Friday, September 27, 2019

CHAPTER 8.3 अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ

 अच्छी खबर फैलाये और अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ,लोगो का नाम लेने का आदत डाले




         2. लोगों का नाम लेने की आदत डालें। हर साल चतुर निर्माता दूसरे निर्माताओं से ज़्यादा ब्रीफ़केस, पेंसिल, बाइबल, और सैकड़ों दूसरे सामान बेच लेते हैं। कारण यह होता है कि वे अपने सामान पर ख़रीदार का नाम लिख देते हैं। लोगों को अपने नाम का संबोधन अच्छा लगता है। जब किसी का नाम लिया जाता है, तो उसे ऐसा लगता है जैसे उसके कानों में शहद घोल दिया गया हो।

           आपको दो ख़ास बातों का ध्यान रखना चाहिए। नाम का उच्चारण सही करें और उसकी स्पेलिंग में ग़लती न करें। अगर आप ग़लत उच्चारण करते हैं या ग़लत स्पेलिंग लिखते हैं, तो सामने वाला व्यक्ति समझ सकता है कि आपकी नज़रों में उसका कोई महत्व नहीं है।

          एक और बात का ध्यान रखें। जब भी आप ऐसे लोगों से बात करें जिन्हें आप ठीक से न जानते हों, तो नाम के पहले उचित संबोधन - मिस, मिस्टर या मिसेज़ - लगाना न भूलें। आपके ऑफ़िस का चपरासी जोन्स के बजाय मिस्टर जोन्स कहा जाना ज़्यादा पसंद करता है। यही आपके अधीनस्थ कर्मचारी के बारे में भी सही है। यही हर तरह के, हर जगह के लोगों के बारे में सही है। इन छोटे-छोटे टाइटल्स से लोग अपने आपको बहुत महत्वपूर्ण समझने लगते हैं।

         3. प्रशंसा को झपटने के बजाय इसका निवेश करें। हाल ही में मैं एक कंपनी के कार्यक्रम में अतिथि के रूप में गया। उस शाम डिनर के बाद कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट ने दो डिस्ट्रिक्ट मैनेजर्स को पुरस्कार देने की घोषणा की। इनमें एक पुरुष था और दूसरी महिला थी। इन दोनों ही
मैनेजर्स के संगठनों ने उस साल सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। फिर वाइस प्रेसिडेंट ने इन मैनेजर्स से कहा कि वे 15 मिनट में लोगों को यह बताएँ कि उनके संगठनों ने यह काम इतनी अच्छी तरह कैसे किया।

पहला डिस्ट्रिक्ट मैनेजर (मुझे बाद में पता चला कि उसे तीन महीने पहले ही मैनेजर बनाया गया था और इसलिए वह अपने संगठन के शानदार प्रदर्शन के लिए आंशिक रूप से ही ज़िम्मेदार था) उठा और उसने लोगों को बताया कि उसने ऐसा किस तरह किया।

        उसने यह जताया जैसे उसके प्रयासों से और केवल उसके प्रयासों से ही उस संगठन की बिक्री इतनी बढ़ी है। उसके भाषण में बार-बार इस तरह के वाक्य आ रहे थे, "जब मैंने काम सँभाला, तो मैंने यह किया, मैंने वह किया;" "जब मैं आया तो हर चीज़ गड़बड़ थी; परंतु मैंने सब कुछ ठीक-ठाक कर दिया;" “यह आसान नहीं था. परंतु मैंने परिस्थिति का अध्ययन किया और मैंने निश्चय किया कि चाहे जो हो मैं सफल होकर दिखाऊँगा।"

       उसके बोलते समय उसके संगठन के सेल्समैनों के चेहरे पर निराशा साफ़ दिख रही थी। डिस्ट्रिक्ट मैनेजर सफलता का सारा श्रेय खुद ही लिए जा रहा था और उन्हें नज़रअंदाज़ कर रहा था। रिकॉर्ड सेल में सेल्समैनों की कड़ी मेहनत का योगदान है, इस बात को मैनेजर ने नहीं बताया था।

        इसके बाद, दूसरी डिस्ट्रिक्ट मैनेजर ने अपनी बात कही। परंतु इस महिला की शैली बिलकुल अलग थी। पहले तो उसने बताया कि उसके संगठन को जो सफलता मिली है, वह उसकी टीम के जी-जान से किए गए प्रयासों का परिणाम है। इस सफलता के असली हक़दार तो उसके सेल्समैन हैं। इसके बाद उस मैनेजर ने अपने हर सेल्समैन को खड़े होने के लिए कहा ताकि वह हर एक को उसके प्रयास के लिए बधाई दे सके. उसकी तारीफ़ कर सके।

       दोनों के व्यवहार में कितना फ़र्क था। पहले मैनेजर ने वाइस प्रेसिडेंट की तारीफ़ झपटकर रख ली और खुद ही पूरी तारीफ़ हड़प कर गया। उसके ऐसा करने से, उसके अपने ही लोग उससे चिढ़ गए। उसके सेल्समैनों का मनोबल कम हो गया। दूसरी मैनेजर ने तारीफ़ को अप सेल्समैनों में बाँट दिया जिससे उनका मनोबल बढ़ गया और वे भविष्य में ज़्यादा अच्छा काम करने के लिए प्रेरित हुए। यह मैनेजर जानती थी कि ज़्यादा लाभ कमाने के लिए पैसे की तरह,तारीफ़ का भी निवेश करना चाहिए। वह जानती थी कि सेल्समैनों की इस तरह तारीफ़ करने से वे अगले साल और ज़्यादा मेहनत करेंगे।

          याद रखें, प्रशंसा ही शक्ति है। अपने सुपीरियर से मिलने वाली तारीफ़ का निवेश करें। अपने अधीनस्थों तक उस तारीफ़ को पहुँचा दें ताकि वे भविष्य में बेहतर काम करने के लिए प्रेरित हों। जब आप तारीफ़ बाँटते हैं, तो आपके अधीनस्थ यह समझ लेते हैं कि आप उन्हें मूल्यवान समझते हैं, उन्हें महत्व देते हैं।

        यहाँ एक दैनिक अभ्यास दिया जा रहा है जिसके बहुत ज्यादा लाभ होते हैं। अपने आपसे हर दिन यह पूछे, “मैं अपनी पत्नी और परिवार को सुखी बनाने के लिए आज क्या कर सकता हूँ?"

        यह बहुत आसान लगता है, परंतु यह बड़े काम का नुस्खा है। एक शाम, मैं सेल्स ट्रेनिंग कार्यक्रम में यह चर्चा कर रहा था, “सफल सेल्समैन बनने के लिए सही घरेलू माहौल कैसे बनाएँ।" अपनी बात को समझाने के लिए मैंने सेल्समैनों से पूछा (जो सभी शादी-शुदा थे), “आख़िरी बार, क्रिसमस को, अपनी शादी की सालगिरह को, या अपनी पत्नी के जन्मदिन को छोड़कर आपने कब उसे कोई ख़ास तोहफा दिया था ?"

         मैं भी जवाबों को सुनकर हैरान रह गया। 35 सेल्समैनों में से सिर्फ एक ने पिछले महीने अपनी पत्नी को तोहफ़ा दिया था। समूह में से कइयों का जवाब था, “तीन से छह महीने पहले"। और एक तिहाई का जवाब था, "मुझे याद नहीं कि मैंने उसे कभी कोई तोहफ़ा दिया हो।” |

         कल्पना कीजिए! और इसके बाद भी कई लोग यह ताज्जुब करते हैं कि उनकी पत्नी उनके साथ वैसा व्यवहार नहीं करती, जैसा सिंहासनपर बैठे सम्राट के साथ किया जाता है।

         मैं इन सेल्समैनों को यह समझाना चाहता था कि सच्चे दिल से दिए गए तोहफ़े में जादू की ताक़त होती है। अगली शाम को मैंने एक फूल वाले को सत्र के आखिर में बुलवा लिया। मैंने उसका परिचय अपने सेल्समैनों से करवाया और कहा, "मैं चाहता हूँ कि आज आप यह देखें कि तोहफ़ा देने से घरेलू माहौल किस तरह सुधारा जा सकता है। मैंने इस फूल वाले से कहा है कि वह आपको एक गुलाब का फूल सिर्फ 50 सेंट में उपलब्ध कराए। अगर आपके पास 50 सेंट न हों, या आप सोचते हों कि आपकी पत्नी इस लायक नहीं है कि उस पर इतनी बड़ी रकम खर्च की जाए (इस बात पर वे सब हँसे), तो मैं अपनी तरफ़ से उसके लिए गुलाब खरीद दूंगा। मैं आपसे सिर्फ यही चाहता हूँ कि आप गुलाब लेकर अपनी पत्नी के पास जाएँ और कल शाम को आकर बताएँ कि इसका उस पर क्या असर हुआ।"

        “और हाँ, उसे यह मत बताना कि आपने यह गुलाब उसके लिए कैसे और क्यों ख़रीदा।"

          वे समझ गए।

         बिना अपवाद के, हर व्यक्ति ने अगली शाम को आकर बताया कि 50 सेंट के छोटे से निवेश से उसकी पत्नी खुश हो गई।

         अपने परिवार के लिए अक्सर कुछ ख़ास करें। ज़रूरी नहीं है कि आप कोई महँगा तोहफ़ा ही ख़रीदें। महत्व इस बात का होता है कि आपको उनकी याद रही। ऐसा कुछ जो आपके परिवार के प्रति आपका प्रेम या परवाह प्रदर्शित करे, कारगर होगा।

         अपने परिवार को अपनी टीम में शामिल करें। उसका सुनियोजित रूप से ध्यान रखें।

         इस व्यस्त भागदौड़ भरे युग में कई सारे लोग अपने परिवार के लिए समय निकाल पाने में असमर्थ हैं। लेकिन अगर हम योजना बनाकर चलें, तो अवश्य ही समय निकलेगा। एक वाइस प्रेसिडेंट ने मुझे अपना तरीक़ा बताया जो उसके हिसाब से बहुत कारगर था:

        “मेरे काम में बहुत ज़िम्मेदारियाँ हैं और हर शाम को ढेर सारा काम घर ले जाने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं होता। परंतु मैं अपने परिवार को अनदेखा या नज़रअंदाज़ नहीं करता, क्योंकि वही तो मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उन्हीं के लिए तो मैं इतनी कड़ी मेहनत कर रहा हूँ। मैंने एक टाइम टेबल बना लिया है जिससे मैं अपने परिवार पर भी पूरा ध्यान दे पाता हूँ और अपने काम पर भी। हर शाम 7:30 से 8:30 तक मैं अपने दोनों बच्चों को समय देता हूँ। मैं उनके साथ खेलता हूँ, उन्हें कहानियाँ सुनाता हूँ, उनके साथ तस्वीरें बनाता हूँ, उनके सवालों के जवाब देता हूँ- यानी जो वे चाहते हैं, वही करता हूँ। इस एक घंटे के बाद मेरे बच्चों को तो संतोष होता ही है, मैं भी पूरी तरह तरोताज़ा हो जाता हूँ। 8:30 पर वे सोने चले जाते हैं और मैं दो घंटे तक काम करता हूँ।

         10:30 पर मैं अपना काम बंद कर देता हूँ और एक घंटा अपनी पत्नी के साथ बिताता हूँ। हम बच्चों के बारे में, उसके कामकाज के बारे में, भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हैं। दिन ख़त्म करने के लिए यह एक घंटा बहुत शानदार साबित होता है।

          “मैं रविवार को पूरी तरह अपने परिवार के लिए सुरक्षित रखता हूँ। पूरा दिन उनका होता है। मैं अपने परिवार की तरफ़ पूरा ध्यान देने के लिए योजना बनाता रहता हूँ जो न सिर्फ उनके लिए अच्छा है, बल्कि मेरे लिए भी अच्छा है। इससे मुझे नई ऊर्जा मिलती है।"

   पैसे कमाना चाहते हैं? इसके लिए सेवाभाव विकसित कीजिए।

       यह पूरी तरह स्वाभाविक है - वास्तव में यह बहुत अच्छी बात है - कि पैसा कमाया जाए और दौलत इकट्ठी की जाए। पैसा ही वह ताक़त है जो आपके परिवार को शक्ति देती है और मनचाही जीवनशैली देती है। पैसा ही वह ताक़त है जिसकी मदद से आप बदक़िस्मत लोगों की मदद कर सकते हैं। पैसा उन साधनों में से एक है जिनके सहारे आप जीवन को पूरी तरह से जी सकते हैं।

       एक बार एकर्स ऑफ़ डायमंड्स के लेखक महान पादरी रसेल एच. कॉनवेल की आलोचना हर्ड। आलोचना का कारण यह था कि रसेल लोगों को पैसा कमाने के लिए प्रेरित करते थे। अपनी आलोचना के जवाब में उन्होंने कहा, “पैसे से ही आपकी बाइबल छपी हैं। पैसे से ही आपके चर्च बने हैं। पैसे से ही आप अपने मिशनरीज़ को भेज पाए हैं। अपने पादरियों को भी आप पैसा देते हैं। और अगर आप उन्हें पैसा देना बंद कर देंगे, तो आपके पास ज़्यादा पादरी भी नहीं बचेंगे।"

      वह व्यक्ति जो कहता है कि वह ग़रीब रहना चाहता है वह या तो  अपराधबोध से ग्रस्त है या फिर वह अपने आपको अयोग्य समझता है। वह उस बच्चे की तरह है जिसे लगता है कि वह स्कूल में कभी फ़र्स्ट डिवीज़न नहीं ला पाएगा या कभी फुटबॉल टीम में शामिल नहीं हो पाएगा, इसलिए वह यह जताता है कि वह फ़र्स्ट डिवीज़न नहीं लाना चाहता या फुटबॉल नहीं खेलना चाहता।

         पैसे कमाना एक बढ़िया लक्ष्य है। यह हैरानी की बात है कि ज़्यादातर लोग पैसा कमाते समय सीधी शैली के बजाय उल्टी शैली का प्रयोग क्यों करते हैं। हर कहीं आप देखते हैं कि लोगों का रवैया ‘पहले पैसा' होता है। परंतु इन्हीं लोगों के पास सबसे कम पैसा होता है। क्यों ?
सिर्फ इसलिए क्योंकि जिन लोगों का रवैया “पहले पैसा" होता है वे पैसे के बारे में दीवाने हो जाते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि पैसे की फ़सल तब तक नहीं काटी जा सकती जब तक कि आप पैसे के बीज को न बोएँ।

         और पैसे का बीज है सेवा। इसीलिए “पहले सेवा" वाले रवैए से ही दौलत आती है। पहले सेवा कीजिए और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

          एक दिन मैं यात्रा के दौरान सिनसिनाटी से गुज़र रहा था। मुझे पेट्रोल भरवाना था। मैं एक साधारण-से परंतु बेहद व्यस्त सर्विस स्टेशन पर रुका।

          चार मिनट बाद ही मैं जान गया कि यह सर्विस स्टेशन इतना लोकप्रिय क्यों था। मेरी कार में पेट्रोल भरने के बाद, गाड़ी में बिना कहे हवा चेक करने के बाद, और बाहर का शीशा साफ़ करने के बाद अटेंडेंट मेरे पास आया और कहा, “सर, आज काफ़ी धूल भरा दिन था। क्या मैं आपकी विंडशील्ड के अंदर की तरफ़ वाला काँच भी साफ़ कर दूं।"

         जल्दी ही और बड़े अच्छे तरीके से उसने अंदर की सफ़ाई कर दी। किसी और सर्विस स्टेशन में इस तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया जाता।

         इस छोटी सी विशेष सेवा के कारण न सिर्फ मुझे रात में बेहतर दिखने लगा (और इससे बहुत फ़र्क पड़ा था); बल्कि मुझे यह स्टेशन याद रहा। इत्तफ़ाक से. मैं अगले तीन महीनों में आठ बार सिनसिनाटी से गुज़रा। हर बार मैं इसी स्टेशन पर रुका। और हर बार मुझे जितनी
सर्विस की उम्मीद थी, उससे ज्यादा सर्विस मिली। यह भी रोचक था कि हर बार जब भी मैं वहाँ पहुँचा (एक बार तो सुबह के 4 बज रहे थे), मझे वहाँ बहुत सारी कारें खड़ी मिलीं। कुल मिलाकर मैंने इस स्टेशन से लगभग 100 गैलन पेट्रोल ख़रीदा होगा।

         जब में पहली बार वहाँ आया था, तो अटेंडेंट यह सोच सकता था, "यह व्यक्ति बाहर का है। शायद यह द्वारा यहाँ नहीं आएगा। उसकी तरफ विशेष ध्यान देने से क्या फ़ायदा ? वह तो सिर्फ एक बार का ग्राहक है।"

        परंतु उस सर्विस स्टेशन के अटेंडेंट ने इस तरह से नहीं सोचा। वहाँ पर पहले सेवा की जाती थी और यही कारण था कि उन्हें पेट्रोल भरने से फुरसत ही नहीं मिलती थी, जबकि उनके आस-पास के पेट्रोल पंप वीरान से पड़े रहते थे। अगर पेट्रोल की क्वालिटी में कोई फर्क हो तो सच कहूँ मैंने उस तरफ़ ध्यान नहीं दिया। और कीमत भी वाजिब थी।

         फ़र्क सिर्फ सेवाभाव का था। और यह स्पष्ट था कि सेवाभाव के कारण उन्हें काफ़ी फ़ायदा भी हो रहा था।

        जब मेरी पहली यात्रा में अटेंडेंट ने मेरी विंडशील्ड को अंदर से साफ किया तो उसने पैसे का एक बीज बो दिया।

         सेवा को महत्व दो और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा हमेशा।

        पहले सेवा वाले रवैए से हर स्थिति में लाभ होता है। मेरी शुरुआती नौकरी में मैं एक युवक के साथ काम करता था जिसे मैं एफ. एच. का नाम देना चाहूँगा।

         एफ़. एच. आपकी पहचान के बहुत से लोगों की तरह होगा। वह इस बात की चिंता किया करता था कि उसके पास पैसा कम था जबकि उसे पैसे की बहुत ज़रूरत थी। वह हमेशा पैसे की कमी के बारे में ही सोचता रहता था, और ज़्यादा पैसा कमाने के तरीकों के बारे में कभी विचार नहीं करता था। हर सप्ताह एफ. एच. ऑफ़िस के समय में अपनी व्यक्तिगत बजट समस्याओं पर काम किया करता था। चर्चा का उसका फेवरिट टॉपिक था, “मुझे यहाँ पर सबसे कम तनख्वाह मिलती है। में आपको बता दूं कि ऐसा क्यों होता है।"

         एफ. एच. का रवैया था, “यह कंपनी इतनी बड़ी है। यह करोड़ों कमा रही है। यह इतने सारे लोगों को इतनी मोटी मोटी तनख्वाह दे रही है, इसलिए मुझे भी ज़्यादा तनख्वाह मिलनी चाहिए।"

        जब तनख्वाह बढ़ाने की बारी आती थी, तो एफ. एच. को अनदेखा कर दिया जाता था। जब ऐसा कई बार हो चुका, तो एक दिन उसने फ़ैसला किया कि वह जाकर ज्यादा तनख्वाह की माँग करेगा। 30 मिनट बाद एफ़.एच. गुस्से में वापस लौटा। उसके चेहरे पर साफ़ लिखा हुआ था कि अगले महीने भी उसे उतनी ही तनख्वाह मिलने वाली है जितनी कि इस महीने मिली थी।

        तत्काल एफ़. एच. ने अपनी भड़ास निकालना शुरू कर दिया। “हे भगवान, मेरे तो तनबदन में आग लग गई। जब मैंने तनख्वाह बढ़ाने की बात की, तो जानते हो 'बुड्ढे' ने क्या कहा? उसने यह पूछने की जुर्रत की, 'आपको ऐसा क्यों लगता है कि आपकी तनख्वाह बढ़ानी चाहिए?

         “मैंने उसके सामने बहुत से कारण गिना दिए,” एफ. एच. ने कहा। "मैंने उसे बताया कि कई बार मुझसे जूनियर लोगों को प्रमोशन दिया गया है। मैंने उसे बताया कि मेरा ख़र्च दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और मेरी तनख्वाह वहीं पर अटकी हुई है। और मैंने उसे बताया कि ऑफ़िस में मुझसे जो काम कहा जाता है, मैं वह काम कर देता हूँ।

         “और इसके बाद मेरी तनख्वाह क्यों नहीं बढ़नी चाहिए? मुझे ज़्यादा तनख्वाह की ज़रूरत थी, परंतु मुझे ज़्यादा पैसे देने के बजाय आप उन लोगों की तनख्वाह बढ़ा रहे हैं जिन्हें इसकी इतनी ज़्यादा ज़रूरत नहीं है।'

         “और जानते हो इसके बाद उसने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया," एफ़. एच. ने आगे कहा, “उसने ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं भीख माँग रहा हूँ। उसने कहा, 'जब तुम्हारा रिकॉर्ड बताएगा कि तुम ज़्यादा तनख्वाह के योग्य हो, तो तुम्हें अपने आप ही ज़्यादा तनख्वाह मिलने लगेगी।'

        “अवश्य ही मैं बेहतर काम कर सकता हूँ, अगर वे मुझे इसके लिए ज्यादा पैसे दें, लेकिन एक बेवकूफ़ ही वह करेगा जिसका उसे पैसा नहीं मिलता।"

         एफ़. एच. उस प्रजाति का एक उदाहरण है जो यह नहीं देख पाती कि पैसा “कैसे" कमाया जाता है। उसकी आख़िरी टिप्पणी में उसकी ग़लती का सारांश था। एफ़. एच. चाहता था कि पहले कंपनी उसकी तनख्वाह बढ़ाए, फिर वह बेहतर काम करेगा। परंतु सिस्टम इस तरह काम नहीं करता। बेहतर प्रदर्शन के वादे पर ही आपकी तनख्वाह नहीं बढ़ जाती। उसके लिए आपको बेहतर प्रदर्शन करके दिखाना होगा। आप तब तक पैसे की फ़सल नहीं काट सकते जब तक आपने पैसे के बीज को नहीं बोया हो। और पैसे का बीज है सेवा।

         सेवा को पहले नंबर पर रखें और मेवा यानी कि पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

          यह सोचें कि कौन सा निर्माता फ़िल्मों से ज़्यादा पैसे कमाता है। फटाफट-अमीर-बनने-वाला निर्माता एक फ़िल्म बनाता है। वह पैसे को मनोरंजन (सेवा) से ज्यादा महत्व देता है। वह एक ख़राब स्क्रिप्ट ख़रीदता है और घटिया लेखकों से इसकी पटकथा लिखवाता है। अभिनेताओं, सेट बनाने, रिकॉर्डिंग में भी वह पैसे को पहले नंबर पर रखता है। यह निर्माता सोचता है कि फ़िल्म देखने वाली जनता मूर्ख होती है और वह अच्छे-बुरे के फ़र्क को नहीं समझ पाएगी।

          परंतु फटाफट-अमीर-बनने-वाला निर्माता शायद ही कभी जल्दी अमीर बन पाएगा। जनता कभी इतनी मूर्ख नहीं होती कि घटिया माल को ख़रीदे, और वह भी ऊँचे दामों पर।

          जिस निर्माता को फ़िल्मों से सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा होता है, वह मनोरंजन को पैसे के ऊपर रखता है। अपने दर्शकों को मूर्ख बनाने के बजाय वह उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मनोरंजन देने की कोशिश करता है। परिणाम यह होता है कि लोग उसकी फ़िल्म को पसंद करते हैं। उसकी
तारीफ़ होती है। अख़बारों में उसके बढ़िया रिव्यू छपते हैं। और बॉक्स ऑफ़िस पर खूब कमाई होती है।

           एक बार फिर ध्यान रखें, पहले सेवा करें और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

         वह वेटर जो अपने ग्राहक को सबसे अच्छी सर्विस देने की कोशिश करता है उसे टिप के बारे में चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। टिप उसे ज़रूर मिलेगी और अच्छी मिलेगी। परंतु उसी का साथी वेटर जो कॉफ़ी के खाली कपों को अनदेखा कर देता है ("उन्हें अपने आप क्यों भरूँ। वैसे भी यह लोग ज़्यादा टिप देने वाले नहीं दिख रहे हैं"), ऐसे वेटर को ज़्यादा टिप कौन देगा?

          जो सेक्रेटरी अपने बॉस की उम्मीद से बेहतर लेटर टाइप करके दिखाती है, उसकी भविष्य की तनख्वाह अच्छी ही होगी। परंतु जो सेक्रेटरी सोचेगी, “थोड़ी बहुत ग़लतियों के बारे में चिंता क्यों करूँ ? आख़िर 65 डॉलर प्रति सप्ताह में आप मुझसे क्या उम्मीद करते हैं ?" - उसे आगे भी 65 डॉलर प्रति सप्ताह ही मिलते रहेंगे।

          वह सेल्समैन जो अपने ग्राहक की मन लगाकर सेवा करता है, उसे अपने ग्राहक के खोने या छिन जाने का कोई डर नहीं होना चाहिए।

         यहाँ एक आसान परंतु सशक्त नियम दिया जा रहा है जो आपको बताएगा कि आप किस तरह पहले सेवा का रवैया रखें : लोग जितनी उम्मीद करते हैं, लोगों को हमेशा उससे ज़्यादा दें। थोड़ा अतिरिक्त देने से आप पैसे का बीज बो देते हैं। देर तक रुककर इच्छा से काम करना और डिपार्टमेंट के सामने आई किसी मुश्किल समस्या को दूर करना भी पैसे का बीज बोना है। ग्राहक की अतिरिक्त सेवा कर देना भी पैसे का बीज बोना है क्योंकि इससे ग्राहक आपके पास बार-बार आता है। कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए नए विचार बताना भी पैसे का बीज बोना है।

          पैसे के बीज से पैसे का पेड़ उगता है और पैसे के फल लगते हैं। परंतु पैसे के इस बीज का नाम है सेवा। इसलिए सेवा को बो दें और पैसे की फ़सल काटें।

          हर दिन कुछ समय इस सवाल का जवाब देने में बिताएँ, “मैं किस तरह अपेक्षा से ज़्यादा करके दिखा सकता हूँ?" और फिर दिमाग़ में जो जवाब आएँ, उन पर अमल करें।

          सेवा को पहले नंबर पर रखें और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा।

           संक्षेप में, सफलता की तरफ़ आगे ले जाने वाले रवैयों को विकसित करें।

      1. "मुझमें उत्साह है" का रवैया विकसित करें। आपमें जितना उत्साह होगा, आपको उतने ही अच्छे परिणाम मिलेंगे। आप तीन तरह से अपने आपमें उत्साह भर सकते हैं :

       A. गहराई में जाएँ। जब आपको कोई चीज़ नीरस लगे, तो उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करें। इससे उत्साह बढ़ता है।

          B. हर काम दिल से करें। आपकी मुस्कराहट, आपका हाथ मिलाना, आपकी चर्चा, आपकी चाल, हर बात में उत्साह और गर्मजोशी दिखनी चाहिए। ज़िंदादिली से काम करें।

         C. अच्छी ख़बर फैलाएँ। किसी भी व्यक्ति ने बुरी ख़बर सुनाकर कोई अच्छी चीज़ हासिल नहीं की है।

          2. “आप महत्वपूर्ण हैं” का रवैया विकसित करें। जब आप लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराते हैं, तो लोग आपके लिए ज्यादा काम करते हैं। तीन बातें याद रखें:

         A. हर मौके पर तारीफ़ करें। लोगों को महत्वपूर्ण अनुभव कराएँ।

         B. लोगों को उनके नाम से बुलाएँ।

          3. “पहले सेवा" वाला रवैया विकसित करें और पैसा अपने आप आपके पास आ जाएगा। हर काम में यह नियम बना लें, लोग आपसे जितनी उम्मीद करते हैं, आप उससे ज्यादा ही दें।

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