Saturday, October 19, 2019

CHAPTER 13.4 सोचें तो लीडर कीतरह

         "मानवीय" शैली से बेहतर लीडर बनने के दो तरीके हैं। पहला, हर बार जब भी आप लोगों से संबंधित किसी मुश्किल मसले का सामना करें, तो खुद से पूछे, “इससे निबटने का मानवीय तरीका क्या है ?"

      जब आपके अधीनस्थों में असहमति हो या जब कोई कर्मचारी समस्या खड़ी कर रहा हो तो इस प्रश्न पर सोचें।

       बॉब के गलतियाँ सुधारने के फॉर्मूले को याद रखें। कटुता को टालें। व्यंग्य से परहेज़ करें।लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश न करें। लोगों को उनकी और दूसरों की नज़रों से न गिराएँ।

       खुद से पूछे, “लोगों के साथ निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है ?" इससे हमेशा लाभ होता है - कई बार जल्दी, कई बार देर से - पर लाभ हमेशा होता है।

      “मानवीय बनने" के नियम से लाभ लेने का दूसरा तरीक़ा यह है कि आप अपने काम से यह जताएँ कि आपके लिए लोग महत्वपूर्ण हैं। अपने मातहतों की नौकरी के बाहर की उपलब्धियों में रुचि दिखाएँ। हर एक के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करें। अपने आपको याद दिलाएँ कि जीवन का मुख्य लक्ष्य इसका आनंद लेना है। यह सामान्य सा सिद्धांत है कि आप किसी व्यक्ति में जितनी अधिक रुचि लेंगे, वह आपके लिए उतना ही मन लगाकर काम करेगा। और जब वह मन लगाकर काम करेगा तो उससे आप और ज़्यादा, बहुत ज्यादा सफल हो जाएँगे।

        जब भी मौक़ा मिले, अपने सुपरवाइज़र से अपने अधीनस्थों की तारीफ़ करते रहें। यह एक पुरानी अमेरिकी परंपरा है कि छोटे आदमी की तरफ़ वाले व्यक्ति को हमेशा प्रशंसा की नज़रों से देखा जाता है। आपके अधीनस्थ आपकी तारीफ़ से खुश होंगे और आपके प्रति उनकी वफ़ादारी भी बढ़ जाएगी। और इस बात से न डरें कि इससे आपके सुपरवाइज़र की नज़रों में आपका महत्व कम हो जाएगा। जिस व्यक्ति का दिल इतना बड़ा हो, जिसका व्यवहार इतना विनम्र हो, वह उस व्यक्ति से ज़्यादा आत्मविश्वासी लगता है जो असुरक्षा के भाव से भरकर अपनी उपलब्धियों की शेखी बघारता रहता है। थोड़ी सी विनम्रता बहुत काम आती है।

       जब भी मौक़ा मिले, अपने अधीनस्थों की व्यक्तिगत रूप से तारीफ़ करें। उनके सहयोग के लिए उनकी तारीफ़ करें। हर अतिरिक्त प्रयास के लिए उनकी तारीफ़ करें। तारीफ़ ही वह सबसे बड़ा एकमात्र प्रोत्साहन है जो आप उन्हें दे सकते हैं और इसमें आपका एक पैसा भी ख़र्च नहीं होता। इसके अलावा, "गुप्त मतदान" ने कई सशक्त और जाने-माने उम्मीदवारों को भी धराशायी कर दिया है। आप कभी नहीं जानते कि कब आपके अधीनस्थ आपके काम आ जाएँगे और आपको किसी अप्रिय स्थिति से बचा लेंगे।

        लोगों की तारीफ़ करने का अभ्यास करें।

        सही तरीके से लोगों से व्यवहार करें। मानवीय बनें।

       लीडरशिप नियम नंबर 3 : प्रगति के बारे में सोचें, प्रगति के बारे में विश्वास करें और प्रगति के लिए कोशिश करें।

      जब कोई आपके बारे में यह कहता है, “वह प्रगति में विश्वास करता है। वही व्यक्ति इस काम के लिए ठीक रहेगा।" तो आपकी इससे बड़ी तारीफ़ हो ही नहीं सकती।

       हर क्षेत्र में प्रमोशन उन्हीं लोगों को मिलते हैं जो प्रगति में विश्वास करते हैं और प्रगति के लिए प्रयास करते हैं। लीडर्स, सच्चे लीडर्स, बहुत कम होते हैं। यथास्थिति में विश्वास रखने वाले लोग (जैसा भी चल रहा है ठीक है, हम इसमें कोई हेरफेर नहीं करना चाहते) हमेशा प्रगतिशील व्यक्तियों से (सुधार की बहुत गुंजाइश है इसलिए हम इसे सुधारने की कोशिश करें) बहुत बड़ी तादाद में होते हैं। लीडर्स के समूह में शामिल हों। अपनी नज़र हमेशा आगे की तरफ़ रखें।

       प्रगतिशील नज़रिया विकसित करने के लिए आप दो खास चीज़े कर सकते हैं:

1. जो भी काम आप करें, उसमें सुधार के बारे में सोचें।

2. जो भी काम आप करें, उसमें आप ऊँचे स्तर रखें।

          कई महीने पहले एक मध्यम आकार की कंपनी के प्रेसिडेंट ने मुझसे एक महत्वपूर्ण निर्णय करने के लिए कहा। इस एक्जीक्यूटिव ने अपना बिज़नेस खुद बनाया था और वह सेल्स मैनेजर के रूप में काम कर रहा था। अब जबकि उसके यहाँ सात सेल्समैन काम कर रहे थे, उसने यह फैसला किया कि अब वह खुद सेल्स मैनेजर का काम छोड़ देगा और किसी सेल्समैन को सेल्स मैनेजर के पद पर प्रमोशन दे देगा। उसने इस काम के लिए तीन सेल्समैनों को छाँटा था, जो अनुभव और सेल्स में लगभग बराबर थे।

        मेरा काम था हर व्यक्ति के साथ एक दिन बिताना और यह फैसला करना कि क्या यह व्यक्ति उस समूह का लीडर बनने के काबिल है। हर सेल्समैन को बता दिया गया था कि एक सलाहकार आकर मार्केटिंग प्रोग्राम के बारे में उनसे चर्चा करेगा। ज़ाहिर है, कि उन्हें स्पष्ट कारणों से यह नहीं बताया गया था कि मेरी चर्चा का असली उद्देश्य क्या था।

        दो लोगों ने लगभग एक ही तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त की। दोनों ही मेरे साथ असहज हो गए। दोनों को ही यह एहसास हो गया कि मैं वहाँ पर “कुछ बदलने” की फ़िराक में था। दोनों ही सेल्समैन यथास्थिति के सच्चे रक्षक थे। दोनों का ही यह कहना था कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। मैंने उनसे पूछा कि किस तरह उनके क्षेत्रों का बँटवारा हुआ है, उनके सेल्स प्रमोशनल मटेरियल, कम्पन्सेशन प्रोग्राम के बारे में बात की- मार्केटिंग के हर पहलू पर उन्होंने यही कहा, “सब कुछ बढ़िया है।" कुछ खास मुद्दों पर इन दोनों व्यक्तियों ने स्पष्ट किया कि वर्तमान नीति में बदलाव क्यों नहीं किया जाना चाहिए। संक्षेप में, दोनों ही व्यक्ति चाहते थे कि स्थितियाँ जैसी की तैसी बनी रहें। एक व्यक्ति ने जब मुझे मेरे होटल में उतारा तो उसने चलते-चलते कहा, "मैं यह तो नहीं जानता कि आपने आज मेरे साथ दिन क्यों गुज़ारा, परंतु मेरी तरफ़ से आप मिस्टर एम. को बता देना कि जैसा भी है, सब कुछ बढ़िया है। किसी भी चीज़ को बदलने की कोई जरूरत नहीं है।"

       तीसरा सेल्समैन इनसे अलग था। वह कंपनी से खुश था और उसे इसकी प्रगति पर नाज़ था। परंतु वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं था। वह सुधार चाहता था। पूरे दिन यह तीसरा सेल्समैन मुझे यह बताता रहा कि नया बिज़नेस कैसे हासिल किया जा सकता है, ग्राहकों को बेहतर सेवा कैसे दी जा सकती है, समय की बर्बादी कैसे कम की जा सकती है, कम्पन्सेशन प्लान को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है तथा वह खुद और कंपनी इससे किस तरह लाभान्वित हो सकते हैं। उसने एक नए विज्ञापन अभियान की योजना भी बनाई थी जिसकी रूपरेखा उसने मुझे बताई। जब मैं वहाँ से रवाना हुआ, तो उसने चलते-चलते कहा, “मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैं अपने विचार किसी को बता सका। हमारी कंपनी अच्छी है, पर मुझे लगता है कि हम इसे और बेहतर बना सकते हैं।"

         ज़ाहिर है कि मेरी अनुशंसा तीसरे व्यक्ति के लिए थी। यह एक ऐसी अनुशंसा थी जो कंपनी के प्रेसिडेंट की भावनाओं के अनुरूप थी। प्रगति, कार्यकुशलता, नए उत्पाद, नई प्रक्रियाओं, बेहतर प्रशिक्षण और बढ़ी समृद्धि में विश्वास करें।

         प्रगति में विश्वास करें, प्रगति के लिए प्रयास करें और आप एक लीडर बन जाएँगे!

        बचपन में मुझे मौक़ा मिला कि मैं यह देख सकूँ कि लीडर किस तरह अपने समर्थकों के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।

        मैं एक देहाती प्राथमिक शाला में पढ़ता था, जहाँ आठ कक्षाएँ थीं, एक ही टीचर थी और चालीस बच्चों को एक ही कमरे में लूंस दिया जाता था। नई टीचर को हमेशा परेशान किया जाता था। बड़े बच्चों, यानी कि सातवीं और आठवीं के बच्चों के नेतृत्व में सभी विद्यार्थी टीचर को मज़ा चखाने के लिए तैयार रहते थे।

        एक साल तो कुछ ज्यादा ही हंगामा हुआ। हर दिन दर्जनों स्कूली शरारतें होती थीं, जिनमें चॉक फेंककर मारना, काग़ज़ के हवाई जहाज़ चलाना इत्यादि शामिल थे। इसके अलावा कई बड़ी घटनाएँ भी हुईं जैसे टीचर को स्कूल के बाहर आधा दिन तक खड़ा रखा, क्योंकि कुंडी अंदर से बंद कर ली गई थी। दूसरे मौके पर इसका उल्टा हुआ, यानी टीचर को स्कूल में बंद कर दिया गया, क्योंकि कुंडी बाहर से लगा दी गई थी। एक दिन एक शरारती बच्चा अपने कुत्ते को स्कूल में ले आया।

          परंतु मैं आपको यह बता दूं, ये बच्चे अपराधी किस्म के नहीं थे। चोरी करना, शारीरिक हिंसा करना या नुक़सान पहुँचाना उनका उद्देश्य नहीं था। वे स्वस्थ बच्चे थे जो अपनी ज़बर्दस्त ऊर्जा को अपनी शरारतों
के माध्यम से बाहर निकाल रहे थे।

        तो, टीचर ने किसी तरह उस साल तो स्कूल में रहने में कामयाबी पाई, परंतु अगले साल नई टीचर को नियुक्त करना पड़ा और इससे किसी को कोई हैरत नहीं हुई।

        नई टीचर का नज़रिया पुरानी टीचर से बिलकुल अलग था। उसने गरिमामयी व्यवहार करने की उनकी भावना को जाग्रत किया। उसने उन्हें समझदारी के काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। हर बच्चे को एक निश्चित ज़िम्मेदारी सौंपी गई जैसे ब्लैकबोर्ड साफ़ करना, डस्टर साफ़ करना, या छोटे बच्चों की मदद करना। नई टीचर ने बच्चों की ज़बर्दस्त ऊर्जा का उपयोग करने के रचनात्मक तरीके खोज लिए, जबकि यही ज़बर्दस्त ऊर्जा पहले शरारतों में बर्बाद हुआ करती थी। उसके शैक्षणिक कार्यक्रम की नींव चरित्र बनाने पर थी।

        पहले साल बच्चे राक्षसों की तरह व्यवहार क्यों कर रहे थे और अगले साल वही बच्चे देवताओं की तरह व्यवहार क्यों करने लगे? फ़र्क उनके लीडर का, यानी उनकी टीचर का था। ईमानदारी से कहा जाए, तो हम शरारतों के लिए बच्चों को दोष नहीं दे सकते। यह टीचर की ही ग़लती थी जो वह सही दिशा में बच्चों का नेतृत्व नहीं कर पाई।

        पहली टीचर अंदर से बच्चों की प्रगति के बारे में परवाह नहीं करती थी। उसने बच्चों के लिए कोई लक्ष्य नहीं बनाए। उसने उन्हें उत्साहित नहीं किया। वह अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाई। उसे पढ़ाना पसंद नहीं था ,इसलिए बच्चों को पढ़ना पसंद नहीं था।

       परंतु दूसरी टीचर ने ऊँचे, सकारात्मक मानदंड बनाए। वह बच्चों को सचमुच पसंद करती थी और चाहती थी कि वे कुछ बनें। वह हर एक से इंसान की तरह व्यवहार करती थी। उसे सबका अनुशासन इसलिए मिला क्योंकि वह अपने हर काम में अच्छी तरह अनुशासित थी।

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