Monday, September 30, 2019

CHAPTER 9.3 लोगो के बारे में अच्छा सोचे और याह छोटी तकनीक बड़ी काम कीहै

       लोगो के बारे में अच्छा सोचे और याह छोटी                             तकनीक बड़ी काम कीहै



     “यह छोटी सी तकनीक बड़े काम की है। चूंकि मैं उसे पसंद करता हूँ, इसलिए वह भी मुझे देर-सबेर पसंद करने लगता है। जल्दी ही मैं मेज़ पर उसके सामने बैठने के बजाय उसकी बग़ल में बैठा होता हूँ और हम उसकी बीमा योजना बना रहे होते हैं। वह मुझ पर विश्वास करता है। क्योंकि अब मैं उसका दोस्त बन चुका हूँ।

       “हालाँकि हमेशा मुझे पहली नज़र में ही पसंद नहीं किया जाता, परंतु मैंने पाया है कि जब तक मैं सामने वाले को पसंद करता हूँ, तब तक इस बात की संभावना रहती है कि वह भी मुझे पसंद करने लगेगा और हमारा बिज़नेस पक्का हो जाएगा।

       मेरे दोस्त ने आगे कहा, “अभी पिछले ही हफ्ते में एक सख़्त ग्राहक से तीसरी बार मिला। वह मुझे दरवाज़े पर ही मिल गया और मेरे कुछ कहने से पहले ही वह मुझ पर काफ़ी गर्म हुआ। वह अपनी बात लगातार कहता रहा और उसने मुझे कुछ बोलने का मौक़ा ही नहीं दिया। आख़िरकार उसने अपनी बात यह कहते हुए ख़त्म की, 'अब मैं आपकी सूरत भी नहीं देखना चाहता।'

      “जब उसने इतना कह दिया, तो मैंने उसकी आँखों में 5 सेकंड तक देखा, और फिर सच्चे दिल से धीमे से कहा, 'परंतु मिस्टर एस., मैं तो आज आपके दोस्त की हैसियत से मिलने आया हूँ।'

       “और कल ही उसने मुझसे 10,000 डॉलर की पॉलिसी ख़रीद ली।"

        सॉल पोक को शिकागो का अप्लायंस किंग कहा जाता है। 21 साल पहले कुछ नहीं से शुरू करने वाले सॉल पोक शिकागो में आजकल एक साल में 60 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का सामान बेचते हैं।

        सॉल पोक अपने बिज़नेस की सफलता का श्रेय ख़रीदारों के प्रति उनके व्यवहार को देते हैं। वे कहते हैं, “ग्राहकों के साथ उसी तरह से बर्ताव करना चाहिए जैसे वे हमारे घर आए मेहमान हों।"

       क्या यह लोगों के बारे में सोचने का सही नज़रिया नहीं है? और क्या हम सफलता के इस फॉर्मूले को अपने जीवन में नहीं उतार सकते ? ग्राहको के साथ उसी तरह का बर्ताव करें, जैसे वे आपके घर आए मेहमान हों।

         यह तकनीक बिज़नेस के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी काम आती है। ग्राहकों की जगह कर्मचारी रख लें और आपको यह सूत्र मिलेगा, "कर्मचारियों के साथ उसी तरह से बर्ताव करें जैसे वे आपके घर आए मेहमान हों।" अपने कर्मचारियों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करें और आपको बदले में बहुत अच्छा सहयोग मिलेगा, बहुत अच्छा टीमवर्क। अपने चारों तरफ़ के लोगों के बारे में बहुत अच्छा सोचें और बदले में आपको इसके बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।

        इस पुस्तक के शुरुआती संस्करण का रिव्यू करने वाले मेरे एक दोस्त ने यह सूत्र पढ़ने के बाद मुझसे कहा, "यह लोगों को पसंद करने और उनका सम्मान करने का सकारात्मक परिणाम है। मैं आपको अपने एक दोस्त की सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ जिससे यह साबित होता है कि अगर आप लोगों को नापसंद करते हैं तो आपको उसके परिणाम किस तरह भुगतने पड़ते हैं।"

         उसके अनुभव में दम था। ज़रा देखें!

         "मेरी फ़र्म को एक कॉन्ट्रैक्ट मिला था। हमें सॉफ्ट ड्रिंक बॉटलिंग करने वाली एक छोटी कंपनी को परामर्श सेवाएँ देनी थीं। कॉन्ट्रैक्ट काफ़ी बड़ा था, लगभग 9,500 डॉलर का। हमारा ग्राहक बहुत पढ़ा-लिखा नहीं था। उसका बिज़नेस भी ठीक नहीं चल रहा था और पिछले कुछ सालों में उसने बड़ी भारी ग़लतियाँ की थीं।

       "कॉन्ट्रैक्ट मिलने के तीन दिन बाद मैं अपने सहयोगी के साथ उस कंपनी के प्लांट में गया जो हमारे ऑफ़िस से 45 मिनट दूर था। आज तक मैं नहीं जानता कि बातें किस तरह शुरू हुईं, परंतु किसी न किसी कारण हम लोग अपने ग्राहक के नकारात्मक गुणों पर बात करने लगे।

       “हम उसकी मूर्खता पर हँस रहे थे, जिस वजह से उसने अपनी राह में दिक्कतें खडी कर लीं। उसने अपनी समस्याओं के बारे में हमसे सलाह लेने के बजाय अपनी बुद्धि पर भरोसा किया था, और उसी का नतीजा था कि आज उसके बिज़नेस का भट्टा बैठ चुका है।

         “मुझे अपनी कही हुई एक बात ख़ास तौर पर याद है- 'केवल एक " ही मिस्टर एफ़ को गिरने से रोक रही है- और वह है उनका मोटापा।' मेरे सहयोगी ने भी इस चर्चा में अपना योगदान दिया। और उसके लड़के को देखो। उसकी उम्र लगभग 35 साल होगी, परंतु अपने काम के बारे में उसकी एकमात्र योग्यता यह है कि उसे अंग्रेज़ी बोलना आता है।'

         "रास्ते भर हम सिर्फ अपने ग्राहक की बुराई करते रहे और यह सोचते रहे कि वह कितना मूर्ख था।

           तो, उस दोपहर हमारी चर्चा बहुत ठंडी साबित हुई। अब जब मैं पीछे मुड़कर सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि शायद हमारा ग्राहक यह समझ गया था कि उसके बारे में हमारी सोच नकारात्मक थी। उसने सोचा होगा : 'ये लोग सोचते हैं कि मैं मूर्ख हूँ या नासमझ हूँ और वे मुझसे चिकनी-चुपड़ी बातें करके मुझसे पैसे ऐंठना चाहते हैं।'

         “दो दिन बाद मुझे इस ग्राहक की दो लाइनों की चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था, 'मैंने फैसला किया है कि मैं आपकी परामर्श सेवाओं का लाभ नहीं उठाना चाहता। अगर आज की तारीख तक आपकी सेवाओं का कोई भुगतान मुझे करना हो, तो कृपया अपना बिल भिजवा दें।'

        "40 मिनट के नकारात्मक विचारों की क़ीमत हमें इस तरह चुकानी पड़ी कि हमारे हाथ से 9,500 डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट चला गया। इससे भी ज़्यादा दुःखद बात यह थी कि हमारे भूतपूर्व ग्राहक ने एक महीने बाद शहर के बाहर की एक फ़र्म की परामर्श सेवाएँ ले लीं।

        “अगर हमने उसके अच्छे गुणों पर अपना ध्यान केंद्रित किया होता तो हमने अपने ग्राहक को नहीं खोया होता। और उसमें अच्छे गुण थे। ज़्यादातर लोगों में होते हैं।"

         आप एक काम करें जिसमें आपको मज़ा भी आएगा और साथ ही साथ आप सफलता का यह मूलभूत सिद्धांत भी सीख सकेंगे। अगले दो दिनों तक आप जितनी चर्चाएँ सुन सकते हों, सुनें। दो बातों पर ध्यान दें: चर्चा के दौरान कौन ज़्यादा बोल रहा है और कौन ज़्यादा सफल है।

         मैंने यह प्रयोग सैकड़ों बार किया है और इसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ: वह व्यक्ति जो सबसे ज्यादा बोलता है और वह व्यक्ति जो सबसे ज्यादा सफल होता है; वे दोनों व्यक्ति शायद ही कभी एक होते हैं।

शायद इसका अपवाद भी नहीं होता। व्यक्ति जितना सफल होता है, वह चर्चा में उतना ही ज़्यादा उदार होता है, यानी कि वह सामने वाले को अपने बारे में बातें करने देता है, अपने विचार, अपनी उपलब्धियाँ, अपने परिवार, अपनी नौकरी, अपनी समस्याओं के बारे में बातें करने देता है।

       चर्चा की उदारता दो तरह से आपको ज़्यादा सफल बनाती है :

1. चर्चा की उदारता से आपके दोस्त बनते हैं।

2. चर्चा की उदारता से आपको लोगों के बारे में ज्यादा जानने का मौका मिलता है।

        याद रखें : आम आदमी दुनिया में किसी भी चीज़ से ज़्यादा खुद के बारे में बातें करना पसंद करता है। जब आप उसे इस बात का मौक़ा देते हैं, तो वह आपको पसंद करने लगता है। चर्चा में उदारता दिखाना दोस्त बनाने का सबसे आसान और अचूक तरीक़ा है।

        और चर्चा में उदारता का दूसरा लाभ भी महत्वपूर्ण है, जिसमें आप लोगों के बारे में ज्यादा जान जाते हैं। जैसा हमने पहले अध्याय में कहा है, हम अपनी सफलता की प्रयोगशाला में लोगों का अध्ययन करते हैं। हम उनके बारे में, उनकी विचार प्रक्रिया, उनके अच्छे और बुरे गुणों के बारे में, वे कोई काम क्यों और कैसे करते हैं, इस बारे में जितना ज्यादा जान लेते हैं, हमें उतना ही लाभ होता है क्योंकि इस जानकारी से हम उन्हें प्रभावित करने के तरीके आसानी से ढूँढ़ सकते हैं।

          मैं आपको एक उदाहरण देना चाहूँगा।

       बाक़ी विज्ञापन एजेंसियों की ही तरह, न्यूयॉर्क की एक एड्वर्टाइज़िंग एजेंसी भी जनता को यह बताया करती थी कि जनता को इसके विज्ञापन में बताई चीजें क्यों खरीदनी चाहिए। परंतु यह एजेंसी एक काम और करती थी। यह अपने विज्ञापन लिखने वालों को हर साल एक सप्ताह के लिए दुकान में सेल्समैन के काम पर रखती थी, ताकि वे वहाँ पर उनके द्वारा विज्ञापित चीज़ों के बारे में लोगों के विचार सुन सकें। सुनने से ही उन्हें इस बात की प्रेरणा मिलती थी कि वे बेहतर, ज़्यादा असरदार विज्ञापन लिख सकें।

          कई प्रगतिशील कंपनियाँ अपने उन कर्मचारियों का आखिरी इंटरव्य लेती हैं जो काम छोड़कर जा रहे हैं। इसका कारण यह नहीं होता है कि वे कर्मचारी को वहाँ पर रोकने का प्रयास करती हैं, बल्कि यह जानना होता है कि वे काम छोड़कर क्यों जा रहे हैं। कंपनी के कर्मचारियों के साथ संबंध सुधारने में यह इंटरव्यू बहुत काम आता है। सुनने से फायदा होता है।

        सुनना सेल्समैन के लिए भी फायदेमंद होता है। अक्सर लोग यह सोचते हैं कि अच्छा सेल्समैन वह होता है जो “अच्छा वक्ता” हो या "तेज़ बोलने वाला” हो। परंतु, सेल्स मैनेजरों पर अच्छे वक्ता का उतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना कि एक अच्छे श्रोता का पड़ता है, एक ऐसा व्यक्ति जो सवाल पूछ सकता है और उसके अपेक्षित जवाब हासिल कर सकता है।

            चर्चा में बोलने की बागडोर न थामे रहें। सुनें, दोस्त बनाएँ और सीखें।

           सामने वाले व्यक्ति के साथ चर्चा में शिष्टाचार सबसे अच्छा ट्रैक्विलाइज़र होता है। आप दूसरे लोगों के लिए जो छोटी-छोटी चीजें करते हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। अगर आपका लोगों के बारे में सोचने का नज़रिया सही हो, तो आपकी बहुत सी कुंठाएँ और आपका तनाव निश्चित रूप से कम हो जाएँगे। जब आप शांति से विचार करेंगे, तो आप पाएंगे कि आपके तनाव का कारण दूसरे लोगों के प्रति नकारात्मक भावनाएँ ही हैं। इसलिए दूसरे लोगों के प्रति अपनी सोच को सकारात्मक बनाएँ और यह खोजें कि यह संसार कितना अद्भुत है।

            लोगों के बारे में सही नज़रिए का असली इम्तहान तब आता है जब चीजें हमारे हिसाब से नहीं होतीं। आपको कैसा लगता है जब आपकी जगह किसी दूसरे व्यक्ति को प्रमोशन मिल जाता है ? या जब आप अपने क्लब के चुनाव में हार जाते हैं? या जब आपके काम की आलोचना होती है ? याद रखें : हारने के बाद आप किस तरह से सोचते हैं. इसी बात से तय होता है कि आप कितने समय बाद जीतेंगे।

           अपनी असफलता के बाद लोगों के बारे में सही तरीके से सोचने की पैरवी बेंजामिन फ़ेयरलेस ने की है। बहुत गरीब माहौल में बड़े होने के बाद मिस्टर फ़ेयरलेस युनाइटेड स्टेट्स स्टील कॉरपोरेशन के चीफ़ एक्जीक्यूटिव बन गए। लाइफ़ मैग्ज़ीन (15 अक्टूबर, 1956) में उनका यह उद्धरण छपा था:

        “सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप घटनाओं को किस तरह लेते हैं। उदाहरण के तौर पर, मैं अपने किसी टीचर से कभी नहीं चिढ़ा। हालाँकि हर विद्यार्थी की तरह मुझे भी डाँट पड़ती थी, पर मैं सोचता था कि मुझे मेरी ग़लती के कारण ही डाँट पड रही है और
अनुशासित बनना मेरे लिए अच्छी बात थी। मैंने अपने हर बॉस को भी पसंद किया है। मैंने हमेशा यह कोशिश की है कि मैं उन्हें खुश रखू और वे जितना चाहते हैं, मैं उससे ज़्यादा काम करूँ।

        "ऐसा नहीं है, कि मुझे कभी निराशा नहीं हुई। कई बार मेरी जगह किसी दूसरे व्यक्ति को प्रमोशन दे दिया गया। परंतु मैंने यह कभी नहीं सोचा कि मैं 'ऑफ़िस की राजनीति' का शिकार था या मेरे प्रति किसी का पूर्वाग्रह था या मेरे बॉस का फ़ैसला ग़लत था। दुःखी होने, झल्लाने और नौकरी छोड़ देने के बजाय मैंने तार्किक दृष्टि से विचार किया। निश्चित रूप से दूसरा व्यक्ति प्रमोशन के लिए मुझसे ज़्यादा योग्य था। जब प्रमोशन का अगला मौक़ा आएगा, तब तक मैं ऐसा क्या कर सकता हूँ कि मैं उस योग्य बन जाऊँ ? साथ ही मैं कभी अपने आप पर भी नाराज़ नहीं हुआ कि मैं क्यों असफल हुआ था। मैंने कभी हीन भावना से पीड़ित होने में अपना समय बर्बाद नहीं किया।"

        जब भी कोई बात बिगड़ जाए, तो बेंजामिन फ़ेयरलेस को याद करें। सिर्फ दो काम करें :

       1. खुद से पूछे, “जब प्रमोशन का अगला मौक़ा आएगा, तब तक मैं ऐसा क्या कर सकता हूँ कि मैं उस योग्य बन जाऊँ ?"

       2. निराश या हताश होने में समय और ऊर्जा बर्बाद न करें। अपने आपको न कोसें। अगली बार जीतने की योजना बनाएँ।

संक्षेप में, आप इन सिद्धांतों को अमल में लाएँ

     1. अपने आपको हल्का रखें ताकि लोग आपको आसानी से ऊपर उठा सकें। लोगों के प्रिय बनें। लोकप्रिय बनें। इससे उनका समर्थन भी हासिल होता है और आपके सफल होने में सहयोग भी मिलता है।

        2. दोस्ती बनाने में पहल करें। हर मौके पर सामने वाले को अपना परिचय दें। यह सुनिश्चित कर लें कि आप सामने वाले का सही नाम जान लें और यह भी सुनिश्चित कर लें कि वह आपका नाम ठीक से जान ले। आप अपने जिन नए दोस्तों को बेहतर जानना चाहते हों, उन्हें चिट्ठी
लिखें या फ़ोन करें।

       3. हर इंसान अलग होता है और हर इन्सान की सीमाएँ होती हैं, इस बात को स्वीकार करें। किसी भी व्यक्ति से पूर्णता की उम्मीद न करें। याद रखें, हर व्यक्ति को अलग होने का अधिकार है। और हाँ, सुधारक बनने की कोशिश न करें।

       4. चैनल पी, यानी कि अच्छे विचारों के स्टेशन को बराबर सुनते रहें। किसी व्यक्ति की अच्छाइयों और तारीफ़ के काबिल गुणों को खोजते रहें, उसकी बुराइयों को ढूँढ़ने में अपना समय बर्बाद न करें। इसके अलावा, दूसरे लोगों को अपनी सकारात्मक सोच को नकारात्मक सोच में बदलने का मौका न दें। लोगों के बारे में सकारात्मक चिंतन करें- और आपको सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

       5. चर्चा में उदार बनें। सफल लोगों की तरह बनें। दूसरे लोगों को बोलने के लिए प्रोत्साहित करें। दूसरे व्यक्ति को अपने विचार, अपनी उपलब्धियों के बारे में बातें करने का पूरा मौक़ा दें।

      6. हर समय शिष्टाचार निभाएँ। इससे लोगों को अच्छा लगता है। इससे आपको भी अच्छा लगेगा।

       7. जब भी आप असफल हों, तो अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोष न दें। याद रखें : हारने के बाद आप किस तरह से सोचते हैं, इसी बात से तय होता है कि आप कितने समय बाद जीतेंगे।

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