Tuesday, October 22, 2019

CHAPTER 13.6 सोचें तो लीडर की तरह


      साम्यवाद के कूटनीतिक रूप से चतुर कई लीडर्स - लेनिन, स्तालिन और कई अन्य - भी काफ़ी समय तक जेल में रहे, ताकि बिना किसी बाहरी चिंता के वे अपनी भावी योजनाएँ बना सकें।

        बड़ी-बडी यूनिवर्सिटीज़ अपने प्रोफ़ेसरों से हर सप्ताह सिर्फ पाँच घंटे लेक्चर दिलवाती हैं ताकि बाक़ी समय प्रोफेसर के पास सोचने का समय हो। 

        कर्ड प्रसिद्ध बिज़नेस हस्तियाँ दिन भर सहयोगियों, सेक्रेट्रियों, टेलीफ़ोनों, और रिपोर्टों की व्यस्तता में घिरे दिखते हैं। परंतु आप उनके जीवन के हर सप्ताह 168 घंटे देखें या हर महीने 720 घंटे देखें, तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे काफ़ी समय एकांत चिंतन में गुज़ारते हैं। 

      मुददे की बात यह है : किसी भी क्षेत्र में सफल व्यक्ति अपने आपसे बात करने के लिए समय निकालता है। एकांत में लीडर्स समस्या के सभी टुकड़ों को इकट्ठा करते हैं, उसका हल खोजते हैं, योजना बनाते हैं और एक वाक्यांश में कहा जाए, तो सुपर-थिंकिंग करते हैं।

      कई लोग अपनी रचनात्मक लीडरशिप की क्षमता का इसलिए दोहन नहीं कर पाते, क्योंकि वे अपने अलावा हर इंसान से बातें कर लेते हैं। आप भी किसी ऐसे ही व्यक्ति को जानते होंगे। यह व्यक्ति कोशिश करता है कि वह कभी अकेला न रहे। वह लोगों से घिरा रहने की लगातार कोशिश करता है। वह अपने ऑफिस में अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर पाता, इसलिए वह दूसरे लोगों के पास जबरन जाता है। शाम को भी वह अकेले समय शायद ही गुज़ारता हो। वह हर घड़ी किसी से बात करने की ज़रूरत महसूस करता है। वह गपशप में काफ़ी समय बर्बाद करता है।

        जब ऐसे व्यक्ति को परिस्थितिवश शारीरिक रूप से अकेले रहना पड़ता है, तो वह ऐसे तरीके ढूँढ लेता है जिनसे वह मानसिक रूप से अकला न रहे। ऐसे समय में वह टेलीविज़न, अख़बार, रेडियो, टेलीफ़ोन किसी और ऐसे ही यंत्र का सहारा लेता है जो उसके चिंतन को ख़त्म
द। वास्तव में वह यह कहता है. “मिस्टर टीवी, मिस्टर अख़बार, मेरे गको भर दो। मैं अपने विचारों का सामना करने से घबराता हूँ।"

        मिस्टर मैं-अकेलापन-बर्दाश्त नहीं कर पाता स्वतंत्र विचार से दूर भागते हैं। वे अपने दिमाग का दरवाज़ा बंद रखते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से वे अपने खुद के विचारों से डरे रहते हैं। जैसे-जैसे समय गुज़रता जाता है, मिस्टर मैं-अकेलापन-बर्दाश्त-नहीं-कर-पाता लगातार उथले होते जाते हैं। वे कई गलत काम भी कर देते हैं। उनमें लक्ष्य की सामर्थ्य या व्यक्तिगत स्थिरता विकसित नहीं हो पाती। वे दुर्भाग्य से उस सुपर-पॉवर के बारे में अनजान रहते हैं जो उनके दिमाग में बेकार ही पड़ा हुआ है।

       मिस्टर मैं अकेलापन-बर्दाश्त नहीं-कर-पाता न बनें। सफल लीडर्स अकेलेपन में ही अपने सुपर-पॉवर का दोहन करते हैं। आप भी ऐसा ही कर सकते हैं।

       आइए देखें कि कैसे।

       एक प्रोफेशनल डेव्लपमेंट प्रोग्राम के हिस्से के रूप में मैंने 13 विद्यार्थियों को दो सप्ताह तक हर दिन एक घंटे तक एकांत में रहने के लिए कहा। विद्यार्थियों से कहा गया कि वे सारी बाधाओं से दर. बिलकल एकांत में किसी भी घटना के बारे में रचनात्मक रूप से सोचें।

       दो सप्ताह बाद, हर विद्यार्थी ने बिना किसी अपवाद के यह बताया कि यह अनुभव बहुत ही व्यावहारिक और सफल रहा। एक व्यक्ति ने बताया कि एकांत के प्रयोग के पहले उसका अपनी कंपनी के एक अधिकारी से मतभेद हो गया था और वह उसके साथ युद्ध करने के मूड में आ गया था, परंतु स्पष्ट चितन के बाद उसने समस्या का स्त्रोत खोज लिया और उसका हल भी। बाक़ी लोगों ने भी बताया कि उन्होंने कई समस्याओं का हल ढूँढ लिया जिनमें नौकरियाँ बदलने, शादी की कठिनाइयाँ, घर खरीदने और बच्चे के लिए अच्छा कॉलेज चुनने की समस्याएँ शामिल थीं।

       हर विद्यार्थी ने उत्साह से बताया कि खुद के बारे में उसकी बेहतर समझ विकसित हुई है- उसने खुद की कमजोरियों और शक्तियों को जान लिया है, जो वह पहले कभी नहीं जान पाया था।

      विद्यार्थियों ने ऐसा कुछ और भी खोज लिया जो बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने पाया कि एकांत में लिए गए निर्णय और निष्कर्ष न जाने क्यों 100 प्रतिशत सही होते हैं। विद्यार्थियों ने पाया कि जब कोहरा छंट जाता है तो 

सही निर्णय बिलकुल स्पष्ट हो जाता है।

         एकांत चिंतन के बहुत लाभ हैं।

        एक दिन मेरी एक सहयोगी ने एक समस्या के बारे में अपना पहले का नजरिया पूरी तरह बदल लिया। मैं यह जानने के लिए उत्सक था कि उसने अपने विचार क्यों बदल लिए। समस्या तो वही थी और समस्या दरअसल एक मूलभूत क़िस्म की समस्या थी, इसलिए मैं इस बदलाव का कारण नहीं समझ पा रहा था। उसका जवाब यह था, 'मैं स्पष्टता से नहीं सोच पा रही थी कि हमें क्या करना चाहिए। इसलिए मैं आज सुबह साढे तीन बजे उठी, एक कप कॉफ़ी पी और सोफे पर 7 बजे तक बैठकर सोचती रही। अब मुझे सारी चीजें साफ़ दिख रही हैं। तो इसीलिए मैंने अपने विचार बदल लिए और दूसरे तरीके को अपनाने का फैसला किया।

       और उसका नया तरीक़ा पूरी तरह सही साबित हुआ।

        हर दिन कुछ समय (कम से कम तीस मिनट) पूरी तरह एकांत में रहने के लिए अलग निकाल लें।

        शायद सुबह का समय बेहतर होता है, क्योंकि उस समय शोरगुल नहीं होता है। या देर शाम का समय भी शायद अच्छा रहेगा।महत्वपूर्ण बात यह है कि आप ऐसा समय चनें जब आपके मस्तिष्क में स्फूर्ति हो और जब बाहरी बाधाएँ कम हों।

        आप इस समय का इस्तेमाल दो तरीकों से कर सकते हैं : किसी दिशा में चिंतन या दिशाहीन चिंतन। किसी दिशा में चिंतन करने के लिए अपना किसी महत्वपर्ण समस्या पर विचार करें। एकांत में समस्या पर निरपेक्ष ढंग से सोचें और इससे आपको सही जवाब मिल जाएगा।

        दिशाहीन चिंतन करने के लिए, आप अपने दिमाग को अपने आप वह चाहे सोचने दें। इन क्षणों में आपका अवचेतन मस्तिष्क आपके मेमोरी बैंक का दोहन करता है जो आपके चेतन मस्तिष्क का पोषण करता है। दिशाहीन चिंतन आत्म-मूल्यांकन करने में बहुत सहायक होता हैं ।यह  आपको बहुत मूलभूत विषयों तक ले जाता है जैसे,"मैं कैसे बेहतर बन सकता हूँ? मेरा अगला कदम क्या होना चाहिए?"

याद रखें, लीडर का मुख्य काम है सोचना। और लीडरशिप की सर्वश्रेष्ठ तैयारी चिंतन है। हर दिन कुछ समय एकांत चिंतन के लिए निकालें और आप सफल चिंतन की राह पर होंगे।

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Sunday, October 20, 2019

CHAPTER 13.5 सोचें तो लीडर कीतरह

       और हर मामले में, विद्यार्थियों ने अपनी टीचर के उदाहरण से ही सीखा।

        हम इसी तरह का व्यवहार हर दिन वयस्कों के समूह में भी देखते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेनापतियों ने सबसे ज्यादा हौसला उन टुकड़ियों में नहीं पाया जिनके कप्तान “बेफ़िक्र", "निश्चिंत” या “निरुत्साही" थे। सबसे अच्छी टुकड़ियाँ थीं जहाँ कप्तान खुद ऊँचे मानदंडों पर चलता था और उनका पालन करता था। मिलिट्री में ऐसे अफ़सरों को सम्मान नहीं मिलता जिनके मानदंड नीचे होते हैं।

       कॉलेज के विद्यार्थी भी अपने प्रोफेसरों के उदाहरण से ही सीखते हैं। एक प्रोफ़ेसर की क्लास में वे बंक मार देते हैं, नक़ल करते हैं और बिना पढ़े अच्छे नंबर लाने के येन-केन-प्रकारेण प्रयास करते हैं। परंतु दूसरे प्रोफ़ेसर की क्लास में यही विद्यार्थी विषय में दक्षता हासिल करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करने को सहर्ष तैयार रहते हैं।

        बिज़नेस में भी हमें यही देखने को मिलता है। कर्मचारी अपने मालिक के उदाहरण से सीखते हैं। कर्मचारियों के किसी समूह को करीब से देखें। उनकी आदतों, हावभाव, कंपनी के प्रति उनके रवैए, उनकी नैतिकता, उनकेआत्मनियंत्रण पर गौर करें। फिर उनके बॉस के साथ उनके व्यवहार की तुलना करें और आप पाएँगे कि दोनों में काफ़ी समानताएँ हैं।

         हर साल कई कंपनियाँ जो अपनी प्रगति से संतुष्ट नहीं हैं, कुछ परिवर्तन करती हैं। और वे ऐसा किस तरह करती हैं। वे सबसे ऊपर के लोगों को बदलती हैं। कंपनियाँ (और कॉलेज, चर्च, क्लब, यूनियन व सभी तरह के संगठन) ऊपर से नीचे की तरफ़ सफलता से पुनर्गठित होते हैं, न कि नीचे से ऊपर की तरफ़। ऊपर के लोगों की मानसिकता बदल दें और अपने आप नीचे के लोगों की मानसिकता बदल जाएगी।

        इसे याद रखें : जब आप किसी समूह के लीडर बनते हैं, तो उस समूह के लोग तत्काल आपके आदर्श या उदाहरण के हिसाब से चलने लगते हैं। यह पहले कुछ सप्ताहों में साफ़ दिखता है। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि वे किस तरह आपकी असलियत जानें, किस तरह यह पता करें कि आप उनसे क्या चाहते हैं। वे आपकी हर गतिविधि को पूरे ध्यान से देखते हैं। वे सोचते हैं, यह व्यक्ति मुझे कितनी ढील देगा? यह काम को किस तरह कराना चाहता है? यह किस चीज़ से खश होता है? अगर मैं यह काम करूँ तो यह क्या कहेगा?

        और जब वे इन सवालों के जवाब जान लेते हैं, तो फिर वे उसी अनुसार काम करने लगते हैं।

        उस आदर्श का ध्यान रखें जो आप प्रस्तुत करते हैं। इस पुराने परंतु हमेशा सच्चे छंद को अपना मार्गदर्शक बनाएँ :

        यह दुनिया
                     किस तरह की दुनिया होती,
       अगर इसमें रहने वाला हर इंसान
                     बिलकुल मेरी तरह होता?

      इस कहावत में अर्थ बढ़ाने के लिए आप दुनिया की जगह कंपनी शब्द फ़िट कर लें और अब यह छंद इस तरह हो गया :

            यह कंपनी
                        किस तरह की कंपनी होती,
             अगर इसमें रहने वाला हर इंसान
                        बिलकुल मेरी तरह होता?

        इसी तरह, आप खुद से पूछे कि अगर हर इंसान आप ही के जैसा हो जाए, तो वह क्लब, समुदाय, स्कूल या चर्च कैसा होगा।

       आप अपने अधीनस्थों से जिस तरह की सोच चाहते हैं, वैसा सोचें। जैसी चर्चा चाहते हैं, वैसी चर्चा करें। जैसे काम चाहते हैं, वैसे काम करें। जैसी जीवनशैली चाहते हैं, वैसी जीवनशैली जिएँ।

लंबे समय तक साथ रहने के बाद अधीनस्थ अपने बॉस की कार्बन कॉपी बन जाते हैं। उच्च कोटि की सफलता के लिए ज़रूरी है कि मास्टर कॉपी डुप्लीकेट करने क़ाबिल होनी चाहिए।

क्या मैं प्रगतिशील चिंतक हूँ?
चेक लिस्ट

A. क्या मैं अपने काम-धंधे के बारे में प्रगतिशील चिंतन करता हूँ?

      1. क्या अपने काम के बारे में मेरा नज़रिया यह रहता है “मैं इसे किस तरह बेहतर तरीके से कर सकता हूँ?"

2. क्या मैं अपने समुदाय को सुधारने के लिए सचमुच प्रयास करता हूँ या फिर मैं सिर्फ आपत्तियाँ उठाता हूँ, आलोचना करता हूँ और शिकायत करता हूँ?

3. क्या मैंने अपने समुदाय में सुधार के लिए कभी किसी चीज़ का बीड़ा उठाया है?

4. क्या मैं अपने पड़ोसियों और बाक़ी लोगों की तारीफ़ करता हूँ?

लीडरशिप नियम नंबर 4 : अपने आपसे बात करने के लिए समय निकालें और अपने चिंतन की प्रबल शक्ति का दोहन करें।

       हमें आम तौर पर यह लगता है कि लीडर्स बेहद व्यस्त लोग होते हैं। और वे सचमुच व्यस्त होते हैं। लीडर्स को काम से घिरे रहना पड़ता है। परंतु जिस बात पर सामान्य तौर पर ध्यान नहीं दिया जाता, वह यह है कि लीडर्स अकेले में भी काफ़ी समय बिताते हैं, और इस खाली समय में वे सोचने के अलावा कुछ नहीं करते हैं।

        महान धार्मिक लीडर्स की जीवनियों को पढ़ें और आप पाएंगे कि सभी ने एकांत में काफ़ी समय चिंतन किया है। मोज़ेस काफ़ी समय एकांत में रहे, कई बार तो बहुत लंबे समय तक। ईसामसीह, बुद्ध, कन्फ्यूशियस, मोहम्मद, गाँधी के बारे में भी यही सच है। इतिहास के हर प्रसिद्ध धार्मिक लीडर ने जीवन की बाधाओं से दूर अपना काफ़ी समय एकांत चिंतन में गुज़ारा है।

        इसी तरह, राजनैतिक लीडर्स जिन्होंने इतिहास पर अपनी अच्छी या बुरी छाप छोड़ी है एकांत में चिंतन किया करते थे। अगर फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट को पोलियो की बीमारी के बाद एकांत नहीं मिला होता तो क्या उनमें कभी असामान्य लीडरशिप की योग्यता विकसित हो पाती, यह एक रोचक प्रश्न है। हैरी ट्रमैन ने भी बचपन और वयस्कता का अधिकांश समय मसूरी फार्म में एकांत में बिताया था।

      अगर हिटलर को जेल में एकांत नसीब नहीं हुआ होता, तो शायद उसे सत्ता भी नहीं मिल पाती। जेल में ही उसे मीन काम्फ लिखने का समय मिला, जिसमें दुनिया को जीतने की ज़बर्दस्त योजना थी और जिसने जर्मनी की पूरी जनता को कुछ समय के लिए अंधा कर दिया था।

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Saturday, October 19, 2019

CHAPTER 13.4 सोचें तो लीडर कीतरह

         "मानवीय" शैली से बेहतर लीडर बनने के दो तरीके हैं। पहला, हर बार जब भी आप लोगों से संबंधित किसी मुश्किल मसले का सामना करें, तो खुद से पूछे, “इससे निबटने का मानवीय तरीका क्या है ?"

      जब आपके अधीनस्थों में असहमति हो या जब कोई कर्मचारी समस्या खड़ी कर रहा हो तो इस प्रश्न पर सोचें।

       बॉब के गलतियाँ सुधारने के फॉर्मूले को याद रखें। कटुता को टालें। व्यंग्य से परहेज़ करें।लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश न करें। लोगों को उनकी और दूसरों की नज़रों से न गिराएँ।

       खुद से पूछे, “लोगों के साथ निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है ?" इससे हमेशा लाभ होता है - कई बार जल्दी, कई बार देर से - पर लाभ हमेशा होता है।

      “मानवीय बनने" के नियम से लाभ लेने का दूसरा तरीक़ा यह है कि आप अपने काम से यह जताएँ कि आपके लिए लोग महत्वपूर्ण हैं। अपने मातहतों की नौकरी के बाहर की उपलब्धियों में रुचि दिखाएँ। हर एक के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करें। अपने आपको याद दिलाएँ कि जीवन का मुख्य लक्ष्य इसका आनंद लेना है। यह सामान्य सा सिद्धांत है कि आप किसी व्यक्ति में जितनी अधिक रुचि लेंगे, वह आपके लिए उतना ही मन लगाकर काम करेगा। और जब वह मन लगाकर काम करेगा तो उससे आप और ज़्यादा, बहुत ज्यादा सफल हो जाएँगे।

        जब भी मौक़ा मिले, अपने सुपरवाइज़र से अपने अधीनस्थों की तारीफ़ करते रहें। यह एक पुरानी अमेरिकी परंपरा है कि छोटे आदमी की तरफ़ वाले व्यक्ति को हमेशा प्रशंसा की नज़रों से देखा जाता है। आपके अधीनस्थ आपकी तारीफ़ से खुश होंगे और आपके प्रति उनकी वफ़ादारी भी बढ़ जाएगी। और इस बात से न डरें कि इससे आपके सुपरवाइज़र की नज़रों में आपका महत्व कम हो जाएगा। जिस व्यक्ति का दिल इतना बड़ा हो, जिसका व्यवहार इतना विनम्र हो, वह उस व्यक्ति से ज़्यादा आत्मविश्वासी लगता है जो असुरक्षा के भाव से भरकर अपनी उपलब्धियों की शेखी बघारता रहता है। थोड़ी सी विनम्रता बहुत काम आती है।

       जब भी मौक़ा मिले, अपने अधीनस्थों की व्यक्तिगत रूप से तारीफ़ करें। उनके सहयोग के लिए उनकी तारीफ़ करें। हर अतिरिक्त प्रयास के लिए उनकी तारीफ़ करें। तारीफ़ ही वह सबसे बड़ा एकमात्र प्रोत्साहन है जो आप उन्हें दे सकते हैं और इसमें आपका एक पैसा भी ख़र्च नहीं होता। इसके अलावा, "गुप्त मतदान" ने कई सशक्त और जाने-माने उम्मीदवारों को भी धराशायी कर दिया है। आप कभी नहीं जानते कि कब आपके अधीनस्थ आपके काम आ जाएँगे और आपको किसी अप्रिय स्थिति से बचा लेंगे।

        लोगों की तारीफ़ करने का अभ्यास करें।

        सही तरीके से लोगों से व्यवहार करें। मानवीय बनें।

       लीडरशिप नियम नंबर 3 : प्रगति के बारे में सोचें, प्रगति के बारे में विश्वास करें और प्रगति के लिए कोशिश करें।

      जब कोई आपके बारे में यह कहता है, “वह प्रगति में विश्वास करता है। वही व्यक्ति इस काम के लिए ठीक रहेगा।" तो आपकी इससे बड़ी तारीफ़ हो ही नहीं सकती।

       हर क्षेत्र में प्रमोशन उन्हीं लोगों को मिलते हैं जो प्रगति में विश्वास करते हैं और प्रगति के लिए प्रयास करते हैं। लीडर्स, सच्चे लीडर्स, बहुत कम होते हैं। यथास्थिति में विश्वास रखने वाले लोग (जैसा भी चल रहा है ठीक है, हम इसमें कोई हेरफेर नहीं करना चाहते) हमेशा प्रगतिशील व्यक्तियों से (सुधार की बहुत गुंजाइश है इसलिए हम इसे सुधारने की कोशिश करें) बहुत बड़ी तादाद में होते हैं। लीडर्स के समूह में शामिल हों। अपनी नज़र हमेशा आगे की तरफ़ रखें।

       प्रगतिशील नज़रिया विकसित करने के लिए आप दो खास चीज़े कर सकते हैं:

1. जो भी काम आप करें, उसमें सुधार के बारे में सोचें।

2. जो भी काम आप करें, उसमें आप ऊँचे स्तर रखें।

          कई महीने पहले एक मध्यम आकार की कंपनी के प्रेसिडेंट ने मुझसे एक महत्वपूर्ण निर्णय करने के लिए कहा। इस एक्जीक्यूटिव ने अपना बिज़नेस खुद बनाया था और वह सेल्स मैनेजर के रूप में काम कर रहा था। अब जबकि उसके यहाँ सात सेल्समैन काम कर रहे थे, उसने यह फैसला किया कि अब वह खुद सेल्स मैनेजर का काम छोड़ देगा और किसी सेल्समैन को सेल्स मैनेजर के पद पर प्रमोशन दे देगा। उसने इस काम के लिए तीन सेल्समैनों को छाँटा था, जो अनुभव और सेल्स में लगभग बराबर थे।

        मेरा काम था हर व्यक्ति के साथ एक दिन बिताना और यह फैसला करना कि क्या यह व्यक्ति उस समूह का लीडर बनने के काबिल है। हर सेल्समैन को बता दिया गया था कि एक सलाहकार आकर मार्केटिंग प्रोग्राम के बारे में उनसे चर्चा करेगा। ज़ाहिर है, कि उन्हें स्पष्ट कारणों से यह नहीं बताया गया था कि मेरी चर्चा का असली उद्देश्य क्या था।

        दो लोगों ने लगभग एक ही तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त की। दोनों ही मेरे साथ असहज हो गए। दोनों को ही यह एहसास हो गया कि मैं वहाँ पर “कुछ बदलने” की फ़िराक में था। दोनों ही सेल्समैन यथास्थिति के सच्चे रक्षक थे। दोनों का ही यह कहना था कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। मैंने उनसे पूछा कि किस तरह उनके क्षेत्रों का बँटवारा हुआ है, उनके सेल्स प्रमोशनल मटेरियल, कम्पन्सेशन प्रोग्राम के बारे में बात की- मार्केटिंग के हर पहलू पर उन्होंने यही कहा, “सब कुछ बढ़िया है।" कुछ खास मुद्दों पर इन दोनों व्यक्तियों ने स्पष्ट किया कि वर्तमान नीति में बदलाव क्यों नहीं किया जाना चाहिए। संक्षेप में, दोनों ही व्यक्ति चाहते थे कि स्थितियाँ जैसी की तैसी बनी रहें। एक व्यक्ति ने जब मुझे मेरे होटल में उतारा तो उसने चलते-चलते कहा, "मैं यह तो नहीं जानता कि आपने आज मेरे साथ दिन क्यों गुज़ारा, परंतु मेरी तरफ़ से आप मिस्टर एम. को बता देना कि जैसा भी है, सब कुछ बढ़िया है। किसी भी चीज़ को बदलने की कोई जरूरत नहीं है।"

       तीसरा सेल्समैन इनसे अलग था। वह कंपनी से खुश था और उसे इसकी प्रगति पर नाज़ था। परंतु वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं था। वह सुधार चाहता था। पूरे दिन यह तीसरा सेल्समैन मुझे यह बताता रहा कि नया बिज़नेस कैसे हासिल किया जा सकता है, ग्राहकों को बेहतर सेवा कैसे दी जा सकती है, समय की बर्बादी कैसे कम की जा सकती है, कम्पन्सेशन प्लान को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है तथा वह खुद और कंपनी इससे किस तरह लाभान्वित हो सकते हैं। उसने एक नए विज्ञापन अभियान की योजना भी बनाई थी जिसकी रूपरेखा उसने मुझे बताई। जब मैं वहाँ से रवाना हुआ, तो उसने चलते-चलते कहा, “मुझे बहुत अच्छा लगा कि मैं अपने विचार किसी को बता सका। हमारी कंपनी अच्छी है, पर मुझे लगता है कि हम इसे और बेहतर बना सकते हैं।"

         ज़ाहिर है कि मेरी अनुशंसा तीसरे व्यक्ति के लिए थी। यह एक ऐसी अनुशंसा थी जो कंपनी के प्रेसिडेंट की भावनाओं के अनुरूप थी। प्रगति, कार्यकुशलता, नए उत्पाद, नई प्रक्रियाओं, बेहतर प्रशिक्षण और बढ़ी समृद्धि में विश्वास करें।

         प्रगति में विश्वास करें, प्रगति के लिए प्रयास करें और आप एक लीडर बन जाएँगे!

        बचपन में मुझे मौक़ा मिला कि मैं यह देख सकूँ कि लीडर किस तरह अपने समर्थकों के व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।

        मैं एक देहाती प्राथमिक शाला में पढ़ता था, जहाँ आठ कक्षाएँ थीं, एक ही टीचर थी और चालीस बच्चों को एक ही कमरे में लूंस दिया जाता था। नई टीचर को हमेशा परेशान किया जाता था। बड़े बच्चों, यानी कि सातवीं और आठवीं के बच्चों के नेतृत्व में सभी विद्यार्थी टीचर को मज़ा चखाने के लिए तैयार रहते थे।

        एक साल तो कुछ ज्यादा ही हंगामा हुआ। हर दिन दर्जनों स्कूली शरारतें होती थीं, जिनमें चॉक फेंककर मारना, काग़ज़ के हवाई जहाज़ चलाना इत्यादि शामिल थे। इसके अलावा कई बड़ी घटनाएँ भी हुईं जैसे टीचर को स्कूल के बाहर आधा दिन तक खड़ा रखा, क्योंकि कुंडी अंदर से बंद कर ली गई थी। दूसरे मौके पर इसका उल्टा हुआ, यानी टीचर को स्कूल में बंद कर दिया गया, क्योंकि कुंडी बाहर से लगा दी गई थी। एक दिन एक शरारती बच्चा अपने कुत्ते को स्कूल में ले आया।

          परंतु मैं आपको यह बता दूं, ये बच्चे अपराधी किस्म के नहीं थे। चोरी करना, शारीरिक हिंसा करना या नुक़सान पहुँचाना उनका उद्देश्य नहीं था। वे स्वस्थ बच्चे थे जो अपनी ज़बर्दस्त ऊर्जा को अपनी शरारतों
के माध्यम से बाहर निकाल रहे थे।

        तो, टीचर ने किसी तरह उस साल तो स्कूल में रहने में कामयाबी पाई, परंतु अगले साल नई टीचर को नियुक्त करना पड़ा और इससे किसी को कोई हैरत नहीं हुई।

        नई टीचर का नज़रिया पुरानी टीचर से बिलकुल अलग था। उसने गरिमामयी व्यवहार करने की उनकी भावना को जाग्रत किया। उसने उन्हें समझदारी के काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। हर बच्चे को एक निश्चित ज़िम्मेदारी सौंपी गई जैसे ब्लैकबोर्ड साफ़ करना, डस्टर साफ़ करना, या छोटे बच्चों की मदद करना। नई टीचर ने बच्चों की ज़बर्दस्त ऊर्जा का उपयोग करने के रचनात्मक तरीके खोज लिए, जबकि यही ज़बर्दस्त ऊर्जा पहले शरारतों में बर्बाद हुआ करती थी। उसके शैक्षणिक कार्यक्रम की नींव चरित्र बनाने पर थी।

        पहले साल बच्चे राक्षसों की तरह व्यवहार क्यों कर रहे थे और अगले साल वही बच्चे देवताओं की तरह व्यवहार क्यों करने लगे? फ़र्क उनके लीडर का, यानी उनकी टीचर का था। ईमानदारी से कहा जाए, तो हम शरारतों के लिए बच्चों को दोष नहीं दे सकते। यह टीचर की ही ग़लती थी जो वह सही दिशा में बच्चों का नेतृत्व नहीं कर पाई।

        पहली टीचर अंदर से बच्चों की प्रगति के बारे में परवाह नहीं करती थी। उसने बच्चों के लिए कोई लक्ष्य नहीं बनाए। उसने उन्हें उत्साहित नहीं किया। वह अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाई। उसे पढ़ाना पसंद नहीं था ,इसलिए बच्चों को पढ़ना पसंद नहीं था।

       परंतु दूसरी टीचर ने ऊँचे, सकारात्मक मानदंड बनाए। वह बच्चों को सचमुच पसंद करती थी और चाहती थी कि वे कुछ बनें। वह हर एक से इंसान की तरह व्यवहार करती थी। उसे सबका अनुशासन इसलिए मिला क्योंकि वह अपने हर काम में अच्छी तरह अनुशासित थी।

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Thursday, October 17, 2019

CHAPTER 13.3 सोचें तो लीडर की तरह

       जब उसे यह पता चला कि उसके स्टाफ़ का एक व्यक्ति अल्पसंख्यक है, तो जॉन ने उसे बुलवाया और उससे कहा कि वह ऐसी व्यवस्था कर देगा कि वह अपने धार्मिक त्यौहारों को मना सके, क्योंकि ऐसे त्यौहारों पर अमूमन छुट्टियाँ नहीं होती थीं।

        जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी के परिवार का कोई सदस्य बीमार होता था, तो जॉन को यह याद रहता था। जब नौकरी के बाहर उसके स्टाफ़ का कोई कर्मचारी उपलब्धि हासिल करता था, तो जॉन उसे बधाई देने का समय निकाल लेता था।

      परंतु जॉन की “मानवीय बनने” की फिलॉसफी का सबसे बड़ा सबूत मिला, जब उसने एक कर्मचारी को डिसमिस किया। जॉन के पहले वाले बॉस ने एक कर्मचारी को नियुक्त किया था। उस कर्मचारी की इस तरह के काम में कोई रुचि नहीं थी, न ही योग्यता थी। जॉन ने इस समस्या को बेहतरीन तरीके से सुलझाया। उसने कर्मचारी को ऑफ़िस में बुलाने का पारंपरिक तरीक़ा इस्तेमाल नहीं किया, वह तरीक़ा जिसमें पहले तो उसे बुरी ख़बर सुनाई जाए और बाद में उसे 15 या 30 दिन का समय दिया जाए।

        इसके बजाय, उसने दो अस्वाभाविक काम किए। पहली बात तो यह, कि उसने कर्मचारी को समझाया कि यह कर्मचारी के ही हित में है कि वह यह नौकरी छोड़ दे और कोई ऐसी नौकरी ढूँढ़े जहाँ उसकी योग्यता और रुचि का बेहतर उपयोग हो सकता हो। उसने कर्मचारी के साथ बैठकर एक प्रतिष्ठित रोज़गार परामर्शदाता से सलाह लेने की योजना बनाई। इसके बाद उसने ऐसा कुछ किया जो नियम की किसी पुस्तक में नहीं लिखा था। उसने दूसरी कंपनियों के एक्जीक्यूटिज़ से संपर्क किया जहाँ उस कर्मचारी की योग्यताएँ काम आ सकती थी। उसने इंटरव्यू का इंतज़ाम भी करवा दिया। 18 दिन बाद ही उस कर्मचारी को बहुत ही बढ़िया नौकरी मिल गई।

        डिसमिसल के इस तरीके से मुझे हैरत हुई और मैंने जॉन से पूछा कि उसने इस छोटी सी बात के लिए इतना कष्ट क्यों उठाया। जॉन का जवाब था, "मैंने एक पुरानी कहावत को अपने दिमाग में बिठा लिया है। जो भी किसी व्यक्ति के नीचे काम करता है, वह उसके संरक्षण में होता है। हमें पहले तो उस व्यक्ति को नौकरी पर रखना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि वह इसके लायक नहीं था। परंतु जब हमने उसे नौकरी पर रख ही लिया, तो हमारा यह फ़र्ज़ बनता था कि इसके बदले में हम उसे ढंग की नौकरी तो दिलवाते।

       जॉन ने आगे कहा, “कोई भी किसी व्यक्ति को नौकरी पर रख सकता है। परंतु लीडरशिप का इम्तहान इस बात से होता है कि आप किसी व्यक्ति को नौकरी से किस तरह हटाते हैं। उस कर्मचारी को अच्छी नौकरी दिलवाकर मैंने अपने डिपार्टमेंट के हर व्यक्ति में जॉब सिक्युरिटी की भावना पैदा कर दी है। इस उदाहरण से वे यह जान गए हैं कि जब तक मैं यहाँ पर हूँ वे फुटपाथ पर नहीं आएँगे।"

       इस बारे में कोई ग़लतफ़हमी न पालें। जॉन की “मानवीय बनने" की लीडरशिप के उसे बहुत अच्छे परिणाम मिले। जॉन की पीठ पीछे बुराई कभी नहीं हुई। उसे कर्मचारियों की पूरी वफ़ादारी और सहयोग मिला। उसे अधिकतम जॉब सिक्युरिटी इसलिए मिली क्योंकि उसने अपने अधीनस्थों को अधिकतम जॉब सिक्युरिटी दी।

      15 साल से मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसे मैं बॉब डब्ल्यू. का नाम देना चाहूँगा। बॉब की उम्र पचास-साठ के बीच है। उसने अपने दम पर सफलता हासिल की है। चूंकि उसकी शिक्षा ज्यादा नहीं थी और उसके पास पैसा भी नहीं था, इसलिए उसकी नौकरी 1931 में छूट गई। परंतु वह हमेशा संघर्षशील था, इसलिए उसने चुपचाप बैठे रहने के बजाय अपने गैरेज में एक छोटी सी फ़र्नीचर की दुकान शुरू की। कड़ी मेहनत के बाद उसका बिज़नेस जम गया और आज बॉब आधुनिक फ़र्नीचर निर्माता है और उसके कारखाने में 300 से ज़्यादा कारीगर काम करते हैं।

       आज बॉब मिलियनेअर है। पैसे और भौतिक चीज़ों की चिंता ख़त्म हो गई है। परंतु बॉब दूसरी तरह से भी अमीर है। वह दोस्तों, संतुष्टि और संतोष के लिहाज़ से भी लखपति है।

       बॉब की ढेरों अच्छाइयों में से एक, उनकी लोगों की सहायता करने की ज़बर्दस्त इच्छा है। बॉब मानवतापूर्ण हैं और वे लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा कि वे लोग चाहते हैं। और वे इसके विशेषज्ञ हैं।

        एक दिन मैं और बॉब लोगों की आलोचना करने की शैली के बारे में बात कर रहे थे। आलोचना करने का बॉब का मानवीय तरीक़ा एक अद्भुत फ़ॉर्मूला है। उसने मुझे बताया, “मुझे नहीं लगता कि कोई यह कहेगा कि मैं एक कमज़ोर बॉस हूँ। मैं एक बिज़नेस चलाता हूँ। अगर कुछ ठीक नहीं हो रहा है, तो मुझे उसे ठीक करना ही पड़ता है। परंतु ठीक करने का एक तरीक़ा भी होता है- और तरीका ही महत्वपूर्ण होता है। अगर कर्मचारी ने कोई गलती कर दी है, तो मैं विशेष सावधान रहता हूँ कि उसकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे और उसमें हीन भावना न आ जाए या वह अपमानित महसूस न करे। मैं इन चार आसान क़दमों का इस्तेमाल करता हूँ :

       सबसे पहले, मैं उनसे अकेले में बात करता हूँ।

       दूसरे, मैं उनके अच्छे काम की तारीफ़ करता हूँ।

      तीसरे, मैं उन्हें यह बताता हूँ कि किस क्षेत्र में वे बेहतर काम कर सकते हैं और मैं उन्हें बेहतर काम करने का तरीका बताता हूँ।

      चौथे, मैं एक बार फिर उनकी अच्छी बातों के लिए उनकी तारीफ़ करता हूँ।

       “और चार कदमों का यह फ़ॉर्मूला काम करता है। जब मैं इसका इस्तेमाल करता हूँ तो लोग मुझे धन्यवाद देते हैं। मैं जान गया हूँ कि लोगों को आलोचना सुनने का यही तरीक़ा पसंद आता है। जब वे मेरे ऑफ़िस से बाहर निकलते हैं तो वे इसलिए मेरी बातों का बुरा नहीं मानते क्योंकि मैंने उन्हें याद दिला दिया है कि वे न सिर्फ अच्छे कर्मचारी हैं, बल्कि वे बेहतर कर्मचारी भी बन सकते हैं।

        "लोगों को देखने का मेरा जिंदगी भर का तजुर्बा है और मैं यह जानता हूँ कि मैं उनसे जितना अच्छा व्यवहार करता हूँ, उतनी ही अच्छी चीजें मेरे साथ होती हैं। ईमानदारी से कहा जाए, तो मैं इस बारे में कोई योजना नहीं बनाता। यह अपने आप ही हो जाता है।

      "में आपको एक उदाहरण दूं। कुछ साल पहले, शायद पाँच या छह साल पहले, हमारा एक मज़दूर शराब पीकर काम पर आ गया। जल्दी ही फैक्टरी में होहल्ला मच गया। उसने वॉर्निश का 5 गैलन का ड्रम उठा लिया था. जिसे वह फैक्टरी में इधर-उधर फैलाने पर आमादा था। दसरे मज़दूरों ने उससे ड्रम छुड़ा लिया और उसके सुपरिंटेंडेंट ने उसे बाहर निकाल दिया।

         “मैं बाहर गया और मैंने देखा कि वह बाहर दीवार से टिका बैठा था। मैंने उसे सहारा देकर उठाया, कार में बिठाया और उसे घर लेकर गया। उसकी पत्नी बौखला गई थी। मैंने उसे आश्वस्त किया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। परंतु आप कुछ नहीं समझते हैं,' उसने कहा, 'मिस्टर डब्ल्यू. (यानी कि मैं) यह बर्दाश्त नहीं करेंगे कि कोई नौकरी पर शराब पीकर जाएँ। अब तो जिम की नौकरी निश्चित रूप से छूट जाएगी और अब हम क्या करेंगे।' मैंने उसे बताया कि जिम की नौकरी नहीं छूटेगी। उसने पूछा कि मैं इतने यक़ीन के साथ ऐसा कैसे कह सकता हूँ। मैंने बताया कि मैं यक़ीन के साथ ऐसा इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मैं ही मिस्टर डब्ल्यू. हूँ।

         “यह सुनकर वह लगभग बेहोश हो गई। मैंने उसे बताया कि मैं फैक्टरी में जिम की मदद करने की पूरी कोशिश करूँगा और मैंने आशा की कि घर पर वह जिम का ध्यान रखेगी। मैंने उससे यह भी कहा कि अगली सुबह वह जिम को काम पर भेज दे।

         "फिर फैक्टरी लौटकर मैं जिम के डिपार्टमेंट में गया और जिम के सहकर्मियों से बात की। मैंने उनसे कहा, 'आज जो अप्रिय घटना हुई है, उसे आप भूल जाएँ। जिम कल काम पर लौट आएगा। उसके प्रति सहानुभूति रखें। वह काफ़ी लंबे समय से हमारे साथ है और वह अच्छा कर्मचारी है। हमें उसे एक और मौक़ा देना चाहिए।'

         "जिम वापस आया और उसकी शराबखोरी ने फिर कभी कोई समस्या खड़ी नहीं की। मैं इस घटना को जल्दी ही भूल गया। परंतु जिम नहीं भूला। दो साल पहले लोकल यूनियन के मुख्यालय ने कुछ लोगों को यहाँ भेजा ताकि वे लोकल यूनियन के कॉन्ट्रैक्ट पर चर्चा करें। उनकी माँगें बहुत ज़्यादा थीं। जिम - जो बहुत शांत और नम्र था - अचानक एक लीडर बन गया। उसने अप्रत्याशित फुर्ती दिखाई और उसने फैक्टरी के मज़दूरों को याद दिलाया कि मिस्टर डब्ल्यू. ने हमेशा उनके साथ अच्छा बर्ताव किया है, उनके साथ कभी अन्याय नहीं किया और इसलिए हमें अपने आपसी मामले में बाहर वालों को बीच में लाने की कोई ज़रूरत नहीं है।

         “बाहरी लोग चले गए और हमने हमेशा की तरह अपना कॉन्ट्रैक्ट दोस्ताना माहौल में किया, और इसके लिए जिम ज़िम्मेदार था।"

        "मानवीय" शैली से बेहतर लीडर बनने के दो तरीके हैं। पहला, हर बार जब भी आप लोगों से संबंधित किसी मुश्किल मसले का सामना करें, तो खुद से पूछे, “इससे निबटने का मानवीय तरीका क्या है ?"

         जब आपके अधीनस्थों में असहमति हो या जब कोई कर्मचारी समस्या खड़ी कर रहा हो तो इस प्रश्न पर सोचें।

         बॉब के ग़लतियाँ सुधारने के फ़ॉर्मूले को याद रखें। कटुता को टालें। व्यंग्य से परहेज़ करें। लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश न करें। लोगों को उनकी और दूसरों की नज़रों से न गिराएँ।

        खुद से पूछे, “लोगों के साथ निबटने का मानवीय तरीका क्या है ?" इससे हमेशा लाभ होता है - कई बार जल्दी, कई बार देर से - पर लाभ हमेशा होता है।

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CHAPTER 13.2 सोचें तो लीडर की तरह

       एक क्रेडिट एक्जीक्यूटिव ने मुझे बताया कि इस तकनीक से उसे किस तरह फ़ायदा हुआ।

     “जब मैं इस स्टोर में असिस्टेंट क्रेडिट मैनेजर के बतौर आया तो मुझे वसूली का काम सौंपा गया। यह कपड़ों का स्टोर था। यहाँ पर वसूली के लिए जिस तरह के पत्र लिखे जाते थे, उन्हें देखकर मुझे हैरानी और निराशा हुई। इनकी भाषा कठोर, अपमानजनक और धमकाने वाली थी। मैंने उन्हें पढ़ा और सोचा, 'बंधु, अगर कोई मुझे इस तरह की चिट्ठी लिखे, तो मैं तो गुस्से से आग-बबूला हो जाऊँगा। मैं कभी अपना हिसाब साफ़ नहीं करूँगा।' इसलिए मैं काम में जुट गया और मैंने अलग तरह के पत्र लिखना शुरू कर दिया, उस तरह के पत्र जो अगर मुझे लिखे जाएँ, तो मैं अपना हिसाब साफ़ करने के लिए प्रेरित हो सकूँ। इससे बहुत फ़र्क पड़ा। अपने बिल न चुकाने वाले ग्राहक के नज़रिए से देखने से हमारा वसूली अभियान बेहद सफल हुआ और कुछ ही समय में हमने वसूली का कीर्तिमान बना दिया।"

       बहुत से राजनीतिक उम्मीदवार चुनाव हार जाते हैं क्योंकि वे अपने मतदाताओं के नज़रिए से खुद को देखने में असफल होते हैं। राष्ट्रीय पद के लिए एक राजनीतिक उम्मीदवार, जो किसी भी तरह अपने प्रतिद्वंद्वी से दूसरी किसी बात में पीछे नहीं था, केवल एक कारण से बुरी तरह हार गया। उसने ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल किया था, जो उसके थोड़े से मतदाताओं की समझ में ही आ पाई।

       दूसरी ओर, उसके विरोधी ने मतदाताओं की रुचियों का पूरा ध्यान रखा। जब वह किसानों से बात करता था, तो उनकी भाषा बोलता था। जब वह फ़ैक्टरी के मज़दूरों से बात करता था, तो वह उनकी भाषा में बात करता था। और जब टीवी पर बोलने की बारी आई, तो उसने जिस मतदाता को संबोधित करते हुए अपना भाषण दिया, वह आम मतदाता था, न कि किसी कॉलेज का प्रोफ़ेसर।

      खुद से यह पूछे, “अगर मैं सामने वाले की जगह पर होता तो मैं इसके बारे में क्या सोचता?" इस प्रश्न की मदद से आप ज़्यादा सफल नीति बना सकते हैं।

       किसी को प्रभावित करने के लिए उसके नज़रिए से सोचने का विचार हर स्थिति में सफल होता है। कुछ साल पहले, एक छोटेइलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता ने कभी न उड़ने वाला फ़्यूज़ बनाया। उस निर्माता ने इसकी क़ीमत रखी 1.25 डॉलर और इसके बाद उसने एक विज्ञापन एजेंसी से इसका प्रचार करने को कहा।

        विज्ञापन देने वाली एजेंसी का एक्जीक्यूटिव तत्काल बहुत उत्साहित हो गया। उसकी योजना टीवी, रेडियो और अख़बारों में भारी प्रचार करने की थी। “यह शानदार है," उसने कहा। "हम पहले ही साल में एक करोड़ फ़्यूज़ बेच सकते हैं।" उसके सलाहकारों ने उसे सावधान करने की बहुत कोशिश की, उसे समझाया कि फ़्यूज़ लोकप्रिय सामानों की श्रेणी में नहीं आते हैं, उनकी कोई रोमांटिक अपील नहीं होती है, और लोग जब फ्यूज़ ख़रीदते हैं तो सस्ते से सस्ता फ़्यूज़ ख़रीदना चाहते हैं। सलाहकारों ने यह सलाह दी, “क्यों न इसके बजाय कुछ चुनिंदा पत्रिकाओं में विज्ञापन दिया जाए और इस फ़्यूज़ को ऊँची आमदनी वाले लोगों को बेचा जाए?"

       परंतु उसने सलाहकारों की सलाह को अनसुना कर दिया। देश भर में तूफ़ानी प्रचार अभियान चलाया गया और छह हफ़्तों में ही इसे बंद करना पड़ा क्योंकि इसके “निराशाजनक परिणाम" मिले थे।

        समस्या यह थी : विज्ञापन एजेंसी के एक्जीक्यूटिव ने महँगे फ़्यूज़ को अपनी नज़र से देखा, 75,000 डॉलर हर साल कमाने वाले की नज़र से। वह आम आदमी की नज़र से इस फ्यूज़ को नहीं देख पाया, जिसकी वार्षिक आमदनी 9,000 से 15,000 डॉलर होती है। अगर उसने खुद को उनकी जगह पर रखा होता, तो उसने इस सामान को आम जनता के बजाय उच्च आय वर्ग के लोगों में बेचने का लक्ष्य बनाया होता और तूफ़ानी अभियान में इतना पैसा बर्बाद नहीं किया होता।

         जिन लोगों को आप प्रभावित करना चाहते हों, उनके नज़रिए से देखने की कला विकसित करें। नीचे दिए गए अभ्यासों से आपको ऐसा करने में मदद मिलेगी।

दूसरों के नज़रिए से देखने के सिद्धांत को कैसे अमल में लाएँ:

1. सामने वाले की स्थिति का विचार करें। अपने आपको उसकी जगह रखकर देखें। याद रखें, आपकी और उसकी रुचियों, आमदनी, बुद्धि और पृष्ठभूमि में ज़मीन-आसमान का अंतर हो सकता है।

2. अब खुद से पूछे, “अगर मैं उसकी जगह होता, तो मेरी इस पर क्या प्रतिक्रिया होती?" (चाहे आप उससे कुछ भी करवाना चाहते हों।)

3. अगर आप सामने वाले की जगह होते, तो आपसे वह काम किस तरह करवाया जा सकता था। बस, उसी तरीके का इस्तेमाल करें।

        लीडरशिप नियम नंबर 2 : सोचें : इस समस्या से निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है ?

         लीडरशिप का हर एक का तरीक़ा अलग-अलग होता है। एक तरीक़ा तानाशाह बनने का होता है। तानाशाह सारे फैसले खुद करता है, वह किसी दूसरे से सलाह लेना पसंद नहीं करता। वह अपने अधीनस्थों की बात सुनना इसलिए पसंद नहीं करता, क्योंकि शायद उसे यह डर रहता है कि उसका अधीनस्थ सही हो और उसे बेइज़्ज़ती का सामना न करना पड़े।

         तानाशाह लंबे समय तक नहीं रह पाते। कुछ समय तक तो कर्मचारी वफादारी का नाटक करते हैं, परंतु जल्दी ही असंतोष फैलने लगता है। सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी काम छोड़कर दूसरी कंपनियों में चले जाते हैं और जो कर्मचारी बचे रहते हैं वे तानाशाह के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल लेते हैं। परिणाम यह होता है कि कंपनी का काम-काज प्रभावित होता है और इससे कंपनी के मालिकों की नज़र में तानाशाह की इमेज ख़राब होती है।

      लीडरशिप का दूसरा तरीक़ा ठंडा, मशीनी, मैं-तो-नियम-की-पुस्तक के हिसाब-से-चलता-हूँ वाला तरीका है। इस शैली से काम करने वाला व्यक्ति हर काम 'नियम की पुस्तक' के हिसाब से करता है। वह यह नहीं समझ पाता कि हर नियम या नीति या योजना केवल एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जो सामान्य प्रकरणों के लिए बना है। यह भावी लीडर इंसानों के साथ उसी तरह से व्यवहार करता है जैसे वे इंसान नहीं, मशीन हों। और किसी भी व्यक्ति को जो बात सबसे ज़्यादा बुरी लगती है, वह यह कि उसके साथ मशीन की तरह व्यवहार किया जाए। ठंडा, मशीनी विशेषज्ञ आदर्श बॉस नहीं होता। जो “मशीनें" उसके नीचे काम करती हैं, वे अपनी क्षमता का थोड़ा सा उपयोग ही कर पाती हैं।

        जो लोग लीडरशिप की बुलंदियों को छू लेते हैं, वे तीसरी शैली का प्रयोग करते हैं, “मानवीय बनने” की शैली।

        कुछ साल पहले मैं जॉन एस. के साथ काम करता था। जॉन एक बड़े एल्युमीनियम निर्माता के इंजीनियरिंग डेव्लपमेंट विभाग में एक्जीक्यूटिव थे। जॉन “मानवीय बनने की शैली" में निपुण था और उसे इससे लाभ भी हो रहे थे। दर्जनों छोटे-छोटे तरीकों से जॉन यह बात लोगों तक पहुँचाता था, “आप एक इंसान हैं। मैं आपका सम्मान करता हूँ। में आपकी जितनी भी मदद कर सकता हूँ, करूँगा।"

       जब दूसरे शहर का एक व्यक्ति उसके विभाग में आया, तो जॉन ने काफ़ी परेशानी उठाकर उसके लिए अच्छा सा घर खोजा।

      अपनी सेक्रेटरी और दो अन्य महिला कर्मचारियों के माध्यम से काम करते हुए उसने अपने स्टाफ़ के हर सदस्य के लिए ऑफ़िस बर्थडे पार्टीज़ आयोजित करने की परंपरा डाली। इस छोटे से आयोजन में जो आधे घंटे का समय बर्बाद होता था, वह दरअसल बर्बादी नहीं, बल्कि निवेश था। वफ़ादारी, निष्ठा और क्षमता में निवेश।

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Monday, October 14, 2019

CHAPTER 13.1 सोचें तो लीडर की तरह

                 सोचें तो लीडर की तरह

      एक बार फिर खुद को याद दिलाएँ कि जब आप सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं, तो आपके ऊपर वाले आपको नहीं खींचते हैं, बल्कि आपके नीचे वाले आपको उठाते हैं यानी कि वे लोग जो आपके साथी हैं या आपके नीचे काम कर रहे हैं।

        किसी भी बड़ी सफलता को हासिल करने के लिए आपको दूसरों के सहयोग की ज़रूरत होती है। और उस सहयोग को हासिल करने के लिए यह ज़रूरी है कि आपमें लीडर बनने की क्षमता हो। सफलता और लीडर बनने की योग्यता - यानी कि, लोगों से वह काम करवाना जो वे बिना आपकी लीडरशिप के न कर पाएँ - साथ-साथ चलती हैं।

       पहले के अध्यायों में सफलता दिलाने वाले जो सिद्धांत समझाए गए हैं, वे आपकी लीडरशिप क्षमता विकसित करने में बहुमूल्य साबित होंगे। यहाँ पर हम चार ख़ास लीडरशिप सिद्धांतों या नियमों को बताना चाहेंगे जो आपको लीडर बनवा सकते हैं, बिज़नेस में, सामाजिक क्लबों में, घर में, हर जगह।

        यह चार लीडरशिप सिद्धांत या नियम हैं :

     1. जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के नज़रिए से चीज़ों को देखें।

      2. सोचें : इस समस्या से निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है?

     3. प्रगति के बारे में सोचें, प्रगति के बारे में विश्वास करें और प्रगति के लिए कोशिश करें।

       4. अपने आपसे बात करने के लिए समय निकालें।

        अगर आप इन नियमों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से सफल होंगे। रोज़मर्रा के जीवन में इन नियमों का पालन करने से आपको वह रहस्यमयी शक्ति मिल जाती है जिसे लीडरशिप कहा जाता है।

   
          आइए देखते हैं कि ऐसा किस तरह होता है।

         लीडरशिप नियम नंबर 1 : जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के नज़रिए से चीज़ों को देखें।

        जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के दृष्टिकोण या नज़रिए से चीज़ों को देखना वह जादुई तरीक़ा है जिससे आप उनसे अपना मनचाहा काम करवा सकते हैं। अगर आप अपने दोस्तों, सहयोगियों, ग्राहकों, कर्मचारियों के नज़रिए से देख सकें, तो आप उनसे जो चाहें, करवा सकते हैं। यह कैसे होता है, इन दो उदाहरणों में देखें।

        टेड बी. एक बड़ी विज्ञापन एजेंसी में टेलीविज़न कॉपीराइटर और डायरेक्टर था। जब एजेंसी को बच्चों के जूते का विज्ञापन लिखवाना था, तो टेड को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वह जूतों का टीवी विज्ञापन तैयार करे।

         विज्ञापन अभियान के एक महीने बाद यह समझ में आ गया कि विज्ञापन से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ था। जूतों की बिक्री में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हुई थी। ज़ाहिर था कि इसका दोष टीवी विज्ञापनों पर मढ़ा जाता, क्योंकि ज़्यादातर शहरों में सिर्फ टीवी पर ही विज्ञापन दिए गए थे।

          टेलीविज़न दर्शकों के सर्वे से पता चला कि लगभग 4 प्रतिशत दर्शकों की राय में यह बेहतरीन विज्ञापन था। इन 4 प्रतिशत दर्शकों का मानना था कि “यह उनके देखे गए सबसे अच्छे विज्ञापनों में से एक था।"

          बाक़ी 96 प्रतिशत या तो इस विज्ञापन के बारे में उदासीन थे, या फिर उन्हें यह विज्ञापन पसंद नहीं आया था। सैकड़ों बातें कही गईं, “यह भी कोई विज्ञापन है? ऐसा लग रहा था जैसे सुबह के 3 बजे न्यू  ऑर्लियन्स बैंड बज रहा हो।" "मेरे बच्चों को आम तौर पर टीवी के विज्ञापन पसंद आते हैं। परंतु जब यह जूते वाला विज्ञापन आता है तो वे बाथरूम चले जाते हैं या फ्रिज खोल लेते हैं।" "मुझे लगता है यह थोड़ा हाई क्लास विज्ञापन है।" "ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति ज्यादा समझदार बनने की कोशिश कर रहा था।"

        जब इन सभी साक्षात्कारों का विश्लेषण किया गया तो एक दिलचस्प बात पता चली। जिन्हें विज्ञापन बेहद पसंद आया था, वे 4 प्रतिशत लोग आय, शिक्षा, रुचियों और क्षमताओं में टेड जैसे ही थे। बाक़ी 96 प्रतिशत उससे भिन्न “सामाजिक-आर्थिक” वर्ग के थे।

        टेड के विज्ञापन, जिनकी लागत लगभग 20000 डॉलर थी, इसलिए असफल हो गए क्योंकि टेड ने सिर्फ अपनी रुचियों के बारे में सोचा था। उसने उसी तरीके से विज्ञापन तैयार किए, जिस तरीके के विज्ञापन वह खुद देखना चाहता था। उसने उस तरीके के विज्ञापन तैयार नहीं किए, जिस तरीके के विज्ञापन बहसंख्यक जनता देखना चाहती है। उसने ऐसे विज्ञापन तैयार किए जो उसे व्यक्तिगत रूप से अच्छे लगते थे, ऐसे नहीं जो ज़्यादातर लोगों को अच्छे लगते हों।

        अगर टेड ने दूसरों के नज़रिए को समझने की कोशिश की होती, अगर उसने आम जनता की मानसिकता को जानने की कोशिश की होती ता परिणाम कुछ और ही होता। उसे खुद से दो सवाल पूछना चाहिए थे, "अगर मैं किसी बच्चे का पिता होता, तो किस तरह का उच्च-शिक्षित और बुद्धिमान युवता। कर मैं अपने बच्चे के लिए यह जूते खरीदता?" “अगर मैं बच्चा होता, तो किस तरह के विज्ञापन को देखकर में अपन कहता कि मुझे यही जूते चाहिए?"

       जोन रिटेलिंग में असफल क्यों हुई? जोन 24 साल की आकर्षक,उच्च-क्षित और बुद्धिमान युवती है। कॉलेज से निकलते ही जोन ने एक डिपार्टमेंट स्टोर में असिस्टेंट बायर की नौकरी कर ली।रेडीमेट कपड़ों के इस दीपरमेन्ट स्टोर में कम कीमत से लेकर मध्यम क़ीमत का सामान मिलता था। जोन की सिफ़ारिशी चिटिठयों में उसकी बहुत तारीफ़ की गई न म महत्वाकांक्षा है. प्रतिभा है. उत्साह है," एक पत्र में लिखा था। "वह निश्चित रूप से काफ़ी सफल होगी।" 

        परंतु जोन "काफ़ी" सफल नहीं हुई। जोन केवल 8 महीने ही वहाँ काम कर पाई और फिर उसने रिटेलिंग छोड़कर दूसरी नौकरी कर ली।

       मैं उसके बॉस को अच्छी तरह जानता था और मैंने उनसे पूछा कि इसका कारण क्या था।

       "जोन बहुत ही बढ़िया लड़की है और उसमें बहुत से अच्छे गुण हैं," उसने कहा। "परंतु उसमें एक बहुत बड़ी कमी भी है।"

       "वह क्या ?" मैंने पूछा।

        "जोन ऐसा सामान खरीदती थी जो उसे पसंद था, परंतु हमारे ज़्यादातर ग्राहकों को पसंद नहीं था। वह अपने पसंद की स्टाइल, कलर, मटेरियल और कीमत वाला सामान चुनती थी। वह हमारे ग्राहकों के नज़रिए से नहीं सोचती थी। एक बार जब मैंने उससे कहा कि शायद यह सामान हमारे लिए ठीक नहीं होगा, तो वह कहने लगी, “नहीं, जनता को यह बहुत पसंद आएगा। मुझे तो यह बहुत पसंद है। मुझे लगता है कि यह खूब बिकेगा।"

        "जोन एक समृद्ध परिवार में पली-बढ़ी थी। उसे बचपन से क्वालिटी की कद्र करना सिखाया गया था। कीमत का उसके लिए कोई खास महत्व नहीं था। जोन गरीब या मध्यवर्गीय लोगों के हिसाब से नहीं सोच पाती थी, जिनके लिए कपड़े ख़रीदते समय कीमत भी महत्वपूर्ण होती है। इसलिए जो माल जोन ने खरीदा, उसे जनता ने पसंद नहीं किया।

         असली बात यह है : दूसरे लोगों से अपना मनचाहा काम करवाने के लिए आपको उनके नज़रिए से देखना पड़ेगा। जब आप उनके नज़रिए से देखते हैं, तो आप यह समझ जाएँगे कि किस तरह उन्हें प्रभावित किया जा सकता है। मेरे बहुत ही सफल सेल्समैन मित्र ने मुझे बताया कि वह प्रस्तुति देने से पहले काफ़ी समय तक यह सोचता है कि ग्राहक उसकी प्रस्तुति को किस तरह से लेंगे, उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी। अपने श्रोताओं का नज़रिया समझने वाला वक्ता ज़्यादा रोचक, ज़्यादा प्रभावशाली सिद्ध होगा। अपने कर्मचारियों का नज़रिया समझने वाला बॉस अपने सुपरवाइज़रों से ज़्यादा अच्छी तरह काम करवा लेगा।

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Wednesday, October 9, 2019

CHAPTER 12.3 लक्ष्य बनाएँ ,सफल बने

         किसी भी लक्ष्य को हासिल करने में क़दम-दर-कदम चलने के तरीके की ज़रूरत होती है। जूनियर एक्जीक्यूटिव के लिए हर काम चाहे वह कितना भी छोटा नज़र आता हो, आगे बढ़ने का एक मौक़ा देता है। एक समय में एक ग्राहक को सामान बेचकर ही सेल्समैन मैनेजमेंट की ज़िम्मेदारी उठाने क़ाबिल समझा जाता है।

       धर्मोपदेशक के लिए हर प्रवचन, प्रोफेसर के लिए हर लेक्चर, वैज्ञानिक के लिए हर प्रयोग, बिज़नेसमैन के लिए हर मीटिंग महान लक्ष्य की तरफ़ एक कदम आगे बढ़ाने का अवसर है।

       कई बार ऐसा लगता है जैसे कोई अचानक सफल हो गया है। परंतु अगर आप ऐसे लोगों के इतिहास को देखें जो अचानक चोटी पर पहुँचते दिखे हों, तो आप पाएँगे कि उन्होंने पहले काफ़ी ज़मीनी तैयारी की थी। और जो तथाकथित “सफल लोग" अपनी प्रसिद्धि को जल्दी ही गँवा देते हैं वे दरअसल ऐसे नक़ली लोग होते हैं जिनकी नींव कमज़ोर होती है।

         जिस तरह कोई सुंदर इमारत पत्थर के टुकड़ों से बनती है, उसी तरह सफल ज़िंदगी हमारे छोटे-छोटे कामों से ही बनती है।

        यह करें : चाहे आपको अपना अगला काम कितना ही महत्वहीन लगे, परंतु चूंकि यह सही दिशा में एक क़दम है, इसलिए इस काम को पूरा करके अपने अंतिम लक्ष्य की तरफ़ बढ़े चलें। इस प्रश्न को याद कर लें और अपने हर काम के मूल्यांकन में इसकी मदद लें, “क्या यह मुझे वहाँ ले जाएगा जहाँ मैं पहुँचना चाहता हूँ ?" अगर जवाब 'ना' में है, तो पीछे हट जाएँ; अगर जवाब 'हाँ' में है, तो बेधड़क आगे बढ़ जाएँ।

         यह स्पष्ट है। हम सफलता की कोई बड़ी छलाँग नहीं लगाते। हम वहाँ एक समय में एक-एक क़दम बढ़ाकर पहुंचते हैं। सफल उपलब्धि के लिए मासिक कोटा निर्धारित करना एक उत्तम नीति है।

       अपना मूल्यांकन स्वयं करें। यह तय करें कि अपने आपको ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए आपको क्या करना चाहिए। नीचे दिए गए फॉर्म का प्रयोग मार्गदर्शक के रूप में करें। हर महत्वपूर्ण शीर्षक के अंतर्गत वह काम लिख लें जो आप अगले 30 दिनों में करना चाहते हों। फिर जब 30 दिन का समय खत्म हो जाए, तो अपनी प्रगति की जाँच करें और एक नया 30 दिवसीय लक्ष्य बना डालें। हमेशा 'छोटे-छोटे काम करते रहें ताकि आप बड़े काम करने के लिए तैयार रहें।

30 दिवसीय सुधार मार्गदर्शिका

अभी और __ के बीच में यह करूँगा

A. इन आदतों को छोडूंगा : (सुझाव)

     1. काम टालना।

     2. नकारात्मक भाषा।

    
     3. एक दिन में एक घंटे से ज्यादा टीवी देखना।

     4. गपशप।

B. इन आदतों को डालूँगा : (सुझाव)

     1. अपने हुलिए का हर सुबह कड़ा मूल्यांकन करें।

     2. रात को सोते समय अगले दिन की योजना बनाएँ।

     3. हर संभव मौके पर लोगों की तारीफ़ करें।

C. इन तरीकों से अपने बॉस की नज़रों में अपना मूल्य बढ़ाएँ: (सुझाव)

     1. अपने अधीनस्थों को विकसित करने में सहयोग दें।

      2. अपनी कंपनी के बारे में, इसके काम के बारे में और इसके ग्राहकों के बारे में ज़्यादा जानें।

    3. अपनी कंपनी को अधिक प्रभावी बनाने के लिए तीन स्पष्ट सुझाव

D. अपने घर पर में अपना मूल्य इस तरह बढ़ाऊँगा : (सुझाव)

1. अपनी पत्नी के छोटे-छोटे कामों की तारीफ करूँगा, जिन्हें मैं अब तक अनदेखा किया करता था।

      2. सप्ताह में एक बार, अपने पूरे परिवार के लिए कुछ ख़ास करूंगा।

     3. अपने परिवार को हर दिन एक घंटे का अविभाजित समय दूंगा।

E. इन तरीकों से अपने दिमाग को पैना करूँगा : (सुझाव)
  

     1. अपने क्षेत्र की व्यावसायिक पत्रिकाओं को पढ़ने में हर हफ्ते दो घंटे का समय दूंगा।

     2. आत्म-सुधार की एक पुस्तक पढूंगा।

     3. चार नए दोस्त बनाऊँगा।

     4. चुपचाप एकांत में बैठकर 30 मिनट रोज़ चिंतन करूँगा।

       अगली बार जब आप किसी सभ्य व्यक्ति, संस्कारवान व्यक्ति, अच्छे वक्ता, आकर्षक तरीके से तैयार व्यक्ति, प्रभावी व्यक्ति को देखें तो खुद को याद दिलाएँ कि वह इस तरह से पैदा नहीं हुआ था। उसने इस तरह बनने के लिए हर दिन कोशिश की होगी, लगातार कोशिश की होगी। नई अच्छी आदतें डालना और पुरानी बुरी आदतों को छोड़ना हर दिन की इसी कोशिश का हिस्सा है।

       अभी हाल अपनी 30 दिवसीय सुधार मार्गदर्शिका तैयार करें।

       अक्सर, जब मैं लक्ष्य निर्धारित करने की बात करता हूँ तो कोई न कोई इस तरह की बात कहता है, “मैं जानता हूँ कि लक्ष्य की तरफ़ कामक करनामहत्वपूर्ण है, परंतु अक्सर ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिनसे मेरी योजना गड़बड़ा जाती है।”

       यह सच है कि कई बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो आपके लक्ष्य की राह में बाधा खड़ी कर देती हैं। जैसे आपके परिवार में कोई गंभीरबीमा या मृत्यु हो जाए, आप जिस नौकरी की कोशिश कर रहे हों वह पद ही समाप्त हो जाए, या आपके साथ कोई दुर्घटना हो जाए।

       तो हम इस विचार को अपने दिमाग में गहरे बैठा लें : वैकल्पिक रास्ते तैयार रखें। अगर आप किसी सड़क पर जा रहे हों, और आपको बीच में 'रास्ता बंद है' का बोर्ड दिखाई देता है, तो आप वहीं पर डेरा नहीं डाल देते, न ही आप घर वापस लौट जाते हैं। वह रास्ता बंद है, इसका मतलब सिर्फ इतना सा है कि आप उस रास्ते से अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते। आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए किसी दूसरे रास्ते से जाना होगा।

        यह देखें कि सेना के अधिकारी किस तरह योजना बनाते हैं। जब वे अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए मास्टर प्लान बनाते हैं, तो वे वैकल्पिक योजनाएँ भी बनाते हैं। अगर कोई अप्रत्याशित घटना हो जाती है जिससे प्लान ए सफल नहीं हो सकता, तो वे प्लान बी पर काम करने लगते हैं। आप हवाई जहाज़ में तब भी आराम से बैठे रहते हैं जब कि वह हवाई अड्डा पास हो जहाँ आपको उतरना है लेकिन वहाँ हवाई जहाज़ उतारना फ़िलहाल संभव नहीं है। आप घबराते नहीं हैं क्योंकि आप जानते हैं कि हवाई जहाज़ चलाने वाले के पास उतरने की वैकल्पिक जगह है और पर्याप्त रिज़र्व ईंधन है।

       वह व्यक्ति दुर्लभ ही होगा जिसने बहुत बड़ी सफलता पाई हो और अपने जीवन में उसने कभी वैकल्पिक रास्तों का इस्तेमाल न किया हो -ऐ ऐसेबहुत से लोग हैं जिन्होंने वैकल्पिक रास्तों का इस्तेमाल करके सफलता पाई है।

       जब आप वैकल्पिक रास्ते पर चलते हैं, तो आप अपने लक्ष्य नहीं बदलते। आप सिर्फ अपने रास्ते बदलते हैं।

आपने कई लोगों को यह कहते सुना होगा, “काश मैंने वह स्टॉक उस समय ख़रीदा होता। आज मेरे पास ढेर सारा पैसा होता।"

       आम तौर पर, लोग स्टॉक या बॉन्ड या रियल एस्टेट या किसी दूसरे किस्म की जायदाद में निवेश करने के बारे में सोचते हैं। परंतु सबसे बड़ा और सबसे लाभदायक निवेश खुद में निवेश करना होता है, ऐसी चीजें खरीदना जिनसे आपकी मानसिक योग्यता और शक्ति बढे।

       प्रगतिशील कंपनियाँ जानती हैं कि आज से पाँच साल बाद वे कितनी मज़बूत होंगी यह उन आने वाले पाँच सालों में तय नहीं होगा, बल्कि अभी तय होगा और इस बात से तय होगा कि वे इस साल उस।

योजना में कितना निवेश कर रही हैं। लाभ केवल एक ही स्त्रोत से आते हैं : निवेश।

        यह हम सबके लिए एक सबक़ है। लाभ के लिए, आगे आने वाले सालों में “औसत" आमदनी से ज्यादा हासिल करने के लिए हमें खुद में निवेश करना चाहिए। हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निवेश करना चाहिए।

      यहाँ दो दृढ़ आत्म-निवेश तकनीकें दी जा रही हैं जो आपके भविष्य को सुधारने में आपके बहुत काम आएँगी :

      1. शिक्षा में निवेश करें। खुद में निवेश करते समय सच्ची शिक्षा में निवेश करना सबसे अच्छा निवेश होता है। परंतु इससे पहले हम यह सुनिश्चित कर लें कि वास्तव में शिक्षा से हमारा आशय क्या है। कई लोगों की नज़र में शिक्षा का मतलब स्कूल या कॉलेज में बिताए गए साल, हासिल की गई डिग्रियाँ, प्रमाणपत्र या डिप्लोमा होते हैं। परंतु शिक्षा के संबंध में मात्रा या संख्या की इस शैली से ज़रूरी नहीं है कि आप सफल व्यक्ति बन जाएँ। जनरल इलेक्ट्रिक के चेयरमैन रॉल्फ जे. कॉर्डिनर ने शिक्षा के बारे में चोटी के बिज़नेस मैनेजमेंट के दृष्टिकोण को इन शब्दों में व्यक्त किया : “हमारे दो सबसे बेहतरीन प्रेसिडेंट मिस्टर विल्सन और मिस्टर कॉफिन कभी कॉलेज में नहीं पढ़े। हालाँकि हमारे कई वर्तमान अफ़सर पीएच. डी. हैं, परंतु 41 में से 12 के पास कोई कॉलेज डिग्री नहीं है। हम योग्यता में विश्वास करते हैं, डिप्लोमा में नहीं।" डिप्लोमा या डिग्री से आपको नौकरी ढूँढ़ने में मदद तो मिल सकती है परंतु उस नौकरी मेंआपकी प्रगति की कोई गारंटी नहीं मिल सकती। "बिज़नेस में महत्व योग्यता का होता है, डिप्लोमा का नहीं।"

       कई और लोगों के लिए शिक्षा का मतलब ढेर सारी जानकारी होता है जिसे दिमाग में भरा जाता है। परंतु यह तथ्यों को सोखने वाली शिक्षा की शैली आपको वहाँ नहीं ले जाएगी जहाँ आप पहुंचना चाहते हैं। हम गोदाम में भरी जानकारी के लिए पुस्तकों, फ़ाइलों और मशीनों पर निर्भर होते जा रहे हैं। अगर हम उतना ही कर सकते हैं, जितना कि कोई मशीन, तो हमारा अस्तित्व सचमुच ख़तरे में है।

         आपको जिस सच्ची शिक्षा में निवेश करना चाहिए, वह है आपके दिमाग को विकसित करने वाली शिक्षा। कोई व्यक्ति कितना सुशिक्षित है, यह इस बात से पता चलता है कि उसका दिमाग कितनी अच्छी तरह विकसित है- संक्षेप में, वह कितनी अच्छी तरह सोचता है।

          जो भी चीज़ सोचने की योग्यता को सुधारती है, शिक्षा है। और आप कई तरीकों से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। परंतु ज़्यादातर लोगों के लिए शिक्षा के सर्वाधिक प्रभावी स्त्रोत करीबी कॉलेज और यूनिवर्सिटी होते हैं। शिक्षा उनका बिज़नेस है।

        अगर आप काफ़ी समय से कॉलेज में न घुसे हों, तो आपको वहाँ जाने पर हैरानी होगी। आपको यह जानकर खशी होगी कि अब वहाँ बहुत सारे कोर्स मौजूद हैं। आपको यह जानकर भी खशी होगी कि आप नौकरी के बाद भी कॉलेज जा सकते हैं। और वहाँ पर जो विद्यार्थी आते हैं, वे मंदबुद्धि नहीं होते, बल्कि कई तो सचमुच प्रतिभाशाली व्यक्ति होते हैं, जिनमें से कई बहुत ज़िम्मेदारी के पदों पर काम करते हैं। मैंने हाल ही में 25 लोगों की एक ईवनिंग क्लास ली थी, जिसमें एक विद्यार्थी 12 स्टोर्स की रिटेल चेन का मालिक था, नेशनल फूड चेन के दो ख़रीदार थे, चार ग्रेजुएट इंजीनियर थे, एक एयर फ़ोर्स कर्नल था, और कई अच्छे स्टेटस के लोग थे।

        आजकल कई लोग शाम के कॉलेजों में पढ़कर अपनी डिग्रियाँ हासिल करते हैं, परंतु डिग्री, जो आख़िर केवल एक काग़ज़ का टुकड़ा है, उनकी मुख्य प्रेरणा नहीं है। वे कॉलेज इसलिए जाते हैं, ताकि वे अपने दिमाग का विकास कर सकें, क्योंकि उनका भविष्य इसी से सुधरेगा। वही सच्चा निवेश है जो आपके भविष्य को सुधारने में किया जाता है।

       और इस बारे में कोई ग़लतफ़हमी न पालें। शिक्षा एक असली सौदा है। 75 से 150 डॉलर के निवेश से आप एक साल तक हर सप्ताह एक रात कॉलेज जा सकते हैं। अपनी सालाना आमदनी के हिसाब से इसका प्रतिशत निकालें और खुद से पूछे, "क्या मेरा भविष्य इस काबिल भी नहीं है कि मैं इसके लिए यह छोटा सा निवेश कर सकूँ ?"

       क्यों न इस निवेश को करने का फ़ैसला अभी हाल कर लें। कॉलेज में फ़ोन करें : जिंदगी भर हर सप्ताह एक रात। यह आपको प्रगतिशील, युवा, चौकस बनाए रखेगा। यह आपको आपकी रुचियों के क्षेत्रों से जोड़े रखेगा। और यह आपको ऐसे लोगों से भी जोड़े रखेगा जो आप ही की तरह सफलता के रास्ते पर चल रहे हैं।

        2. विचारदाताओं में निवेश करें। शिक्षा आपके मस्तिष्क को ढालने में मदद करती है। नई परिस्थितियों का सामना करने का प्रशिक्षण देती है और समस्याएँ सुलझाने में आपकी मदद करती है। विचारदाता यानी जो विचार देता है, वह भी इससे मिलता-जुलता काम करता है। विचारदाता आपके मस्तिष्क का पोषण करते हैं, आपको सोचने के लिए रचनात्मक सामग्री देते हैं।

       सर्वश्रेष्ठ विचारदाता कौन हैं ? वैसे तो कई हैं, परंतु अच्छी गुणवत्ता की सामग्री की सतत आपूर्ति के लिए आप ऐसा करें : हर महीने एक प्रेरणादायक पुस्तक खरीदने का संकल्प करें और दो विचारप्रधान पत्रिकाओं के ग्राहक बन जाएँ। इस तरह बहुत ही कम पैसे और समय में, आप सर्वश्रेष्ठ चिंतकों और विचारकों के संपर्क में आ जाएँगे।

       एक दिन लंच पर मैंने एक व्यक्ति को यह कहते सुना, “परंतु इसकी कीमत 20 डॉलर प्रति वर्ष है। मैं वॉल स्ट्रीट जरनल पढ़ने की इतनी कीमत नहीं दे सकता।" उसके साथी ने, जो सफलता के लक्ष्य का पीछा कर रहा था, जवाब दिया, “मैंने पाया है कि मैं वॉल स्ट्रीट जरनल न पढ़ने की कीमत नहीं चुका सकता।"

         तो, आप सफल लोगों से सीखें। अपने आपमें निवेश करें।

आइए काम में जुटें

अब एक बार सारांश में यह देखें कि हम इन सफलता के सिद्धांतों को किस तरह काम में ला सकते हैं :

1. पहले इस बात की साफ़ तस्वीर बना लें कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं। आज से दस साल बाद आप कैसे होना चाहेंगे, इस बात की कल्पना कर लें।

2. अपने 10 साल के प्लान को लिख लें। आपका जीवन इतना महत्वपूर्ण है कि इसे किस्मत के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। आप अपने काम-धंधे, अपने घर और अपने सामाजिक खंडों में जो हासिल करना चाहते हों, उसे काग़ज़ पर लिख लें।

3. अपनी इच्छाओं के आगे समर्पण कर दें। ज्यादा ऊर्जा हासिल करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करें। काम करने के लिए लक्ष्य तय करें। लक्ष्य तय करें और जीने का असली आनंद लें।

4. अपने प्रमुख लक्ष्य को ऑटोमेटिक पायलट बनने दें। जब आपका लक्ष्य आप पर हावी हो जाएगा, तो आप पाएँगे कि आप अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए सही फैसले कर रहे हैं।

5. अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए एक बार में एक क़दम बढ़ाएँ। आप जो भी काम करें, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न दिखे, उसे अपने लक्ष्य की तरफ़ एक क़दम मानें।

6. 30 दिनों के लक्ष्य बनाते रहें। दिन-प्रतिदिन के प्रयास का परिणाम अच्छा होता है।

7. वैकल्पिक रास्ते तय करें। वैकल्पिक रास्ते का मतलब सिर्फ दूसरा रास्ता चुनना होता है। इसका यह मतलब नहीं होता कि आपने अपने लक्ष्य को बदला है, आपने तो सिर्फ अपना रास्ता बदला है।

8. अपने आपमें निवेश करें। ऐसी चीजें खरीदें जिनसे आपकी मानसिक योग्यता और शक्ति बढ़े। शिक्षा में निवेश करें। विचारशील सामग्री में निवेश करें।

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CHAPTER 12.2 लक्ष्य बनाएं, सफल बने, इक्छा के सामने समर्पण करने का कोई उम्र नही होती।

और इच्छा के सामने समर्पण करने की कोई उम्र नहीं होती।

     ज़्यादातर सचमुच सफल लोग सप्ताह में 40 घंटे से भी ज्यादा समय तक काम करते हैं। परंतु आपने कभी नहीं सुना होगा कि उन्होंने ज़्यादा काम की शिकायत की हो। सफल लोगों का ध्यान लक्ष्य पर लगा होता है और इसी से उन्हें ऊर्जा मिलती है।

      इससे हमें यह शिक्षा मिलती है : जब आप एक इच्छित लक्ष्य बना लेते हैं और उस लक्ष्य की तरफ़ बढ़ने का संकल्प करते हैं तो आपकी ऊर्जा बढ़कर कई गुना हो जाती है। कई लोग, करोड़ों लोग, अपना लक्ष्य बनाकर और उस लक्ष्य को हासिल करने में जीजान से जुटकर नई ऊर्जा हासिल कर सकते हैं। लक्ष्यों से बोरियत दूर होती है। लक्ष्यों से कई लंबी बीमारियाँ भी दूर हो जाती हैं।

      हम लक्ष्यों की शक्ति में थोड़ा गहराई तक जाएँ। जब आप अपनी इच्छाओं के आगे समर्पण करते हैं, जब आप अपने दिमाग पर लक्ष्य को हावी हो जाने देते हैं, तो आप में शारीरिक शक्ति, ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है जिसके सहारे आप उस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
परंतु आपको कुछ और भी मिलता है जो उतना ही बहुमूल्य है। आपको “स्वचालित या ऑटोमैटिक योजना" मिलती है जो आपको सीधे लक्ष्य तक ले जाती है।

      गहराई से तय किए गए लक्ष्य के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यह आपको अपने तक पहुँचने की राह पर बनाए रखता है। इसमें कोई रहस्य नहीं है। दरअसल होता यह है। जब आप अपने लक्ष्य के आगे समर्पण कर देते हैं, तो लक्ष्य आपके अवचेतन मस्तिष्क में जाकर बैठ जाता है। आपका अवचेतन मस्तिष्क हमेशा संतुलन में रहता है। हो सकता है कि आपका चेतन मस्तिष्क संतुलन में न हो। आपका चेतन
मस्तिष्क तभी संतुलन में रहता है जब यह वही करता है जो आपका अवचेतन मस्तिष्क सोच रहा है। अवचेतन मस्तिष्क के पूरे सहयोग के बिना कोई भी व्यक्ति झिझकेगा, दुविधा में होगा, अनिर्णय की स्थिति में होगा। अब जबकिआपका लक्ष्य आपके अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ गया है तो आप अपने आप सही तरीके से काम करने लगते हैं। चेतन मस्तिष्क अब स्पष्ट, सीधा चिंतन कर सकता है।

      मैं आपको दो काल्पनिक व्यक्तियों का उदाहरण देकर इस बात को समझाना चाहता हूँ। शायद इनमें आपको अपने आस-पास के कई लोगों की झलक दिखाई दे। हम इन्हें टॉम और जैक का नाम देंगे। यह दोनों बाक़ी सभी बातों में लगभग समान हैं, दोनों में एक ही चीज़ का अंतर है। टॉम का एक निश्चित लक्ष्य है। जैक का नहीं है। टॉम जानता है कि वह क्या बनना चाहता है। वह दस साल बाद खुद को कॉरपोरेशन के वाइस प्रेसिडेंट की कुर्सी पर बैठा देख रहा है।

         चूंकि टॉम ने अपने लक्ष्य के आगे समर्पण कर दिया है, इसलिए उसके अवचेतन मस्तिष्क से उसका लक्ष्य उसे संकेत करता है, “यह करो", या “यह मत करो, इससे तुम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाओगे।" लक्ष्य लगातार बोलता रहता है, “मैं ही वह इमेज हूँ जिसे तुम्हें हक़ीक़त बनाना है। तुम्हें मुझे हक़ीक़त बनाने के लिए यह करना चाहिए।"

         टॉम के पास लक्ष्य था, इसलिए वह इधर-उधर की बातों में नहीं उलझा। लक्ष्य ने उसे सारे कामों में सही रास्ता दिखाया। जब टॉम कोर्ड सूट ख़रीदता था, तो उसका लक्ष्य उसे बताता था कि उसे कौन सा सूट चुनना चाहिए। लक्ष्य ही टॉम को बताता था कि उसे अगली नौकरी किस तरह की चुनना चाहिए, बिज़नेस मीटिंग में क्या कहना चाहिए, विवाद की स्थिति में क्या करना चाहिए, क्या पढ़ना चाहिए और किस तरह के सिद्धांतों पर चलना चाहिए। अगर टॉम अपने लक्ष्य से ज़रा सा भी इधर-उधर भटकता था तो उसके अवचेतन मस्तिष्क में फ़िट स्वचालित यंत्र सक्रिय हो जाता था और उसे चेतावनी दे देता था कि वह भटक गया है और उसे बताता था कि सही राह पर आने के लिए उसे क्या कदम उठाने होंगे।

          टॉम के लक्ष्य ने उसे अपनी नौकरी के वातावरण के प्रति बेहद संवेदनशील बना दिया था।

       दूसरी तरफ़, जैक के पास कोई लक्ष्य नहीं था, इसलिए उसके पास मार्गदर्शन देने वाले स्वचालित यंत्र का अभाव था। वह जल्दी ही दुविधा में पड़ जाता था। उसके काम बिना नीतियों के होते थे। वह हिचकता था, कभी इधर कभी उधर जाता था, यह सोचता था कि उसे इस हालत में क्या करना चाहिए। चूंकि उसके पास लक्ष्य को हासिल करने की लगन नहीं थी, इसलिए जैक औसत ज़िंदगी की आसान राह पर लड़खड़ाता हुआ चल रहा था।

         क्या मैं आपसे ऊपर लिखे खंड को दुबारा पढ़ने का आग्रह कर सकता हूँ? ऐसा अभी करें। इस अवधारणा को अपने दिमाग में बैठ जाने दें। बेहद सफल लोगों के जीवन का अध्ययन करें। यह देखें कि उन सभी ने अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण कर दिया था। देखें कि किस तरह किसी बेहद सफल व्यक्ति की ज़िंदगी उसके लक्ष्य के चारों तरफ़ घूमती है।

        लक्ष्य के सामने समर्पण करें। सचमुच समर्पण करें। उसे अपने दिमाग पर हावी हो जाने दें और तब लक्ष्य आपको वह स्वचालित मार्गदर्शन प्रदान करेगा जो आपको लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक होगा। 

       हम लोगों के साथ अक्सर होता है कि किसी शनिवार की सुबह जब हम सोकर उठते हैं तो हमारे पास कोई योजना नहीं होती, हम नहीं जानते कि हमें उस दिन क्या करना है। इस तरह के दिनों में हम लगभग कुछ हासिल नहीं कर पाते। हम दिन को यूँ ही गुज़ार देते हैं, और जब दिन ख़त्म हो जाता है तो खुश होते हैं। परंतु जब हम किसी दिन को योजना के साथ शुरू करते हैं, तो हमारे काम फटाफट हो जाते हैं।

      यह आम अनुभव एक महत्वपूर्ण सबक़ सिखाता है : किसी काम में सफलता हासिल करने के लिए, हमें उस काम की योजना बनाना चाहिए।

       द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले वैज्ञानिकों को परमाणु की प्रबल शक्ति का आभास था। परंतु वे यह नहीं जानते थे कि परमाणु को किस तरह विखंडित किया जाए ताकि इसकी प्रबल शक्ति का विस्फोट हो। जब अमेरिका युद्ध में उतरा, तो भविष्यदर्शी वैज्ञानिकों ने परमाणु बम का
संभावित शक्ति को देखा। तत्काल एक योजना बनी जिसका सिर्फ एक लक्ष्य था: परमाणु बम बनाना। बाक़ी सब इतिहास है। कुछ ही सालों में लगन और मेहनत रंग लाई। परमाणु बम गिराए गए और युद्ध ख़त्म हो गया। परंतु अगर लक्ष्य हासिल करने की योजना नहीं बनी होती तो परमाणु को विखंडित करने की प्रक्रिया शायद इतनी जल्दी नहीं हो पाती। शायद इसमें एक दशक या इससे भी ज़्यादा का विलंब हुआ होता।

       अगर आपको काम करना है, तो उसके लक्ष्य बना लें।

       हमारे उत्पादन का भट्टा ही बैठ जाएगा, अगर हम उत्पादन के टारगेट न बनाएँ। सभी कंपनियों के अफ़सर टारगेट डेट और उत्पादन की संख्या का लक्ष्य बनाते हैं। सेल्समैन तभी ज्यादा सामान बेच पाते हैं जब उन्हें निश्चित संख्या में माल बेचने का लक्ष्य दिया जाता है। प्रोफ़ेसर जानते हैं कि विद्यार्थी तभी अपने टर्म पेपर लिख पाते हैं जब उसके लिए डेडलाइन तय कर दी जाती है।

       तो अगर आप सफलता की तरफ़ आगे बढ़ना चाहते हैं तो लक्ष्य तय करें : डेडलाइन बनाएँ, किस तारीख़ तक आप लक्ष्य हासिल करेंगे यह तय करें। अपने आप यह तय करें कि आप इतने समय में इतना हासिल करेंगे। आप केवल उतना ही हासिल कर सकते हैं, जितना हासिल करने की आपने योजना बनाई है।

        ट्यूलेन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के डॉक्टर जॉर्ज ई. बर्क मानवीय दीर्घजीविता के विशेषज्ञ हैं। उनके अनुसार कई चीज़ों से यह तय होता है कि आप कितने समय तक जिएँगे : वज़न, आनुवंशिकता, खान-पान, मानसिक तनाव, व्यक्तिगत आदतें। परंतु डॉ. बर्क कहते हैं, “जल्दी मरने का सबसे आसान तरीका है रिटायर हो जाना और कुछ न करना। हर इंसान को जिंदा रहने के लिए जीवन में रुचि लेना चाहिए।"

         हममें से हर एक के पास विकल्प है। रिटायरमेंट हमारे लिए शुरुआत भी हो सकता है और अंत भी। “कुछ मत करो, बस खाओ, सोओ और दिन काटो" का रवैया रिटायरमेंट का “खुद को तेज़ी से ज़हर दे दो” वाला रास्ता है। जो लोग रिटायरमेंट को सक्रिय जीवन का अंत मानते हैं, उनमें से ज्यादातर लोगों के जीवन का अंत भी इसके तत्काल बाद हो जाता है। चूँकि अब जीवन का कोई लक्ष्य नहीं बचा है, जीने का कोई कारण नहीं बचा है, इसलिए ज़िंदगी खत्म हो जाती है।

          दूसरी तरफ़ रिटायर होने काबुद्धिमत्तापूर्ण रवैया है, "मैं अब नए सिरे से शुरुआत करूँगा।" मेरे बहुत अच्छे दोस्त ल्यू गॉर्डन ने रिटायर होने के इसी तरीके को चुना। ल्यू कुछ साल पहले अटलांटा के सबसे बड़े बैंक के वाइस प्रेसिडेंट के रूप में रिटायर हुए थे। परंतु उन्होंने अपने रिटायरमेंट के दिन को अपनी नई जिंदगी की शुरुआत माना था। उन्होंने खुद को बिज़नेस सलाहकार के रूप में स्थापित किया। और उनकी प्रगति आश्चर्यजनक है।

         अब वे साठ से सत्तर के बीच हैं, वे ढेर सारे ग्राहकों को सेवाएँ देते हैं और वक्ता के रूप में उनकी देश भर में माँग है। उनकी एक योजना ‘पी सिग्मा एप्सीलॉन' नामक संस्था बनाने की थी जो प्रोफेशनल सेल्समैन और सेल्स एक्जीक्यूटिब्ज़ की संस्था हो। हर बार जब मैं देखता हूँ ल्यू की उम्र मुझे पहले से कम दिखती है। अभी भी अपनी आत्मा में वे 30 साल के जवान हैं। मैं ऐसे बहुत कम लोगों को जानता हूँ जो इतनी उम्र में जीवन से सुख की इतनी फ़सल काट रहे हैं जितना कि यह वरिष्ठ नागरिक, जिसने रिटायरमेंट को जीवन का अंत नहीं माना।

         और ल्यू गॉर्डन की तरह के लोग बोरिंग बुड्ढे नहीं होते हैं, जो सिर्फ अपने दुःखों की दास्तान ही सुनाते रहें।

        लक्ष्य, प्रबल लक्ष्य, किसी व्यक्ति को जिंदा रख सकते हैं, चाहे उसकी शारीरिक स्थिति कैसी भी हो। मिसेज़ डी. मेरे कॉलेज के एक मित्र की माँ थीं। उन्हें तभी कैंसर हो गया था जब उनका पुत्र केवल दो साल का था। इतना ही नहीं, बीमारी का पता चलने से तीन महीने पहले ही उनके पति की मृत्यु हो गई थी। उनके डॉक्टरों ने उन्हें कोई दिलासा नहीं दिया। परंतु मिसेज़ डी. ने हार नहीं मानी। उनका संकल्प था कि वे अपने दो साल के बच्चे को सफलतापूर्वक कॉलेज की पढ़ाई पूरी करवाएँगी। अपने पति द्वारा छोड़ी गई छोटी सी किराने की दुकान चलाकर उन्होंने पढाई के लिए। पैसे जुटाना शुरू किए। उनके बहुत से ऑपरेशन हुए। हर बार डॉक्टर यहा कहते थे, “बस कुछ महीने और।"

        कैंसर तो कभी खत्म नहीं हुआ। परंत "कुछ महीने" खिंचते चले गए। और 20 साल बन गए। उन्होंने अपने बच्चे को सफलतापूर्वक कॉलेज की पढ़ाई खत्म करते और डिग्री लेते देखा। इसके छह हफ्ते बाद वे चल बसीं।

        लक्ष्य, प्रबल लालसा, में इतनी शक्ति थी कि वे मौत से दो दशक तक लड़ती रहीं।

        लंबे जीवन के लिए लक्ष्यों का प्रयोग करें। दुनिया की कोई भी दवा - और आपका डॉक्टर भी यह मानेगा - जीवन को बढ़ाने में इतनी सक्षम नहीं होती, जितनी कि कुछ करने की इच्छा होती है।

वह व्यक्ति जो अधिकतम सफलता हासिल करने के लिए कृतसंकल्प है, यह सिद्धांत सीख जाता है कि प्रगति एक समय में एक क़दम चलने का नाम है। एक-एक ईंट लगाकर ही घर बनता है। फुटबॉल के खेल में भी एक-एक मैच करके ही विश्वकप जीता जाता है। कोई डिपार्टमेंट स्टोर एक-एक नए ग्राहक से ही बढ़ता है। हर महान सफलता छोटी-छोटी सफलताओं की श्रृंखला होती है।

        एरिक सेवारीड जाने-माने लेखक हैं। उन्होंने रीडर्स डाइजेस्ट (अप्रैल 1957) में लिखा है कि उन्होंने जो सबसे बढ़िया सलाह सीखी है, वह है “अगले मील" का सिद्धांत। यहाँ पर उनके लेख का कुछ हिस्सा दिया जा "द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, मुझे और कई दूसरे लोगों को क्षतिग्रस्त हवाई जहाज़ से पैराशूट से छलाँग लगाकर बर्मा-भारत की सीमा के पहाड़ी जंगलों में कूदना पड़ा। इस बात की कोई उम्मीद नहीं थी कि अगले कुछ सप्ताहों तक हमारे बचाव के लिए कोई टीम वहाँ पहुँचती। और तब हमने भारत की तरफ़ एक दर्दनाक, लंबी यात्रा शुरू की। हमें 140 मील का फ़ासला तय करना था। बीच में पहाड़ थे, अगस्त की गर्मी थी और मानसून की बारिश थी।

       "सफर के पहले ही घंटे में मेरे जूते में एक कील एक फुट गहरी धंस गई। शाम तक मेरे दोनों पैरों में सिक्कों के आकार के छाले हो गए। क्या मैं 140 मील तक लड़खड़ाते हुए चल सकता था? क्या दूसरे लोग इतनी दूर चल पाएँगे, जबकि उनमें से कई की हालत तो मुझसे भी बदतर थी? हम लोगों को यह विश्वास था कि हम ऐसा नहीं कर सकते। परंतु हम अगली चोटी तक तो पहँच ही सकते थे, हम रात गुज़ारने के लिए अगले गाँव तक तो पहुँच ही सकते थे। और हमारा लक्ष्य एक दिन में बस इतना ही करना तो था...।

      “जब मैंने नौकरी छोडी और ढाई लाख शब्दों की एक पुस्तक लिखने का फैसला किया तो मैंने पूरी योजना के बारे में एक साथ नहीं सोचा। अगर मैंने ऐसा किया होता तो मैं वह महत्वाकांक्षी पुस्तक कभी पूरी नहीं कर पाया होता। मैंने केवल अगले पैरेग्राफ़ के बारे में विचार किया, अगले पेज के बारे में नहीं, और अगले अध्याय के बारे में तो बिलकुल भी नहीं। इस तरह, पिछले छह महीनों से मैंने कुछ नहीं किया, केवल एक पैरेग्राफ़ के बाद दूसरा पैरेग्राफ़ लिखता रहा और पुस्तक 'अपने आप तैयार' हो गई।

       “वर्षों पहले. मैंने हर रोज़ लिखने और ब्रॉडकास्टिंग का काम अपने हाथ में लिया जो आज 2000 पांडुलिपियों से ज़्यादा हो चुका है। अगर तब किसी ने मुझसे एक साथ '2000 पांडुलिपियों को लिखने' का कॉन्ट्रैक्ट साइन कराया होता, तो मैं इतने बड़े काम को करने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर देता। परंतु मुझे सिर्फ एक पांडुलिपि लिखने के लिए कहा गया, इसके बाद फिर एक, और मैंने हमेशा यही किया है।"

        “अगले मील" का सिद्धांत एरिक सेवारीड के लिए काम कर गया और यह आपके लिए भी काम करेगा।

       क़दम-दर-क़दम का तरीक़ा किसी भी लक्ष्य को हासिल करने का इकलौता बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़ा है। धूम्रपान छोड़ने का सर्वश्रेष्ठ फ़ॉर्मूला जिसने मेरे कई दोस्तों की सिगरेट छुड़वा दी है, वह अगले घंटे का फ़ॉर्मूला है। अंतिम लक्ष्य तक पहली ही बार में पहुंचने के बजाय यानी कभी धूम्रपान न करने का संकल्प ले लेना उतना कारगर नहीं होता, जितना कि अगले घंटे सिगरेट न पीने का संकल्प। जब घंटा ख़त्म होता है, तो धूम्रपान करने वाला अपने संकल्प को एक और घंटे के लिए बढ़ा देता है। फिर, जब इच्छा कम होती जाती है, तो इस समय को दो घंटे रखा जा सकता है, और इसके बाद एक दिन। अंततः लक्ष्य हासिल हो जाता है। वह व्यक्ति जो एकदम इस आदत को छोड़ना चाहता है वह इसलिए असफल होता है। क्योंकि इसमें असहनीय मनोवैज्ञानिक वेदना होती है। सिगरेट के बिना एक  घंटे रहना आसान है। सिगरेट के बिना जिंदगी भर रहना कठिन है।

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Tuesday, October 8, 2019

CHAPTER 12.1 लक्ष्य बनाएँ, सफल बनें,

                 लक्ष्य बनाएँ, सफल बनें

इंसान ने जितनी भी तरक़्क़ी की है, लक्ष्य बनाकर की है। हमारे जितने भी आविष्कार हुए हैं, चाहे वे चिकित्सा के क्षेत्र में हों, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हों, या किसी और क्षेत्र में हों, वे सभी इसी कारण संभव हुए हैं क्योंकि उन्हें हासिल करने का लक्ष्य बनाया गया था। बिज़नेस में सफलता भी अक्सर इसीलिए मिलती है क्योंकि उसे हासिल करने का टारगेट बनाया गया था। उपग्रह धरती के चारों तरफ़ अपने आप चक्कर नहीं लगा रहे हैं, बल्कि इसलिए चक्कर लगा रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिकों ने
"अंतरिक्ष को जीतने" का लक्ष्य बनाया था।

        लक्ष्य का मतलब है उद्देश्य। लक्ष्य सपने से ज्यादा होता है, क्योंकि लक्ष्य का मतलब है सपने पर काम करना। लक्ष्य इससे ज़्यादा स्पष्ट होता है, “काश! मैं यह कर सकता!” लक्ष्य बहुत ही स्पष्ट होता है, “मैं इसकी तरफ़ बढ़ रहा हूँ।"

         जब तक लक्ष्य नहीं बनाया जाता, तब तक कुछ भी हासिल नहीं होता, तब तक उसकी तरफ़ क़दम नहीं बढ़ाए जा सकते। लक्ष्यों के बिना व्यक्ति जीवन में इधर-उधर भटकता रहता है। वह लड़खड़ाता रहता है और कभी यह नहीं जान पाता कि वह कहाँ जा रहा है, इसलिए वह कहीं भी नहीं पहुंच पाता।

         लक्ष्य सफलता के लिए उसी तरह ज़रूरी है, जिस तरह जीवन के लिए हवा ज़रूरी है। कोई भी बिना लक्ष्य के सफल नहीं हुआ। कोई भी बिना हवा के जीवित नहीं रहा। इसलिए आप अच्छी तरह अपने लक्ष्य को तय कर लें कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं।

        डेव मॅहोने कभी एडवर्टाइजिंग एजेंसी में 25 डॉलर प्रति सप्ताह की नौकरी किया करते थे, 27 वर्ष की उम्र में वे एजेंसी के वाइस प्रेसिडेंट बन गए और 33 वर्ष की उम्र में वे गुड हयूमर कंपनी के प्रेसिडेंट बन गए। लक्ष्यों के बारे में उनका कहना था, “महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आप कल क्या थे, या आप आज क्या हैं, बल्कि महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आप कल कहाँ पहुँचना चाहते हैं।"

        महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आप कल क्या थे, या आप आज क्या हैं, बल्कि महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आप कल कहाँ पहुँचना चाहते हैं।

         अच्छी कंपनियां अगले 10 से 15 साल के लक्ष्य बनाकर चलती हैं। सफल बिज़नेसमैन को खद से यह सवाल पछना ही पड़ता है. “आज से दस साल बाद हम अपनी कंपनी को कहाँ देखना चाहते हैं ?" फिर वे उसके हिसाब से अपनी योजना बनाते हैं। नई मशीनें लगाई जाती हैं ताकि उत्पादन की क्षमता बढ़ सके, आज की ज़रूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि आज से 5 या 10 साल बाद की ज़रूरत के हिसाब से। ऐसे उत्पादों को विकसित करने के लिए शोध किया जाता है जो दस साल से पहले बाज़ार में नहीं उतर पाएँगे।

         आधुनिक कंपनियाँ भविष्य को क़िस्मत के भरोसे नहीं छोड़तीं। क्या आपको ऐसा करना चाहिए?

         हममें से हर व्यक्ति सफल कंपनियों से यह महत्वपूर्ण सबक़ सीख सकता है। हमें कम से कम 10 साल बाद तक की योजना बना लेनी चाहिए। आप दस साल बाद अपनी जो इमेज बनाना चाहते हैं, आपको सबसे पहले तो अभी वह इमेज सोच लेनी चाहिए। यह एक बेहद महत्वपूर्ण विचार है। कोई कंपनी जो अच्छी तरह भविष्य की योजना नहीं बनाती, वह यूँ ही चलती रहेगी (यह बीच में दीवालिया भी हो सकती है)। इसी तरह जो व्यक्ति लंबे लक्ष्य तय नहीं कर पाता, वह भी ज़िंदगी की भूलभुलैया में यूँ ही भटकता रहेगा। बिना लक्ष्यों के हमारा विकास नहीं होता।

       मैं आपको एक उदाहरण बताना चाहता हूँ कि लंबी दूरी के लक्ष्य से सफलता किस तरह मिलती है। अभी पिछले हफ्ते एक युवक (मैं उसे एफ़. बी. कहना चाहूँगा) अपने करियर की समस्या लेकर मेरे पास आया। एफ़. बी. सभ्य और समझदार दिख रहा था। वह कुँवारा था और उसने चार साल पहले ही अपना कॉलेज पूरा किया था।

          हमने उसके काम-काज, शिक्षा, उसकी योग्यताओं और उसकी सामान्य पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा की। फिर मैंने उससे कहा, "आप मुझसे नौकरी बदलने के बारे में सलाह लेने आए हैं। आप किस तरह की नौकरी चाहते हैं ?"

          उसने कहा, “यही तो मैं आपसे पूछने आया हूँ। मुझे नहीं पता कि मैं क्या करना चाहता हूँ।"

         उसकी समस्या बहुत ही आम समस्या है। परंतु मैंने महसूस किया कि इस व्यक्ति की मदद करने का यह तरीक़ा नहीं है कि मैं इसे कई संभावित नियोक्ताओं से मिलवा दूं। करियर चुनने में गलती करके उससे सीखना कोई अच्छा तरीक़ा नहीं है। चूंकि करियर की संभावनाएँ दर्जनों होती हैं, इसलिए सही नौकरी मिलने के अवसर भी दर्जनों में से एक होते हैं। मैं जानता था कि मुझे एफ़. बी. को यह एहसास कराना होगा कि किसी जगह अपना करियर बनाने से पहले उसे पहले यह जानना पड़ेगा कि उसकी मनचाही जगह कौन सी है।

       इसलिए मैंने कहा, “अब आप एक अलग नज़रिए से अपने करियर प्लान को देखें। क्या आप मुझे बताएँगे कि आज से दस साल बाद आप अपनी कैसी इमेज देखना चाहते हैं?"

       एफ़. बी. ने काफ़ी सोच-विचारकर कहा, “मैं समझता हूँ कि मैं वही चाहता हूँ जो हर व्यक्ति चाहता है : एक अच्छी सी नौकरी जिसमें अच्छी तनख्वाह मिलती हो और एक अच्छा सा घर। सच कहूँ, तो मैंने इसके बारे में ज़्यादा नहीं सोचा।"

        मैंने उसे आश्वस्त किया कि यह बिलकुल स्वाभाविक है। फिर मैंने उसे बताया कि करियर चुनने की उसकी शैली वैसी ही थी जैसे हम किसी एयरलाइन टिकट काउंटर पर जाएँ और कहें, “मुझे एक टिकट दे दीजिए।" टिकट बेचने वाले आपकी कोई मदद नहीं कर सकते जब तक कि आप उन्हें यह न बताएँ कि आप कहाँ जाना चाहते हैं। इसलिए मैंने कहा, “और मैं तब तक नौकरी ढूँढ़ने में आपकी मदद नहीं कर सकता जब तक कि आप मुझे यह न बता दें कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं। आप और सिर्फ आप ही मुझे यह बता सकते हैं कि आपका लक्ष्य क्या है।"

        इससे एफ़. बी. सोचने पर मजबूर हो गया। अगले दो हफ्तों तक हमने अलग-अलग नौकरियों के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करने के बजाय लक्ष्य निर्धारित करने के बारे में विचार किया। एफ़. बी. ने करियर प्लानिंग का सबसे महत्वपूर्ण सबक सीख लिया : शुरू करने से पहले जान लें, आप कहाँ जाना चाहते हैं।

         सफल कंपनियों की तरह, आगे की योजना बनाएँ। एक तरह से आप भी किसी कंपनी की तरह हैं। आपकी योग्यताएँ, आपकी प्रतिभा, आपकी दक्षताएँ आपके “उत्पाद" हैं। आप अपने उत्पादों को विकसित करना चाहते हैं, ताकि आपको उनकी अधिकतम क़ीमत मिल सके। भविष्य की योजना बनाने से ऐसा करना संभव है।

       यहाँ दो क़दम सुझाए जा रहे हैं जो आपकी मदद करेंगे :

       पहले तो अपने भविष्य को तीन खंडों में बाँट दें : काम-धंधा, घर, और समाज। अपने जीवन को खंडों में बाँट देने से आप दुविधा में नहीं पड़ेंगे, आप आंतरिक संघर्ष की समस्या से बच सकेंगे और आप अपने भविष्य की पूरी तस्वीर देख सकेंगे।

       दूसरी बात, अपने आपसे इन सवालों के स्पष्ट, सुनिश्चित जवाब पूछे। मैं अपने जीवन में क्या हासिल करना चाहता हूँ? मैं क्या बनना चाहता हूँ? और किस चीज़ से मुझे संतुष्टि मिलेगी?

     मदद के लिए नीचे दी हुई प्लानिंग गाइड का प्रयोग करें।

आज से 10 साल बाद की मेरी इमेज : 10 साल की प्लानिंग गाइड

A. काम-धंधे का खंड : आज से 10 साल बाद :

     1. मैं कितनी आमदनी हासिल करना चाहता हूँ?

      2. मैं अपने पास कितनी ज़िम्मेदारी चाहता हूँ?

      3. मैं कितनी सत्ता, कितना अधिकार चाहता हूँ?

      4. अपने काम-धंधे से मैं कितनी प्रतिष्ठा चाहता हूँ?

B. घर का खंड : आज से 10 साल बाद :

      1. मैं अपने परिवार को किस तरह का जीवनस्तर देना चाहता हूँ ?

      2. मैं किस तरह के घर में रहना चाहता हूँ ?

      3. मैं किस तरह से छुट्टियाँ बिताना चाहता हूँ?

      4. अपने बच्चों के शुरुआती वयस्क सालों में मैं उनकी कितनी आर्थिक मदद करना चाहता हूँ?

C. सामाजिक खंड : आज से 10 साल बाद :

     1. मेरे पास किस तरह के दोस्त होने चाहिए?

      2. मैं किन सामाजिक समूहों से जुड़ना चाहता हूँ ?

      3. मैं किन संस्थाओं का लीडर बनना चाहता हूँ?

      4. मैं किन सामाजिक समस्याओं को दूर करने की पहल करना चाहता हूँ?

          कुछ साल पहले मेरे पुत्र ने जोर देकर कहा कि मैं उसके साथ मिलकर उसके कुत्ते के पिल्ले के लिए एक डॉगहाउस बनवाऊँ। मेरा पुत्र पीनट नाम के इस पिल्ले से बहुत प्रेम करता था और उसे इस पर नाज़ था। पुत्र का उत्साह देखकर मैं उसके लगातार आग्रह को ठुकरा नहीं
पाया। और इस तरह हम दोनों पीनट का घर बनाने में जुट गए। कारपेन्टरी की हम दोनों की समझ कुल मिलाकर ज़ीरो थी और जो घर बना, वह इस बात का सबूत था।

          कुछ समय बाद मेरा एक अच्छा दोस्त आया और हमारे उस डॉगहाउस को देखने के बाद उसने पूछा, “तुम लोगों ने पेड़ पर यह क्या लटका रखा है? कहीं, यह डॉगहाउस तो नहीं है?" मैंने हाँ में जवाब दिया। फिर उसने हमारी कुछ ग़लतियों की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित किया और अपनी पूरी बात को सारांश में इस तरह कहा, “तुम लोगों ने कोई योजना नहीं बनाई। आजकल कोई बिना ब्लूप्रिंट के डॉगहाउस नहीं बनाता।"

        और कृपया, जब भी आप अपने भविष्य की कल्पना करें, तो बड़ी कल्पना करने से न घबराएँ। आजकल लोगों को उनके सपनों के आकार के हिसाब से तौला जाता है। कोई भी व्यक्ति जितना हासिल करना चाहता है, उससे ज़्यादा हासिल नहीं कर पाता। इसलिए हमेशा अपने भविष्य के सपनों को बड़ा रखें।

        नीचे एक व्यक्ति के जीवन की योजना शब्दशः बताई गई है। इसे पढ़ें। किस तरह उसने अपने भावी "घर" का लक्ष्य बनाया है, यह देखें। जब उसने यह लिखा होगा, तब निश्चित रूप से वह अपने भविष्य के घर को देख रहा होगा।

        “मेरे घर का लक्ष्य गाँव में होगा। घर ‘सदर्न मैनॅर' स्टाइल का होगा, दोमंज़िला, सफ़ेद कॉलम इत्यादि। चारों तरफ़ फ्रेंसिंग होगी और शायद वहाँ पर फ़िशपॉन्ड भी होगा क्योंकि मेरी पत्नी और मुझे मछली पकड़ने का शौक़ है। हम अपने डॉबरमॅन के लिए जो घर बनाएँगे, वह घर के पिछवाड़े बनाएँगे। मैं हमेशा से चाहता हूँ कि मेरे घर में एक लंबा-सा ड्राइववे हो जिसके दोनों तरफ़ पेड़ लगे हों।

         “परंतु मैं जानता हूँ कि मकान और घर में अंतर होता है। ज़रूरी नहीं है कि हर मकान घर भी हो। मैं अपने मकान को घर बनाने की पूरी कोशिश करूँगा, यह ध्यान रखूगा कि यह खाने और सोने की जगह से ज़्यादा कुछ बने। हम अपनी योजना बनाते समय ईश्वर को भी नहीं भूले हैं। हम चर्च की गतिविधियों में एक निश्चित राशि दान में देंगे।

          “आज से दस साल बाद मैं अपने परिवार को दुनिया की सैर पर ले जाना चाहूँगा। इसके पहले कि हमारा परिवार शादी-ब्याह के कारण तितर-बितर हो जाए, मैं ऐसा करना चाहता हूँ। अगर हमारे पास एक साथ पूरी दुनिया की सैर पर जाने का समय नहीं होगा तो हम इसे चार-पाँच अलग-अलग छुट्टियों में बाँट लेंगे और हर साल दुनिया के एक हिस्से की यात्रा करेंगे। स्वाभाविक रूप से मेरे “घर के खंड" की ये सारी योजनाएँ इस बात पर निर्भर करती हैं कि मेरे “काम-धंधे के खंड"। में मझे कैसी सफलता मिलती है, इसलिए अगर मैं यह सब हासिल करना चाहता हूँ तो मुझे सफल होना ही पड़ेगा।"

       यह योजना पाँच साल पहले लिखी गई थी। तब उस व्यक्ति के पास दो छोटे स्टोर्स थे। आज वह पाँच स्टोर्स का मालिक है। और उसने देहात में 17 एकड़ ज़मीन भी ख़रीद ली है, जहाँ वह अपना घर बनाने जा रहा है। वह अपने लक्ष्य की तरफ़ लगातार बढ़ रहा है।

       आपके जीवन के तीनों खंड आपस में जुड़े हुए हैं। हर एक की सफलता किसी न किसी हद तक दूसरे पर निर्भर करती है। परंतु जो खंड बाक़ी सभी खंडों पर सबसे ज़्यादा प्रभाव डालता है, वह है आपका काम-धंधे वाला खंड। हज़ारों साल पहले जिस गुफामानव का घरेलू जीवन सबसे सुखद होता था और जिसे सर्वाधिक सामाजिक सम्मान मिलता था, वह शिकारी के रूप में सबसे सफल हुआ करता था। सामान्य तौर पर, यही बात आज भी सही है। हम अपने परिवारों को जो जीवनस्तर देते हैं और हमें जो सामाजिक सम्मान मिलता है वह काफ़ी हद तक काम-धंधे के खंड में हमारी सफलता के कारण मिलता है।

           कुछ समय पहले 'मैकिन्सी फ़ाउंडेशन फ़ॉर मैनेजमेंट रिसर्च' ने व्यापक सर्वेक्षण करवाया, ताकि यह जाना जा सके कि एक्जीक्यूटिव बनने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी गुण कौन सा है। बिज़नेस, सरकार, विज्ञान और धर्म के लीडर्स से सवाल पूछे गए। हर बार, अलग-अलग तरीकों से इन शोधकर्ताओं को एक ही जवाब मिला : एक्जीक्यूटिव की सबसे महत्वपूर्ण योग्यता उसकी आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा होती है।

        जॉन वानामेकर की सलाह याद रखें, “कोई व्यक्ति जब तक अपने काम में अपने आपको झोंक नहीं देता, तब तक वह महान काम नहीं कर पाता।"

         अगर इसका सही दोहन किया जाए, तो प्रबल इच्छा में अनंत शक्ति है। इच्छा का अनुसरण करने की असफलता, वह न करना जो आप करना चाहते हैं, औसत दर्जे की ज़िंदगी या असफलता का रास्ता है।

       मुझे एक कॉलेज के अख़बार के बेहद प्रतिभाशाली युवा लेखक के साथ हुई चर्चा याद आती है। इस युवक में प्रतिभा थी। अगर किसी व्यक्ति में पत्रकारिता के करियर में सफल होने का माद्दा था, तो वह यही व्यक्ति था। उसके ग्रैजुएशन के कुछ समय पहले मैंने उससे पूछा, “डैन, तम अब क्या करोगे, पत्रकारिता के करियर में जाओगे?" डैन ने मेरी तरफ देखा और कहा, “अरे, नहीं। मुझे लिखना और रिपोर्टिंग करना बहुत पसंद है और मुझे कॉलेज के अख़बार में काम करने में बहुत मज़ा भी आता है। परंतु पत्रकारों की कमाई थोड़ी सी होती है और मैं भूखे नहीं मरना चाहता।"

        इसके बाद मैं पाँच साल तक डैन से नहीं मिला। फिर एक शाम को वह मुझे न्यू ऑर्लियन्स में मिला। डैन किसी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में असिस्टेंट पर्सनेल डायरेक्टर के रूप में काम कर रहा था। और उसने मझे जल्दी ही बता दिया कि वह अपने काम से संतुष्ट नहीं है, “मेरी तनख्वाह तो अच्छी है। मेरी कंपनी भी अच्छी है और जहाँ तक जॉब सिक्युरिटी का सवाल है वह मेरे पास है। परंतु इस काम में मेरा दिल नहीं लगता। अब मैं सोचता हूँ कि काश कॉलेज के बाद मैंने किसी प्रकाशक के यहाँ या किसी अख़बार में काम किया होता।"

         डैन के रवैए से बोरियत और अरुचि साफ़ झलक रही थी। वह हर चीज़ में बुराई देख रहा था। जब तक वह अपनी नौकरी छोड़कर पत्रकारिता में नहीं जाएगा, उसे उसकी मनचाही सफलता हासिल नहीं हो पाएगी। सफलता में पूरे मन से प्रयास की ज़रूरत होती है और आप किसी काम में पूरा मन तभी लगा सकते हैं जब आप उसे पसंद करते हों।

    
          अगर डैन ने अपना मनपसंद काम किया होता, तो वह आज अख़बार की दुनिया में काफ़ी ऊपर होता। और लंबे समय में उसे आज से ज़्यादा पैसा और मानसिक संतोष मिल रहा होता।

अपने नापसंदगी के काम को छोड़कर अपना मनपसंद काम करना वैसा ही है जैसे 10 साल पुरानी कार में 500 हॉर्सपॉवर की मोटर लगा दी जाए।

         हम सभी में इच्छाएँ होती हैं। हम सभी सपने देखते हैं कि हम सचमुच क्या करना चाहते हैं। परंतु हममें से बहुत कम लोग ही वास्तव में अपनी इच्छाओं का कहना मानते हैं। इसके बजाय, हम अपनी इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। सफलता की हत्या करने के लिए हम पाँच तरह के हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। इन हथियारों को नष्ट कर दें, क्योंकि ये हथियार खतरनाक हैं।

       1. खुद को नाक़ाबिल समझना। आपने दर्जनों लोगों को यह कहते सुना होगा, “मैं डॉक्टर (या एक्जीक्यूटिव या कमर्शियल आर्टिस्ट या बिज़नेसमैन) बनना चाहता हूँ, परंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता।” “मुझमें इतनी प्रतिभा नहीं है।” “अगर मैंने कोशिश की तो मैं सफल नहीं हो
पाऊँगा।" "मेरे पास शिक्षा और/या अनुभव की कमी है।” कई युवक-युवतियाँ अयोग्यता की छुरी से अपनी इच्छा को मार डालते हैं।

       2. सुरक्षा की बीमारी। जो लोग कहते हैं, “मैं जहाँ हूँ वहीं सुरक्षित हूँ", वे अपने सपनों की हत्या करने में सुरक्षा के हथियार का इस्तेमाल करते हैं।

      3. प्रतियोगिता। “इस क्षेत्र में पहले से ही बहुत सारे लोग हैं," “यहाँ तो लोग एक के ऊपर एक खड़े हुए हैं," जैसे विचार भी इच्छा को तत्काल मार डालते हैं।

      4. माता-पिता के आदेश। मैंने सैकड़ों बच्चों को अपना करियर चुनते समय यह कहते सुना है, “मेरा मन तो दूसरा करियर चुनने का था, परंतु मेरे माता-पिता ने मुझसे यह करियर चुनने के लिए कहा, इसलिए मैंने इसे ही चुन लिया।" ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को जान-बूझकर यह आदेश नहीं देते कि उन्हें क्या करना चाहिए। हर बुद्धिमान माता-पिता अपने बच्चों को ज़िंदगी में सफल देखना चाहते हैं। अगर बच्चा शांति से यह समझाए कि वह दूसरा करियर क्यों चुनना चाहता है, तो माता-पिता उसकी बात सुनेंगे और कोई तनाव पैदा नहीं होगा। क्योंकि बच्चे के करियर के बारे में माता-पिता और बच्चे दोनों का लक्ष्य एक ही है: सफलता।

         5. पारिवारिक ज़िम्मेदारी। “अगर मैंने पाँच साल पहले नौकरी बदली होती, तो अच्छा रहता परंतु अब मेरे पास परिवार है और इसलिए मैं अब कुछ नहीं कर सकता।" यह नज़रिया भी आपकी इच्छाओं की हत्या करने का हथियार है।

        इन हत्या के हथियारों को फेंक दें। याद रखें, पूरी शक्ति हासिल करने का इकलौता तरीक़ा, पूरी ताक़त से लक्ष्य की तरफ़ बढ़े चलने का एकमात्र उपाय यही है कि आप जो करना चाहते हैं, वही करें। इच्छा के सामने समर्पण कर दें और बदले में आपको ऊर्जा, उत्साह, मानसिक स्फूर्ति और बेहतर सेहत भी मिलेगी।

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