Sunday, September 29, 2019

CHAPTER 9.2 यहाँ ज़रा सी पहल से दोस्त बनाने के छह तरीक़ दिए जा रहे हैं :

     यहाँ ज़रा सी पहल से दोस्त बनाने के छह तरीक़ दिए जा रहे हैं :


1. हर मौके पर दूसरों को अपना परिचय दें- पार्टी में, बैठकों में, हवाई जहाज़ में, ऑफ़िस में, हर जगह।

2. यह सुनिश्चित कर लें कि सामने वाला आपका नाम ठीक से जान ले।

3. यह सुनिश्चित कर लें कि आप सामने वाले के नाम का उच्चारण ठीक से कर सकें।

4. सामने वाले का नाम लिख लें और यह सुनिश्चित कर लें कि आपने उसकी स्पेलिंग सही लिखी हो। अगर आप किसी के नाम की गलत स्पेलिंग लिखेंगे तो हो सकता है कि वह दोस्त के बजाय आपका दुश्मन बन जाए। अगर संभव हो, तो उसका पता और फ़ोन नंबर भी लिख लें।

5. आप जिन नए दोस्तों से मिलें, उनमें से आप जिससे परिचय बढाता चाहते हों, उन्हें चिट्ठी लिखें या फ़ोन करें। यह बहुत महत्वपूर्ण है। ज़्यादातर सफल लोग नए दोस्त बनाने के बाद उन्हें चिट्ठी लिखते या फिर फ़ोन पर उनसे बात करते हैं।

6. और सबसे आखिरी बात, अजनबियों से अच्छी बातें करें। इससे आपको भी अच्छा लगेगा और आपका दिन भी अच्छा जाएगा।

         इन छह नियमों पर अमल करना ही लोगों के बारे में अच्छा सोचने का सही तरीका है। एक बात तो तय है, आम आदमी इस तरह से नहीं सोचता। “आम" आदमी कभी परिचय देने में पहल नहीं करता। वह इस बात का इंतज़ार करता है कि सामने वाला पहल करे।

       पहल करें। सफल लोगों की तरह बनें। लोगों से मिलने की कोशिश करें। दब्बू या संकोची न बनें। ज़रा हटकर काम करने से न घबराइएँ। यह पता करें कि सामने वाला व्यक्ति कौन है और उसे बताएं कि आप कौन हैं। 

कुछ समय पहले मुझे और मेरे सहयोगी को किसी बिज़नेस में सेल्स जॉब के आवेदन पत्रों की स्क्रीनिंग का काम सौंपा गया। हमने पाया कि एक आवेदक, जिसे हम टेड का नाम देंगे, बहुत योग्य था। वह बुद्धिमान, आकर्षक और महत्वाकांक्षी था।

       परंतु इसके बावजूद हमने यह पाया कि हम उसे नहीं चुन सकते, कम से कम फ़िलहाल तो नहीं। टेड में सबसे बड़ी गड़बड़ यह थी : वह दूसरे लोगों से पूर्णता की उम्मीद करता था। टेड छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ जाता था, जैसे व्याकरण की ग़लती से, सिगरेट का गल खिलाने वाले लोगों से, या मैचिंग के कपड़े न पहनने वालों से इत्यादि।

        जब हमने टेड को उसकी इस आदत के बारे में बताया, तो उस आश्चर्य हुआ। परंतु वह यह काम करने को इच्छक था, इसलिए उसन। हमसे पूछा कि वह अपनी इस कमज़ोरी को किस तरह दूर कर सकता है।

       हमने उसे तीन सुझाव दिए :

     1. यह जान लें कि कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं होता। कई लोग बाक़ा लोगों से ज़्यादा पूर्ण होते हैं, परंतु कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं कहा जा सकता। हर एक में कुछ न कुछ कमी तो होती ही है। इंसानों को इंसान बनाने वाली चीज़ यही है कि वे ग़लतियाँ करते हैं, हर तरह की ग़लतियाँ।

       2. यह जान लें कि दूसरे व्यक्ति को अलग होने का अधिकार है। किसी भी चीज़ के बारे में सर्वज्ञानी होने का दावा न करें। लोगों को सिर्फ इसलिए नापसंद न करें क्योंकि उनकी आदतें आपसे अलग हैं, या उनके कपड़े, उनका धर्म, उनकी पार्टियाँ, उनकी कार आपसे भिन्न हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि आप सामने वाले व्यक्ति के काम की तारीफ़ करें, परंतु यह भी ज़रूरी नहीं है कि आप उसके काम को नापसंद करें।

      3. सुधारक बनने से बचें। अपनी फिलॉसफी में 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत का पालन करें। ज्यादातर लोगों को यह पसंद नहीं होता कि कोई उनकी ग़लतियाँ बताए। किसी के बारे में आपके विचार होना ग़लत नहीं है, परंतु कई बार उन विचारों को ना कहने में ज़्यादा समझदारी होती है।

       टेड ने इन सुझावों पर काफ़ी मेहनत से अमल किया। कई महीनों बाद वह पूरी तरह बदल गया। अब वह लोगों के प्रति ज्यादा उदार हो चला है। वह जान गया है कि लोग न तो पूरी तरह अच्छे होते हैं, न ही पूरी तरह बुरे होते हैं।

       वह कहता है, “पहले मैं जिस बात से चिढ़ जाता था, अब उसी बात में मुझे मज़ा आने लगा है। अब जाकर मुझे यह समझ आया है कि अगर सभी लोग एक जैसे होते और सभी पूर्ण होते तो यह दुनिया कितनी नीरस हो जाती।"

       इस आसान परंतु महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखें : कोई भी व्यक्ति पूरी तरह अच्छा या बुरा नहीं होता। पूर्ण व्यक्ति इस दुनिया में कोई नहीं होता। हम सभी आधे-अधूरे होते हैं।

      अब, अगर हम अपने चिंतन को नियंत्रित न करें, तो हमें हर व्यक्ति में बुराई दिख सकती है। परंतु अगर हम अपने चिंतन को नियंत्रित कर लेते हैं, तो हम हर व्यक्ति में अच्छाई भी खोज सकते हैं।

       इसे इस तरह से देखें। आपका दिमाग एक मानसिक ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन है। इस ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम में बराबर ताक़त वाले दो चैनल हैं जिनके माध्यम से यह आप तक संदेश पहुँचाता है : चैनल पी (positive) यानी सकारात्मक चैनल और चैनल एन (negative) यानी नकारात्मक चैनल।

        आइए अब देखें कि आपका ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम किस तरह काम करता है। मान लें कि आपके बॉस (हम उनका नाम मिस्टर जैकब्स रख लेते हैं) ने आपको अपने केबिन में बुलवाया और आपके काम का मूल्यांकन किया। उन्होंने आपके कई कामों की तारीफ़ की और साथ ही आपको कुछ सुझाव भी दिए कि आप अपने काम को किस तरह बेहतर तरीके से कर सकते हैं। आज की रात यह स्वाभाविक ही है कि आप उस बारे में सोचें।

        अगर आप चैनल एन को चालू करते हैं तो वहाँ पर उद्घोषक कुछ इस तरह की बातें करेगा : “सावधान! जैकब्स तुम्हें नीचा दिखाना चाहता है। उसे दूसरों को परेशान करने में मज़ा आता है। तुम्हें उसकी सलाह की कोई ज़रूरत नहीं है। भाड़ में जाए उसकी सलाह। याद करो जो ने जैकब्स के बारे में क्या बताया था ? वह ठीक कहता था। जैकब्स तुम्हें भी उसी तरह ज़लील करना चाहता है जिस तरह उसने जो को ज़लील किया था। उसका विरोध करो। अगली बार जब वह तुम्हें बुलाए तो तुम उसकी बात चुपचाप मत सुनो बल्कि उससे बहस करो। या इससे भी बेहतर तो यह होगा कि तुम इंतज़ार मत करो। कल खुद ही जाकर उससे मिलो और पूछो कि तुम्हारी आलोचना उसने क्यों की..."

        परंतु अगर आप चैनल पी को सुनते हैं तो वहाँ उद्घोषक कुछ इस तरह की बात करता है, “मिस्टर जैकब्स भले आदमी हैं। उन्होंने मुझे जो सुझाव दिए हैं वे सचमुच बहुत अच्छे हैं। अगर मैं उन सुझावों पर अमल करूँ तो शायद मेरा काम सुधर जाए और बाद में मेरा प्रमोशन भी हो जाए। मिस्टर जैकब्स ने तो मेरी ग़लतियाँ बताकर मुझ पर एहसान किया है। कल ही मैं जाऊँगा और उनकी रचनात्मक मदद के लिए उन्हें धन्यवाद दूंगा। बिल ठीक कहता है जैकब्स के साथ काम करना बहुत अच्छा है...।

       इस मामले में, अगर आप चैनल एन की बात सुनेंगे तो हो सकता है कि आपके संबंध आपके बॉस से खराब हो जाएँ और आप कोई ग़लत या ख़तरनाक हरकत कर बैठें। परंतु अगर आप चैनल पी की बात मानेगे तो आपके बॉस के सुझावों से आपको लाभ मिलना तय है और इसके अलावा आप उनके क़रीब भी पहुँच जाएँगे। वे आपसे मिलना पसंद करेंगे। जाएँ, कोशिश करके देखें।

       यह ध्यान रखें कि आप जितनी ज़्यादा देर तक चैनल पी या चैनल एन की बातें सुनते हैं, आप उस तरह की बातों में सचमुच दिलचस्पी लेने लगते हैं और चैनल बदलना आपके लिए उतना ही मुश्किल होता जाता है। यह सच है क्योंकि एक विचार, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, अपने जैसे कई विचारों का चेन रिएक्शन पैदा करता है।

         उदाहरण के तौर पर, आप किसी व्यक्ति के उच्चारण के बारे में नकारात्मक सोचने से शुरू कर सकते हैं और जल्दी ही आप यह सोचने लगेंगे कि उसके राजनीतिक या धार्मिक विश्वास कितने ग़लत हैं, वह कितने ग़लत ढंग से कार चलाता है, उसकी आदतें कितनी बुरी हैं और उसके अपनी पत्नी के साथ संबंध भी ख़राब हैं, यहाँ तक कि वह अपने बाल भी ठीक से नहीं काढ़ता। और अगर आप इस तरह से सोचेंगे तो निश्चित रूप से आप वहाँ नहीं पहुँच पाएँगे जहाँ आप पहुँचना चाहते हैं।

        आप ही दोनों चैनलों के मालिक हैं इसलिए अपने विचारों के ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन पर क़ाबू रखना भी आपकी ज़िम्मेदारी है। जब आप लोगों के बारे में सोचें तो चैनल पी को सुनने की आदत डाल लें।

       अगर चैनल एन बीच में आ जाए, तो उसे बंद कर दें। फिर चैनल बदल लें। चैनल बदलने के लिए आपको उस व्यक्ति के बारे में कोई अच्छी बात सोचना भर है। सच्ची चेन रिएक्शन शैली में एक विचार के बाद उसी तरह का दूसरा विचार आ जाएगा और इसी तरह एक के बाद एक विचार आते चले जाएंगे। और आप खुश होंगे।

         जब आप अकेले होते हैं, तो आप और सिर्फ आप ही यह फैसला कर सकते हैं कि आप चैनल पी सुनेंगे या चैनल एन। परंतु जब आप किसी और के साथ बात करते हैं तो आपके सोचने के तरीके पर उस व्यक्ति का भी कुछ नियंत्रण होता है।

       हमें यह याद रखना चाहिए कि ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि लोगों के बारे में सोचने का सही नज़रिया क्या होता है। इसलिए आप यह पाएँगे कि कोई व्यक्ति आपकी तरफ़ दौड़ा चला आएगा और किसी परिचित के बारे में कोई बुरी बात बताने के लिए व्याकुल होगा : आपका सहकर्मी दूसरे कर्मचारी की आपत्तिजनक बातें बता सकता है; आपका पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की घरेलू समस्याएँ बता सकता है, या ग्राहक अपने उस प्रतियोगी की बुराई बता सकता है जिससे आप मिलने जा रहे हों।

        विचार अपनी ही तरह के विचारों को जन्म देते हैं। असली खतरा यह है कि जब आप किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में नकारात्मक विचार सुनते हैं, तो आपके मन में भी उसी तरह के विचार आएँगे और आप भी नकारात्मक बातें कर सकते हैं। वास्तव में, अगर आप सावधान न हों, तो हो सकता है कि आप आग में घी डाल दें और यह कहें, “हाँ, और यही नहीं। क्या तुम्हें पता है...”

          इस तरह की बातें पलटकर वापस आती हैं, बूमरैग की तरह।

         दो तरीके हैं जिनसे हम दूसरे लोगों को हमारे पी चैनल को एन चैनल में बदलने से रोक सकते हैं। एक तो यह कि आप तत्काल विषय बदल दें और इस तरह की बात कहें, “क्षमा करें, जॉन, परंतु मैं तुमसे यह पूछना चाहता था...” दूसरा तरीक़ा यह है कि आप वहाँ से इस तरह की बात कहकर चल दें, “अभी मैं जल्दी में हूँ...” या “मुझे एक जगह पहुँचना है और मुझे पहले ही देर हो चुकी है। अब मुझे चलना चाहिए।"

        अपने आपसे एक वादा करें। दूसरों को इस बात की अनुमति न दें कि वे आपके चिंतन पर नकारात्मक प्रभाव डालें। चैनल पी को हमेशा लगाए रखें।

        एक बार आप लोगों के बारे में अच्छा सोचने की आदत डाल लेंगे, तो फिर आपकी सफलता निश्चित है। मैं आपको उस सफल बीमा सेल्समैन की बात बताता हूँ जिसने मुझे अपनी कहानी बताई थी कि किस तरह लोगों के बारे में अच्छा सोचने से उसे फायदा हुआ था।

       “जब मैं पहली बार बीमा बिज़नेस में आया," उसने कहा, "तो मुझे बहुत मुश्किल आई। पहले तो यह लगा जैसे मेरे जितने संभावित ग्राहक थे, उतने ही मेरे प्रतियोगी थे। और जल्दी ही मैंने यह जान लिया जो सभी बीमा एजेंट जानते हैं कि 10 में से 9 संभावित ग्राहकों का यह दृढ़ विश्वास होता है कि उन्हें बीमे की कोई ज़रूरत नहीं है।"

       “मेरा काम ठीक चल रहा है। परंतु मैं आपको बता दूं कि ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैं बीमे के तकनीकी पहलू का विशेषज्ञ हूँ। वह भी महत्वपूर्ण है, परंतु आप मुझे ग़लत मत समझना, मुझसे बहुत ज़्यादा समझदार लोग मेरे जितने सफल नहीं हैं। वास्तव में, मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसने बीमे पर एक पुस्तक लिखी है, परंतु वह उस व्यक्ति का बीमा भी नहीं कर पाया जो जानता था कि उसे सिर्फ पाँच दिन जिंदा रहना है।

        “मेरी सफलता का आधार सिर्फ यह है," उसने कहा, "मैं जिसे अपनी बीमा पॉलिसी बेचता हूँ, मैं उसे सचमुच पसंद करता हूँ। हाँ, मैं उसे सचमुच पसंद करता हूँ। मेरे कई साथी सेल्समैन यह नाटक करते हैं किवे सामने वाले को पसंद करते हैं, परंतु इससे कोई फायदा नहीं होता। लोग समझ जाते हैं कि आप उन्हें बेवकूफ़ बना रहे हैं। आपके हाव-भाव, आपके चेहरे के भाव, आपकी आँखों से साफ़ दिख जाता है कि आप नाटक कर रहे हैं।"

       “जब मैं किसी संभावित ग्राहक के बारे में जानकारी इकट्ठी करता हँ, तो मैं वही करता हूँ जो हर एजेंट करता है। मैं उसकी उम्र, उसके काम-धंधे, उसकी आमदनी, उसके बीवी-बच्चों इत्यादि के बारे में जानकारी हासिल करता हूँ।

         "परंतु इसके साथ ही मैं एक और चीज़ की खोज करता हूँ जिसके बारे में ज्यादा सेल्समैन परवाह नहीं करते- मैं ऐसा कारण ढूँढ़ता हूँ जिसके कारण मैं अपने संभावित ग्राहक को पसंद करने लगूं। हो सकता है कि मुझे यह कारण उसकी नौकरी में मिल जाए, या उसके पिछले रिकॉर्ड में मिल जाए। परंतु मैं हमेशा उसे पसंद करने का कारण ढूँढ़ने में कामयाब हो जाता हूँ।

         "फिर जब भी मेरा ध्यान अपने संभावित ग्राहक पर केंद्रित होता है, तो मैं उसे पसंद करने के कारणों को याद कर लेता हूँ। उससे बीमे के बारे में एक शब्द कहने से पहले ही मैं उस संभावित ग्राहक की पसंदीदा छवि बनाने की कोशिश करता हूँ।

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