Wednesday, September 11, 2019

CHAPTER 5.1 रचनात्मक तरीके से कैसे सोचें और सपने देखें?

       रचनात्मक तरीके से कैसे सोचें और सपने देखें?


       सबसे पहले तो रचनात्मक सोच को लेकर फैली एक ग़लतफ़हमी को दूर कर लें। न जाने क्यों विज्ञान, इंजीनियरिंग, साहित्य और कला को ही रचनात्मक काम माना जाता है। ज्यादातर लोगों की नज़र में रचनात्मक सोच का अर्थ होता है बिजली या पोलियो वैक्सीन की खोज, या उपन्यास लिखना रंगीन टेलीविज़न काआविष्कार करना।

        निश्चित रूप से ये तमाम उपलब्धियाँ रचनात्मक सोच का परिणाम हैं। अंतरिक्ष को इंसान इसीलिए जीत पाया, क्योंकि उसने रचनात्मक सोच का सहारा लिया। हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि रचनात्मक सोच का संबंध केवल कुछ ख़ास व्यवसायों से नहीं होता, न ही अति बुद्धिमान लोगों से इसका कोई विशेष संबंध होता है।

         फिर, रचनात्मक सोच क्या है?

         कम आमदनी वाला परिवार अपने बच्चे को किसी मशहूर यूनिवर्सिटी में भेजने की योजना बनाता है। यह रचनात्मक सोच है।

        कोई परिवार अपने आस-पास की बहुत बुरी जगह को सबसे सुंदर जगह में बदल देता है। यह रचनात्मक सोच है।

        कोई पादरी ऐसी योजना बनाता है जिससे रविवार शाम की उपस्थिति दुगुनी हो जाती है। यह रचनात्मक सोच है।

           अगर आप रिकॉर्ड-कीपिंग को आसान बनाने के तरीके ढूँढ़ते हैं. “असंभव” ग्राहक को सामान बेचने के तरीके ढूँढ़ते हैं, रचनात्मक रूप से बच्चों को व्यस्त रखते हैं, ऐसा उपाय करते हैं कि आपके कर्मचारी दिल लगाकर काम करें, या आप किसी “निश्चित" झगड़े को रोक लेते हैं- ये सभी व्यावहारिक जीवन में रचनात्मक सोच के उदाहरण हैं।

          रचनात्मक सोच का अर्थ है किसी भी काम को करने के नए, सधरे हुए तरीके खोजना। हर जगह सफलता इसी बात में छुपी होती है कि आप चीज़ों को बेहतर तरीके से करने के उपाय किस तरह खोजते हैं. फिर चाहे वह सफलता घर में हो, काम-धंधे में हो या समाज में हो। आइए देखते हैं कि हम अपनी रचनात्मक सोच की योग्यता को किस तरह विकसित कर सकते हैं और इसकी आदत कैसे डाल सकते हैं।

          कदम एक : विश्वास करें कि काम किया जा सकता है। एक मूलभूत सत्य जान लें- किसी भी काम को करने के लिए पहले आपको यह विश्वास करना होगा कि इसे किया जा सकता है। एक बार आप यह सोच लें कि यह काम संभव है तो फिर आप उसे करने का तरीक़ा भी सोच ही लेंगे।

          प्रशिक्षण देते समय मैं रचनात्मक सोच के इस पहलू को समझाने के लिए अक्सर यह उदाहरण देता हूँ। मैं लोगों से पूछता हूँ, “आपमें से कितने लोगों को यह लगता है कि 30 साल बाद हम जेलविहीन समाज में रह सकेंगे?"

          हमेशा समूह के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती नज़र आई हैं। उन्हें हमेशा यही लगा कि शायद उन्होंने ग़लत सुन लिया है या फिर मैं गंभीर किस्म का मज़ाक कर रहा हूँ। इसलिए थोड़ा ठहरने के बाद मैं फिर पूछता हूँ, "आपमें से कितने लोगों को यह लगता है कि 30 साल बाद हम जेलविहीन समाज में रह सकेंगे?"

          एक बार यह पक्का हो जाने के बाद कि मैं मज़ाक नहीं कर रहा। हूँ, कोई न कोई इस तरह की बात कहता है, “आप यह कहना चाहते हैं कि 30 साल बाद सभी हत्यारे, चोर-उचक्के और बलात्कारी जेल में बंद रहने के बजाय सड़कों पर खुले आम घूमेंगे। आप जानते हैं इसका नतीजा क्या होगा? हममें से कोई भी सुरक्षित नहीं रह पाएगा। हमारे समाज का काम जेल के बिना चल ही नहीं सकता।"

       तभी दूसरे लोग भी बोलने लगते हैं।

      “अगर जेलें न हों, तो हमारी कानून व्यवस्था ठप्प हो जाएगी।"

       "कुछ लोग तो पैदाइशी अपराधी होते हैं।"

       "जितनी हैं, हमें उससे ज़्यादा जेलों की ज़रूरत है।"

       "क्या आपने आज सुबह के अखबार में हत्या की वह खबर पढ़ी थी?"

       और लोग बोलते जाते हैं, एक के बाद एक अच्छे कारण बताते हैं कि हमारे समाज में जेलों का होना क्यों ज़रूरी है। एक आदमी ने तो यहाँ तक सुझाव दिया कि हमारे समाज में जेलें इसलिए होनी चाहिए ताकि पुलिस और जेल के संतरियों की नौकरी बची रह सके।

       मैं दस मिनट तक लोगों को यह “सिद्ध" करने देता हूँ कि जेलों को समाप्त क्यों नहीं किया जाना चाहिए, इसके बाद मैं उनसे कहता हूँ, 'मैंने आपसे पूछा था कि जेलों को ख़त्म क्यों करना चाहिए। यह सवाल पूछने के पीछे मेरा एक ख़ास मक़सद था।

      “आपमें से हर एक ने मुझे यही तर्क दिए हैं कि जेलों को ख़त्म क्यों नहीं किया जाना चाहिए। अब आप मेहरबानी करके मुझ पर एक एहसान करें। आप कुछ मिनट तक अपने दिमाग पर ज़ोर डालकर यह यक़ीन कर लें कि हम जेलों को ख़त्म कर सकते हैं।"

        प्रयोग में दिलचस्पी लेते हुए लोग कहते हैं, “ठीक है, सिर्फ मज़े के लिए, सिर्फ प्रयोग के लिए ऐसा करने में हमें क्या दिक्कत हो सकती है?" फिर मैं पूछता हूँ, “अब हम यह मान लेते हैं कि हम जेलों को ख़त्म करना चाहते हैं, परंतु हम किस तरह से शुरुआत करेंगे?"

        पहले तो सुझाव धीमे-धीमे आते हैं। कोई थोड़ा झिझकते हुए कहता है, “अगर ज़्यादा युवा केंद्र स्थापित किए जाएँ, तो अपराधों को कम किया सकता है।"

         थोड़ी ही देर में पूरा समूह, जो दस मिनट पहले तक इस विचार पूरी तरह ख़िलाफ़ था, अब सच्चे उत्साह से काम में जुट जाता है।

          "अपराध कम करने के लिए हमें गरीबी दूर करने के उपाय सोना होंगे। ज़्यादातर अपराध गरीबी के कारण होते हैं।"

         "अनुसंधान के ज़रिए अपराध करने से पहले ही संभावित अपरा का पता लगाया जाना चाहिए।"

          "कुछ तरह के अपराधियों के इलाज के लिए मेडिकल ऑपरेशन किए जाने चाहिए।"

           “कानून के रखवालों को सुधार के रचनात्मक तरीके सिखाने चाहिए।"

          ये उन 78 विचारों में से कुछ हैं जो मुझे सुनने को मिले। मेरा प्रयोग यह था कि किस तरह जेलविहीन समाज का निर्माण किया जा सकता है।

जब आप विश्वास करते हैं, तो आपका दिमाग तरीके ढूँढ़ ही लेता है।

   इस प्रयोग का सिर्फ एक संदेश है : जब आप यह विश्वास करते हैं कि कोई काम असंभव है, तो आपका दिमाग आपके सामने यह सिद्ध कर देता है कि यह क्यों असंभव है। परंतु जब आप विश्वास करते हैं, सचमुच विश्वास करते हैं कि कोई काम किया जा सकता है, तो आपका दिमाग आपके लिए काम में जुट जाता है और तरीके ढूँढने में आपकी मदद करता है।

        यह विश्वास कि कोई काम किया जा सकता है, रचनात्मक समाधानों का रास्ता खोल देता है। यह विश्वास कि कोई काम नहीं किया जा सकता, असफल व्यक्तियों की सोच है। यह बात सारी परिस्थितियों पर लागू होती है, चाहे वे परिस्थितियाँ छोटी हों या बड़ी। जिन राजनीतिक नेताओं का यह विश्वास नहीं होता कि स्थाई विश्व शांति संभव है, वे शांति स्थापित करने में असफल हो जाएँगे क्योंकि उनके दिमाग शांति स्थापित करने के रचनात्मक उपाय नहीं ढूँढ़ पाएंगे। जिन अर्थशास्त्रियों का विश्वास है कि बिजनेस में मंदी अपरिहार्य है, वे बिज़नेस चक्र को हराने के रचनात्मक तरीके कभी विकसित नहीं कर पाएँगे।

          इसी तरीके से, अगर आपको विश्वास हो, तो आप किसी भी व्यक्ति को पसंद करने के तरीके खोज सकते हैं।

        अगर आपको विश्वास हो, तो आप अपनी व्यक्तिगत समस्याओं का हल ढूँढ़ सकते हैं।

        अगर आपको विश्वास हो, तो आप नए, बड़े घर को खरीदने का तरीका खोज सकते हैं।

        विश्वास रचनात्मक शक्तियों को मुक्त करता है। अविश्वास इन पर ब्रेक लगा देता है।

        विश्वास करें और आप सोचना शुरू कर देंगे- रचनात्मक रूप से।

        अगर आप उसके काम में रुकावट न डालें, तो आपका दिमाग काम करने के उपाय खोज लेगा। दो साल पहले एक युवक ने मुझसे एक अच्छी सी नौकरी खोजने में मदद माँगी। वह किसी मेल ऑर्डर कंपनी के क्रेडिट विभाग में क्लर्क था और उसे लग रहा था कि वहाँ पर उसका भविष्य उज्जवल नहीं है। हमने उसके पिछले रिकॉर्ड के बारे में बात की और यह चर्चा की कि वह क्या करना चाहता था। उसके बारे में कुछ जानने के बाद मैंने कहा, "मैं आपकी प्रशंसा करता हूँ कि आप बेहतर नौकरी की सीढ़ी पर ऊपर की तरफ़ चढ़ना चाहते हैं। परंतु आजकल ऐसी नौकरी हासिल करने के लिए कॉलेज की डिग्री होना ज़रूरी है। आपने अभी बताया है कि आपने तीन सेमिस्टर पूरे कर लिए हैं। मैं आपको यही सलाह दूंगा कि आप अपने कॉलेज कीशिक्षा को पूरा कर लें। आप दो सालों में ऐसा कर सकते हैं। फिर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि आपको आपकी मनचाही नौकरी मिल जाएगी, और उसी कंपनी में मिल जाएगी जिसमें आप चाहते हैं।"

         "मैं जानता हूँ,” उसने जवाब दिया, "कि कॉलेज की शिक्षा ज़रूरी है। परंतु मेरे लिए कॉलेज की पढ़ाई पूरी करना असंभव है।"

               “असंभव ? क्यों?" मैंने पूछा।

         "एक कारण तो यह है," उसने बताया, “मैं चौबीस साल का हूँ। इसके अलावा मेरी पत्नी को दो महीने में दूसरा बच्चा होने वाला है। हमारा खर्च अभी ही जैसे-तैसे चल रहा है। मुझे नौकरी तो करनी ही पड़ेगी और इसलिए मेरे पास पढ़ने के लिए समय नहीं बचेगा। यह असंभव है, बिलकुल असंभव है।"

         इस युवक ने खुद को विश्वास दिला दिया था कि कॉलेज की पढाई पूरी करना उसके लिए असंभव था।

        फिर मैंने उससे कहा, “अगर तुम्हारा विश्वास है कि तुम्हारे लिए कॉलेज की पढाई पूरी करना असंभव है, तो यह सचमुच असंभव है। परंत इसी तर्क से. अगर तुम यह विश्वास कर लो कि तुम पढ़ाई पूरी कर सकते हो, तो कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकल आएगा।

          “अब मैं चाहता हूँ कि तुम यह करो। अपना मन बना लो कि तुम कॉलेज जा रहे हो। इस विचार को अपनी सोच पर हावी हो जाने दो। फिर सोचो. सचमच सोचो. कि तम ऐसा किस तरह कर सकते हो और अपने परिवार का खर्च चलाते हुए यह किस तरह संभव है। दो सप्ताह बाद आना और मुझे बताना कि तुम्हारे दिमाग में किस तरह के विचार आए।"

          मेरा युवा मित्र दो सप्ताह बाद आया।

         “मैंने आपकी कही बातों पर काफ़ी सोचा,” उसने कहा। “मैंने कॉलेज जाने का फैसला कर लिया है। हालाँकि मैंने विस्तार से इस बारे में नहीं सोचा है, परंतु मुझे लगता है कि कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकल आएगा।" 

           और रास्ता निकल आया।

        उसे ट्रेड एसोसिएशन की तरफ़ से स्कॉलरशिप मिल गई जिससे उसकी ट्यूशन फ़ी, पुस्तकों का और बाक़ी ख़र्च निकल गया। उसने अपनी नौकरी के समय को इस तरह से करवा लिया जिससे वह कक्षाओं में भाग ले सके। उसके उत्साह को देखकर और बेहतर जिंदगी की संभावना का देखकर उसकी पत्नी ने भी उसका पूरा साथ दिया। उन दोनों ने मिलकर अपने पैसों और समय का बजट सफलतापूर्वक बना ही लिया।

          पिछले महीने उसे उसकी डिग्री मिल गई और अब वह एक बड़े कॉरपोरेशन में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम कर रहा है।

                जहाँ चाह, वहाँ राह। 

         विश्वास करें कि यह हो सकता है। यह रचनात्मक सोच की पहली आवश्यकता है। यहाँ दो सुझाव दिए जा रहे हैं जिनकी मदद से आप अपना आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और अपनी रचनात्मक सोच की शक्ति को विकसित कर सकते हैं:

         1. अपने शब्दकोश से असंभव शब्द को बाहर निकाल फेंकें। इस शब्द को कभी अपने दिमाग में या जुबान पर न लाएँ। असंभव असफलता का शब्द है। जब आप कहते हैं “यह असंभव है" तो आपके दिमाग में ऐसे विचार आ जाते हैं जो साबित कर देते हैं कि आप सही
सोच रहे हैं।

         2. किसी ऐसे काम के बारे में सोचें जिसे आप पहले कभी करना चाहते हों, परंतु उस समय आपको यह असंभव लगा हो। अब ऐसे कारणों की सूची बनाएँ कि ऐसा किस तरह संभव हो सकता है। हममें से कई लोग अपनी इच्छाओं को कोड़े मारते हैं और उन्हें हरा देते हैं क्योंकि पूरे समय हम यही सोचते रहते हैं कि हम कोई काम क्यों नहीं कर पाएँगे जबकि हमें सोचना यह चाहिए कि हम कोई काम क्यों कर सकते हैं और किस तरह से कर सकते हैं।

         हाल ही में मैंने अखबार में यह पढ़ा कि ज़्यादातर राज्यों में काउंटियों की संख्या ज़रूरत से ज्यादा है। लेख में संकेत किया गया था कि ज़्यादातर काउंटियों की सीमाएँ सदियों पुरानी हैं, उस ज़माने की हैं जब वाहन नहीं थे और जब यात्रा घोड़े और बग्घी से हुआ करती थी। परंतु आजकल काफ़ी तेज़ वाहन चलने लगे हैं और सड़कें भी अच्छी हैं, इसलिए अब यह उचित है कि तीन या चार काउंटियों को मिलाकर एक काउंटी बना दी जाए। इससे बहुत सी परेशानियाँ कम हो जाएँगी और जनता पर टैक्स का बोझ भी कम हो जाएगा।

          लेखक ने कहा कि उसके विचार से उसके दिमाग में एक शानदार विचार आया था, इसलिए उसने 30 लोगों से इंटरव्यू लिया और इस बार में उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही। परिणाम- उनमें से एक आदमी ने भी यह नहीं कहा कि विचार में दम था, हालाँकि यह बात तो तय थी कि ऐसा होने पर उन्हें कम कीमत पर बेहतर स्थानीय सरकार मिल जाती।

          यह पारंपरिक सोच का एक उदाहरण है। पारंपरिक तरीके से सोचने वाले व्यक्ति के दिमाग को लकवा मार गया है। वह तर्क देता है। “ऐसा सदियों से होता आ रहा है। इसलिए यह अच्छा ही होगा और इसे ऐसे ही बने रहने देना चाहिए। बदलने का जोखिम क्यों उठाया जाए ?"

       "औसत" लोग हमेशा प्रगति से चिढ़ते हैं। कई लोगों ने तो मोटरगाड़ी का विरोध इस आधार पर किया था कि प्रकृति ने इंसान को पैदल चलने या घोड़े की सवारी करने के लिए बनाया था। कई लोगों को हवाईजहाज़ का विचार इसलिए पसंद नहीं आया था क्योंकि इंसान को पक्षियों के लिए "आरक्षित" क्षेत्र में दखल देने का कोई “अधिकार" नहीं था। बहुत से “यथास्थितिवादी" (status-quoers) अब भी मानते हैं कि इंसान की जगह अंतरिक्ष में नहीं है।

         एक चोटी के मिसाइल विशेषज्ञ ने हाल ही में इस तरह की सोच का जवाब दिया। डॉ. वॉन ब्रॉन का कहना है, "मनुष्य की जगह वहीं है, जहाँ मनुष्य जाना चाहता है।"

       1900 के आस-पास एक सेल्स एक्जीक्यूटिव ने सेल्स मैनेजमेंट का एक “वैज्ञानिक" सिद्धांत खोजा। इसका काफ़ी प्रचार हुआ और इसे पाठ्यपुस्तकों तक में शामिल कर लिया गया। यह सिद्धांत था - हर माल बेचने का एक सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा होता है। सर्वश्रेष्ठ तरीका खोज लो। और फिर उससे इधर-उधर मत हिलो।

      इस आदमी की कंपनी की किस्मत अच्छी थी, जो सही वक्त पर नए। मैनेजमेंट ने आकर डूबती हुई कंपनी को दीवालिया होने से बचा लिया। इस अनुभव के विपरीत क्रॉफ़ोर्ड एच. ग्रीनवॉल्ट की फिलॉसफी देख।। ग्रीनवॉल्ट एक बहुत बड़ी कंपनी के प्रेसिडेन्ट हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी म अपने लेक्चर में उन्होंने कहा, “एक अच्छा काम कई तरीकों से किया ज सकता है - और जितने आदमी हों, उतने ही तरीके हो सकते हैं।"

            सच तो यह है कि किसी भी काम को करने का कोई एक ही सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा नहीं होता। घर सजाने का. लॉन को लैंडस्केप करने का, या माल बेचने का या बच्चे पालने का या स्टीक पकाने का कोई एक सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा नहीं होता। जितने रचनात्मक मस्तिष्क होंगे, उतने ही सर्वश्रेष्ठ तरीके हो सकते हैं।

            कोई भी चीज़ बर्फ में नहीं उगती। अगर हम अपने दिमाग पर परंपरा की बर्फ जमने दें, तो नए विचार नहीं पनप सकते। इस प्रयोग को जल्दी ही करें। नीचे दिए गए विचार किसी को सुनाएँ और फिर उसकी प्रतिक्रिया देखें।

1. डाकतार विभाग काफ़ी समय से सरकारी एकाधिकार में है, क्यों न इसे प्राइवेट कंपनियों के हवाले कर दिया जाए।

2. राष्ट्रपति के चुनाव हर चार साल की जगह दो या छह साल में होने चाहिए।

3. रिटेल स्टोर्स के खुलने का समय सुबह 9 बजे से शाम साढ़े पाँच बजे के बजाय शाम को 1 बजे से 8 बजे तक होना चाहिए।

4. रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 70 साल कर देनी चाहिए।

           ये विचार दमदार हैं या नहीं, व्यावहारिक हैं या नहीं, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि कोई व्यक्ति इन पर क्या प्रतिक्रिया देता है। अगर वह इन विचारों पर हँसता है और उस पर गौर ही नहीं करता (और शायद 95 प्रतिशत लोग इस पर हँसेंगे) तो इस बात की संभावना है कि वह परंपरा के लक़वे से ग्रस्त है। परंतु बीस में से एक व्यक्ति यह कहेगा, “यह एक दिलचस्प विचार है। मुझे इसके बार में विस्तार से बताएँ।" और इस व्यक्ति में एक ऐसा दिमाग होगा जो रचनात्मक तरीके से सोच सकता है।

रचनात्मक सोच की सबसे बड़ी दुश्मन है- पारंपरिक सोच। जो भी व्यक्ति रचनात्मक तरीके से सफल होना सीखना चाहता है, उसे इस बारे में सावधान रहना चाहिए। पारंपरिक सोच आपके दिमाग पर बर्फ की तह जमा देती है आपकी प्रगति को रोक देती है, आपकी रचनात्मक शक्ति को विकसित नहीं देती| पारंपरिक सोच से जुझने के तीन तरीके हैं|

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