Friday, September 20, 2019

CHAPTER. 7.1 अपने माहौल को सुधारें : फ़र्स्ट क्लास बनें

                  अपने माहौल को सुधारें :
                        फ़र्स्ट क्लास बनें

     आपका दिमाग एक अद्भुत मशीन है। जब आपका दिमाग एक तरीके से काम करता है, तो यह आपको असाधारण सफलता के रास्ते पर आगे ले जा सकता है। परंतु वही दिमाग जब दूसरे तरीके से काम करता है तो यह आपको पूरी तरह असफल करा सकता है।

           मस्तिष्क पूरी सृष्टि में सबसे नाजुक, सबसे संवेदनशील यंत्र है। आइए देखें कि मस्तिष्क में जो विचार आते हैं वे क्यों आते हैं।

           करोड़ों लोग अपने खान-पान का ध्यान रखते हैं। अमेरिका को कैलोरी गिनने वालों का देश कहा जाता है। हम विटामिन, मिनरल और दूसरे भोज्य पूरकों पर करोड़ों डॉलर खर्च करते हैं और हम सब जानते हैं कि हम ऐसा क्यों करते हैं। पोषण पर हुए शोध से हमने यह जाना है।
कि शरीर को हम जो आहार देते हैं, उसका शरीर पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। शारीरिक स्टैमिना, बीमारी से बचाव, शरीर का आकार, यहाँ तक कि हम कितना लंबा जिएंगे - इन सबका संबंध हमारे खान-पान से होता है।

          शरीर वैसा ही बनता है जैसा भोजन शरीर को खिलाया जाता है। इसी तरह दिमाग वैसा ही बनता है जैसा भोजन दिमाग को खिलाया जाता है। दिमाग का भोजन पैकैटों या डिब्बों में नहीं आता और आप इसे किसी स्टार में नहीं खरीद सकते। आपका माहौल ही आपका दिमागी भोजन है- और इसमें वे अनगिनत चीजें आ जाती हैं जिनसे आपका चेतन और। अवचेतन विचार प्रभावित होता है। हम किस तरह का दिमागी भोजन करते हैं इससे हमारी आदतें, रवैए और व्यक्तित्व निर्धारित होते हैं। हममें से हर एक को कोई न कोई खास क्षमता विरासत में मिली है, जिसका विकास हम कर सकते हैं। परंतु हम उस क्षमता को कितना और किस तरह विकसित कर पाते हैं, यह हमारे दिमागी भोजन पर निर्भर करता है।

          मस्तिष्क पर माहौल का बहुत प्रभाव पड़ता है जिस तरह कि शरीर पर भोजन का पड़ता है।

         आपने कभी सोचा कि अगर आप अमेरिका की जगह किसी दूसरे देश में पैदा हुए होते तो आप किस तरह के इंसान होते? आपको कौन सा खाना पसंद होता? आप कैसे कपड़े पहनना पसंद करते? आपको कौन से मनोरंजन ज्यादा अच्छे लगते? आप किस तरह की नौकरी कर रहे होते? आपका धर्म कौन सा होता?

         आप इन सभी सवालों के जवाब नहीं दे सकते। परंतु एक बात तो तय है, कि अगर आप किसी दूसरे देश में बड़े हुए होते तो आप एक बिलकुल ही अलग तरह के इंसान होते। क्यों? क्योंकि आप एक अलग माहौल में रह रहे होते और आप उससे निश्चित रूप से प्रभावित हुए।
होते। जैसा कहा जाता है, कोई भी इंसान अपने आस-पास के माहौल का प्रॉडक्ट होता है।

          इसे ध्यान से समझ लें। माहौल हमें आकार देता है, हमें सोचने का तरीका देता है। आप एक भी ऐसी आदत नहीं गिना सकते जो आपने दूसरों से न सीखी हो। छोटी-छोटी चीजें जैसे आपकी चाल, खाँसने का तरीक़ा, कप पकड़ने का अंदाज़; आपका संगीत, साहित्य, मनोरंजन, कपड़ों का शौक़ - सभी हमारे माहौल की देन हैं।

          इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आपकी सोच का आकार, आपके लक्ष्य की ऊँचाई, आपका रवैया और आपका समूचा व्यक्तित्व आपके माहौल द्वारा तय किया जाता है।

          अगर आप नकारात्मक लोगों के साथ ज्यादा समय तक रहेंगे तो आपकी सोच नकारात्मक हो जाएगी, छोटे लोगों के साथ निकट संपर्क रहने पर आपमें छोटी आदतें आ जाएँगी। दूसरी ओर, बड़े विचारों वाले लोगों के साथ रहने पर आपकी सोच का स्तर भी ऊँचा हो जाएगा। महत्वाकांक्षी लोगों के निकट संपर्क में रहने पर आपमें भी महत्वांकाक्षा आ जाएगी।

         विशेषज्ञ सहमत हैं कि आप आज जिस तरह के इंसान हैं, आज आपका व्यक्तित्व, या महत्वाकांक्षा, या स्टेटस जैसा भी है, यह आपके मनोवैज्ञानिक माहौल के कारण है। और विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि आप आज से एक, पाँच, दस या बीस साल बाद क्या बनेंगे यह भी पूरी तरह आपके भविष्य के माहौल पर निर्भर करता है।

         आप महीनों और सालों तक बदलते रहेंगे। हम इतना तो जानते ही हैं। परंतु आप किस तरह बदलेंगे यह आपके भावी माहौल पर निर्भर करता है, उस दिमागी भोजन पर निर्भर करता है जो आप अपने आपको खिलाएँगे। आइए देखते हैं कि हम संतुष्टि और समृद्धि के लिए अपने भावी माहौल को किस तरह अपने मनमाफ़िक बना सकते हैं।

          पहला कदम - सफलता के लिए खुद को ढालें। ऊँचे स्तर की सफलता की राह में सबसे पहली बाधा यह भावना है कि महान सफलता हमारी पहुँच के बाहर है। यह रवैया कई, ढेर सारी दमनकारी शक्तियों से उपजता है जो हमारी सोच को औसत स्तर का बनाए रखती हैं।

          इन दमनकारी शक्तियों को समझने के लिए हमें अपने बचपन की तरफ़ नज़र डालनी होगी। बचपन में हम सभी के लक्ष्य काफ़ी ऊँचे हुआ करते हैं। बहुत छोटी उम्र में ही हम अनजान को जीतने की योजनाएँ बनाते हैं, लीडर बनने की, ऊँचे महत्व के पद हासिल करने की, रोमांचक काम करने की, अमीर और प्रसिद्ध बनने की - संक्षेप में, हम चाहते हैं। कि हम पहले नंबर पर हों, सबसे बड़े और सबसे श्रेष्ठ बन जाएँ। और अपने अज्ञान में हम साफ़ रास्ता देख सकते हैं कि हम इन लक्ष्यों को हासिल कर लेंगे।

          परंतु होता क्या है ? इसके पहले कि हम उस उम्र में आएँ जब हम अपने महान लक्ष्यों की तरफ़ आगे कदम बढ़ा सकें, बहुत सी दमनकारी शक्तियाँ हम पर हावी हो जाती हैं।

          हर तरफ़ से हम सुनते हैं, “सपने देखना मूर्खता है," और यह कि हमारे विचार “अव्यावहारिक, मूर्खतापूर्ण, नादानी भरे या बकवास” हैं, कि “सफल होने के लिए आपके पास ढेर सारा पैसा होना चाहिए,” कि "आप सफल तभी हो सकते हैं जब या तो आपकी किस्मत अच्छी हो या फिर आपके बहुत से महत्वपूर्ण दोस्त हों," या आप अभी "ज्यादा बूढ़े" या "ज़्यादा युवा” हैं।

       “आप-आगे नहीं बढ़-सकते-इसलिए-कोशिश-करने-से-कोई-फ़ायदा- नहीं" वाला प्रचार आपके दिमाग पर बमबारी करके उसे ध्वस्त कर देता है और इसका परिणाम यह होता है कि ज्यादातर लोगों को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है:

        पहला समूह। जिन्होंने पूरी तरह घुटने टेक दिए हैं : ज़्यादातर लोग अंदर से यह मान चुके हैं कि उनके पास आवश्यक योग्यता नहीं है। असली सफलता, असली उपलब्धि दूसरों के लिए है जो किसी मायने में आपसे ज़्यादा भाग्यवान या तक़दीर वाले हैं। आप ऐसे लोगों को आसानी से पहचान सकते हैं क्योंकि वे काफ़ी देर तक आपको यह समझाते हैं कि वे अपने जीवन से क्यों संतुष्ट हैं और वे सचमुच कितने “खुश" हैं।

         एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति है जिसकी उम्र 32 साल है। उसने अपने आपको एक सुरक्षित परंतु औसत नौकरी के पिंजरे में कैद कर लिया है, और कुछ समय पहले उसने मुझे घंटों तक यह समझाया कि वह अपने काम से पूरी तरह संतुष्ट है। उसने तर्क दिए, बड़े-बड़े और बड़े अच्छे तर्क दिए, परंतु वह जानता था कि यह हक़ीक़त नहीं है। दरअसल वह चाहता तो यह था कि उसे भी चुनौतीपूर्ण स्थितियाँ मिलें, जिनका सफलतापूर्वक सामना करके वह आगे बढ़ सके और अपनी क्षमताओं को विकसित कर सके। परंतु “दमनकारी शक्तियों की बहुतायत" के कारण उसे इस बात का विश्वास हो चला था कि वह बड़े काम करने के काबिल नहीं है।

         यह समूह वास्तव में उस नौकरी बदलने वाले समूह का ठीक उल्टा है जो अपनी हर नौकरी से असंतुष्ट रहता है और लगातार नौकरियाँ बदलता रहता है। अपने आपको किसी खोल में बंद कर लेना, जिसे एक ऐसी क़ब्र कहा गया है जिसके दोनों सिरे खुले हैं, भी उतना ही बुरा हो सकता है जितना कि बिना लक्ष्य के इधर-उधर भटकना, यह आशा करना कि अवसर कहीं से आकर आपसे टकरा जाएगा।

         दूसरा समूह। वे लोग जिन्होंने आंशिक रूप से समर्पण किया है : दूसरा परंतु कुछ छोटा समूह वयस्क जीवन में जब प्रवेश करता है तो उसे सफलता की काफ़ी आशा होती है। ऐसे लोग अपने आपको तैयार करते हैं। वे मेहनत करते हैं। वे योजना बनाते हैं। परंतु, एक या दो दशक बाद, उनकी प्रेरणा की आग ज़माने की नकारात्मक हवाओं से बुझने लगती है, ऊँचे पदों के लिए प्रतियोगिता करने का उनका उत्साह ठंडा पड़ने लगता है। यह समूह तब फ़ैसला करता है कि महान सफलता उनकी पहुँच के बाहर है।

          वे यह तर्क देते हैं, "हम औसत व्यक्ति से ज़्यादा कमा रहे हैं और हम औसत व्यक्ति से बेहतर जिंदगी गुज़ार रहे हैं। हम हमेशा कोल्हू के बैल की तरह क्यों जुते रहें ?"

          वास्तव में, इस समूह ने भी अपने भीतर कुछ डर बिठा लिए हैं- असफलता का डर, सामाजिक निंदा का डर, असुरक्षा का डर, जो है उसे खो देने का डर। यह लोग संतुष्ट नहीं होते क्योंकि अंदर से वे जानते हैं कि उन्होंने समर्पण कर दिया है। इस समूह में कई प्रतिभाशाली, बुद्धिमान लोग होते हैं जो ज़िंदगी की राह में सिर्फ इसलिए घिसटते हुए चलते हैं क्योंकि वे खड़े होकर दौड़ने से डरते हैं।

        तीसरा समह। वे लोग जिन्होंने कभी समर्पण नहीं किया - यह समूह, जिसमें शायद दो या तीन प्रतिशत लोग ही आते होंगे, अपने दिमाग में निराशा को कभी हावी नहीं होने देता। ऐसा व्यक्ति दमनकारी शक्तियों के सामने समर्पण नहीं करता। वह घुटनों के बल चलने में विश्वास नहीं करता। इसके बजाय, यह लोग सफलता की साँस लेते हैं, सफलता का जीवन जीते हैं। यह समूह सबसे सुखी होता है क्योंकि इसकी उपलब्धियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। ये लोग चोटी के सेल्समैन, एक्जीक्यूटिव, और हर क्षेत्र के लीडर बन जाते हैं। इन्हें अपना जीवन रोमांचक, प्रेरक, बहुमूल्य और महत्वपूर्ण लगता है। यह लोग हर नए दिन का स्वागत करते हैं, दूसरे लोगों के साथ उत्साह से मिलते हैं और हर दिन का पूरी तरह आनंद उठाते हैं।

         हम ईमानदारी से सोचें। हम सभी तीसरे समूह में होना पसंद करेंगे। ऐसे समूह में जिसे हर साल ज्यादा बड़ी सफलताएँ मिलती जाती हैं. ऐसे समूह में जहाँ बड़े काम होते हैं और उनके बड़े परिणाम मिलते हैं।

        इस समूह में आने - और बने रहने - के लिए हमें अपने माहौल के दमनकारी प्रभावों से जूझना होगा। अगर आप यह जानना चाहें कि आपको पहले और दूसरे समूहों के लोग किस तरह पीछे खींचते हैं, तो आप इस उदाहरण का अध्ययन करें।

        मान लीजिए आप अपने “औसत” दोस्तों से पूरी गंभीरता से यह कहें, "किसी न किसी दिन मैं इस कंपनी का वाइस-प्रेसिडेंट बनकर दिखाऊँगा।"

         यह सुनकर उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आपके दोस्त शायद यह सोचेंगे कि आप मज़ाक़ कर रहे हैं। और अगर उन्हें यक़ीन हो जाए कि आप गंभीर हैं, तो शायद वे यह कहेंगे, “नादान आदमी, तुम्हें अभी ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखना है।"

        आपकी पीठ पीछे वे तो यहाँ तक कहेंगे कि आपके दिमाग के पेंच ढीले हो गए हैं या आपका दिमाग खिसक गया है।

         अब हम यह मान लें कि आप अपनी कंपनी के प्रेसिडेंट से यही बात इतनी ही गंभीरता से कहते हैं। उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? चाहे जो हो, एक बात तो पक्की है : वह हँसेगा नहीं। वह आपकी तरफ़ गौर से देखेगा और खुद से पूछेगा, “क्या यह आदमी गंभीर है ?"

       परंतु वह, मैं एक बार फिर दोहरा दूं, हँसेगा नहीं।

        क्योंकि बड़े लोग बड़े विचारों पर हँसा नहीं करते।

         या मान लें आप औसत लोगों से यह कहें कि आपकी योजना 50,000 डॉलर का घर ख़रीदने की है, तो वे आप पर हँस सकते है क्योंकि उन्हें लगेगा कि यह असंभव है। परंतु आप अगर यह योजना। किसी ऐसे व्यक्ति को बताएँ जो 50,000 डॉलर के घर में रह रहा हो,
तो उसे आश्चर्य नहीं होगा। वह जानता है कि यह असंभव नहीं है, क्या वह ऐसा कर चुका है।

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CHAPTER 6.3 हर दिन अपना उत्साह बढ़ाएँ

                हर दिन अपना उत्साह बढ़ाएँ



महीने पहले एक ऑटोमोबाइल सेल्समैन ने मुझे सफलता दिलाने वाली तकनीक के बारे में बताया। यह तकनीक बहुत बढ़िया थी। इसे पढ़ें।

        "हमारे काम का एक बड़ा हिस्सा है टेलीफ़ोन करना," सेल्समैन ने बताया, "जिसमें हम दो घंटे तक अपने संभावित ग्राहकों को फ़ोन करकेbडिमांस्ट्रेशन के लिए अपॉइंटमेंट लेते हैं। जब मैंने तीन साल पहले कार बेचना शुरू किया, तो मुझे यहीं पर सबसे ज़्यादा मुश्किल आती थी। मै संकोची और डरा हुआ रहता था और मैं जानता था कि मेरी आवाज़ फ़ोन पर कैसी सुनाई देती होगी। सामने वाले आदमी के लिए यह बोलना स्वाभाविक ही होता था, 'सॉरी, मेरी इसमें कोई रुचि नहीं है' और इसके बाद वह फ़ोन काट देता था।

         "हर सोमवार की सुबह हमारे सेल्स मैनेजर एक सेल्स मीटिंग में थे। यह मीटिंग बहुत प्रेरणादायक हुआ करती थी और इससे मुझे काफी प्रेरणा मिलती थी। और इसका परिणाम यह होता था कि सोमवार को मैं सप्ताह के किसी और दिन के मुक़ाबले ज्यादा डिमांस्ट्रेशन हासिल करने में कामयाब हो जाता था। परंतु समस्या यह थी कि सोमवार की मेरी प्रेरणा मंगलवार तक ख़त्म हो जाती थी और बाक़ी हफ्ते मेरा प्रदर्शन एक बार फिर निराशाजनक हुआ करता था।

          "तभी मेरे दिमाग में एक विचार आया। अगर मेरा सेल्स मैनेजर मुझे प्रेरित कर सकता था, तो मैं अपने आपको प्रेरित क्यों नहीं कर सकता? क्यों न मैं फ़ोन कॉल करने के पहले अपने आपको एक प्रेरक भाषण दूँ। उस दिन मैंने फैसला किया कि मैं कोशिश करके देखूगा। बिना किसी को बताए मैं खाली मैदान में गया और एक ख़ाली कार में बैठ गया। वहाँ कुछ देर बैठकर मैंने खुद से बातें कीं। मैंने अपने आपको बताया, “मैं एक अच्छा कार सेल्समैन हूँ और मैं सर्वश्रेष्ठ सेल्समैन बनने जा रहा हूँ। मैं अच्छी कारें बेचता हूँ और मेरा धंधा अच्छा चल रहा है। जिन लोगों को मैं फ़ोन कर रहा हूँ उन्हें इन कारों की ज़रूरत है और मैं इन्हें बेचने जा रहा हूँ।'

         "शुरुआत से ही यह आत्म-प्रेरक तकनीक सफल हुई। मुझे इतना अच्छा लगा कि मुझे फ़ोन करने में ज़रा भी हिचक नहीं हुई। मैं फ़ोन करने के लिए उत्सुक होने लगा। मैं आजकल खाली प्लॉट में खाली कार में बैठकर खुद को प्रेरणा नहीं देता हूँ, परंतु मैं अब भी इस तकनीक का प्रयोग करता हूँ। किसी भी नंबर को डायल करने से पहले मैं अपने आपको यह याद दिलाता हूँ कि मैं एक बेहतरीन सेल्समैन हूँ और मैं सफल होने जा रहा हूँ। और मुझे सफलता मिलती है।"

       यह बहुत शानदार विचार है, नहीं क्या? सफलता की चोटी पर पहुँचने के लिए आपको यह अनुभव करना होगा कि आप सफलता की चोटी पर हैं। अपने आपसे प्रेरक चर्चा करें और यह जानें कि ऐसा करने से आप कितने बड़े और विश्वासपूर्ण बन सकते हैं।

        हाल ही में, मैंने एक ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किया। इसमें हर यक्ति को दस मिनट तक “लीडर बनने" के विषय पर बोलना था। एक ट्रेनी ने बहुत बुरा प्रदर्शन किया। उसके घुटने काँप रहे थे और उसके हाथ थरथरा रहे थे। वह भूल गया कि वह क्या कहने वाला था। पाँच या छह मिनट तक इधर-उधर की बात करने के बाद, वह पूरी तरह असफल होकर बैठ गया।

          सत्र के बाद, मैंने उससे सिर्फ इतना कहा कि वह अगले सत्र की शुरुआत के पंद्रह मिनट पहले वहाँ आ जाए।

          वह वादे के मुताबिक अगले सत्र के पंद्रह मिनट पहले वहाँ आ गया। हम दोनों पिछली रात के उसके बुरे अनुभव के बारे में बात करने लगे। मैंने उससे पूछा कि भाषण देने के पाँच मिनट पहले उसके दिमाग़ में किस तरह के विचार आ रहे थे।

          “मैं बहुत डरा हुआ था। मैं जानता था कि मैं दूसरों के सामने खुद को मूर्ख साबित कर दूंगा। मैं जानता था कि मैं फ्लॉप होने वाला हूँ। मैं यह सोचता जा रहा था, 'लीडर बनने के बारे में मैं क्या बोल सकता हूँ?' मैंने यह याद करने की कोशिश की कि मैं क्या बोलने वाला हूँ परंतु मुझे असफल होने के अलावा और कोई बात सूझ ही नहीं रही थी।"

          “यही तो," मैंने बीच में कहा, “यही तो आपकी समस्या की जड़ है। बोलने के पहले ही आपने अपने आपको हरा दिया। आपने खुद को विश्वास दिला दिया कि आप असफल होने वाले हैं। फिर इसमें हैरत की क्या बात है कि आप असफल हो गए? साहस बढ़ाने के बजाय आपने डर बढ़ाने का विकल्प चुना।

          "अब इस शाम का सत्र शुरू होने में सिर्फ चार मिनट का समय बचा है," मैंने उससे कहा। "मैं चाहता हूँ कि अब आप यह करें। अगले कुछ मिनट तक अपने आपसे प्रेरणा भरी बातें करें। हॉल के बाहर उस खाली कमरे में चले जाएँ और खद से कहें, 'मैं बहुत अच्छा भाषण देने जा रहा हूँ। मैं अपनी बात सच्चे दिल से कहूँगा और लोग पूरा मन लगाकर सुनेंगे।' इन शब्दों को लगातार दोहराते रहें, और पूरे विश्वास से ऐसा करें। फिर आप हॉल में आएँ और अपना भाषण देना शुरू कर दें।"

        काश कि आप वहाँ होते और दोनों भाषणों के अंतर को सुन सकते। उस छोटी-सी, खद की दी गई प्रेरणादायक चर्चा का असर यह   हुआ कि वह बहुत बढ़िया भाषण देने में कामयाब हुआ।

        संदेश - प्रेरणादायक आत्म-प्रशंसा का अभ्यास करें। आत्म-निंदा के शब्दों से खुद को छोटा न बनाएँ।

         आप जैसा सोचते हैं, आप वैसे ही होते हैं। अपने बारे में बड़ी बातें सोचें और आप सचमुच बड़े बन जाएँगे।

"खुद को खुद के हाथों बेचने" का विज्ञापन बनाएँ। एक मिनट के लिए अमेरिका के बेहद लोकप्रिय ब्रांड कोका कोला के बारे में सोचें। हर दिन आपकी आँख या कान में कई बार “कोक" दिखाई या सुनाई दे जाता है। जो लोग कोका कोला बनाते हैं वे आपको लगातार “कोक" बेचते हैं और इसके पीछे एक कारण होता है। अगर वे आपको लगातार “कोक" नहीं बेचेंगे तो हो सकता है कि “कोक" में आपकी रुचि कम हो जाए और एक दिन यह पूरी तरह ख़त्म हो जाए। इससे उनकी बिक्री घट जाएगी।

         परंतु कोका कोला कंपनी ऐसा नहीं होने देती। वे आपको बहुत बार “कोक" बेचते हैं, बार-बार बेचते हैं।

          हर दिन हम लोग ऐसे आधे-जिंदा-आधे-मुर्दा लोगों को देखते हैं जिन्होंने खुद को खुद के हाथों नहीं बेचा है। उनमें अपने सबसे महत्वपूर्ण सामान यानी खुद के लिए कोई आत्म-सम्मान नहीं है। ये लोग नीरस हैं। खुद को छोटा समझते हैं। उन्हें लगता है उनकी कोई हस्ती नहीं है और चूँकि उन्हें ऐसा लगता है, इसलिए सचमुच ऐसा ही होता है।

         आधे-ज़िंदा-आधे-मुर्दा आदमी को इस बात की ज़रूरत है कि वह खुद को खुद के हाथों बेच दे। उसे यह महसूस करना होगा कि वह एक फ़र्स्ट क्लास आदमी है। उसे खुद पर सच्चा, पूरा विश्वास करना ही होगा।

          टॉम स्टैली एक युवक है जो तेज़ी से सफलता के रास्ते पर जा रहा है। टॉम दिन में तीन बार खुद को खुद के हाथों बेचता है। और वह ऐसा "टॉम स्टैली के 60 सेकंड के विज्ञापन" के माध्यम से करता है। वह अपन विज्ञापन को हमेशा अपने पर्स में अपने साथ रखता है। इस विज्ञापन म उसने क्या लिखा है:

           टॉम स्टैली से मिलें- एक महत्वपूर्ण, सचमुच महत्वपूर्ण व्यक्ति। टॉम, आप एक बड़े चिंतक हैं, इसलिए आप बड़ा सोचें। हर चीज़ के बारे में बड़ा सोचें। आपमें बढ़िया काम करने की बहत योग्यता है इसलिए हमेशा बढ़िया काम करें।


       टॉम, आप सुख, प्रगति और अमीरी में विश्वास करते हैं।

          इसलिए : सिर्फ सुख के बारे में बात करें,

                        सिर्फ प्रगति के बारे में बात करें,

                        सिर्फ अमीरी के बारे में बात करें।

आपमें बहुत क्षमताएँ हैं, टॉम, आपमें बहुत क्षमताएँ हैं। इसलिए आप अपनी क्षमताओं का उपयोग अपनी नौकरी में करें। आपको कोई चीज़ सफल होने से रोक नहीं सकती, टॉम, कोई भी चीज़।

         टॉम, आप उत्साही हैं। अपने उत्साह को सबके सामने दिखने दें।

         आप अच्छे दिखते हैं, टॉम, और आप अच्छा अनुभव करते हैं। ऐसे ही बने रहें।

         टॉम स्टैली, आप कल बहुत बढ़िया आदमी थे और आप आज उससे भी बढ़िया आदमी बनकर दिखाएँगे। अब ऐसा करके दिखाएँ, टॉम। आगे बढ़ें।

        टॉम मानता है कि इस विज्ञापन की मदद से ही वह इतना सफल और महत्वपूर्ण बन पाया। "खुद को खुद के हाथों बेचने से पहले मैं सोचा करता था कि मैं हर एक की तुलना में हीन हूँ, छोटा हूँ। अब मैं महसूस करता हूँ कि मेरे पास सफल होने के सारे गुण हैं और मैं सफल हो रहा हूँ। और मैं हमेशा सफल होता रहूँगा।"

        आप अपना "खुद के हाथों खुद को बेचने का विज्ञापन" कैसे बनाएँ? पहले तो अपने गुणों को चुनें, आपमें कौन सी योग्यताएँ और काबिलियत हैं ? खुद से पुछे, "मुझमें क्या ख़ास बात है?" अपने बारे में वर्णन करते समय ज़रा भी संकोच न करें।

इन गुणों को एक काग़ज़ पर अपने शब्दों में लिख लें। फिर अपने बारे में विज्ञापन लिखें। टॉम स्टैली के विज्ञापन को एक बार फिर पढ़ें। यह देखें कि वह किस तरह टॉम से बात करता है। अपने आपसे बात करें। बिलकुल स्पष्ट रहें। जब आप विज्ञापन तैयार करें तो किसी और के बारे में न सोचें, खुद के बारे में सोचें।

          तीसरी बात, आप दिन में कम से कम एक बार इस विज्ञापन को अकेले में ज़ोर से पढ़ें। शीशे के सामने पढ़ने से ज़्यादा फ़ायदा होगा। इसे पढ़ते समय शारीरिक गतिविधियों की भी मदद लें। अपने विज्ञापन को दृढ़ निश्चय के साथ पढ़ें। इसे पढ़ते समय अपने शरीर में रक्त का प्रवाह तेज़ हो जाने दें। इसे जोश के साथ पढ़ें।

          चौथी बात, आप अपने विज्ञापन को हर दिन चुपचाप कई बार पढ़ें। जब भी आपको किसी परिस्थिति में साहस की ज़रूरत हो, इसे पढ़ें। जब भी आप खुद को निराश या असफल पाएँ, इसे पढ़ें। अपने विज्ञापन को हमेशा अपने पास रखें - और इसका प्रयोग करें।

           एक बात और। बहुत से लोग, शायद ज़्यादातर लोग, सफलता की इस तकनीक को पढ़कर "हँस” सकते हैं। इसलिए क्योंकि ये लोग यह मानने को तैयार नहीं होते कि विचारों को नियंत्रित करके सफलता पाई जा सकती है। परंतु, मेहरबानी करके, औसत व्यक्तियों के फैसले को न मानें। आप औसत व्यक्ति नहीं हैं। अगर आपको “खुद के हाथों खुद को बेचने" के सिद्धांत के बारे में कोई शंका है तो अपनी पहचान के सबसे सफल व्यक्ति से सलाह लें कि वह इस बारे में क्या सोचता है। उससे पूछे, और फिर खुद के हाथों खुद को बेचना शुरू करें।

  अपनी सोच को विकसित करें। महत्वपूर्ण लोगों की तरह सोचें।

अपनी सोच को विकसित करने का मतलब है अपने कार्यों को विकसित करना और इसी से सफलता मिलती है। यहाँ आपको एक आसान तरीका बताया जा रहा है जिसकी मदद से आप महत्वपर्ण लोगों की तरह सचि पाएँगे। नीचे दिए गए फॉर्म को मार्गदर्शक की तरह प्रयुक्त करें।

     अपने दिमाग में यह सवाल जमकर बिठा लें, 'क्या महत्वपूर्ण व्यक्ति इसी तरीके से काम करता है? बड़े, ज़्यादा सफल बनने के लिए इस सवाल का उपयोग करें।

       संक्षेप में, याद रखें:

1. महत्वपूर्ण दिखें; इससे आपको महत्वपूर्ण सोचने में मदद मिलती है। आपकी वेशभूषा आपसे कुछ कहती है। सुनिश्चित कर लें कि यह आपके आत्मविश्वास और हौसले को बढ़ाए। आपकी वेशभूषा सामने वाले से भी कुछ कहती है। सुनिश्चित कर लें कि यह सबसे कहे, “यह
रहा एक महत्वपूर्ण व्यक्ति - बुद्धिमान, अमीर और भरोसेमंद।"

2. यह सोचें कि आपका काम महत्वपूर्ण है। इस तरीके से सोचें और आपको ऐसे मानसिक संकेत मिलने लगेंगे कि आप अपने काम को किस तरह बेहतर ढंग से कर सकते हैं। सोचें कि आपका काम महत्वपूर्ण है और आपके अधीनस्थ भी सोचने लगेंगे कि उनका काम महत्वपूर्ण है।

3. हर दिन कई बार अपने आपसे प्रेरणादायक बातें करें। “खद के हाथों खुद को बेचने” का विज्ञापन बनाएँ। हर मौके पर खुद को याद दिलाएँ कि आप एक फ़र्स्ट-क्लास इंसान हैं।

4. ज़िंदगी की हर परिस्थिति में खुद से पूछे, “क्या महत्वपूर्ण व्यक्ति इसी तरह से सोचते हैं ?" फिर जवाब के हिसाब से काम करें।


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