए भी अच्छा है। इससे मुझे नई ऊर्जा मिलती है।"

   पैसे कमाना चाहते हैं? इसके लिए सेवाभाव विकसित कीजिए।

       यह पूरी तरह स्वाभाविक है - वास्तव में यह बहुत अच्छी बात है - कि पैसा कमाया जाए और दौलत इकट्ठी की जाए। पैसा ही वह ताक़त है जो आपके परिवार को शक्ति देती है और मनचाही जीवनशैली देती है। पैसा ही वह ताक़त है जिसकी मदद से आप बदक़िस्मत लोगों की मदद कर सकते हैं। पैसा उन साधनों में से एक है जिनके सहारे आप जीवन को पूरी तरह से जी सकते हैं।

       एक बार एकर्स ऑफ़ डायमंड्स के लेखक महान पादरी रसेल एच. कॉनवेल की आलोचना हर्ड। आलोचना का कारण यह था कि रसेल लोगों को पैसा कमाने के लिए प्रेरित करते थे। अपनी आलोचना के जवाब में उन्होंने कहा, “पैसे से ही आपकी बाइबल छपी हैं। पैसे से ही आपके चर्च बने हैं। पैसे से ही आप अपने मिशनरीज़ को भेज पाए हैं। अपने पादरियों को भी आप पैसा देते हैं। और अगर आप उन्हें पैसा देना बंद कर देंगे, तो आपके पास ज़्यादा पादरी भी नहीं बचेंगे।"

      वह व्यक्ति जो कहता है कि वह ग़रीब रहना चाहता है वह या तो  अपराधबोध से ग्रस्त है या फिर वह अपने आपको अयोग्य समझता है। वह उस बच्चे की तरह है जिसे लगता है कि वह स्कूल में कभी फ़र्स्ट डिवीज़न नहीं ला पाएगा या कभी फुटबॉल टीम में शामिल नहीं हो पाएगा, इसलिए वह यह जताता है कि वह फ़र्स्ट डिवीज़न नहीं लाना चाहता या फुटबॉल नहीं खेलना चाहता।

         पैसे कमाना एक बढ़िया लक्ष्य है। यह हैरानी की बात है कि ज़्यादातर लोग पैसा कमाते समय सीधी शैली के बजाय उल्टी शैली का प्रयोग क्यों करते हैं। हर कहीं आप देखते हैं कि लोगों का रवैया ‘पहले पैसा' होता है। परंतु इन्हीं लोगों के पास सबसे कम पैसा होता है। क्यों ?
सिर्फ इसलिए क्योंकि जिन लोगों का रवैया “पहले पैसा" होता है वे पैसे के बारे में दीवाने हो जाते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि पैसे की फ़सल तब तक नहीं काटी जा सकती जब तक कि आप पैसे के बीज को न बोएँ।

         और पैसे का बीज है सेवा। इसीलिए “पहले सेवा" वाले रवैए से ही दौलत आती है। पहले सेवा कीजिए और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

          एक दिन मैं यात्रा के दौरान सिनसिनाटी से गुज़र रहा था। मुझे पेट्रोल भरवाना था। मैं एक साधारण-से परंतु बेहद व्यस्त सर्विस स्टेशन पर रुका।

          चार मिनट बाद ही मैं जान गया कि यह सर्विस स्टेशन इतना लोकप्रिय क्यों था। मेरी कार में पेट्रोल भरने के बाद, गाड़ी में बिना कहे हवा चेक करने के बाद, और बाहर का शीशा साफ़ करने के बाद अटेंडेंट मेरे पास आया और कहा, “सर, आज काफ़ी धूल भरा दिन था। क्या मैं आपकी विंडशील्ड के अंदर की तरफ़ वाला काँच भी साफ़ कर दूं।"

         जल्दी ही और बड़े अच्छे तरीके से उसने अंदर की सफ़ाई कर दी। किसी और सर्विस स्टेशन में इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया जाता।

         इस छोटी सी विशेष सेवा के कारण न सिर्फ मुझे रात में बेहतर दिखने लगा (और इससे बहुत फ़र्क पड़ा था); बल्कि मुझे यह स्टेशन याद रहा। इत्तफ़ाक से. मैं अगले तीन महीनों में आठ बार सिनसिनाटी से गुज़रा। हर बार मैं इसी स्टेशन पर रुका। और हर बार मुझे जितनी
सर्विस की उम्मीद थी, उससे ज्यादा सर्विस मिली। यह भी रोचक था कि हर बार जब भी मैं वहाँ पहुँचा (एक बार तो सुबह के 4 बज रहे थे), मझे वहाँ बहुत सारी कारें खड़ी मिलीं। कुल मिलाकर मैंने इस स्टेशन से लगभग 100 गैलन पेट्रोल ख़रीदा होगा।

         जब में पहली बार वहाँ आया था, तो अटेंडेंट यह सोच सकता था, "यह व्यक्ति बाहर का है। शायद यह द्वारा यहाँ नहीं आएगा। उसकी तरफ विशेष ध्यान देने से क्या फ़ायदा ? वह तो सिर्फ एक बार का ग्राहक है।"

        परंतु उस सर्विस स्टेशन के अटेंडेंट ने इस तरह से नहीं सोचा। वहाँ पर पहले सेवा की जाती थी और यही कारण था कि उन्हें पेट्रोल भरने से फुरसत ही नहीं मिलती थी, जबकि उनके आस-पास के पेट्रोल पंप वीरान से पड़े रहते थे। अगर पेट्रोल की क्वालिटी में कोई फर्क हो तो सच कहूँ मैंने उस तरफ़ ध्यान नहीं दिया। और कीमत भी वाजिब थी।

         फ़र्क सिर्फ सेवाभाव का था। और यह स्पष्ट था कि सेवाभाव के कारण उन्हें काफ़ी फ़ायदा भी हो रहा था।

        जब मेरी पहली यात्रा में अटेंडेंट ने मेरी विंडशील्ड को अंदर से साफ किया तो उसने पैसे का एक बीज बो दिया।

         सेवा को महत्व दो और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा हमेशा।

        पहले सेवा वाले रवैए से हर स्थिति में लाभ होता है। मेरी शुरुआती नौकरी में मैं एक युवक के साथ काम करता था जिसे मैं एफ. एच. का नाम देना चाहूँगा।

         एफ़. एच. आपकी पहचान के बहुत से लोगों की तरह होगा। वह इस बात की चिंता किया करता था कि उसके पास पैसा कम था जबकि उसे पैसे की बहुत ज़रूरत थी। वह हमेशा पैसे की कमी के बारे में ही सोचता रहता था, और ज़्यादा पैसा कमाने के तरीकों के बारे में कभी विचार नहीं करता था। हर सप्ताह एफ. एच. ऑफ़िस के समय में अपनी व्यक्तिगत बजट समस्याओं पर काम किया करता था। चर्चा का उसका फेवरिट टॉपिक था, “मुझे यहाँ पर सबसे कम तनख्वाह मिलती है। में आपको बता दूं कि ऐसा क्यों होता है।"

         एफ. एच. का रवैया था, “यह कंपनी इतनी बड़ी है। यह करोड़ों कमा रही है। यह इतने सारे लोगों को इतनी मोटी मोटी तनख्वाह दे रही है, इसलिए मुझे भी ज़्यादा तनख्वाह मिलनी चाहिए।"

        जब तनख्वाह बढ़ाने की बारी आती थी, तो एफ. एच. को अनदेखा कर दिया जाता था। जब ऐसा कई बार हो चुका, तो एक दिन उसने फ़ैसला किया कि वह जाकर ज्यादा तनख्वाह की माँग करेगा। 30 मिनट बाद एफ़.एच. गुस्से में वापस लौटा। उसके चेहरे पर साफ़ लिखा हुआ था कि अगले महीने भी उसे उतनी ही तनख्वाह मिलने वाली है जितनी कि इस महीने मिली थी।

        तत्काल एफ़. एच. ने अपनी भड़ास निकालना शुरू कर दिया। “हे भगवान, मेरे तो तनबदन में आग लग गई। जब मैंने तनख्वाह बढ़ाने की बात की, तो जानते हो 'बुड्ढे' ने क्या कहा? उसने यह पूछने की जुर्रत की, 'आपको ऐसा क्यों लगता है कि आपकी तनख्वाह बढ़ानी चाहिए?

         “मैंने उसके सामने बहुत से कारण गिना दिए,” एफ. एच. ने कहा। "मैंने उसे बताया कि कई बार मुझसे जूनियर लोगों को प्रमोशन दिया गया है। मैंने उसे बताया कि मेरा ख़र्च दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और मेरी तनख्वाह वहीं पर अटकी हुई है। और मैंने उसे बताया कि ऑफ़िस में मुझसे जो काम कहा जाता है, मैं वह काम कर देता हूँ।

         “और इसके बाद मेरी तनख्वाह क्यों नहीं बढ़नी चाहिए? मुझे ज़्यादा तनख्वाह की ज़रूरत थी, परंतु मुझे ज़्यादा पैसे देने के बजाय आप उन लोगों की तनख्वाह बढ़ा रहे हैं जिन्हें इसकी इतनी ज़्यादा ज़रूरत नहीं है।'

         “और जानते हो इसके बाद उसने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया," एफ़. एच. ने आगे कहा, “उसने ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं भीख माँग रहा हूँ। उसने कहा, 'जब तुम्हारा रिकॉर्ड बताएगा कि तुम ज़्यादा तनख्वाह के योग्य हो, तो तुम्हें अपने आप ही ज़्यादा तनख्वाह मिलने लगेगी।'

        “अवश्य ही मैं बेहतर काम कर सकता हूँ, अगर वे मुझे इसके लिए ज्यादा पैसे दें, लेकिन एक बेवकूफ़ ही वह करेगा जिसका उसे पैसा नहीं मिलता।"

         एफ़. एच. उस प्रजाति का एक उदाहरण है जो यह नहीं देख पाती कि पैसा “कैसे" कमाया जाता है। उसकी आख़िरी टिप्पणी में उसकी ग़लती का सारांश था। एफ़. एच. चाहता था कि पहले कंपनी उसकी तनख्वाह बढ़ाए, फिर वह बेहतर काम करेगा। परंतु सिस्टम इस तरह काम नहीं करता। बेहतर प्रदर्शन के वादे पर ही आपकी तनख्वाह नहीं बढ़ जाती। उसके लिए आपको बेहतर प्रदर्शन करके दिखाना होगा। आप तब तक पैसे की फ़सल नहीं काट सकते जब तक आपने पैसे के बीज को नहीं बोया हो। और पैसे का बीज है सेवा।

         सेवा को पहले नंबर पर रखें और मेवा यानी कि पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

          यह सोचें कि कौन सा निर्माता फ़िल्मों से ज़्यादा पैसे कमाता है। फटाफट-अमीर-बनने-वाला निर्माता एक फ़िल्म बनाता है। वह पैसे को मनोरंजन (सेवा) से ज्यादा महत्व देता है। वह एक ख़राब स्क्रिप्ट ख़रीदता है और घटिया लेखकों से इसकी पटकथा लिखवाता है। अभिनेताओं, सेट बनाने, रिकॉर्डिंग में भी वह पैसे को पहले नंबर पर रखता है। यह निर्माता सोचता है कि फ़िल्म देखने वाली जनता मूर्ख होती है और वह अच्छे-बुरे के फ़र्क को नहीं समझ पाएगी।

          परंतु फटाफट-अमीर-बनने-वाला निर्माता शायद ही कभी जल्दी अमीर बन पाएगा। जनता कभी इतनी मूर्ख नहीं होती कि घटिया माल को ख़रीदे, और वह भी ऊँचे दामों पर।

          जिस निर्माता को फ़िल्मों से सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा होता है, वह मनोरंजन को पैसे के ऊपर रखता है। अपने दर्शकों को मूर्ख बनाने के बजाय वह उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मनोरंजन देने की कोशिश करता है। परिणाम यह होता है कि लोग उसकी फ़िल्म को पसंद करते हैं। उसकी
तारीफ़ होती है। अख़बारों में उसके बढ़िया रिव्यू छपते हैं। और बॉक्स ऑफ़िस पर खूब कमाई होती है।

           एक बार फिर ध्यान रखें, पहले सेवा करें और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

         वह वेटर जो अपने ग्राहक को सबसे अच्छी सर्विस देने की कोशिश करता है उसे टिप के बारे में चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। टिप उसे ज़रूर मिलेगी और अच्छी मिलेगी। परंतु उसी का साथी वेटर जो कॉफ़ी के खाली कपों को अनदेखा कर देता है ("उन्हें अपने आप क्यों भरूँ। वैसे भी यह लोग ज़्यादा टिप देने वाले नहीं दिख रहे हैं"), ऐसे वेटर को ज़्यादा टिप कौन देगा?

          जो सेक्रेटरी अपने बॉस की उम्मीद से बेहतर लेटर टाइप करके दिखाती है, उसकी भविष्य की तनख्वाह अच्छी ही होगी। परंतु जो सेक्रेटरी सोचेगी, “थोड़ी बहुत ग़लतियों के बारे में चिंता क्यों करूँ ? आख़िर 65 डॉलर प्रति सप्ताह में आप मुझसे क्या उम्मीद करते हैं ?" - उसे आगे भी 65 डॉलर प्रति सप्ताह ही मिलते रहेंगे।

          वह सेल्समैन जो अपने ग्राहक की मन लगाकर सेवा करता है, उसे अपने ग्राहक के खोने या छिन जाने का कोई डर नहीं होना चाहिए।

         यहाँ एक आसान परंतु सशक्त नियम दिया जा रहा है जो आपको बताएगा कि आप किस तरह पहले सेवा का रवैया रखें : लोग जितनी उम्मीद करते हैं, लोगों को हमेशा उससे ज़्यादा दें। थोड़ा अतिरिक्त देने से आप पैसे का बीज बो देते हैं। देर तक रुककर इच्छा से काम करना और डिपार्टमेंट के सामने आई किसी मुश्किल समस्या को दूर करना भी पैसे का बीज बोना है। ग्राहक की अतिरिक्त सेवा कर देना भी पैसे का बीज बोना है क्योंकि इससे ग्राहक आपके पास बार-बार आता है। कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए नए विचार बताना भी पैसे का बीज बोना है।

          पैसे के बीज से पैसे का पेड़ उगता है और पैसे के फल लगते हैं। परंतु पैसे के इस बीज का नाम है सेवा। इसलिए सेवा को बो दें और पैसे की फ़सल काटें।

          हर दिन कुछ समय इस सवाल का जवाब देने में बिताएँ, “मैं किस तरह अपेक्षा से ज़्यादा करके दिखा सकता हूँ?" और फिर दिमाग़ में जो जवाब आएँ, उन पर अमल करें।

          सेवा को पहले नंबर पर रखें और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

           संक्षेप में, सफलता की तरफ़ आगे ले जाने वाले रवैयों को विकसित करें।

      1. "मुझमें उत्साह है" का रवैया विकसित करें। आपमें जितना उत्साह होगा, आपको उतने ही अच्छे परिणाम मिलेंगे। आप तीन तरह से अपने आपमें उत्साह भर सकते हैं :

       A. गहराई में जाएँ। जब आपको कोई चीज़ नीरस लगे, तो उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें। इससे उत्साह बढ़ता है।

          B. हर काम दिल से करें। आपकी मुस्कराहट, आपका हाथ मिलाना, आपकी चर्चा, आपकी चाल, हर बात में उत्साह और गर्मजोशी दिखनी चाहिए। ज़िंदादिली से काम करें।

         C. अच्छी ख़बर फैलाएँ। किसी भी व्यक्ति ने बुरी ख़बर सुनाकर कोई अच्छी चीज़ हासिल नहीं की है।

          2. “आप महत्वपूर्ण हैं” का रवैया विकसित करें। जब आप लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं, तो लोग आपके लिए ज्यादा काम करते हैं। तीन बातें याद रखें:

         A. हर मौके पर तारीफ़ करें। लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराएँ।

         B. लोगों को उनके नाम से बुलाएँ।

          3. “पहले सेवा" वाला रवैया विकसित करें और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा। हर काम में यह नियम बना लें, लोग आपसे जितनी उम्मीद करते हैं, आप उससे ज्यादा ही दें।

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Thursday, September 26, 2019

CHAPTER 8.2 अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ

             अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को 
                        अपना दोस्त बनाएँ


      3. अच्छी ख़बर फैलाएँ। आपके और हमारे सामने कितनी ही बार किसी व्यक्ति ने अचानक आकर कहा होगा, “मैं आपको एक अच्छी ख़बर सुनाना चाहता हूँ।" तत्काल हर एक का पूरा ध्यान उस व्यक्ति की तरफ़ चला जाता है। अच्छी ख़बर से सिर्फ ध्यान ही आकर्षित नहीं होता; अच्छी ख़बर से लोग खुश भी होते हैं। अच्छी ख़बर से उत्साह विकसित होता है। अच्छी ख़बर से पाचन तंत्र भी ठीक रहता है।

       चूँकि अच्छी ख़बर सुनाने वालों के मुक़ाबले आज बुरी ख़बर सुनाने वाले ज़्यादा हो गए हैं इसलिए उनके बहकावे में न आएँ। आज तक बुरी ख़बर सुनाकर किसी ने भी कोई दोस्त नहीं बनाया, किसी ने भी पैसा नहीं कमाया, न ही किसी ने कोई उपलब्धि हासिल की है।

        अपने परिवार को अच्छी ख़बर सुनाएँ। उन्हें आज घटी अच्छी घटनाएँ सुनाएँ। उन्हें अपने रोचक, सुखद अनुभव सुनाएँ और अप्रिय घटनाओं को दफना दें। अच्छी ख़बर फैलाएँ। बुरी ख़बर फैलाने का कोई अर्थ नहीं है। इससे आपका परिवार व्यर्थ ही चिंतित और नर्वस हो जाएगा। हर दिन घर में सूरज की रोशनी लेकर जाएँ, रात का अँधेरा लेकर न जाएँ।

       कभी आपने देखा है कि बच्चे मौसम के बारे में कितनी कम शिकायत करते हैं। उन्हें गर्म मौसम से तब तक कोई खास तकलीफ़ नहीं होती जब तक कि उन्हें नकारात्मक विचार वाले लोग इसके नुकसान से परिचित नहीं करवा देते। चाहे मौसम कैसा भी हो, आप मौसम के बारे में हमेशा अच्छा बोलने की आदत डाल लें। मौसम के बारे में शिकायत करने से आपका मूड ख़राब होता है और आप दूसरों का मूड भी ख़राब कर देते हैं।

       आप कैसा महसूस करते हैं, इस बारे में भी अच्छी ख़बर सुनाएँ। "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है" कहने वाले व्यक्ति बनें। हर मौके पर कहें, "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है" और ऐसा कहने के बाद आपको सचमुच अच्छा लगने लगेगा। इसी तरह से अगर आप लोगों को यह बताएंगे, “मुझे बहुत बुरा लग रहा है" तो आपको सचमुच सब कुछ बुरा लगने लगेगा। हम कैसा महसूस करते हैं, यह काफ़ी हद तक हमारे विचारों पर निर्भर करता है। यह भी याद रखें कि सभी लोग उत्साही व्यक्तियों को पसंद करते हैं। शिकायत करने वालों और आधे-मुर्दा लोगों के आस-पास रहना किसी को भी पसंद नहीं होता।

       अपने साथ काम करने वालों को अच्छी ख़बर सुनाएँ। उनका उत्साह बढ़ाते रहें, हर मौके पर उनकी तारीफ़ करते रहें। कंपनी के सकारात्मक कामों के बारे में उन्हें बताएँ। उनकी समस्याएं सुनें। उनकी मदद करने की कोशिश करें। लोगों को प्रोत्साहित करें और उनका सहयोग हासिल करें। उनके अच्छे काम के लिए उनकी पीठ थपथपाएँ। उन्हें आशा बँधाएँ। उन्हें बताएँ कि आपको उन पर, उनकी क्षमताओं पर भरोसा है और आपको यह विश्वास भी है कि वे सफल हो सकते हैं। चिंता करने वालों की चिंता कम करने की कोशिश करें।

          हर दिन सही रास्ते पर चलने के लिए यह छोटा सा प्रयोग नियमित रूप से करें। जब भी आप किसी व्यक्ति से विदा लें, खुद से पूछे, “क्या मुझसे बात करने के बाद इस व्यक्ति का मूड पहले से बेहतर हुआ है?" यह आत्म-प्रशिक्षण तकनीक सचमुच सफल होती है। अपने कर्मचारियों, अपने सहयोगियों, अपने परिवार, अपने ग्राहकों, यहाँ तक कि कभी-कभार मिलने वाले परिचितों के साथ भी इस तकनीक का प्रयोग करें।

        मेरा एक सेल्समैन मित्र अच्छी ख़बरों को ब्रॉडकास्ट करता है। वह हर महीने अपने ग्राहकों के पास जाता है और उन्हें नियम से कोई न कोई अच्छी खबर सुनाता है।

        उदाहरण : "मैं पिछले सप्ताह ही आपके एक अच्छे दोस्त से मिला। उसने आपको नमस्ते कहलवाया है।" "पिछली बार मैं जब आपसे मिला था, तब से अब के बीच में बहुत बड़े परिवर्तन हो चुके हैं। पिछले महीने 350,000 बच्चों का जन्म हुआ है और ज्यादा बच्चे पैदा होने का मतलब है हम दोनों के लिए ज्यादा बिज़नेस।"

         हम अक्सर यह सोचते हैं कि बैंक के प्रेसिडेंट बहुत रिज़र्व टाइप के भावहीन व्यक्ति होते हैं। परंतु एक बैंक प्रेसिडेंट ऐसा नहीं है। फ़ोन पर उनका जवाब देने का फेवरिट तरीक़ा है, "गुड मॉर्निंग। दुनिया कितनी अच्छी है। क्या मैं आपको कुछ पैसे उधार दे सकता हूँ?" कई लोग कहेंगे बैंकर के लिए यह ठीक नहीं है, पर मैं यह बता दूँ कि जो बैंकर इस तरह की बात कहते हैं, उनका नाम है मिल्स लेन, जो सिटिजन्स एंड सदर्न बैंक के जूनियर प्रेसिडेंट हैं और हम जानते हैं कि यह बैंक पूरे दक्षिण-पूर्व में सबसे बड़ा बैंक है।

         अच्छी ख़बर के परिणाम भी अच्छे होते हैं। इसलिए अच्छी ख़बरें फैलाते रहें।

        एक ब्रश निर्माता कंपनी के प्रेसिडेंट ने अपनी टेबल पर यह सूत्रवाक्य लगा रखा था। आगंतुक के सामने लिखा रहता था - "मुझसे या तो अच्छी बात कहें या कुछ न कहें।” मैंने उसकी तारीफ की कि उसने इतना। बढ़िया विचार लिखा है जिससे लोग ज्यादा आशावादी हो जाते हैं।

        वह मुस्कराया और उसने कहा, “यह विचार हमें इस बारे में जागरूक बना देता है। परंतु मेरी तरफ़ से देखने पर तो यह विचार और भा। महत्वपूर्ण बन जाता है।" उसने तख्ती को पलट दिया और मैंने देखा कि। उसकी तरफ़ यह विचार कुछ इस तरह लिखा गया था, “उनसे या ता। अच्छी बात कहें, या कुछ न कहें।"

       अच्छी खबर फैलाने से आप प्रेरित होते हैं, आपको अच्छा लगता है। अच्छी खबर फैलाने से दूसरे लोगों को भी अच्छा लगता है|

आप महत्वपूर्ण हैं वाला रवैया विकसित करना

यह बेहद महत्वपूर्ण तथ्य है: हर इंसान में - चाहे वह इंडिया में रहता हो या इंडियानापोलिस में, चाहे वह मूर्ख हो या प्रतिभाशाली, चाहे वह सभ्य हो या जंगली, चाहे वह बच्चा हो या बूढ़ा - यह इच्छा होती है : कि उसे महत्वपूर्ण समझा जाए।

          इस बारे में विचार करें। सबमें, हाँ हर एक में - आपके पड़ोसी, आप, आपकी पत्नी, आपके बॉस - हर व्यक्ति में यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह “महत्वपूर्ण" है। महत्वपूर्ण बनने की इच्छा मनुष्य की सबसे प्रबल, सबसे प्रबल गैर शारीरिक भूख होती है।

          सफल एड्वर्टाइज़र्स जानते हैं कि लोग प्रतिष्ठा, सम्मान, आदर चाहते हैं। इसीलिए तो विज्ञापनों में लोगों को लुभाने के लिए ऐसी बातें लिखी जाती हैं, “स्मार्ट युवा महिलाओं के लिए,” "जो लोग ख़ास होते हैं वे अमुक सामान इस्तेमाल करते हैं," "आपको सबसे अच्छा माल चाहिए", "हर एक की तारीफ़ के क़ाबिल बनें," "उन महिलाओं के लिए जो दूसरी महिलाओं को जलाना चाहती हैं और पुरुषों को रिझाना चाहती हैं।" इस तरह के वाक्य वास्तव में लोगों को यह बताते हैं, "इस सामान को ख़रीदो और खुद को महत्वपूर्ण लोगों की श्रेणी में शामिल कर लो।"

          महत्वपूर्ण बनने की लालसा, महत्वपूर्ण बनने की भूख ही आपको सफलता की तरफ़ आगे ले जाती है। यह आपकी सफलता का सबसे बड़ा औज़ार है। परंतु, (और आगे बढ़ने से पहले इस वाक्य को दुबारा पढ़ें) हालाँकि “आप महत्वपूर्ण हैं" के रवैए से परिणाम मिलते हैं और हालाँकि इसमें कुछ भी ख़र्च नहीं होता, फिर भी बहुत कम लोग इस रवैए का इस्तेमाल करते हैं। अब यह बताना ज़रूरी है कि ऐसा क्यों होता है।

         दार्शनिक दृष्टि से देखा जाए तो हमारे धर्म, हमारे क़ानून, हमारी पूरी संस्कृति - यह मनुष्य को महत्वपूर्ण मानते हैं। इन सबके अस्तित्व का आधार ही मनुष्य की महत्ता है।

          मान लीजिए, आप अपने हवाई जहाज़ में उड़ रहे हों और किसी वीरान जंगल में आपको मजबूरन उतरना पड़ जाए तो क्या होगा। जैसे ही इस दुर्घटना की ख़बर मिलेगी, आपकी खोज के लिए बड़े पैमाने पर खोज अभियान शुरू हो जाएगा। कोई भी यह नहीं पूछेगा, “क्या यह व्यक्ति महत्वपूर्ण है ?" आपके बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता सिवाय इसके कि आप एक इंसान हैं, फिर भी हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज़ और खोजी दस्ते आपकी तलाश में जुट जाएँगे। और वे तब तक आपकी खोज करते रहेंगे, और इस अभियान में हज़ारों डॉलर ख़र्च करते रहेंगे, जब तक कि आप उन्हें मिल नहीं जाते या उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाता कि अब खोज करने से कोई फायदा नहीं होगा।

        जब कोई छोटा बच्चा जंगल में गुम जाता है या कुँए में गिर जाता है या किसी ऐसी ही खतरनाक परिस्थिति में फँस जाता है तो कोई इस बारे में नहीं पूछता कि वह बच्चा किसी “महत्वपूर्ण" परिवार का है या नहीं। बच्चे को बचाने की हरसंभव कोशिश सिर्फ इसलिए की जाती है क्योंकि हर बच्चा महत्वपूर्ण होता है।

        समस्त जीवित प्राणियों में एक करोड़ में से एक प्राणी ही मनुष्य होता है। मनुष्य जैववैज्ञानिक रूप से दुर्लभ प्राणी है। ईश्वर की योजना में मनुष्य का महत्वपूर्ण स्थान है।

       अब हम इसके व्यावहारिक पक्ष को देखें। जब ज्यादातर लोग दार्शनिक चर्चा से रोज़मर्रा की परिस्थितियों पर आते हैं तो वे दुर्भाग्य से यह भूल जाते हैं कि मनुष्य महत्वपूर्ण होता है। कल, आप यह ध्यान से देखें कि किस तरह ज़्यादातर लोगों का रवैया यह कहता नज़र आता है, “आप कोई नहीं हैं, आपका कोई मूल्य नहीं है; आपका कोई अर्थ नहीं है, आपका मेरे लिए कोई महत्व नहीं है।"

       “आप महत्वहीन हैं" वाले रवैए के पीछे भी एक कारण होता है। ज़्यादातर लोग दूसरे व्यक्ति की तरफ़ देखते हैं और सोचते हैं, “यह मेरे। लिए कुछ नहीं कर सकता। इसलिए, यह व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है।"

         परंतु यहीं पर लोग बहुत बड़ी भूल करते हैं। सामने वाला व्यक्ति, चाहे उसका स्टेटस या उसकी आमदनी कुछ भी हो, आपके लिए दो कारणा से महत्वपूर्ण होता है।

पहला कारण यह, जब आप लोगों को महत्व देते हैं, तो वे आपके लिए ज्यादा काम करते हैं। वर्षों पहले मैं डेट्रॉइट में हर सुबह एक बस में अपनी नौकरी पर जाता था। ड्राइवर एक सनकी बुड्ढा था। दर्जनों - शायद सैकड़ों- बार मैंने देखा कि उस ड्राइवर ने गाड़ी चला दी, जबकि सवारी भागती हुई, हाथ हिलाती हुई आ रही थी और दरवाज़े से एक या दो क़दम की दूरी पर थी। कई महीनों तक मैंने देखा कि यह ड्राइवर केवल एक यात्री के प्रति विशेष सम्मान दिखाता था, और ड्राइवर ने उस सवारी का कई बार खास ध्यान रखा। कई बार तो ड्राइवर इस यात्री के आने का इंतज़ार तक करता था।

        और वह ऐसा क्यों करता था? क्योंकि यह यात्री ड्राइवर को महत्व देता था। हर सुबह वह ड्राइवर का अभिवादन करता था, गंभीरता से उससे "गुड मॉर्निंग, सर" कहता था। कई बार यह यात्री ड्राइवर के पास बैठ जाता था और उससे छोटे-छोटे वाक्य कहता था, “आपका काम बड़ी ज़िम्मेदारी का है।" "इतने ट्रैफ़िक में गाड़ी चलाने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए।" “आपकी बस के हिसाब से तो घड़ी मिलाई जा सकती है।" यह यात्री ड्राइवर को इतना महत्वपूर्ण बना देता था जैसे वह 180 यात्रियों के जेट एयरलाइनर को उड़ा रहा हो। और बदले में वह ड्राइवर भी इस यात्री के साथ विशेष व्यवहार करता था।

        "छोटे" लोगों को बड़े लोगों की तरह महत्व देने से फायदा होता है।

         आज. अमेरिका में हज़ारों ऑफ़िसों में, सेक्रेटरी सेल्समैन की सामान बेचने में मदद कर रहे हैं या उसका सामान बिकने नहीं दे रहे हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि सेल्समैन का सेक्रेटरी के प्रति व्यवहार कैसा है। किसी भी व्यक्ति को अगर आप महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं तो वह आपकी परवाह करने लगेगा। और जब वह आपकी परवाह करेगा, तो वह आपके लिए ज्यादा काम करेगा।

अगर आप लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराएँगे, तो ग्राहक आपसे ज़्यादा सामान खरीदेंगे, आपके कर्मचारी आपके लिए ज्यादा मेहनत करेंगे, आपके सहयोगी आपके साथ ज़्यादा सहयोग करेंगे, आपका बॉस आपकी ज़्यादा मदद करेगा।

        "बड़े” लोगों को ज्यादा बड़े होने का महत्व देना भी फ़ायदे का सौदा है। बड़ी सोच वाला व्यक्ति लोगों की सर्वश्रेष्ठ क्षमता के हिसाब से उनका मूल्यांकन करता है। चूंकि वह हमेशा लोगों के बारे में बड़ा सोचता है, इसलिए वह उनसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवाने में सफल होता है।

यहाँ सामने वाले को महत्व देने का दूसरा बड़ा कारण बताया जा रहा है : जब आप दूसरों को महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं, तो आप खुद को भी महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं।

        एक लिफ्ट ऑपरेटर जो कई महीनों तक मुझे “ऊपर-नीचे" ले जाती रही, बहुत ही सामान्य, महत्वहीन सी महिला थी। वह पचास के क़रीब होगी, वह ज़रा भी आकर्षक नहीं थी और वह अपने काम में बिलकुल रुचि नहीं लेती थी। यह स्पष्ट था कि महत्वपूर्ण दिखने की उसकी चाह ज़रा भी संतुष्ट नहीं हुई थी। वह उन करोड़ों लोगों में से थी जो कई बार महीनों तक ऐसी जिंदगी जीते रहते हैं जिस दौरान उन्हें यह नहीं लगता कि कोई उनकी परवाह करता है या उनकी तरफ़ ध्यान देता है।

         एक सुबह मैंने देखा कि उसने अपने बालों को नए स्टाइल से कटवाया था। ज़ाहिर था कि यह ब्यूटी पार्लर का काम नहीं था, यह तो घरेलू काम दिख रहा था। परंतु बाल कटे हुए थे और पहले से बेहतर दिख रहे थे।

        इसलिए मैंने कहा, “मिस एस., (ध्यान दीजिए, मैंने उसका नाम जान लिया था) आपके बालों की कटिंग बड़ी अच्छी हुई है। अब यह सचमुच आकर्षक लग रहे हैं।" वह शर्मा गई, और उसने कहा, “बैंक यू, सर," और इसके बाद वह ख़यालों में इस क़दर खो गई कि वह अगली मंज़िल पर लिफ्ट रोकना तक़रीबन भूल गई। उसे तारीफ़ अच्छी लगी थी।

        अगली सुबह जब मैं लिफ्ट में घुसा तो मैंने सुना, “गुड मॉर्निंग, डॉ. श्वार्ट्ज़।” मैंने इससे पहले इस लिफ्ट ऑपरेटर को किसी का नाम लेते। नहीं सुना था। और जब तक मैं उस ऑफ़िस में रहा, तब तक उस महिला ने मेरे अलावा किसी को भी नाम से नहीं बलाया। मैंने ऑपरेटर को महत्वपूर्ण होने का एहसास दिलाया था। मैंने उसकी सच्ची तारीफ़ की थी और उसे नाम से पुकारा था।

मैंने उसे महत्वपूर्ण अनुभव कराया था। अब वह मुझे महत्वपूर्ण अनुभव कराकर एहसान उतार रही थी।

        हम अपने आपको धोखे में न रखें। जिन लोगों में आत्म-महत्ता का भाव गहराई तक नहीं होता है, वे हमेशा औसत जिंदगी जीते रहेंगे। अच्छी तरह से इस बात को समझ लें : आपको सफल होने के लिए महत्वपूर्ण अनुभव करना होगा। दूसरे लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराने से आपको इसलिए फ़ायदा होता है क्योंकि इससे आप ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाते हैं। आज़माकर देखें।

     1. तारीफ़ करने की आदत डालें। दूसरों को यह बताने का नियम बना लें कि आप उनके किए काम की तारीफ़ करते हैं। कभी भी किसी को भी यह महसूस न होने दें कि आप उसके काम को रुटीन काम मान रहे हैं। गर्मजोशी से, सच्ची मुस्कराहट के साथ तारीफ़ करें। मुस्कराहट से दूसरों को पता चलता है कि आप उनकी तरफ़ ध्यान दे रहे हैं और आप उन्हें देखकर खुश हुए हैं।

         दूसरों को यह बताकर उनकी तारीफ़ करें कि आप उन पर कितने निर्भर हैं। गंभीरता से बोला गया इस तरह का वाक्य, “जिम, मैं नहीं जानता कि तुम्हारे बिना मेरा काम कैसे चल पाता" लोगों को उनके महत्व का एहसास करा देता है और इसके बाद वे आपके लिए पहले से ज्यादा और बेहतर काम करते हैं।

         सच्ची, व्यक्तिगत तारीफ़ करने की आदत डालें। लोग तारीफ़ सुनना पसंद करते हैं। चाहे किसी की उम्र 2 साल हो या 20 साल, 9 साल हो या 90 साल, हर मनुष्य तारीफ़ का भूखा होता है। उसे यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए कि वह अच्छा काम कर रहा है, कि वह महत्वपूर्ण है। ऐसा न लगने दें कि आप केवल बड़ी उपलब्धियों की ही सराहना करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर लोगों को तारीफ़ का उपहार दें: उनकी वेशभूषा, उनके काम करने का तरीक़ा, उनके विचार, उनकी वफ़ादारी, उनकी मेहनत। उपलब्धियों पर लोगों को चिट्ठी लिखकर उनकी तारीफ़ करें। किसी विशेष सफलता पर फ़ोन करें या मिलने जाएँ।

        यह सोचने में अपना समय या अपनी मानसिक ऊर्जा बर्बाद न करें कि कौन से लोग “बेहद महत्वपूर्ण" हैं, कौन से “महत्वपूर्ण" हैं, या कौन से “महत्वहीन" हैं। किसी के साथ कोई भेदभाव न करें। हर व्यक्ति चाहे वह स्वीपर हो या कंपनी का वाइस प्रेसिडेंट आपकी नज़रों में महत्वपूर्ण है। किसी के साथ घटिया व्यवहार करके आप उससे बढ़िया परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते।


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Wednesday, September 25, 2019

CHAPTER 8.1 अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ

                अपने विचारों को अपना
                         दोस्त बनाएँ

क्याआप सामने वाले के विचार पढ़ सकते हैं? किसी के विचार या पढना कोई मुश्किल काम नहीं है। आप इस काम को जितना कठिन समझते हैं, यह दरअसल उससे बहुत आसान है। शायद आपने इस बारे में ठीक से सोचा नहीं है, परंतु यह सच है कि आप हर दिन दूसरों के विचार पढ़ते हैं और आप अपने खुद के विचारों को भी पढ़ते हैं।

        हम ऐसा किस तरह करते हैं ? ऐसा अपने आप होता है और हम रवैए के मूल्यांकन से ऐसा कर पाते हैं।

        आपने वह गाना सुना है, You Don't Need to Know the Language to Say You're In Love (प्यार का इज़हार करने के लिए भाषा जानने की ज़रूरत नहीं होती)। यह प्रसिद्ध गीत बिंग क्रॉसबी ने कुछ साल पहले गाया था। इस साधारण से गाने में मनोविज्ञान की पूरी पुस्तक का निचोड़ है। आपको प्यार का इज़हार करने के लिए भाषा जानने की जरूरत नहीं होती। जिसने भी प्रेम किया है, वह यह बात अच्छी तरह से जानता है।

            और आपको यह बताने के लिए भी भाषा जानने की ज़रूरत नहीं है, "मैं आपको पसंद करता हूँ" या "मैं आपसे नफ़रत करता हूँ" या "मैं मझता हूँ कि आप महत्वपर्ण हैं" या "महत्वहीन हैं" या "मैं आपसे ईर्ष्या करता हूँ।" आपको यह कहने के लिए शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता, “मैं अपने काम को पसंद करता हूँ" या "मैं बोर हो चुका हूँ" या "मैं भूखा हूँ।" लोग इन वाक्यों को बिना आवाज़ किए बोल लेते हैं।

        हम क्या सोच रहे हैं, यह हमारे हावभाव से समझ में आ जाता है। हमारे हावभाव हमारे मस्तिष्क के प्रतिबिंब हैं। वे बताते हैं कि हम क्या सोच रहे हैं।

        आप ऑफ़िस की कुर्सी पर बैठे किसी व्यक्ति के विचार पढ़ सकते हैं। आप उसके हावभाव देखकर समझ सकते हैं कि अपने काम के बारे में उसका दृष्टिकोण क्या है। आप सेल्समैन, विद्यार्थियों, पतियों और पत्नियों के विचार समझ सकते हैं; आप न सिर्फ ऐसा कर सकते हैं, बल्कि आप अक्सर ऐसा करते हैं।

         फ़िल्मों और टीवी सीरियलों के लोकप्रिय अभिनेता दरअसल अभिनय नहीं करते। वे अपनी भूमिकाओं को नहीं निभाते। इसके बजाय वे अपने अस्तित्व को भूल जाते हैं और सचमुच यह कल्पना करने लगते हैं कि वे अभिनय किए जाने वाले पात्र के शरीर में घुस गए हैं। उन्हें यह करना ही पड़ता है। इसके बिना वे नक़ली लगेंगे, उनके अभिनय में जान नहीं आ पाएगी और उनकी लोकप्रियता कम हो जाएगी।

        हमारे दृष्टिकोण न सिर्फ दिख जाते हैं, बल्कि वे "सुनाई" भी दे जाते हैं। कोई सेक्रेटरी जब फ़ोन पर बात करती है और कहती है, “गुड मॉर्निंग, मिस्टर शूमेकर्स ऑफ़िस," तो इन पाँच शब्दों में वह सेक्रेटरी यह जता देती है, “मैं आपको पसंद करती हूँ। मुझे खुशी है कि आपने फ़ोन किया। मुझे लगता है कि आप महत्वपूर्ण हैं। मैं अपने काम को पसंद करती हूँ।" |

          परंतु दूसरी सेक्रेटरी इन्हीं शब्दों के माध्यम से यह बोलती हुई लग सकती है, “आप मुझे परेशान कर रहे हैं। कितना अच्छा होता अगर आपका फ़ोन नहीं आया होता। मैं अपने काम से बोर हो गई हूँ और मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती, जो मुझे परेशान करें।”

          हावभाव से, आवाज़ की टोन से और आवाज़ के उतार-चढ़ाव से हम किसी के भी रवैए को समझ जाते हैं। इसका कारण क्या है ? मनुष्य के इतिहास में बोलने वाली भाषा का जन्म तो हाल ही में हुआ है। अगर हम कालचक्र के हिसाब से देखें, तो परे इतिहास की घडी के मान से मनुष्य ने इसी सुबह बोलना शुरू किया है। भाषा के जन्म से पहले, करोड़ों सालों से इंसान सिर्फ़ आवाज़ और इशारों और हावभाव से अपनी बात कहता आया है।

          करोड़ों सालों तक इंसान दूसरे इंसानों के साथ संप्रेषण के लिए शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता था, बल्कि अपने शरीर, अपने चेहरे के भाव और अपनी आवाज़ का इस्तेमाल करता था। और हम आज भी अपने दृष्टिकोण और अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त करने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। बच्चों के साथ व्यवहार करते समय हमारे पास सीधे शारीरिक स्पर्श के अलावा सिर्फ़ आवाज़, हावभाव और शरीर की गतिविधियाँ ही तो संप्रेषण का माध्यम हैं। और बच्चों में ऐसी छठी इंद्रिय होती है कि वे असली और नक़ली का फ़र्क तत्काल समझ लेते हैं।

          प्रोफ़ेसर अर्विन एच. शेल, जो लीडरशिप में अमेरिका के प्रख्यात विशेषज्ञ हैं, कहते हैं, “सच कहा जाए तो उपलब्धि के लिए सुविधाओं और योग्यता के अलावा किसी और चीज़ की भी ज़रूरत होती है। मेरा यह मानना है कि इस उत्प्रेरक को सिर्फ एक शब्द में बयान किया जा सकता है - रवैया। जब आपका रवैया सही होगा, तभी आप अपनी योग्यताओं का अधिकतम उपयोग कर पाएंगे और आपको उसके अच्छे परिणाम अपने आप मिलेंगे।"

         रवैए से फ़र्क पड़ता है। सही रवैए वाला सेल्समैन अपने लक्ष्य को प्राप्त ही नहीं करता, बल्कि उससे आगे निकल जाता है। सही रवैए वाला विद्यार्थी परीक्षा में फ़र्स्ट डिवीज़न लाता है। सही रवैए वाले दंपति सुखी वैवाहिक जीवन बिताते हैं। सही रवैए से आप लोगों के साथ प्रभावी व्यवहार करते हैं, आप लीडर बन जाते हैं। सही रवैए से आप हर तरह की परिस्थिति में जीत जाते हैं।

          इन तीन रवैयों को विकसित करें। इन्हें अपने हर काम में अपना साथी बनाएँ।

    1. मुझमें उत्साह है का रवैया विकसित करना।

    2. आप महत्वपूर्ण हैं का रवैया विकसित करना।

    3. सेवाभाव का रवैया विकसित करना।

      अब हम देखते हैं कि ऐसा किस तरह किया जा सकता है।

      सालों पहले, जब मैं कॉलेज में था, मैंने अमेरिकी इतिहास की कथा में अपना नाम लिखाया। मुझे क्लास बहुत अच्छी तरह याद है, इसलिए नहीं क्योंकि वहाँ मैंने अमेरिकन इतिहास के बारे में बहुत कुछ सीखा था. बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने वहाँ पर सफल जीवन का यह मूलभूत सिद्धांत सीखा था : दूसरों में उत्साह भरने के लिए, पहले खुद में उत्साह भरें।

       इतिहास की कक्षा बहुत बड़ी थी और यह एक बड़े हॉल में लगा करती थी। प्रोफ़ेसर अधेड़ थे और बड़े ज्ञानी थे, परंतु उनके लेक्चर बहुत बोरिंग हुआ करते थे। इतिहास को जीवंत और रोचक विषय के रूप में पढ़ाने के बजाय वे हमें तथ्य और तारीखें गिनाते रहते थे। मुझे यह देखकर हैरानी होती थी कि वे इतने रोचक विषय को इतने बुरे तरीके से कैसे पढ़ा लेते हैं। परंतु वे ऐसा कर लेते थे।

          आप समझ ही सकते हैं कि प्रोफ़ेसर की बोरियत भरी बातों का विद्यार्थियों पर क्या असर होता होगा। वे या तो बातें करते थे या फिर
सो जाते थे। जब माहौल बहुत बिगड़ गया तो प्रोफ़ेसर ने दो पहरेदारों को तैनात कर दिया ताकि विद्यार्थियों को बातें करने और सोने से रोका जा सके।

           कभी-कभार, प्रोफेसर बीच में रुककर अपनी उँगली उठाकर छात्रों से कहते थे, “मैं तुम सबको चेतावनी देता हूँ। मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम लोग बातें करना बंद कर दो और मेरा लेक्चर सुनो।” इससे विद्यार्थियों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता था, क्योंकि इनमें से कई विद्यार्थी तो हाल ही में युद्ध से लौटे थे और उन्होंने टापुओं और लड़ाकू हवाई जहाज़ों में इतिहास रचा था।

           जब मैं वहाँ बैठकर यह सोच रहा था कि जिस विषय को इतने बढ़िया तरीके से पढ़ाया जा सकता था, उसे यह प्रोफ़ेसर इतने बुरे तरीकेसे क्यों पढ़ा रहे हैं, तो मेरे दिमाग में यह सवाल भी आया, “विद्यार्थी प्रोफ़ेसर की बातों में रुचि क्यों नहीं ले रहे हैं?"

          जवाब तत्काल मिल गया।

          विद्यार्थियों को प्रोफ़ेसर की बातों में कोई रुचि इसलिए नहीं थी, क्योंकि अपने लेक्चर या अपने विषय में प्रोफ़ेसर की ही कोई रुचि नहीं थी। वह इतिहास पढ़ाते-पढ़ाते बोर हो चुके थे और यह साफ़ नज़र आता था। दूसरों को उत्साहित करने के लिए आपको पहले खुद उत्साहित होना पड़ेगा।

    

         सालों तक मैंने इस सिद्धांत को सैकड़ों परिस्थितियों में आज़माया है। हर बार यह सच साबित हुआ है। जिस व्यक्ति में उत्साह नहीं होता, वह दूसरों को उत्साहित नहीं कर सकता। परंतु जो उत्साही होता है, उसके पीछे जल्दी ही बहुत से उत्साहित अनुयायी जमा हो जाते हैं।

           उत्साही सेल्समैन को इस बारे में फ़िक्र नहीं होनी चाहिए कि उसके ग्राहकों में उत्साह की कमी हो सकती है। उत्साही टीचर को उत्साहहीन विद्यार्थियों के बारे में फ़िक्र नहीं करनी पड़ेगी। उत्साहित धर्मोपदेशक उनींदी भीड़ को देखकर कभी दुःखी नहीं होगा।

          उत्साह से चीजें 1100 प्रतिशत बेहतर हो सकती हैं। दो साल पहले एक कंपनी के कर्मचारियों ने रेड क्रॉस में 94.35 डॉलर का दान दिया। इस साल उन्हीं कर्मचारियों ने लगभग 1,100 डॉलर दान में दिए, जो पिछली राशि से 1100 प्रतिशत ज़्यादा थी।

        जिस कप्तान ने 94.35 डॉलर का चंदा लिया था, उसमें उत्साह नहीं था। उसने इस तरह की बातें कहीं, “मुझे लगता है यह एक महत्वपूर्ण संस्था है;" “मेरा इससे कभी सीधा सरोकार नहीं रहा है"; “यह एक बड़ा संगठन है और यह अमीर लोगों से काफ़ी चंदा लेता है इसलिए मुझे नहीं लगता कि आपके योगदान से कोई ख़ास फ़र्क पड़ने वाला है;" "अगर आप दान देना चाहते हों, तो मुझसे संपर्क कर लें।" इस व्यक्ति ने किसी को रेड क्रॉस में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं किया।

          इस साल का चंदा लेने वाला ज़रा अलग क़िस्म का था। उसमें उत्साह था। उसने इतिहास के कई उदाहरण देकर लोगों को बताया कि रेड क्रॉस संकट के समय किस तरह इंसानों की सहायता करती है। उसने बताया कि रेड कॉस हर व्यक्ति के दान के सहारे चलती है। उसने कर्मचारियों को बताया कि वे रेड क्रॉस को उतना ही दान में दें, जितना वे अपने मुसीबत में फँसे पड़ोसी की मदद करने के लिए देंगे। उसने कहा, “देखिए, रेड क्रॉस ने अब तक क्या-क्या किया है!" ध्यान दीजिए, उसने भीख नहीं माँगी। उसने यह नहीं कहा, “मुझे आपमें से हर आदमी से इतने डॉलर चाहिए।" उसने रेड क्रॉस के महत्व के बारे में उत्साह से बताया। इसके बाद उसे सफलता अपने आप मिल गई।

         एक पल के लिए अपने किसी ऐसे क्लब या संगठन के बारे में सोचें जो निस्तेज हो चुका हो। शायद इसे पुनर्जीवित करने के लिए उत्साह की ज़रूरत हो।

          जितना उत्साह होगा, परिणाम उतने ही मिलेंगे।

           उत्साह का मतलब है, “यह कितना बढ़िया है!"

         यहाँ तीन क़दमों का तरीका बताया जा रहा है जो उत्साह की शक्ति को विकसित करने में आपकी मदद करेगा।

         1. गहराई में जाएँ। यह छोटा सा प्रयोग करें। दो ऐसी चीज़ों के बारे में सोचें जिनमें आपकी बिलकुल भी रुचि नहीं है या बहुत कम रुचि है- जैसे ताश के पत्ते, किसी खास किस्म का संगीत, कोई खेल। अब खुद से पूछे, “मैं इन चीजों के बारे में कितना जानता हूँ?" 100 में से 99 मामलों में आपका जवाब होगा, “ज्यादा नहीं।

मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कई सालों तक मुझे आधुनिक चित्रकला में कोई रुचि नहीं थी। मुझे आधुनिक चित्रकला में कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें ही दिखा करती थीं। परंतु तभी मेरे एक चित्रकार दोस्त ने मुझे आधुनिक चित्रकला की जानकारी दी। सचमुच मैं इसमें जितनी गहराई तक गया, मैंने पाया कि यह बहुत दिलचस्प थी।

         इस अभ्यास में उत्साह बढ़ाने की एक और महत्वपूर्ण कुंजी है। उत्साहित होने के लिए, उस चीज़ के बारे में ज्यादा जानें जिसके बारे में आपमें कम उत्साह हो।

           हो सकता है कि आप की भौंरों में ज्यादा रुचि न हो। परंतु अगर आप भौरों का अध्ययन करें, यह पता करें कि वे कितनी भलाई करते है, वे किस तरह दूसरे भौरों के साथ संबंध जोडते हैं. वे किस तरह प्रजनन करते हैं, वे जाड़ों में कहाँ रहते हैं- अगर आप भौंरों के बारे में मिल सकने वाली सारी जानकारी हासिल करेंगे, तो आप पाएँगे कि भौंरों में आपकी दिलचस्पी सचमुच बढ़ गई है।

          मैं इस बात का प्रशिक्षण देता हूँ कि गहराई में जाने की तकनीक से उत्साह किस तरह विकसित किया जा सकता है। प्रशिक्षण देते समय मैं ग्रीनहाउस का उदाहरण देता हूँ। मैं समूह से यूँ ही पूछ लेता हूँ, “क्या आपमें से कोई ग्रीनहाउस बनाने और बेचने में रुचि रखता है ?” मैंने आज तक इसके जवाब में हाँ नहीं सुना। फिर मैं समूह को बताता हूँ कि जैसे-जैसे हमारा जीवनस्तर बढ़ता जा रहा है, लोग अपनी मूलभूत आवश्यकता के बाहर की चीज़ों में ज़्यादा रुचि लेने लगे हैं। अमेरिका की कोई भी महिला अपने घर में संतरे या ऑर्किड के पेड़ लगाकर खुश होगी। मैं बताता हूँ कि अगर लाखों परिवार प्राइवेट स्विमिंग पूल बनवा सकते हैं, तो करोड़ों लोग निश्चित रूप से ग्रीनहाउस भी खरीद सकते हैं क्योंकि ग्रीनहाउस की लागत स्विमिंग पूल की तुलना में बहुत कम होती है। मैं उन्हें बताता हूँ कि अगर आप 50 में से एक परिवार को भी 600 डॉलर का ग्रीनहाउस बेच लेते हैं तो आपका छह सौ मिलियन डॉलर का ग्रीनहाउस का बिज़नेस खड़ा हो जाएगा। और शायद पौधों और बीजों की आपूर्ति करने के लिए आप दो सौ पचास मिलियन डॉलर का उद्योग अलग डाल लेंगे।

          इस अभ्यास के साथ दिक्क़त यह होती है कि दस मिनट पहले तक जो समूह ग्रीनहाउस के बारे में बिलकुल भी रुचि नहीं ले रहा था, अब वह इतनी रुचि लेने लगता है कि अगले विषय पर जाना ही नहीं चाहता!

         दूसरे लोगों में अपना उत्साह बढ़ाने के लिए भी गहराई में जाने की तकनीक का प्रयोग करें। सामने वाले व्यक्ति के बारे में सारी जानकारी इकट्ठी करें- वह क्या करता है, उसका परिवार, उसकी पृष्ठभूमि, उसके विचार और महत्वाकांक्षाएँ- और आप पाएंगे कि उसमें आपकी रुचि और उत्साह बढ़ रहा है। आप और गहराई में जाएँगे तो आपको निश्चित रूप से साझी दिलचस्पी के विषय मिल जाएँगे। और गहराई में जाएँगे तो आपको आखिरकार एक बहुत ही आकर्षक व्यक्ति दिख जाएगा।

          गहराई में जाने की तकनीक नई जगहों के प्रति भी उत्साह पैदा कर सकती है। कई साल पहले मेरे कुछ दोस्तों ने डेट्रॉएट से फ्लोरिडा के एक छोटे कस्बे में जाकर रहने का फैसला किया। उन्होंने अपने घर बेच दिए, अपने बिज़नेस समेट लिए और अपने दोस्तों से अलविदा कहकर वे रवाना हो गए।

         छह हफ्तों बाद वे वापस डेट्रॉइट में दिखे। उनके वापस लौटने का कारण उनके बिज़नेस से संबंधित नहीं था। इसके बजाय उनका कहना था, "हम छोटे कस्बे में रह नहीं पाए। इसके अलावा, हमारे सभी दोस्त डेट्रॉइट में हैं। हमें वापस लौटना ही पड़ा।"

          बाद में इन लोगों के साथ हुई चर्चा में मैंने उनकी वापसी का असली कारण जाना। कारण सिर्फ इतना था कि उन्हें छोटा शहर पसंद नहीं आया था। कुछ दिनों के प्रवास में उन्होंने उस जगह का सतही मुआयना किया- वहाँ का इतिहास, भविष्य की योजनाएँ, वहाँ के लोग। उनका शरीर तो फ्लोरिडा में रह रहा था, परंतु वे अपना दिल डेट्रॉइट में छोड़ गए थे।

          मैंने दर्जनों एक्जीक्यूटिब्ज़, इंजीनियरों और सेल्समैनों से बात की जिन्हें उनकी कंपनी दूसरी जगह भेजना चाहती थी, परंतु वे वहाँ नहीं जाना चाहते थे। “मैं शिकागो (या सैन फ्रांसिस्को या अटलांटा या न्यूयॉर्क या मियामी) जाने का सोच ही नहीं सकता" दिन में कई बार बोला जाता है।

         नई जगह के बारे में उत्साह बढ़ाने का एक तरीक़ा यह है। नए समुदाय की गहराई में जाने का संकल्प करें। इसके बारे में हर जानकारी इकट्ठी करें। लोगों से मिले-जुलें। पहले ही दिन से अपने को वहाँ का निवासी समझें। ऐसा करें, और आप अपने नए माहौल के बारे में उत्साहित हो जाएंगे।

         आज करोड़ों अमेरिकी शेयर बाज़ार में पैसा निवेश कर रहे हैं। परंतु कई करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें स्टॉक मार्केट में कोई रुचि नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें शेयर बाज़ार का कोई ज्ञान नहीं है, यह किस तरह से काम करता है, शेयर के भाव ऊपर-नीचे क्यों आते हैं, और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शेयर बाजार अमेरिकी व्यवसाय का दिन-प्रति-दिन का रोमांस है।

किसी भी चीज़ के बारे में - लोग, जगह, चीज़ - उत्साहित होने के लिए इसकी गहराई में जाएँ।

          गहराई में जाएँ और आपमें अपने आप उत्साह पैदा हो जाएगा। अगली बार जब भी आप कोई ऐसा काम करें जो आप न करना चाहते हो, तो इस सिद्धांत का प्रयोग करें। अगली बार जब आप किसी काम से बोर हो रहे हों, तो इस सिद्धांत का प्रयोग करें। गहराई में जाएँ और आपकी रुचि अपने आप जाग जाएगी।

            2. हर काम दिल से करें। उत्साह या उत्साह की कमी आपके हर काम में दिखती है, आपकी हर बात में प्रकट होती है। दिल से हाथ मिलाएँ। जब आप हाथ मिलाएँ, तो ज़रा कसकर मिलाएँ। अपने हाथ को यह कहने दें, “मुझे आपसे मिलकर खुशी हुई।” “मैं आपसे दुबारा मिलकर खुश हुआ।” कमज़ोर चूहे की तरह हाथ मिलाने से तो अच्छा है कि हाथ ही न मिलाया जाए। इससे लोग यह सोचते हैं, “यह व्यक्ति ज़िंदा नहीं, बल्कि मुर्दा है तभी मुों की तरह हाथ मिला रहा है।" यह देखने की कोशिश करें कि क्या कोई सफल व्यक्ति चूहे की तरह हाथ मिलाता है। आप कोशिश ही करते रह जाएंगे और ऐसा लंबे समय तक देख नहीं पाएंगे।

          दिल से मुस्कराएँ। अपनी आँखों से मुस्कराएँ। कोई भी नक़ली, चिपकी हुई, रबर जैसी मुस्कान पसंद नहीं करता। जब मुस्कराएँ, तो दिखना चाहिए कि आप मुस्करा रहे हैं। अपने थोड़े बहुत दाँत दिखाएँ। हो सकता है कि आपके दाँत आकर्षक न हों, परंतु उससे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता। जब आप मुस्कराते हैं, तो लोग आपके दाँत नहीं देखते। वे एक गर्मजोशी से भरे उत्साही व्यक्तित्व को देखते हैं और उसे पसंद करते हैं।

         दिल से “धन्यवाद" दें। रुटीन “धन्यवाद" का मतलब तो “ग्लिप, ग्लिप” कहने की तरह मशीनी अंदाज़ है। यह सिर्फ एक अभिव्यक्ति है। इससे कुछ भी संप्रेषित नहीं होता। इससे परिणाम हासिल नहीं होते। अपने “धन्यवाद” को इस तरह कहें ताकि सामने वाला यह सुने, “बहुत-बहुत धन्यवाद।"

          दिल से बात करें। डॉ. जेम्स एफ़. बेन्डर, जो मानी हुई हस्ती हैं, अपनी पुस्तक हाऊ टू टॉक वेल (न्यूयॉर्क : मैकग्रॉ-हिल बुक कंपनी, 1949) में लिखते हैं, “क्या आपकी 'गुड मॉर्निंग' सचमुच गुड है ? क्या आपकी 'बधाई' सचमच उत्साह से दी गई है। जब आप कहते हैं, "आप है ?" तो क्या आप सचमुच जानना चाहते हैं ? जब आप अपने शब्दों में भावनाओं के रंग भर देते हैं तो लोग आपकी बातें ध्यान से सुनने लगते हैं और आपको महत्व देने लगते हैं।"

      लोग उस व्यक्ति के पीछे-पीछे जाते हैं जो अपनी कही हुई बातों में यकीन करता है। इसलिए दिल से बातें करें। अपने शब्दों में भावनाओं के रंग भरें। चाहे आप किसी गार्डन क्लब में बोल रहे हों, ग्राहक से बातें कर रहे हों, या अपने बच्चों से- अपने शब्दों में जोश झलकने दें। उत्साह से दिया गया प्रवचन महीनों तक, सालों तक याद रहता है। जबकि उत्साह के बिना दिया गया प्रवचन एक सप्ताह भी याद नहीं रहता।

       और जब आप दिल से बोलते हैं तो आप अपने अंदर भी जोश भर लेते हैं। अभी आजमा कर देख लें। ज़ोर से और जोश से कहें : “आज मैं बहुत खुश हूँ!" यह वाक्य कहने के बाद क्या आप पहले से बेहतर महसूस नहीं कर रहे हैं। अपने आपमें जान फूंकें।

       दिल से बोलें, दिल से काम करें। अपने हर काम, अपनी हर बात से लोगों को यह लगने दें, “इस व्यक्ति में जोश है, हौसला है।” “वह सचमुच यह काम करना चाहता है।” “वह निश्चित रूप से सफल होगा।"

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