Sunday, September 1, 2019

CHAPTER. 3.3. लगातार यही सवाल पूछता रहता है, 'क्या में पकड़ा जाऊँगा? क्या में पकड़ा जाऊँगा?'



लगातार यही सवाल पूछता रहता है, 'क्या में पकड़ा जाऊँगा? क्या में पकड़ा जाऊँगा?'

           "पॉल," मैंने आगे कहा, "तुम्हें परीक्षा में अच्छे नंबर' की इतनी ज़्यादा चाह थी कि तुमने वह किया जो तुम्हारी नज़रों में गलत जीवन में बहुत सारे मौके आएँगे जब 'सफलता हासिल करने के लिए तुम्हारे सामने गलत काम करने का प्रलोभन मौजूद होगा। उदाहरण तौर पर, किसी दिन आप इतनी बुरी तरह कोई सामान बेचना चाहेंगे कि आप अपने ग्राहक को जान-बूझकर गलत जानकारी देकर उसे खरीदने के लिए मजबूर कर देंगे। और ऐसा करने से आपको सफलता मिल सकती है। परंतु इससे होता यह है। आपका अपराधबोध आप पर हावी हो जाएगा और अगली बार जब आप अपने ग्राहक को देखेंगे तो आप परेशान हो जाएँगे, तनाव में आ जाएंगे। आप सोचने लगेंगे, 'क्या उसे पता चल गया है कि मैंने उसे धोखा दिया था ?' आपकी प्रस्तुति इसलिए प्रभावी नहीं होगी क्योंकि आप पूरे मन से प्रस्तुति नहीं दे पाएंगे। इस बात की संभावना है कि आप इसके बाद उसी ग्राहक को दूसरी, तीसरी, चौथी और कई बार सामान बेचने का अवसर गँवा देंगे। लंबे समय में इस तरह की ग़लत सेल्स तकनीकें आपकी अंतरात्मा को तो चोट पहुँचाएँगी ही, आपकी आमदनी को भी कम कर देंगी।"

            इसके बाद मैंने पॉल को बताया कि जब किसी बिजनेसमैन या प्रोफेशनल आदमी को यह डर सताता है कि उसकी पत्नी को उसके विवाहेतर प्रेमसंबंध का पता चल जाएगा तो वह असफल होने लगता है। वह दिन-रात यही सोचता रहता है, “क्या उसे पता चल जाएगा? क्या उसे पता चल जाएगा?" इस कारण उसका आत्मविश्वास कमज़ोर हो । जाता है और इसका परिणाम यह होता है कि वह नौकरी या घर में कोई भी काम ठीक तरह से नहीं कर पाता।

        
           मैंने पॉल को याद दिलाया कि कई अपराधी कोई सबूत या संकेत नहीं छोड़ते, फिर भी वे सिर्फ इसलिए पकड़े जाते हैं क्योंकि वे अपराधिया की तरह व्यवहार करते हैं और उन्हें देखकर यह समझ में आ जाता है कि इन्होंने कोई ग़लत काम किया है। उनकी अपराधबोध की भावनाएँ उन्हें संदिग्ध आदमियों की सूची में शामिल कर देती हैं।

          हममें से हर एक में सही होने, सही सोचने और सही काम करने की इच्छा होती है। जब हम इस इच्छा के विपरीत व्यवहार करते हैं तो हम अपनी अंतरात्मा में कैंसर की बीमारी आमंत्रित कर लेते हैं। यह कैंसर बढ़ता है और हमारे आत्मविश्वास को कम करता जाता है। इसलिए इस तरह का कोई काम न करें, जिसे करने के बाद आपको यह डर सताने लगे, “क्या मैं पकड़ा जाऊँगा? क्या लोगों को इस बात का पता चल जाएगा? क्या मैं बचने में सफल हो पाऊँगा?"

          धोखा देकर और अपना आत्मविश्वास कम करके “अच्छे नंबर" लाने की यानी कि सफल होने की कोशिश कभी न करें।

          मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पॉल को सीख मिल गई। उसने सही काम करने का व्यावहारिक मूल्य समझ लिया। मैंने सुझावदि कि वह बैठ जाए और एक बार फिर से परीक्षा दे। उसने मुझसे सवाल किया, “परंतु क्या आप मुझे कॉलेज से नहीं निकालेंगे?" मेरा
जवाब था, “मैं निष्कासन के नियम जानता हूँ। परंतु, अगर हम धोखा देने वाले सारे विद्यार्थियों को कॉलेज से निकाल देंगे तो हमारे आधे प्रोफ़ेसरों की छुट्टी हो जाएगी। और अगर हम धोखा देने का विचार करने वाले सभी विद्यार्थियों को निकाल देंगे, तो हमें कॉलेज में ताले लगाने पड़ेंगे।"

          "इसलिए मैं इस घटना को भूलने के लिए तैयार हूँ, अगर तुम एक काम करो।"

         "बिलकुल,” उसने कहा।

          मैंने उसे एक पुस्तक दी। पुस्तक का नाम था फ़िफ्टी इयर्स विथ द गोल्डन रूल। इसे देते हुए मैंने उससे कहा, “पॉल, इस पुस्तक को पढो और पढ़ने के बाद इसे वापस कर देना। जे. सी. पेनी के खुद के शब्दों में यह जानो कि किस तरह सही काम करने की वजह से वे अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्तियों के समूह में शामिल हो गए।"

         सही काम करने से आपकी अंतरात्मा संतुष्ट रहती है। और इससे आत्मविश्वास भी बढ़ता है। जब हम कोई ग़लत काम करते हैं, तो दो नकारात्मक बातें होती हैं। पहली बात तो यह कि हममें अपराधबोध आ जाता है और इस अपराधबोध से हमारा आत्मविश्वास कम हो जाता है।दबात यह कि देर-सबेर दूसरे लोगों को हमारे गलत काम की जानकारी मिल जाती है और उनका हम पर से विश्वास उठ जाता है।

           सही काम करें और अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें। यही सफल चिंतन का कारगर तरीका है। 

          यहाँ एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत दिया जा रहा है जो 25 बार पढ़ने लायक है। इसे तब तक पढ़ते रहें, जब तक कि यह आपके दिमाग में पूरी तरह से न घुस जाए : विश्वासपूर्ण चिंतन के लिए विश्वासपूर्ण काम करें।

          महान मनोवैज्ञानिक डॉ. जॉर्ज डब्ल्यू. क्रेन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अप्लाइड साइकलॉजी (शिकागो : हॉपकिन्स सिंडीकेट, इन्क. 1950) में लिखा है, "याद रखें, काम ही भावनाओं के अग्रज होते हैं। हम अपनी भावनाओं को तो सीधे नियंत्रित नहीं कर सकते। परंतु हम अपने कामों को नियंत्रित करके अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। ...वैवाहिक समस्याओं और ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिए सच्चे मनोवैज्ञानिक तथ्यों को जानें। हर दिन सही काम करें और जल्दी ही आपमें सहीभा जाग जाएँगी। यह सुनिश्चित कर लें कि आप अपने जीवनसाथी के साथ डेटिंग करें, उसका चुंबन लें, हर दिन उसकी सच्ची तारीफ़ करें, और भी ऐसी ही छोटी-छोटी चीजें करें, और आपको प्यार कम होने की चिंता कभी नहीं करनी पड़ेगी। आप प्रेम के काम करते रहेंगे, तो जल्दी ही आपमें प्रेम की भावना भी उत्पन्न हो जाएगी।"

         मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शारीरिक गतिविधियों में बदलाव करके हम अपने रवैए को बदल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, आप अगर मुस्कराने की क्रिया करते हैं, तो आप सचमुच मस्कराने के मूड में आ जाएँगे। जब आप अपने शरीर को झुकाने के बजाय तान लेते हैं तो आप ज़्यादा सुपीरियर महसूस करने लगते हैं। इसके उलट अगर, त्यौरियाँ । चढ़ाकर देखें तो पाएँगे कि आप त्यौरियाँ चढाने के मड में आ गए हैं।

         यह सिद्ध करना तो आसान है कि अपनी क्रियाओं पर काब करक। आप अपनी भावनाओं को बदल सकते हैं। जो लोग अपना परिचय देने  

में संकोच करते हैं, वे अपने संकोच को आत्मविश्वास में बदल सकते हैं अगर वे सिर्फ कुछ सामान्य क्रियाएँ करें : पहली बात तो यह कि सामने वाले से गर्मजोशी से हाथ मिलाएं। इसके बाद, सामने वाले व्यक्ति की तरफ़ एकल सीधे देखें। और तीसरी बात, सामने वाले से कहें, "मुझे आपसे मिलकर खुशी हुई।"

           इन तीन साधारण क्रियाओं से आपका संकोच अपने आप और तत्काल दूर हो जाएगा। आत्मविश्वास से भरी क्रिया की वजह से आपमें
अपने आप आत्मविश्वास आ जाएगा।

          आत्मविश्वासपूर्ण चिंतन करने के लिए आत्मविश्वास की क्रियाएँ करें। जिस तरह की भावनाएँ आप स्वयं में जगाना चाहते हैं, उस तरहके काम करें। नीचे आत्मविश्वास बढ़ाने वाले पाँच अभ्यास दिए जा रहे हैं। इन्हें सावधानी से पढ़ें। फिर इनका अभ्यास करने की पूरी कोशिश करें और आप अपना आत्मविश्वास काफ़ी बढ़ा-चढ़ा पाएँगे।

          1. आगे की बेंच पर बैठे। कभी आपने मीटिंग या चर्च या क्लासरूम या किसी और तरह की सभा में इस बात पर गौर किया है कि पीछे की सीटें सबसे पहले भर जाती हैं ? ज़्यादातर लोग पीछे की लाइन में इसलिए बैठते हैं ताकि वे "लोगों की नज़रों में न आएँ"। और वे लोगों की नज़रों में आने से इसलिए बचना चाहते हैं क्योंकि उनमें आत्मविश्वास नहीं होता।

          आगे बैठने से आत्मविश्वास बढ़ता है। इसका अभ्यास करें। आगे से यह नियम बना लें कि आप जितना आगे बैठ सकते हों, बैठें। यह बात तो पक्की है कि आगे बैठने से आप थोड़े ज़्यादा नज़रों में रहते हैं, परंतु याद रखें सफलता के लिए लोगों की नज़रों में रहना ज़रूरी होता है।

         2. नज़रें मिलाकर बात करने का अभ्यास करें। कोई व्यक्ति किस तरह अपनी आँखों का प्रयोग करता है, इससे भी हमें उसके बारे में काफ़ी जानकारी मिल सकती है। अगर कोई आपकी आँखों में सीधे नहीं देखता है, तो आपके मन में यह सवाल तत्काल आ जाता है, “यह व्यक्ति क्या छुपाने की कोशिश कर रहा है ? यह व्यक्ति किस बात से डरा हुआ है ? क्या यह मुझे धोखा देना चाहता है ? इस व्यक्ति के इरादे क्या हैं?"

आम तौर पर, आँखों के संपर्क में असफलता से दो बातें पता चलती हैं। पहली यह, "मैं आपके सामने आने पर असहज अनुभव करता हूँ। मैं आपसे हीन अनुभव करता हूँ। मैं आपसे डरा हुआ अनुभव करता हूँ।" या सामने वाले से आँखें न मिलाने से यह बात पता चलती है, "मैं।
अपराधबोध से ग्रस्त हूँ। मैंने ऐसा कुछ किया है या सोचा है जो मैं नहीं चाहता कि आपको पता चल जाए। मुझे डर है कि अगर मैं आपसे नज़रें। मिलाऊँगा तो आप मेरे दिल की बात समझ जाएंगे।" 

          जब आप नज़रें मिलाने से बचते हैं, तो आप सामने वाले पर अच्छी छाप नहीं छोड़ पाते। आप कहते हैं, “मैं डरा हुआ हूँ। मुझमें आत्मविश्वास की कमी है।" इस डर को जीतने का यही तरीका है कि आप सामने वाले से नज़रें मिलाकर बात करें।

          नज़रें मिलाकर बात करने से सामने वाले को यह संदेश जाता है, “मैं ईमानदार और सच्चा हूँ। मैं जो कह रहा हूँ, मैं उसमें पूरी तरह यकीन करता हूँ। मैं डरा हुआ नहीं हूँ। मैं आत्मविश्वास से भरा हुआ हूँ।"

          अपनी आँखों से काम लें। दूसरे व्यक्ति की आँखों में आँखें डालकर बात करें। इससे न सिर्फ आपमें आत्मविश्वास आ जाएगा, बल्कि इससे सामने वाला भी आप पर विश्वास करने लगेगा।

          3. 25 प्रतिशत तेज़ चलें। जब मैं छोटा था, तो काउंटी सीट पर जाना ही अपने आपमें एक रोचक अनुभव होता था। जब सारे काम हो चुके होते और हम कार में लौट आते, तो मेरी माँ अक्सर कहा करती थीं, “डेवी, यहाँ थोड़ी देर चुपचाप बैठो और देखो कि लोग किस तरह
चल रहे हैं।"

           माँ इस खेल को बहुत अच्छी तरह से खेलती थीं। वे कहा करती थीं, “उस आदमी को देखो। वह परेशान सा दिख रहा है ?" या, "तुम्हें क्या लगता है वह महिला क्या करने जा रही है ?" या. "उस आदमी को तरफ़ देखो। वह कोहरे में लिपटा हुआ लगता है।"

          लोगों को चलते हुए देखना सचमुच मज़ेदार था। मनोरंजन का यह तरीक़ा फ़िल्म देखने से सस्ता पड़ता था (मुझे बाद में पता चला कि इस खेल को खेलने के पीछे माँ का एक कारण यह भी था)। और इससे ज्यादा शिक्षा भी मिलती थी।

         मैं अब भी लोगों को चलते हुए देखता हूँ। कॉरीडॉर में, लॉबी में, फुटपाथ पर लोगों को चलते हुए देखकर मैं समझ लेता हूँ कि उनकी मानसिक स्थिति कैसी है।

         मनोवैज्ञानिक झुकी हुई मुद्राओं और सुस्त चाल का संबंध खुद के बारे में, अपनी नौकरी के बारे में, अपने आस-पास के लोगों के बारे में अप्रिय रवैए से जोड़ते हैं। परंतु मनोवैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि आप अपनी मुद्रा को बदलकर और अपनी चलने की गति को बदलकर अपने रवैए को सचमुच बदल सकते हैं। आप भी देखें। अगर देखेंगे, तो आप यह पाएँगे कि शरीर की क्रिया मानसिक क्रिया का परिणाम है। जो व्यक्ति हारा हुआ है, चोट खाया हुआ है वह मरा-मरा चलता है, सुस्त चलता है। उसमें आत्मविश्वास शून्य होता है।

          औसत लोग “औसत" चाल चलते हैं। उनकी गति “औसत" होती है। उनके चेहरे पर लिखा होता है, “मुझे अपने आप पर नाज़ नहीं है।"

         एक तीसरा समूह भी होता है। इस समूह के लोगों में प्रबल आत्मविश्वास होता है। वे आम लोगों से तेज़ चलते हैं। उनकी चाल में फुर्ती होती है। उनकी चाल दुनिया को बताती है, “मैं किसी महत्वपूर्ण काम से किसी महत्वपूर्ण जगह जा रहा हूँ। इससे भी बड़ी बात यह है कि जोकाम मैं 15 मिनट बाद करने जा रहा हूँ, मुझे उसमें सफलता मिलेगी।"

          आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए 25 प्रतिशत तेज़ चलने की तकनीक का प्रयोग करके देखें। अपने कंधों को सीधा कर लें, अपने सिर को ऊपर उठा लें, और थोड़े तेज़ क़दमों से आगे की तरफ़ बढ़े चलें। आप पाएँगे कि आपका आत्मविश्वास भी बढ़ चुका है।

         कोशिश करें और परिणाम खुद देखें।

       4. बोलने की आदत डालें। कई तरह के समूहों के साथ काम करते हुए मैंने यह पाया है कि बहुत से समझदार और योग्य लोग चर्चाओं में भाग नहीं लेते हैं। चर्चा के दौरान उनका मुँह ही नहीं खुल पाता। ऐसा नहीं है कि उनके पास बाक़ी लोगों जितने अच्छे विचार नहीं होते या वे बोल नहीं सकते। इसका कारण सिर्फ यह होता है कि उनमें आत्मविश्वास नहीं होता।

          यह चुप्पा व्यक्ति अपने बारे में इस तरह की बातें सोचता है, “मेरा विचार शायद काम का नहीं है। अगर मैं कुछ कहूँगा तो हो सकता है कि लोग मुझे मूर्ख समझें। इसलिए बेहतर यही है कि मैं चुपचाप बैठा रहँ | इसके अलावा, समूह के बाक़ी लोग मुझसे बेहतर जानते हैं। मैं दूसरों के सामने यह जताना नहीं चाहता कि मैं कितना नासमझ हूँ।" 

          जितनी बार यह चुप्पा व्यक्ति बोलने में असफल रहता है, वह अपने.आपको उतना ही ज़्यादा अक्षम और हीन बनाता जाता है। अक्सर वह खुद से यह कमज़ोर-सा वादा करता है (अंदर से वह जानता है कि इस वादे को वह कभी पूरा नहीं कर पाएगा) कि वह “अगली बार" मौका पड़ने पर ज़रूर बोलेगा।

          यह बहुत महत्वपूर्ण है : हर बार जब चुप्पा व्यक्ति बोलने में असफल रहता है, तो वह आत्मविश्वास को ख़त्म करने वाले ज़हर की एक और खुराक गटक लेता है। अपने आप पर उसका विश्वास उतना ही कम होता जाता है।

           सकारात्मक पहलू यह है कि आप जितना ज़्यादा बोलते हैं, आपका आत्मविश्वास उतना ही ज़्यादा बढ़ता जाता है और आपके लिए अगली बार बोलना उतना ही ज़्यादा आसान हो जाता है। बोलने की आदत डालें। आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए यह आदत विटामिन की तरह काम करती है।

           आत्मविश्वास बढ़ाने की इस तकनीक का प्रयोग करें। हर ओपन मीटिंग में बोलने का नियम बना लें। आप जिस बिज़नेस वार्ता, कमिटी मीटिंग, कम्युनिटी फ़ोरम में भाग लें, उसमें अपने आप कुछ न कुछ कहें। इस मामले में कोई अपवाद न रखें। कोई टिप्पणी करें, कोई सुझाव दे, कोई सवाल पूछे। और आख़िरी में कभी न बोलें। आपको सबसे पहले। बोलने की आदत डालनी चाहिए, आपको झिझक तोड़नी होगी।

          और मूर्ख दिखने के बारे में चिंता न करें। आप मुर्ख नहीं दिखेंगे अगला व्यक्ति चाहे आपसे सहमत न हो, परंतु कोई दूसरा व्यक्ति आपस जरूर सहमत होगा। अपने आपसे यह सवाल करना छोड दें, “क्या मैं कभी बोलने की हिम्मत कर पाऊँगा?"

          इसके बजाय, समूह के लीडर का ध्यान आकर्षित करने का लक्ष्य बनाएँ ताकि आप बोल सकें।

          बोलने के विशेष प्रशिक्षण और अनुभव के लिए अपने स्थानीय टोस्टमास्टर के क्लब में शामिल हो जाएँ। हज़ारों लोगों ने इस तरह के सुनियोजित कार्यक्रम में शामिल होकर लोगों के साथ और लोगों के सामने चर्चा करके अपना आत्मविश्वास बढ़ाया है।

           5. बड़ी मुस्कराहट दें। ज्यादातर लोगों का कहना है कि मुस्कराहट से उन्हें सच्ची ताक़त मिलती है। उन्हें बताया गया है कि मुस्कराहट आत्मविश्वास की कमी को दूर करने के लिए एक बढ़िया दवा है। परंतु ज्यादातर लोग इस बात में इसलिए यकीन नहीं करते, क्योंकि जब वे डरे होते हैं तो वे मुस्कराने की कोशिश ही नहीं करते।

            यह छोटा-सा प्रयोग करके देखें। आप पराजित अनुभव करें और बड़ी मुस्कराहट दें : एक साथ, एक ही समय में यह संभव नहीं है। आप ऐसा कर ही नहीं सकते। बड़ी मुस्कराहट आपको आत्मविश्वास देती है। बड़ी मुस्कराहट आपका डर भगाती है, चिंता दूर करती है और निराशा हर लेती है।

          और एक सच्ची मुस्कराहट सिर्फ आपके आत्मविश्वास को ही नहीं बढ़ाती, या सिर्फ आपके मन से बुरी भावनाओं को ही नहीं हटाती। सच्ची मुस्कराहट से लोगों का विरोध भी पिघल जाता है- और यह तत्काल होता है। अगर आप किसी को बड़ी-सी, सच्ची मुस्कराहट दें, तो सामने वाला व्यक्ति आपसे गुस्सा हो ही नहीं सकता। कुछ समय पहले की बात है मेरे साथ एक घटना हुई, जिसमें ऐसा ही हुआ। मैं चौराहे पर हरी बत्ती जलने का इंतज़ार कर रहा था कि तभी भड़ाम की आवाज़ आई! मेरे पीछे वाले ड्राइवर का पैर ब्रेक पर से हट गया था और उसने मेरी कार के बम्पर में पीछे से टक्कर मार दी थी। मैंने शीशे में से देखा कि वह बाहर निकल रहा था। मैं भी तत्काल बाहर निकल आया और नियमों की पुस्तक को भूलते हुए बहस के लिए तैयार हो गया। मैं मानता हूँ कि  मैं उससे बहस करके उसे नीचा दिखाने के लिए पूरी तरह तैयार था

          परंतु सौभाग्य से, इसके पहले कि मुझे ऐसा करने का मौका मिलतावह मेरे पास आया, मुस्कराया और उसने गभीरता से कहा, "दोस्त मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।" उसकी मुस्कराहट और उसके गंभीर वाय को सुनकर मेरा गुस्सा काफूर हो गया। जवाब में मैंने इस तरह की बात कही. “चलता है। ऐसा तो होता ही रहता है।” पलक झपकते ही हमारा विरोध मित्रता में बदल गया।

           बड़ी मुस्कराहट दें और आप महसूस करेंगे कि “एक बार फिर खशी के दिन लौट आए हैं।" परंतु मुस्कराहट बड़ी होनी चाहिए। आधी मुस्कराहट से काम नहीं चलेगा। आधी मुस्कराहट की सफलता की कोई गारंटी नहीं है। तब तक मुस्कराएँ जब तक आपके दाँत न दिखने लगें। बड़ी मुस्कराहट की सफलता की पूरी गारंटी है।

           मैंने कई बार सुना है, "हाँ, परंतु जब मैं डरा हुआ होता हूँ, या मैं गुस्से में होता हूँ तो मेरी मुस्कराने की इच्छा ही नहीं होती।"

         बिलकुल नहीं होती होगी। किसी की नहीं होती। परंतु यही तो खास बात है कि आप ऐसे वक्त भी खुद कहें, “मैं मुस्कराकर दिखा दूंगा।"

          फिर मुस्कराएँ।

          मुस्कराहट की शक्ति का दोहन करें।

    इन पाँच तकनीकों के प्रयोग से लाभ उठाएँ

        1. कार्य करने से डर दूर होता है। अपने डर को चिन्हित कर लें और फिर। रचनात्मक कार्य करें। अकर्मण्यता - किसी परिस्थिति के बारे में कुछ न करने की आदत - से डर बढ़ता है और आत्मविश्वास कम होता है।

        2. अपनी यादों के बैंक में केवल सकारात्मक विचार ही जमा करना की कोशिश करें। नकारात्मक, खद को नीचा दिखाने वाले विचारों का मानसिक राक्षस न बनने दें। अप्रिय घटनाओं या परिस्थितियों को याद करने की आदत छोड़ दें।

            3. लोगों को सही पहलू से देखें। याद रखें, लोग ज्यादातर मामलों में एक जैसे होते हैं और बहुत कम मामलों में एक-दूसरे से अलग होते हैं। सामने वाले के बारे में संतुलित नज़रिया रखें। आख़िर, वह भी आप ही की तरह एक इंसान है। और आप समझने के रवैए का भी प्रयोग करें। कई लोग भौंकते हैं, परंतु बहुत कम लोग सचमुच काटते हैं।

          4. वही काम करने की आदत डालें जो आपकी अंतरात्मा के हिसाब से ठीक हैं। इससे आपके जीवन में अपराधबोध का ज़हर नहीं घुल पाता। सही काम करना सफलता के लिए एक बहुत व्यावहारिक नियम है।

           5. अपने हर काम से यह झलकने दें, “मुझमें आत्मविश्वास है, काफ़ी आत्मविश्वास है।" अपने रोज़मर्रा के जीवन में इन छोटी-छोटी तकनीकों का प्रयोग करें।

1. “आगे की बेंच" पर बैठे।

2. नज़रें मिलाने का अभ्यास करें।

3. 25 प्रतिशत तेज़ चलें।

4. बोलने की आदत डालें।

5. बड़ी मुस्कराहट दें।

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