Thursday, September 12, 2019

CHAPTER 5.2 नए विचारों का स्वागत करें और पुराने विचारो को नष्ट करे




         1. नए विचारों का स्वागत करें। इन विचार-शत्रुओं को नष्ट करें। “यह काम नहीं करेगा," "इसे किया ही नहीं जा सकता," "यह बेकार है,” और “यह मूर्खतापूर्ण है।"

         मेरा एक सफल दोस्त एक बीमा कंपनी में अच्छे पद पर है। उसने मुझसे कहा, "मैं इस बात का दावा नहीं करता कि मैं इस बिज़नेस में सबसे स्मार्ट आदमी हूँ। परंतु मुझे लगता है कि मैं बीमा उद्योग में सबसे अच्छा स्पंज हूँ। मैं सारे अच्छे विचारों को सोख लेता हूँ।"

         2. प्रयोगशील व्यक्ति बनें। बँधे-बँधाए रुटीन को तोड़ें। नए रेस्तराँओं में जाएँ, नई पुस्तकें पढ़ें, नए थिएटर में जाएँ, नए दोस्त बनाएँ, किसी दिन अलग रास्ते से काम पर जाएँ, इस साल अलग ढंग से छुट्टियाँ मनाएँ, इस सप्ताह के अंत में कुछ नया और अलग करें।

          अगर आप डिस्ट्रीब्यूशन का काम करते हैं, तो प्रॉडक्शन, अकाउंटिंग, फ़ाइनैन्स और बिज़नेस के दूसरे पहलुओं को सीखने में रुचि लें। इससे आपकी सोच व्यापक होगी और आप ज्यादा ज़िम्मेदारी उठाने काबिल बन सकेंगे।

         3. प्रगतिशील बनें, प्रगतिविरोधी न बनें। ऐसा न कहें, “मैं जहाँ नौकरी करता था, वहाँ यह काम इस तरीके से होता था, इसलिए हमें यहाँ भी इसे उसी तरीके से करना चाहिए" बल्कि यह कहें, “जहाँ मैं नौकरी करता था, वहाँ पर यह काम इस तरीके से होता था। इसे बेहतर तरीके से किस तरह किया जा सकता है ?" पीछे ले जाने वाली बातें न सोचें, प्रगति का विरोध न करें। आगे ले जाने वाली बातें सोचें, प्रगतिशील तरीके से सोचें। सिर्फ इसलिए कि, बचपन में आप सुबह पेपर बाँटने या। गाय का दूध निकालने के लिए 5:30 बजे उठ जाते थे, आप अपने बच्चा। से ऐसा करने की उम्मीद नहीं रख सकते।

         कल्पना कीजिए क्या होगा अगर फ़ोर्ड मोटर कंपनी का मैनेजमेंट यह साच ले, “इस साल हमने ऑटोमोबाइल के इतिहास में सर्वोच्च, सर्वोत्कृष्ट सर्वश्रेष्ठ कार बना ली है। इससे आगे सधार हो पाना संभव नहीं है। इसलिए सभी इंजीनियरिंग प्रयोग और डिज़ाइनिंग के प्रयोग अब हमेशा के लिए बंद किए जाते हैं।" फ़ोर्ड कॉरपोरेशन जैसी दिग्गज कंपनी भी इस तरीके का रवैया अपनाकर अपना बिज़नेस चौपट कर लेगी।

          सफल बिज़नेस कंपनियों की तरह ही सफल लोग भी खुद से यह सवाल पूछते हैं, “मैं किस तरह अपने प्रदर्शन की क्वालिटी सुधार सकता हूँ? मैं किस तरह इस काम को बेहतर कर सकता हूँ?"

         मिसाइल बनाने से लेकर बच्चे पालने तक के सभी मानवीय कामों में पूर्णता संभव नहीं है। इसका मतलब यह है कि हर काम में सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है। सफल लोग इस बात को जानते हैं और वे हमेशा बेहतर तरीके खोजते रहते हैं। (नोट : सफल व्यक्ति यह नहीं पूछता, “क्या इसे बेहतर तरीके से किया जा सकता है ?" वह जानता है कि यह संभव है। इसलिए वह यह सवाल पूछता है, “इसे बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है ?")

          कुछ महीने पहले, मेरी एक भूतपूर्व छात्रा ने बिज़नेस में उतरने के चार साल के भीतर ही अपना चौथा हार्डवेयर स्टोर खोल लिया। यह बहुत बड़ी बात थी। मैं जानता था कि उस महिला ने केवल 3,500 डॉलर की छोटी सी पूँजी से बिज़नेस शुरू किया था, उसे दूसरे प्रतियोगियों की ज़बरदस्त प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा था और उसे बिज़नेस में उतरे हुए अभी ज़्यादा समय भी नहीं हुआ था।

          स्टोर खुलने के कुछ समय बाद ही उसे बधाई देने के लिए मैं उसके स्टोर में गया।

         मैंने उससे बातों-बातों में पूछा कि जब बाक़ी के व्यापारी एक स्टोर तक ठीक से नहीं चला पा रहे हैं, तो वह किस तरह तीन स्टोर्स सफलतापूर्वक चला रही है और उसने चौथा स्टोर भी शुरू कर दिया है।

         "स्वाभाविक है," उसने जवाब दिया, “मैं इसके लिए मेहनत करती हूँ परंतु जल्दी उठने और देर तक मेहनत करने के कारण ही मैं चार स्टोर्स खोलने में सफल नहीं हुई हूँ। मेरे बिज़नेस में ज़्यादातर लोग कड़ी मेहनत करते हैं। मैं अपनी सफलता के लिए जिस बात को इसका सबसे ज़्यादा श्रेय देना चाहूँगी वह है मेरा बनाया हुआ 'साप्ताहिक सुधार कार्यक्रम।"

         “साप्ताहिक सुधार कार्यक्रम? यह वाक्य सुनने में अच्छा लगता है। परंतु यह साप्ताहिक सुधार कार्यक्रम क्या है ?" मैंने पूछा।

         "इसमें कोई बड़ी बात नहीं है," उसने कहा, "यह सिर्फ एक योजना है जिसमें हर हफ्ते अपने प्रदर्शन को सुधारने के तरीकों पर मैं विचार करती हूँ।

           “भविष्य में ज़्यादा सफल होने के लिए मैंने अपने काम को चार भागों में बाँट लिया है : ग्राहक, कर्मचारी, माल और प्रमोशन। पूरे सप्ताह मैं नोट्स बनाती हूँ और अपने दिमाग में आने वाले हर उस विचार को लिख लेती हूँ कि मैं किस तरह अपने बिज़नेस को सुधार सकती हूँ।

            "फिर हर सोमवार को मैं सुबह चार घंटे अपने लिखे विचारों को पढ़ती हूँ और यह तय करती हूँ कि किन विचारों का प्रयोग मैं अपने बिज़नेस में कर सकती हूँ।

           “इस चार घंटे के समय में मैं अपने काम का कड़ा मूल्यांकन करती हूँ। मैं सिर्फ इतना ही नहीं चाहती कि मेरे स्टोर में ज़्यादा ग्राहक आएँ। इसके बजाय मैं खुद से पूछती हूँ, 'ज़्यादा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए मैं और क्या कर सकती हूँ ?' 'मैं किस तरह नियमित, वफ़ादार ग्राहकों को बढ़ा सकती हूँ?"

          फिर उसने मुझे उन छोटे-छोटे उपायों के बारे में बताया जिनके कारण उसके तीन स्टोर सफल हुए थे : माल जमाने का तरीक़ा; सुझाव देकर सामान बेचने की कला, जिसमें वह अपने ग्राहकों को दो या तीन ऐसे सामान भी ख़रीदवा देती थी जिन्हें खरीदने के इरादे से वे उसके स्टोर में नहीं घुसे थे; हड़ताल के समय अपने बेकाम ग्राहकों के लिए उधार देने की स्कीम; प्रतियोगिताएँ और ईनाम जो उसने मंदी के दौर में बिक्री बढ़ाने के लिए शुरू किए थे।

        “मैं खुद से पूछती हूँ, 'मैं अपने बिज़नेस को सुधारने के लिए क्या कर सकती हूँ ?' और इसके जवाब में मेरे दिमाग में बहत से विचार आत हैं। मैं आपको सिर्फ एक उदाहरण बताना चाहती हैं। चार हफ्ते पहले मन सोचा कि मैं अपने स्टोर में छोटे बच्चों को आकर्षित करने के लिए कुछ करूँ। मैंने सोचा कि अगर छोटे बच्चे स्टोर में आना चाहेंगे, तो उनके माँ-बाप अपने आप मेरे स्टोर से सामान खरीदने लगेंगे। मैं इस बारे में सोचती रही और एक योजना बनाई : मैंने चार से आठ साल की उम्र के बच्चों के लिए छोटे-छोटे खिलौने लाइन से रखवा दिए। खिलौनों को रखने में ज्यादा जगह नहीं लगी थी और बच्चे इन्हें धड़ाधड़ खरीद रहे थे, जिससे मुझे बहुत फायदा हुआ। परंतु इससे भी बड़ा फायदा यह हुआ कि इन खिलौनों के कारण मेरे स्टोर में ज़्यादा ग्राहक आने लगे हैं।

           “यक़ीन कीजिए,” उसने आगे कहा, “मेरा साप्ताहिक सुधार कार्यक्रम सचमुच काम करता है। मैं सिर्फ अपने आपसे यह सवाल पूछती हूँ, 'मैं किस तरह अपने काम को सुधार सकती हूँ ?' और मुझे जवाब अपने आप मिल जाते हैं। ऐसा दिन शायद ही कोई होता हो जब मेरे दिमाग़ में ज़्यादा मुनाफा कमाने की कोई योजना न आती हो।

         “और मैंने सफल बिज़नेस के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात सीखी है, जो हर बिज़नेसमैन को सीखनी चाहिए।"

          “वह क्या?" मैंने पूछा।

         "सिर्फ यह। आप बिज़नेस शुरू करते समय कितना जानते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं होता। परंतु आप बिज़नेस शुरू करने के बाद कितना सीखते हैं और अपने आपको कितना सुधारते हैं, यह बेहद महत्वपूर्ण होता है।"

           बड़ी सफलता उन्हीं लोगों का दरवाज़ा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने और दूसरों के सामने ऊँचे लक्ष्य रखते हैं, जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते हैं, जो कम लागत पर बेहतर माल देना चाहते हैं, जो कम प्रयास में ज्यादा काम करना चाहते हैं। ऊँची सफलता उसी व्यक्ति को मिलती है जिसका रवैया होता है मैं-इसे-बेहतर-तरीके-से- कर-सकता-हूँ।

          जनरल इलेक्ट्रिक का स्लोगन है : प्रगति हमारा सबसे महत्वपूर्ण प्रॉडक्ट है।

        क्यों न आप भी प्रगति को अपना सबसे महत्वपूर्ण प्रॉडक्ट बनाएँ।

        मैं-इसे-बेहतर-तरीके-से-कर-सकता-हूँ वाली फिलॉसफी जादू की तरह काम करती है। जब आप खुद से पूछते हैं, "मैं इसे किस तरह सुधार सकता हूँ?" तो आपका रचनात्मक बल्ब जल उठता है और आपके दिमाग में काम करने के बेहतर तरीके अपने आप आने लगते हैं।

          यहाँ एक दैनिक अभ्यास दिया जा रहा है जिसकी मदद से आप मैं-इसे बेहतर तरीके-से-कर-सकता-हूँ रवैए की शक्ति को पहचान सकते हैं और विकसित कर सकते हैं।

         हर दिन काम शुरू करने से पहले 10 मिनट यह सोचें, “आज मैं अपने काम को किस तरह सुधार सकता हूँ, पहले से बेहतर कर सकता हूँ?" पूछे, “आज मैं अपने कर्मचारियों का उत्साह किस तरह बढ़ा सकता हूँ?" "आज मैं अपने ग्राहकों के लिए क्या ख़ास काम कर सकता हूँ?" “मैं अपनी व्यक्तिगत कार्यक्षमता किस तरह बढ़ा सकता हूँ?"

           यह अभ्यास आसान भी है और बड़े काम का भी। इसे आज़माकर देखें और आप पाएंगे कि इसके रचनात्मक तरीक़ों का उपयोग करने पर आप बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं।

         जब भी मैं और मेरी पत्नी एक दंपति से मिलने जाया करते थे, हमारी चर्चा “कामकाजी महिलाओं" के बारे में होने लगती थी। शादी से पहले श्रीमती एस. नौकरी करती थीं और उन्हें नौकरी करना अच्छा लगता था।

         "परंतु अब," वे कहा करती थीं, “अब मेरे दो बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं, मुझे घर सँभालना पड़ता है और खाना बनाना पड़ता है। अब मेरे पास नौकरी करने का समय ही नहीं है।"

         फिर एक रविवार की शाम को मिस्टर और मिसेज़ एस. अपन बच्चों के साथ कहीं से आ रहे थे। उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। किसी और को तो कोई ख़ास चोट नहीं आई, लेकिन मिस्टर एस. की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई और वे हमेशा के लिए अपंग हो गए। अब मिसेज़ एस. के पास नौकरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

         जब हमने उस दुर्घटना के कुछ महीनों बाद मिसेज़ एस. को देखा, तो हम यह देखकर दंग रह गए कि उन्होंने अपनी नई जिम्मेदारियों को बखूबी सँभाल लिया था।

         “आप जानते हैं," उन्होंने कहा, "छह महीने पहले मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि में घर सँभालने के साथ-साथ फल टाइम नौकरी भी कर पाऊँगी। परंतु एक्सीडेंट के बाद मैंने यह फैसला किया कि मुझे समय निकालना ही पड़ेगा। यकीन मानिए, मेरी कार्यक्षमता पहले से 100 प्रतिशत ज़्यादा बढ़ चुकी है। में ऐसे बहुत से काम किया करती थी, जो महत्वपूर्ण नहीं थे और जिन्हें करने की कोई जरूरत नहीं थी। फिर मैंने यह भी जाना कि मेरे बच्चे मेरी मदद कर सकते थे और वे मेरी मदद करना चाहते थे। मैंने समय बचाने के दर्जनों तरीके ढूँढ लिए- स्टोर के कम चक्कर लगाना, कम टीवी देखना, टेलीफ़ोन पर कम बात करना, समय को कम बर्बाद करना।"

            इस अनुभव से हमें एक सीख मिलती है : काम करने की क्षमता एक मानसिक स्थिति है। हम कितना ज्यादा काम कर सकते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपनी क्षमताओं के बारे में क्या सोचते हैं। जब आपको सचमुच विश्वास होता है कि आप ज्यादा काम कर सकते हैं, तो आपका दिमाग रचनात्मक तरीके से सोचता है और आपको रास्ता दिखा देता है।

          एक युवा बैंक एक्जीक्यूटिव ने “काम करने की क्षमता" के बारे में अपना अनुभव मुझे सुनाया।

         "हमारी बैंक का एक एक्जीक्यूटिव अचानक नौकरी छोड़कर चला गया। इससे हमारे डिपार्टमेंट में समस्या पैदा हो गई। जो आदमी गया था. उसका काम महत्वपूर्ण था और उसके काम को किए बिना बैंक का काम नहीं चल सकता था। यह काम इतना अर्जेन्ट था कि इसे टाला भी नहीं जा सकता था।

         "उसके जाने के एक दिन बाद, बैंक के वाइस प्रेसिडेंट यानी कि मेरे विभाग के इन्चार्ज ने मुझे बुलाया। उन्होंने बताया कि उन्होंने मेरे विभाग के बाक़ी दो लोगों से पूछा था कि जब तक कि कोई दूसरा आदमी काम पर न रखा जाए, तब तक क्या वे उस आदमी के काम को सँभाल सकते हैं। दोनों ने ही सीधे तो मना नहीं किया, परंतु दोनों का ही कहना था कि उनके पास काम का पहले से ही बहुत बोझ है। इतना काम है कि उन्हें सिर उठाने तक की फुरसत नहीं मिलती। मैं सोच रहा था कि क्या आप कुछ समय के लिए यह अतिरिक्त काम कर लेंगे?'

         "मेरी परी नौकरी में मैंने यह सीखा है कि जो भी चीज़ अवसर की तरह दिखे, उसे ठुकराना नहीं चाहिए। इसलिए मैं तत्काल राज़ी हो गया और मैंने वादा किया कि मैं अपना काम तो करूँगा ही, दूसरे आदमी का काम भी सँभाल लूँगा। वाइस प्रेसिडेन्ट यह सुनकर खुश हो गया।

         “मैं उसके ऑफ़िस से बाहर निकलते समय सोच रहा था कि मैंने अपने ऊपर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी ले ली है। मैं भी अपने विभाग के बाक़ी दो लोगों की तरह बहुत व्यस्त था, परंतु मैंने उनकी तरह अतिरिक्त काम से जी नहीं चुराया था। मेरा दृढ़ निश्चय था कि मैं दोनों काम एक साथ करने का कोई न कोई रास्ता ढूँढ़ ही निकालूंगा। मैंने उस दोपहर अपना काम ख़त्म किया और जब ऑफ़िस बंद हो गया तो मैंने बैठकर विचार किया कि किस तरह मैं अपनी कार्यक्षमता बढा सकता है। मैंने एक पेंसिल ली और अपने हर विचार को लिखना शुरू कर दिया।

          “और आप जानते हैं, मेरे दिमाग में बहुत से अच्छे विचार आने लगे। जैसे, अपनी सेक्रेटरी से यह कहना कि वह मेरे लिए आने वाले सामान्य टेलीफ़ोन कॉल हर दिन एक निश्चित समय ही मुझे ट्रांसफर किया करे। वह किसी निश्चित समय ही बाहर जाने वाले टेलीफ़ोन कॉल लगाया करे। मैंने अपनी चर्चा की अवधि को भी 15 मिनट से घटाकर 10 मिनट कर लिया। मैं अपने सभी डिक्टेशन हर दिन एक ही बार में देने लगा। मैंने यह भी पाया कि मेरी सेक्रेटरी मेरी मदद कर सकती थी और मेरे बदले में कई काम सँभाल सकती थी।

          "मैं यह काम पिछले दो साल से कर रहा था, और सच कहूँ, तो मुझे यह जानकर इतनी हैरत हुई कि मैं अब तक कितनी कम क्षमता से काम कर रहा था।

         “एक हफ्ते के समय में ही मैं पहले से दुगुने पत्र डिक्टेट करने लगा, पहले से 50 प्रतिशत ज़्यादा फ़ोन कॉल करने और सुनने लगा, पहले से 50 प्रतिशत ज़्यादा मीटिंगों में भाग लेने लगा- और यह सब बिना तनाव
के करने लगा।

         "इसी तरह दो सप्ताह और गुज़र गए। वाइस-प्रेसिडेन्ट ने मुझे बलवाया। उन्होंने मेरी तारीफ़ की कि मैंने इस अतिरिक्त ज़िम्मेदारी को इतनी अच्छी तरह सँभाला है। उन्होंने आगे कहा कि वे एक आदमी की तलाश कर रहे थे और इसके लिए वे बैंक के अंदर और बाहर कई लोगों को परख चुके थे। परंतु उन्हें अब तक सही आदमी नहीं मिला था। फिर उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने बैंक की एक्जीक्यूटिव कमेटी के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि इन दो कामों को मिलाकर एक ही आदमी को सौंप दिया जाए, उन्होंने इस काम के लिए मुझे चुना है और उन्होंने यह प्रस्ताव भी रखा कि मेरी तनख्वाह काफ़ी बढ़ा दी जाए। कमेटी ने उनकी बात मान ली और मुझे हर तरह से फायदा हुआ।

          “मैंने यह साबित कर दिया कि मेरी क्षमता उतनी ही होती है, जितनी क्षमता का विश्वास मेरे मन में होता है। मैं उतना ही काम कर सकता हूँ, जितना काम करने की मैं ठान लेता हूँ।"

           काम करने की क्षमता एक मानसिक स्थिति है।

          हर दिन तेज़ी से आगे बढ़ती बिज़नेस की दुनिया में यही होता है। बॉस किसी कर्मचारी को बुलाता है और बताता है कि कोई विशेष काम करना है। फिर वह कहता है, “मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास पहले से ही बहुत काम है, परंतु क्या तुम उसके साथ यह काम भी कर पाओगे?"
अक्सर कर्मचारी जवाब देता है, “मुझे अफ़सोस है, परंतु मुझ पर पहले से ही काम का बहुत ज्यादा बोझ है। काश मैं इस काम को कर सकता, परंतु मेरे पास इस काम को करने के लिए समय ही नहीं है।"

           इन परिस्थितियों में बॉस को कर्मचारी की बात का बुरा तो नहीं लगता, क्योंकि यह “अतिरिक्त काम” है। परंतु बॉस महसूस करता है। कि इस काम को करना तो है ही, इसलिए वह ऐसे कर्मचारी की तलाश करता है जिस पर बाक़ी लोगों जितना ही काम का बोझ है, परंतु जो
यह समझता है कि वह यह अतिरिक्त ज़िम्मेदारी निभा सकता है। और यही कर्मचारी सफलता में बाक़ी सबसे आगे निकल जाता है।

        बिज़नेस में, घर में, समाज में, सफल तालमेल होता है - अपने काम को लगातार बेहतर तरीके से करते रहें (अपने काम की क्वालिटी सुधारें) और आप जितना पहले करते थे, उससे ज़्यादा करें (अपने काम की क्वांटिटी बढ़ाएँ)।

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