Friday, September 6, 2019

CHAPTER 4.1. बड़ा कैसे सोचें?

                          बड़ा कैसे सोचें?

     हाल ही में मैंने एक बड़ी औद्योगिक कंपनी के रोज़गार विशेषज्ञ से। हा चर्चा की। यह विशेषज्ञ हर साल चार महीने कॉलेजों में जाकर वहाँ के प्रतिभाशाली सीनियर छात्रों को अपनी कंपनी के जूनियर एक्जीक्यूटिव प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए चुनती थी। उसकी बातों से लगा जैसे वह छात्रों के रवैए से निराश थी।

          “मैं हर दिन 8 से 12 ऐसे कॉलेज सीनियर्स का इंटरव्यू लेती हूँ, जो हमारे साथ काम करना चाहते हैं। हम स्क्रीनिंग इंटरव्यू में जिस बात पर सबसे ज़्यादा ध्यान देते हैं, वह होती है उनकी प्रेरणा, उनका प्रयोजन। हम यह जानना चाहते हैं कि क्या यह आदमी कुछ साल बाद हमारे लिए बड़े प्रोजेक्ट कर सकता है, हमारे ब्रांच ऑफ़िस या फैक्टरी को सँभाल सकता है, या किसी और तरीके से कंपनी के लिए बड़ी ज़िम्मेदारी उठा सकता है।

          "मुझे यह कहना पड़ेगा कि मैं जिन लोगों से चर्चा करती हूँ, उनमें से ज़्यादातर सीनियर्स के व्यक्तिगत लक्ष्यों को देखकर मैं खुश नहीं हूँ। आपको यह जानकर हैरत होगी कि यह 22 साल के लड़के हमारी बाक़ी किसी चीज़ से ज्यादा हमारे रिटायरमेंट प्लान में रुचि लेते हैं। उनका दूसरा पसंदीदा सवाल होता है, "क्या मुझे घूमने को मिलेगा?" उनमें से ज़्यादातर लोगों के लिए सफलता शब्द सुरक्षा का पर्यायवाची होता है। हम इस तरह के लोगों को अपनी कंपनी से जोड़ने का जोखिम क्यों उठाएँ?

          “आज के युवा बाक़ी बातों में तो इतने आधुनिक हो गए हैं, लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता कि वे अब भी अपने भविष्य के बारे में इतना संकुचित रवैया क्यों रखते हैं? हर दिन अवसर बढ़ते जा रहे हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक क्षेत्रों में हमारा देश रिकॉर्ड तरक्की कर रहा है। हमारी जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है। अगर अमेरिका में तरक्की का कोई युग है, तो यही है।"

             अब अगर इतने सारे लोगों की सोच इतनी छोटी है, तो इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप सचमुच बड़ा सोचते हैं तो आपके सामने बहुत कम प्रतियोगिता है और आपके लिए एक बहुत बड़े करियर का रास्ता खुला हुआ है।

             सफलता के मामले में लोगों को इंच या पौंड के हिसाब से नहीं नापा जाता, न ही उन्हें कॉलेज की डिग्रियों से या पारिवारिक पृष्ठभूमि के पैमाने से नापा जाता है। उन्हें तो उनकी सोच के आकार से नापा जाता है। आप कितना बड़ा सोचते हैं, यही आपकी उपलब्धियों के आकार को तय करता है। देखते हैं कि हम किस तरह अपनी सोच को बड़ा कर सकते हैं।

              कभी आपने खुद से पूछकर देखा है, “मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी क्या है?" शायद इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है- यानी कि खुद को सस्ते में बेचने की कमज़ोरी। आत्म-मूल्यांकन में कमी अनगिनत तरीकों से साफ़ दिखती है। जॉन अख़बार में एक नौकरी का विज्ञापन देखता है। वह इसी तरह की नौकरी करना चाहत है। परंतु वह इसके लिए कोई कोशिश नहीं करता क्योंकि वह सोचता है, "मैं इस नौकरी के लिए पर्याप्त योग्य नहीं हूँ, इसलिए कोशिश करने की मेहनत क्यों करूँ?" या जिम जोन के साथ डेटिंग पर जाना चाहता है, परंतु वह उससे नहीं पूछता क्योंकि उसे लगता है कि वह तैयार नहीं होगी।

              टॉम को लगता है कि मिस्टर रिचर्ड्स उसके माल के अच्छे ग्राहक हो सकते हैं, परंतु टॉम मिस्टर रिचर्ड्स से मिलने नहीं जाता। उसे। लगता है कि मिस्टर रिचर्ड्स जैसे बड़े आदमी उससे नहीं मिलेंगे। पीट नौकरी का आवेदन भर रहा है। उसमें एक प्रश्न पूछा जाता है, “आप शुरुआत में कितनी तनख्वाह चाहेंगे?" पीट एक छोटी-सी रकम लिख। देता है क्योंकि उसे लगता है कि वह इससे ज्यादा तनख्वाह के योग्य नहीं है, जबकि वह इससे ज़्यादा तनख्वाह पाना चाहता है।

              हज़ारों सालों से दार्शनिक हमें यह अच्छी सलाह देते आ रहे हैं : खुद को जानें। परंतु ज़्यादातर लोग इस सलाह का मतलब यह निकालते हैं कि खुद के नकारात्मक पहलू को जानें। ज्यादातर आत्म-मूल्यांकनों में लोग अपनी ग़लतियों, कमियों, अयोग्यताओं की लंबी सी मानसिक सूची बना लेते हैं।

           हमें अपनी कमियाँ पता हों; अच्छी बात है। इनसे हमें यह पता चलता है कि हमें इन क्षेत्रों में सुधार करना है। परंतु अगर हम सिर्फ अपने नकारात्मक पहलू को ही जान पाएँ तो हम परेशानी में फँस जाएँगे। हमारा मूल्य अपनी नज़रों में कम हो जाएगा।

          यहाँ एक अभ्यास दिया गया है जिससे आप अपने सच्चे आकार को नाप सकते हैं। मैंने इसे एक्जीक्यूटिब्ज़ और सेल्स पर्सनेल के अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आज़माया है। यह वाक़ई काम करता है।

        1. अपने पाँच प्रमुख गुणों को तय करें। किसी निष्पक्ष दोस्त की मदद लें - जैसे आपकी पत्नी, आपका सीनियर, आपका प्रोफ़ेसर - कोई समझदार व्यक्ति जो आपको सच्ची राय दे सके। (गुणों के उदाहरण हैं शिक्षा, अनुभव, तकनीकी योग्यता, हुलिया, संतुलित घरेलू जीवन, रवैया, व्यक्तित्व, लीडरशिप की योग्यता)।

        2. हर गुण के सामने अपने उन तीन परिचित व्यक्तियों के नाम लिख लें जो बेहद सफल हैं परंतु उनमें यह गुण उतनी मात्रा में नहीं है, जितनी मात्रा में यह गुण आपमें है।

         इस अभ्यास को पूरा कर लेने पर आप पाएँगे कि आप किसी न किसी बात में कई सफल लोगों से आगे हैं।

          ईमानदारी से आप एक ही निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं : आप जितना सोचते हैं, आप उससे बड़े हैं। इसलिए, आप अपनी सोच को भी अपने असली आकार के हिसाब से बना लें। उतना ही बड़ा सोचें जितने बड़े आप हैं! और कभी, खुद को सस्ते में न बेचें!

          जो व्यक्ति “अचल" शब्द के लिए “दुर्भेद्य' शब्द का प्रयोग करता है या "बचत” की जगह "मितव्ययिता" शब्द का प्रयोग करता है, उसके बारे में हम यह जान जाते हैं कि उसकी शब्दावली का दायरा बड़ा है। परंतु क्या उसके पास एक बड़े चिंतक की शब्दावली है? शायद नहीं। जो लोग कठिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो लोग ऐसे आलंकारिक वाक्यों का प्रयोग करते हैं जिन्हें समझने में आम लोगों को कठिनाई होती है वे दरअसल दिखावटी और घमंडी लोग होते हैं। और दिखावटी लोग आम तौर पर छोटे चिंतक होते हैं।

           किसी व्यक्ति की शब्दावली का महत्वपूर्ण पैमाना उसके शब्दों की संख्या या आकार नहीं है। असली महत्व की बात तो यह है कि उसके शब्दों का उस पर और सामने वाले पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

           यहाँ एक मूलभूत बात बताई जा रही है : हम शब्दों और वाक्यों में नहीं सोचते हैं। हम तस्वीरों और/या बिंबों में सोचते हैं। शब्द विचारों के लिए कच्चा माल हैं। जब इन्हें बोला जाता है या पढ़ा जाता है तो हमारा दिमागी कंप्यूटर इन शब्दों को अपने आप तस्वीरों में बदल लेता है। हर शब्द, हर वाक्य, आपके दिमाग में एक अलग तस्वीर बनाता है। अगर कोई यह कहता है, "जिम ने एक नया स्पलिट-लेवल ख़रीदा है." तो हमारे दिमाग में एक अलग तस्वीर बनती है। परंतु अगर आपको बताया जाता है, "जिम ने एक नया रैच हाउस ख़रीदा है" तो आपके दिमाग में दूसरी ही तस्वीर बनती है। हमारे दिमाग में अलग-अलग तस्वीरें अलग-अलग शब्दों की वजह से बनती हैं।

           इसे इस तरीके से देखें। जब आप बोलते हैं या लिखते हैं तो आप एक तरह से दूसरे लोगों के दिमाग में फ़िल्में दिखाने वाले प्रोजेक्टर का काम कर रहे हैं। और आप जिस तरह की फ़िल्म दिखाएँगे, सामने वाले पर आपका प्रभाव वैसा ही पड़ेगा।

           मान लीजिए आप लोगों को यह बताते हैं, “मुझे यह बताते हुए। दुःख हो रहा है कि हम असफल हो गए हैं।" इस वाक्य का उन लोगा। पर क्या असर होगा? वे लोग इन शब्दों में हार और निराशा और दुःख। के चित्र देखेंगे, जो “असफल" शब्द में छुपे हुए हैं। इसके बजाय अगर आप कहते हैं, “यह रहा एक नया उपाय, जिससे हम सफल हो सकते है, तो इससे उनका उत्साह बढ़ जाएगा और वे एक बार फिर कोशिश करने के लिए तैयार हो जाएंगे।

           मान लीजिए आप कहते हैं, “हमारे सामने एक समस्या है।" ऐसा कहने पर दूसरों के दिमाग में आप एक ऐसी तस्वीर बना देंगे जो सुलझाने में मश्किल और अप्रिय होगी। इसके बजाय यह कहें, “हमारे सामने एक चुनौती है।" और इस वाक्य से आप एक ऐसी मानसिक तस्वीर बना देते हैं जिसमें आनंद है, खेल है, करने के लिए कुछ अच्छा है।

   
             या किसी समूह से कहें, "हमने काफ़ी बड़ा ख़र्च कर डाला।” और लोगों को लगता है कि ख़र्च हुआ पैसा कभी वापस नहीं लौटेगा। निश्चित रूप से यह नकारात्मक वाक्य है। इसके बजाय यह कहें, “हमने काफ़ी बड़ा निवेश किया है," और लोग एक ऐसी तस्वीर बना लेंगे जिसमें बाद में लाभ लौटता हुआ दिखता है, और यह एक बहुत सुखद दृश्य होता है।

           मुद्दे की बात यह है : बड़े चिंतकों में अपने और दूसरों के मस्तिष्क में सकारात्मक, प्रगतिशील और आशावादी तस्वीरें बनाने की कला होती है। बड़ी सोच के लिए हमें ऐसे शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए जो बड़े, सकारात्मक मानसिक चित्र प्रदान कर सकें।

       नीचे बाएं हाथ के कॉलम में कुछ वाक्य दिए गए हैं जिनसे छोटे, नकारात्मक, निराशाजनक विचार उत्पन्न होते हैं। दाएँ हाथ के कॉलम में उसी परिस्थिति को बड़े, सकारात्मक अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है।

       पढ़ते समय खुद से पूछे, “मैं किस तरह के मानसिक चित्र देख रहा हूँ?"



     

  बड़े चिंतक की शब्दावली विकसित करने के चार तरीके

       यहाँ चार तरीके दिए जा रहे हैं, जिनकी मदद से आप बड़े चिंतक की शब्दावली विकसित कर सकते हैं।

           1. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए बड़े, सकारात्मक, आशावादी शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करें। जब कोई आपसे पूछता है, “आप आज कैसा महसूस कर रहे हैं ?" और आप उसे जवाब देते हैं, “मैं थका हुआ हूँ (मुझे सिरदर्द है, काश कि आज शनिवार होता, मेरा आज बहुत बुरा हाल है)" तो आप अपनी स्थिति को अपने ही हाथों ख़राब कर रहे हैं। इसका अभ्यास करें : यह एक बहुत आसान बात है, परंतु इसमें बहुत शक्ति है। जब भी कोई आपसे पूछे, “आप कैसे हैं ?" या “आप आज कैसा महसूस कर रहे हैं ?" तो जवाब में हमेशा कहें, “बहुत बढ़िया! धन्यवाद और आप कैसे हैं ?" या कहें “बेहतरीन" या "शानदार"। हर मौके पर कहें कि आप बढ़िया महसूस कर रहे हैं और आप सचमुच बढ़िया महसूस करने लगेंगे और ज्यादा बड़ा भी। एक ऐसे व्यक्ति बनें जो हमेशा बढ़िया महसूस करता है। इससे दोस्त बनते हैं।

          2. दूसरे लोगों का वर्णन करते समय चमकीले, खुशनुमा, सकारात्मक शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करें। यह नियम बना लें कि आप अपने सभी दोस्तों और सहयोगियों के लिए बड़े, सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करेंगे। जब आप किसी के साथ किसी तीसरे अनुपस्थित व्यक्ति के बारे में बात कर रहे हों, तो आप उसकी बड़े शब्दों में प्रशंसा करें, “हाँ, वह बढ़िया आदमी है।" "लोग कहते हैं उसका काम बहुत बढ़िया है।" इस बात का बहुत ध्यान रखें कि आप उसकी बुराई न करें या घटिया भाषा का इस्तेमाल न करें। देर सबेर तीसरे व्यक्ति को पता चल जाता है कि आपने क्या कहा था, और आपने जो बुराई की थी, वह आपको ही बुरा बना सकती है।

           3. दूसरों का उत्साह बढ़ाने के लिए सकारात्मक भाषा का प्रयोग करें। हर मौके पर लोगों की तारीफ़ करें। अपनी पत्नी या अपने पति की हर रोज़ तारीफ़ करें। अपने साथ काम करने वालों की रोज़ तारीफ़ करें। अगर सच्ची तारीफ़ की जाए, तो यह सफलता का औज़ार बन जाती है। इसका प्रयोग करें! इसका प्रयोग बार-बार, हर बार करें। लोगों के हुलिए, उनके काम, उनकी उपलब्धियों, उनके परिवार की तारीफ़ करें।

         4. दूसरों के सामने योजना प्रस्तुत करते समय सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें। जब लोग इस तरह की बात सुनते हैं- “मैं आपको एक अच्छी खबर सुनाना चाहता हूँ। हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है..." तो उनके दिमाग में आशा जाग जाती है। परंतु जब वे इस तरह की कोई बात सुनते हैं, "चाहे आप इसे पसंद करें या न करें, हमें यह काम करना है," तो दिमाग़ की फ़िल्म बोझिल, बोरिंग हो जाती है और वे भी इसी तरह के हो जाते हैं। जीत का वादा करें और उनकी आँखों में चमक आ जाएगी। जीत का वादा करें और आपको समर्थन हासिल हो जाएगा। महल बनाएँ, क़ब्र न खोदें!

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