Thursday, September 26, 2019

CHAPTER 8.2 अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ

             अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को 
                        अपना दोस्त बनाएँ


      3. अच्छी ख़बर फैलाएँ। आपके और हमारे सामने कितनी ही बार किसी व्यक्ति ने अचानक आकर कहा होगा, “मैं आपको एक अच्छी ख़बर सुनाना चाहता हूँ।" तत्काल हर एक का पूरा ध्यान उस व्यक्ति की तरफ़ चला जाता है। अच्छी ख़बर से सिर्फ ध्यान ही आकर्षित नहीं होता; अच्छी ख़बर से लोग खुश भी होते हैं। अच्छी ख़बर से उत्साह विकसित होता है। अच्छी ख़बर से पाचन तंत्र भी ठीक रहता है।

       चूँकि अच्छी ख़बर सुनाने वालों के मुक़ाबले आज बुरी ख़बर सुनाने वाले ज़्यादा हो गए हैं इसलिए उनके बहकावे में न आएँ। आज तक बुरी ख़बर सुनाकर किसी ने भी कोई दोस्त नहीं बनाया, किसी ने भी पैसा नहीं कमाया, न ही किसी ने कोई उपलब्धि हासिल की है।

        अपने परिवार को अच्छी ख़बर सुनाएँ। उन्हें आज घटी अच्छी घटनाएँ सुनाएँ। उन्हें अपने रोचक, सुखद अनुभव सुनाएँ और अप्रिय घटनाओं को दफना दें। अच्छी ख़बर फैलाएँ। बुरी ख़बर फैलाने का कोई अर्थ नहीं है। इससे आपका परिवार व्यर्थ ही चिंतित और नर्वस हो जाएगा। हर दिन घर में सूरज की रोशनी लेकर जाएँ, रात का अँधेरा लेकर न जाएँ।

       कभी आपने देखा है कि बच्चे मौसम के बारे में कितनी कम शिकायत करते हैं। उन्हें गर्म मौसम से तब तक कोई खास तकलीफ़ नहीं होती जब तक कि उन्हें नकारात्मक विचार वाले लोग इसके नुकसान से परिचित नहीं करवा देते। चाहे मौसम कैसा भी हो, आप मौसम के बारे में हमेशा अच्छा बोलने की आदत डाल लें। मौसम के बारे में शिकायत करने से आपका मूड ख़राब होता है और आप दूसरों का मूड भी ख़राब कर देते हैं।

       आप कैसा महसूस करते हैं, इस बारे में भी अच्छी ख़बर सुनाएँ। "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है" कहने वाले व्यक्ति बनें। हर मौके पर कहें, "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है" और ऐसा कहने के बाद आपको सचमुच अच्छा लगने लगेगा। इसी तरह से अगर आप लोगों को यह बताएंगे, “मुझे बहुत बुरा लग रहा है" तो आपको सचमुच सब कुछ बुरा लगने लगेगा। हम कैसा महसूस करते हैं, यह काफ़ी हद तक हमारे विचारों पर निर्भर करता है। यह भी याद रखें कि सभी लोग उत्साही व्यक्तियों को पसंद करते हैं। शिकायत करने वालों और आधे-मुर्दा लोगों के आस-पास रहना किसी को भी पसंद नहीं होता।

       अपने साथ काम करने वालों को अच्छी ख़बर सुनाएँ। उनका उत्साह बढ़ाते रहें, हर मौके पर उनकी तारीफ़ करते रहें। कंपनी के सकारात्मक कामों के बारे में उन्हें बताएँ। उनकी समस्याएं सुनें। उनकी मदद करने की कोशिश करें। लोगों को प्रोत्साहित करें और उनका सहयोग हासिल करें। उनके अच्छे काम के लिए उनकी पीठ थपथपाएँ। उन्हें आशा बँधाएँ। उन्हें बताएँ कि आपको उन पर, उनकी क्षमताओं पर भरोसा है और आपको यह विश्वास भी है कि वे सफल हो सकते हैं। चिंता करने वालों की चिंता कम करने की कोशिश करें।

          हर दिन सही रास्ते पर चलने के लिए यह छोटा सा प्रयोग नियमित रूप से करें। जब भी आप किसी व्यक्ति से विदा लें, खुद से पूछे, “क्या मुझसे बात करने के बाद इस व्यक्ति का मूड पहले से बेहतर हुआ है?" यह आत्म-प्रशिक्षण तकनीक सचमुच सफल होती है। अपने कर्मचारियों, अपने सहयोगियों, अपने परिवार, अपने ग्राहकों, यहाँ तक कि कभी-कभार मिलने वाले परिचितों के साथ भी इस तकनीक का प्रयोग करें।

        मेरा एक सेल्समैन मित्र अच्छी ख़बरों को ब्रॉडकास्ट करता है। वह हर महीने अपने ग्राहकों के पास जाता है और उन्हें नियम से कोई न कोई अच्छी खबर सुनाता है।

        उदाहरण : "मैं पिछले सप्ताह ही आपके एक अच्छे दोस्त से मिला। उसने आपको नमस्ते कहलवाया है।" "पिछली बार मैं जब आपसे मिला था, तब से अब के बीच में बहुत बड़े परिवर्तन हो चुके हैं। पिछले महीने 350,000 बच्चों का जन्म हुआ है और ज्यादा बच्चे पैदा होने का मतलब है हम दोनों के लिए ज्यादा बिज़नेस।"

         हम अक्सर यह सोचते हैं कि बैंक के प्रेसिडेंट बहुत रिज़र्व टाइप के भावहीन व्यक्ति होते हैं। परंतु एक बैंक प्रेसिडेंट ऐसा नहीं है। फ़ोन पर उनका जवाब देने का फेवरिट तरीक़ा है, "गुड मॉर्निंग। दुनिया कितनी अच्छी है। क्या मैं आपको कुछ पैसे उधार दे सकता हूँ?" कई लोग कहेंगे बैंकर के लिए यह ठीक नहीं है, पर मैं यह बता दूँ कि जो बैंकर इस तरह की बात कहते हैं, उनका नाम है मिल्स लेन, जो सिटिजन्स एंड सदर्न बैंक के जूनियर प्रेसिडेंट हैं और हम जानते हैं कि यह बैंक पूरे दक्षिण-पूर्व में सबसे बड़ा बैंक है।

         अच्छी ख़बर के परिणाम भी अच्छे होते हैं। इसलिए अच्छी ख़बरें फैलाते रहें।

        एक ब्रश निर्माता कंपनी के प्रेसिडेंट ने अपनी टेबल पर यह सूत्रवाक्य लगा रखा था। आगंतुक के सामने लिखा रहता था - "मुझसे या तो अच्छी बात कहें या कुछ न कहें।” मैंने उसकी तारीफ की कि उसने इतना। बढ़िया विचार लिखा है जिससे लोग ज्यादा आशावादी हो जाते हैं।

        वह मुस्कराया और उसने कहा, “यह विचार हमें इस बारे में जागरूक बना देता है। परंतु मेरी तरफ़ से देखने पर तो यह विचार और भा। महत्वपूर्ण बन जाता है।" उसने तख्ती को पलट दिया और मैंने देखा कि। उसकी तरफ़ यह विचार कुछ इस तरह लिखा गया था, “उनसे या ता। अच्छी बात कहें, या कुछ न कहें।"

       अच्छी खबर फैलाने से आप प्रेरित होते हैं, आपको अच्छा लगता है। अच्छी खबर फैलाने से दूसरे लोगों को भी अच्छा लगता है|

आप महत्वपूर्ण हैं वाला रवैया विकसित करना

यह बेहद महत्वपूर्ण तथ्य है: हर इंसान में - चाहे वह इंडिया में रहता हो या इंडियानापोलिस में, चाहे वह मूर्ख हो या प्रतिभाशाली, चाहे वह सभ्य हो या जंगली, चाहे वह बच्चा हो या बूढ़ा - यह इच्छा होती है : कि उसे महत्वपूर्ण समझा जाए।

          इस बारे में विचार करें। सबमें, हाँ हर एक में - आपके पड़ोसी, आप, आपकी पत्नी, आपके बॉस - हर व्यक्ति में यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह “महत्वपूर्ण" है। महत्वपूर्ण बनने की इच्छा मनुष्य की सबसे प्रबल, सबसे प्रबल गैर शारीरिक भूख होती है।

          सफल एड्वर्टाइज़र्स जानते हैं कि लोग प्रतिष्ठा, सम्मान, आदर चाहते हैं। इसीलिए तो विज्ञापनों में लोगों को लुभाने के लिए ऐसी बातें लिखी जाती हैं, “स्मार्ट युवा महिलाओं के लिए,” "जो लोग ख़ास होते हैं वे अमुक सामान इस्तेमाल करते हैं," "आपको सबसे अच्छा माल चाहिए", "हर एक की तारीफ़ के क़ाबिल बनें," "उन महिलाओं के लिए जो दूसरी महिलाओं को जलाना चाहती हैं और पुरुषों को रिझाना चाहती हैं।" इस तरह के वाक्य वास्तव में लोगों को यह बताते हैं, "इस सामान को ख़रीदो और खुद को महत्वपूर्ण लोगों की श्रेणी में शामिल कर लो।"

          महत्वपूर्ण बनने की लालसा, महत्वपूर्ण बनने की भूख ही आपको सफलता की तरफ़ आगे ले जाती है। यह आपकी सफलता का सबसे बड़ा औज़ार है। परंतु, (और आगे बढ़ने से पहले इस वाक्य को दुबारा पढ़ें) हालाँकि “आप महत्वपूर्ण हैं" के रवैए से परिणाम मिलते हैं और हालाँकि इसमें कुछ भी ख़र्च नहीं होता, फिर भी बहुत कम लोग इस रवैए का इस्तेमाल करते हैं। अब यह बताना ज़रूरी है कि ऐसा क्यों होता है।

         दार्शनिक दृष्टि से देखा जाए तो हमारे धर्म, हमारे क़ानून, हमारी पूरी संस्कृति - यह मनुष्य को महत्वपूर्ण मानते हैं। इन सबके अस्तित्व का आधार ही मनुष्य की महत्ता है।

          मान लीजिए, आप अपने हवाई जहाज़ में उड़ रहे हों और किसी वीरान जंगल में आपको मजबूरन उतरना पड़ जाए तो क्या होगा। जैसे ही इस दुर्घटना की ख़बर मिलेगी, आपकी खोज के लिए बड़े पैमाने पर खोज अभियान शुरू हो जाएगा। कोई भी यह नहीं पूछेगा, “क्या यह व्यक्ति महत्वपूर्ण है ?" आपके बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता सिवाय इसके कि आप एक इंसान हैं, फिर भी हेलीकॉप्टर, हवाई जहाज़ और खोजी दस्ते आपकी तलाश में जुट जाएँगे। और वे तब तक आपकी खोज करते रहेंगे, और इस अभियान में हज़ारों डॉलर ख़र्च करते रहेंगे, जब तक कि आप उन्हें मिल नहीं जाते या उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाता कि अब खोज करने से कोई फायदा नहीं होगा।

        जब कोई छोटा बच्चा जंगल में गुम जाता है या कुँए में गिर जाता है या किसी ऐसी ही खतरनाक परिस्थिति में फँस जाता है तो कोई इस बारे में नहीं पूछता कि वह बच्चा किसी “महत्वपूर्ण" परिवार का है या नहीं। बच्चे को बचाने की हरसंभव कोशिश सिर्फ इसलिए की जाती है क्योंकि हर बच्चा महत्वपूर्ण होता है।

        समस्त जीवित प्राणियों में एक करोड़ में से एक प्राणी ही मनुष्य होता है। मनुष्य जैववैज्ञानिक रूप से दुर्लभ प्राणी है। ईश्वर की योजना में मनुष्य का महत्वपूर्ण स्थान है।

       अब हम इसके व्यावहारिक पक्ष को देखें। जब ज्यादातर लोग दार्शनिक चर्चा से रोज़मर्रा की परिस्थितियों पर आते हैं तो वे दुर्भाग्य से यह भूल जाते हैं कि मनुष्य महत्वपूर्ण होता है। कल, आप यह ध्यान से देखें कि किस तरह ज़्यादातर लोगों का रवैया यह कहता नज़र आता है, “आप कोई नहीं हैं, आपका कोई मूल्य नहीं है; आपका कोई अर्थ नहीं है, आपका मेरे लिए कोई महत्व नहीं है।"

       “आप महत्वहीन हैं" वाले रवैए के पीछे भी एक कारण होता है। ज़्यादातर लोग दूसरे व्यक्ति की तरफ़ देखते हैं और सोचते हैं, “यह मेरे। लिए कुछ नहीं कर सकता। इसलिए, यह व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है।"

         परंतु यहीं पर लोग बहुत बड़ी भूल करते हैं। सामने वाला व्यक्ति, चाहे उसका स्टेटस या उसकी आमदनी कुछ भी हो, आपके लिए दो कारणा से महत्वपूर्ण होता है।

पहला कारण यह, जब आप लोगों को महत्व देते हैं, तो वे आपके लिए ज्यादा काम करते हैं। वर्षों पहले मैं डेट्रॉइट में हर सुबह एक बस में अपनी नौकरी पर जाता था। ड्राइवर एक सनकी बुड्ढा था। दर्जनों - शायद सैकड़ों- बार मैंने देखा कि उस ड्राइवर ने गाड़ी चला दी, जबकि सवारी भागती हुई, हाथ हिलाती हुई आ रही थी और दरवाज़े से एक या दो क़दम की दूरी पर थी। कई महीनों तक मैंने देखा कि यह ड्राइवर केवल एक यात्री के प्रति विशेष सम्मान दिखाता था, और ड्राइवर ने उस सवारी का कई बार खास ध्यान रखा। कई बार तो ड्राइवर इस यात्री के आने का इंतज़ार तक करता था।

        और वह ऐसा क्यों करता था? क्योंकि यह यात्री ड्राइवर को महत्व देता था। हर सुबह वह ड्राइवर का अभिवादन करता था, गंभीरता से उससे "गुड मॉर्निंग, सर" कहता था। कई बार यह यात्री ड्राइवर के पास बैठ जाता था और उससे छोटे-छोटे वाक्य कहता था, “आपका काम बड़ी ज़िम्मेदारी का है।" "इतने ट्रैफ़िक में गाड़ी चलाने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए।" “आपकी बस के हिसाब से तो घड़ी मिलाई जा सकती है।" यह यात्री ड्राइवर को इतना महत्वपूर्ण बना देता था जैसे वह 180 यात्रियों के जेट एयरलाइनर को उड़ा रहा हो। और बदले में वह ड्राइवर भी इस यात्री के साथ विशेष व्यवहार करता था।

        "छोटे" लोगों को बड़े लोगों की तरह महत्व देने से फायदा होता है।

         आज. अमेरिका में हज़ारों ऑफ़िसों में, सेक्रेटरी सेल्समैन की सामान बेचने में मदद कर रहे हैं या उसका सामान बिकने नहीं दे रहे हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि सेल्समैन का सेक्रेटरी के प्रति व्यवहार कैसा है। किसी भी व्यक्ति को अगर आप महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं तो वह आपकी परवाह करने लगेगा। और जब वह आपकी परवाह करेगा, तो वह आपके लिए ज्यादा काम करेगा।

अगर आप लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराएँगे, तो ग्राहक आपसे ज़्यादा सामान खरीदेंगे, आपके कर्मचारी आपके लिए ज्यादा मेहनत करेंगे, आपके सहयोगी आपके साथ ज़्यादा सहयोग करेंगे, आपका बॉस आपकी ज़्यादा मदद करेगा।

        "बड़े” लोगों को ज्यादा बड़े होने का महत्व देना भी फ़ायदे का सौदा है। बड़ी सोच वाला व्यक्ति लोगों की सर्वश्रेष्ठ क्षमता के हिसाब से उनका मूल्यांकन करता है। चूंकि वह हमेशा लोगों के बारे में बड़ा सोचता है, इसलिए वह उनसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करवाने में सफल होता है।

यहाँ सामने वाले को महत्व देने का दूसरा बड़ा कारण बताया जा रहा है : जब आप दूसरों को महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं, तो आप खुद को भी महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं।

        एक लिफ्ट ऑपरेटर जो कई महीनों तक मुझे “ऊपर-नीचे" ले जाती रही, बहुत ही सामान्य, महत्वहीन सी महिला थी। वह पचास के क़रीब होगी, वह ज़रा भी आकर्षक नहीं थी और वह अपने काम में बिलकुल रुचि नहीं लेती थी। यह स्पष्ट था कि महत्वपूर्ण दिखने की उसकी चाह ज़रा भी संतुष्ट नहीं हुई थी। वह उन करोड़ों लोगों में से थी जो कई बार महीनों तक ऐसी जिंदगी जीते रहते हैं जिस दौरान उन्हें यह नहीं लगता कि कोई उनकी परवाह करता है या उनकी तरफ़ ध्यान देता है।

         एक सुबह मैंने देखा कि उसने अपने बालों को नए स्टाइल से कटवाया था। ज़ाहिर था कि यह ब्यूटी पार्लर का काम नहीं था, यह तो घरेलू काम दिख रहा था। परंतु बाल कटे हुए थे और पहले से बेहतर दिख रहे थे।

        इसलिए मैंने कहा, “मिस एस., (ध्यान दीजिए, मैंने उसका नाम जान लिया था) आपके बालों की कटिंग बड़ी अच्छी हुई है। अब यह सचमुच आकर्षक लग रहे हैं।" वह शर्मा गई, और उसने कहा, “बैंक यू, सर," और इसके बाद वह ख़यालों में इस क़दर खो गई कि वह अगली मंज़िल पर लिफ्ट रोकना तक़रीबन भूल गई। उसे तारीफ़ अच्छी लगी थी।

        अगली सुबह जब मैं लिफ्ट में घुसा तो मैंने सुना, “गुड मॉर्निंग, डॉ. श्वार्ट्ज़।” मैंने इससे पहले इस लिफ्ट ऑपरेटर को किसी का नाम लेते। नहीं सुना था। और जब तक मैं उस ऑफ़िस में रहा, तब तक उस महिला ने मेरे अलावा किसी को भी नाम से नहीं बलाया। मैंने ऑपरेटर को महत्वपूर्ण होने का एहसास दिलाया था। मैंने उसकी सच्ची तारीफ़ की थी और उसे नाम से पुकारा था।

मैंने उसे महत्वपूर्ण अनुभव कराया था। अब वह मुझे महत्वपूर्ण अनुभव कराकर एहसान उतार रही थी।

        हम अपने आपको धोखे में न रखें। जिन लोगों में आत्म-महत्ता का भाव गहराई तक नहीं होता है, वे हमेशा औसत जिंदगी जीते रहेंगे। अच्छी तरह से इस बात को समझ लें : आपको सफल होने के लिए महत्वपूर्ण अनुभव करना होगा। दूसरे लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराने से आपको इसलिए फ़ायदा होता है क्योंकि इससे आप ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाते हैं। आज़माकर देखें।

     1. तारीफ़ करने की आदत डालें। दूसरों को यह बताने का नियम बना लें कि आप उनके किए काम की तारीफ़ करते हैं। कभी भी किसी को भी यह महसूस न होने दें कि आप उसके काम को रुटीन काम मान रहे हैं। गर्मजोशी से, सच्ची मुस्कराहट के साथ तारीफ़ करें। मुस्कराहट से दूसरों को पता चलता है कि आप उनकी तरफ़ ध्यान दे रहे हैं और आप उन्हें देखकर खुश हुए हैं।

         दूसरों को यह बताकर उनकी तारीफ़ करें कि आप उन पर कितने निर्भर हैं। गंभीरता से बोला गया इस तरह का वाक्य, “जिम, मैं नहीं जानता कि तुम्हारे बिना मेरा काम कैसे चल पाता" लोगों को उनके महत्व का एहसास करा देता है और इसके बाद वे आपके लिए पहले से ज्यादा और बेहतर काम करते हैं।

         सच्ची, व्यक्तिगत तारीफ़ करने की आदत डालें। लोग तारीफ़ सुनना पसंद करते हैं। चाहे किसी की उम्र 2 साल हो या 20 साल, 9 साल हो या 90 साल, हर मनुष्य तारीफ़ का भूखा होता है। उसे यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए कि वह अच्छा काम कर रहा है, कि वह महत्वपूर्ण है। ऐसा न लगने दें कि आप केवल बड़ी उपलब्धियों की ही सराहना करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर लोगों को तारीफ़ का उपहार दें: उनकी वेशभूषा, उनके काम करने का तरीक़ा, उनके विचार, उनकी वफ़ादारी, उनकी मेहनत। उपलब्धियों पर लोगों को चिट्ठी लिखकर उनकी तारीफ़ करें। किसी विशेष सफलता पर फ़ोन करें या मिलने जाएँ।

        यह सोचने में अपना समय या अपनी मानसिक ऊर्जा बर्बाद न करें कि कौन से लोग “बेहद महत्वपूर्ण" हैं, कौन से “महत्वपूर्ण" हैं, या कौन से “महत्वहीन" हैं। किसी के साथ कोई भेदभाव न करें। हर व्यक्ति चाहे वह स्वीपर हो या कंपनी का वाइस प्रेसिडेंट आपकी नज़रों में महत्वपूर्ण है। किसी के साथ घटिया व्यवहार करके आप उससे बढ़िया परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते।


Share:

Recommended Business Books

Buy Books

Featured Post

CHAPTER 13.6 सोचें तो लीडर की तरह

      साम्यवाद के कूटनीतिक रूप से चतुर कई लीडर्स - लेनिन, स्तालिन और कई अन्य - भी काफ़ी समय तक जेल में रहे, ताकि बिना किसी बाहरी चिंता क...