Tuesday, August 20, 2019

CHAPTER 3.1 विश्वास जगाएँ, डर भगाएँ

                      विश्वास जगाएँ, डर भगाएँ



         जब हम डरे होते हैं तो हमारे दोस्त हमें समझाते हैं, “यह तुम्हारे मन का वहम है। चिंता मत करो। डरने की कोई बात नहीं है।"



         परंतु आप और हम जानते हैं कि डर की इस किस्म की दवा से काम नहीं चलता है। इस तरह की तसल्ली से हमें कुछ मिनट या कुछ घंटे का ही आराम मिलता है। “यह तुम्हारे मन का वहम है" वाले उपचार से विश्वास नहीं जागता, न ही डर का इलाज होता है।



          हाँ, डर वास्तविक होता है। और इसे जीत ने से पहले हमें यह मानना ही पड़ेगा कि इसका अस्तित्व होता है।



          आजकल इंसान के ज़्यादातर डर मनोवैज्ञानिक होते हैं। चिंता, तनाव, उलझन, संत्रास- यह सभी हमारी नकारात्मक, अनुशासनहीन कल्पना के कारण पैदा होते हैं। परंतु सिर्फ यह जानने से कि डर कैसे पैदा होता है, उस डर का इलाज नहीं हो जाता। जब डॉक्टर यह पता लगा लेता है कि आपके शरीर में कहीं पर कोई इन्फेक्शन है, तो उसका काम वहीं पर पूरा नहीं हो जाता। इसके बाद वह इन्फेक्शन का इलाज भी करता है। 



          “यह तुम्हारे मन का वहम है" वाला पुराना विचार यह मानता है। कि डर का वास्तव में अस्तित्व होता ही नहीं है। परंतु ऐसा नहीं है। डर का अस्तित्व होता है। डर असली है। डर सफलता का नंबर एक दुश्मन है। डर लोगों को अवसर का लाभ उठाने से रोकता है। डर लोगों को शारीरिक रूप से कमज़ोर बना देता है। डर लोगों को बीमार बना देता है। डर लोगों की जिंदगी को छोटा कर देता है। आप जब बोलना चाहते हैं, तो डर आपके मुँह को बंद रखता है।



         डर - अनिश्चितता, आत्मविश्वास का अभाव - के ही कारण हमारी। अर्थव्यवस्था में मंदियाँ आती हैं। डर के ही कारण करोड़ों लोग इतना कम हासिल कर पाते हैं और जीवन का इतना कम आनंद ले पाते हैं।



          वास्तव में डर एक शक्तिशाली भावना है। किसी न किसी रूप में डर लोगों को वह हासिल करने से रोकता है जो वे जीवन में हासिल करना चाहते हैं।



          हर तरह और हर आकार का डर मनोवैज्ञानिक इन्फेक्शन का एक रूप है। हम अपने मानसिक इन्फेक्शन को भी उसी तरीके से दूर कर सकते हैं जिस तरह हम अपने शारीरिक इन्फेक्शन को दूर करते हैं- यानी उसका इलाज करके।



          इसके लिए सबसे पहले हमें उपचार के पहले की तैयारी करनी होगी। यह जानना होगा कि आत्मविश्वास आसमान से आकर हमारे दिमाग़ में नहीं घुसता, बल्कि हासिल किया जाता है, विकसित किया जाता है। कोई भी व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ पैदा नहीं होता। जिन लोगो में आत्मविश्वास प्रचुरता में होता है,जिन्होंने चिंता को जीत लिया है, जो हर जगह और हर कहीं बेफ़िक्री से आते-जाते हैं, उन्होंने यह आत्मविश्वास धीरे-धीरे हासिल किया है।



    आप भी ऐसा ही कर सकते हैं। यह अध्याय आपको बताएगा, कैसे।



द्वितीय विश्वयुद्ध में नेवी ने यह फैसला किया कि इसके सभी नए रंगरूटों को तैरना आना चाहिए। इसके पीछे यह विचार था कि तैरना आने से किसी डूबते आदमी की जान बचाई जा सकती है।



          जिन लोगों को तैरना नहीं आता था, उनके लिए तैरने की आयोजित की गईं। मैंने इस तरह के एक प्रशिक्षण को देखा। सतही पर यह देखना मज़ेदार था कि इतने बड़े-बड़े, जवान, और स्वर कुछ फुट गहरे पानी में कूदने से घबरा रहे थे। इन लोगों को 61 स्टैंड से पानी में कूदना था और पानी सिर्फ 8 फुट गहरा था। हालाँकि आस-पास बहुत से विशेषज्ञ तैराक खड़े थे और जान का कोई जोखिम नहीं था, फिर भी ये वयस्क लोग बुरी तरह आतंकित थे।



        गहराई से सोचने पर यह दुःखद प्रसंग था। उनका डर वास्तविक था। परंतु उनमें और हार के डर के बीच में केवल एक ही चीज़ आड़े आ रही थी, और वह थी नीचे के पानी में छलाँग। एक से ज्यादा बार मैंने देखा कि इन युवकों को बोर्ड से “अनपेक्षित" धक्का दे दिया गया। और इसका परिणाम यह हुआ कि पानी से उनका डर हमेशा के लिए दूर हो गया।



          हज़ारों भूतपूर्व नेवी के जवान इस घटना से परिचित होंगे। इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है : काम करने से डर दूर होता है। दुविधा में रहने या अनिर्णय की स्थिति में रहने से या काम टालने से हमारा डर बढ़ता है।



          इसे अभी हाल अपनी सफल नियमों की पुस्तिका में लिख लें। काम करने से डर दूर होता है।



         काम करने से डर सचमुच दूर होता है। कुछ महीनों पहले चालीस साल का एक परेशानहाल एक्जीक्यूटिव मुझसे मिलने आया। वह एक बड़े रिटेलिंग संगठन में महत्वपूर्ण पद पर था।



          चिंतित स्वर में उसने मुझे बताया, “मुझे डर है कि मेरी नौकरी छूट जाएगी। मुझे ऐसा लगता है कि मेरे थोड़े से दिन बचे हैं।"



        “क्यों?" मैंने पूछा।



         "सभी बातें मेरे ख़िलाफ़ हैं। मेरे विभाग की बिक्री के आँकड़े पिछले साल से 7 प्रतिशत कम हैं। यह बहुत बुरा है, ख़ासकर तब जब हमारे स्टोर की सेल पिछले साल की तुलना में 6 प्रतिशत बढ़ी है। मैंने हाल ही में कुछ ग़लत फैसले लिए हैं और मुझे कई बार मीटिंग में यह संकेत दिया गया है कि मैं कंपनी की प्रगति के साथ-साथ प्रगति नहीं कर पा रहा हूँ।



          “मुझे इतना बुरा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ। मेरी पकड़ ढीली होती जा रही है और यह सबको साफ़ दिख रहा है। मेरे कर्मचारियों को भी इस बात का एहसास है। मेरे सेल्समेन भी यह देख सकते हैं। दूसरे एक्जीक्यूटिव भी यह जानते हैं कि मैं ढलान पर नीचे फिसल रहा हूँ। एक साथी एक्जीक्यूटिव ने तो पिछली मीटिंग में यहाँ तक सुझाव दिया कि मेरा कुछ काम उसके डिपार्टमेंट को सौंप दिया जाए, 'ताकि स्टोर के लिए कुछ लाभ कमाया जा सके।' मैं एक ऐसा डूबता हुआ आदमी हूँ, जिसे बहुत सारे लोग डूबता हुआ देख रहे हैं और उसके डूबने का इंतज़ार कर रहे हैं।"



           एक्जीक्यूटिव ने अपनी दुर्दशा पर बोलना जारी रखा। आखिरकार मैंने उसे बीच में रोककर उससे पूछ ही लिया, "तो आप इस बारे में क्या कर रहे हैं ? आप स्थिति को सुधारने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं ?"



         _“मैं इसमें कर ही क्या सकता हूँ?" उसने जवाब दिया, "मैं सिर्फ यही उम्मीद कर रहा हूँ कि सब कुछ ठीक हो जाए।"



           इस पर मैंने कहा, “परंतु क्या उम्मीद करने से ही सब कुछ ठीक हो जाएगा?" फिर बिना उसे जवाब देने का मौक़ा दिए मैंने उससे अगला सवाल पूछा :



           "क्यों न उम्मीद करने के साथ-साथ आप कुछ प्रयास भी करें?"



          "कैसे?" उसने कहा।



         “आपके मामले में दो तरह के काम किए जा सकते हैं। पहला तो यह कि आप अपनी सेल्स को बढ़ाकर दिखाएँ। हमें यहीं से शरू करना होगा। कोई न कोई वजह तो होगी जिसके कारण आपकी सेल्स कम हो रही है। उस वजह का पता लगाएँ। हो सकता है कि आपको अपना पुराना माल निकालने के लिए स्पेशल सेल लगानी पड़े, ताकि आप नया माल ख़रीद सकें। शायद आपको अपने डिस्प्ले काउन्टर्स को अलग तरीके से जमाना चाहिए। शायद आपको अपने सेल्समैनों में ज्यादा उत्साह भरना चाहिए। मैं यह तो नहीं बता सकता कि किस तरह आपका सेल्स वॉल्यूम बढ़ सकता है, परंतु यह किसी न किसी तरह तो बढ़ ही सकता है। और इसके अलावा आप अपने मैनेजर से भी बात करके देख लें। हो सकता है कि वे आपको नौकरी से निकालने वाले हों, परंतु अगर आप उनकी सलाह लेंगे तो वे आपको समस्या को सुलझाने के लिए  निश्चित रूप से ज़्यादा मोहलत दे देंगे। स्टोर के लिए आपका विकल्प हुँढना बहुत मुश्किल होगा बशर्ते कि टॉप मैनेजमेंट को यह लगे कि आप समस्या को सुलझाने का गंभीर प्रयास कर रहे हैं।"



         मैं आगे कहता रहा, “इसके बाद आप अपने कर्मचारियों से, अपने अधीनस्थों से बात करें। डूबते हुए आदमी की तरह व्यवहार करना छोड़ दें। अपने आस-पास के लोगों को यह एहसास होने दें कि आपमें अभी जान बाक़ी है।”



         एक बार फिर उसकी आँखों में हिम्मत लौट आई थी। फिर उसने पछा, "आपने कहा था कि में दो क़दम उठा सकता है। दूसरा क़दम क्या
है?"



          "दूसरा क़दम यह है, जिसे आप बीमा योजना कह सकते हैं, कि आप किसी दूसरे स्टोर में अपने लिए ऐसी जगह ढूँढ़कर रखें जहाँ आपको यहाँ से ज़्यादा तनख्वाह मिल सके।



         “अगर आप सकारात्मक कार्य करेंगे तो मुझे नहीं लगता कि आपको इसकी ज़रूरत पड़ेगी। आपकी कर्मठता से आपके सेल्स आँकड़े निश्चित रूप से सुधर जाएँगे। फिर भी एक-दो विकल्प रहना हमेशा ज़्यादा अच्छा होता है। याद रखें, बेरोज़गार आदमी के लिए नौकरी हासिल करना बहुत मुश्किल होता है, जबकि पहले से नौकरी कर रहे आदमी के लिए नौकरी हासिल करना बेरोज़गार की तुलना में दस गुना ज़्यादा आसान होता है।"



            दो दिन पहले यही एक्जीक्यूटिव मुझसे मिलने आया।



          “आपसे चर्चा के बाद मैं काम में जुट गया। मैंने बहुत से बदलाव किए, परंतु सबसे बड़ा बदलाव मैंने अपने सेल्समैनों के रवैए में किया। पहले मैं सप्ताह में एक बार मीटिंग लिया करता था, अब मैं हर सुबह मीटिंग लेता हूँ। मैंने इन सभी लोगों में उत्साह भर दिया है। ऐसा लगता है कि मेरे जोश को देखकर उनमें भी हौसला आ गया है। जब उन्होंने देखा कि मुझमें जान बाक़ी है, तो उन्होंने भी ज्यादा मेहनत करने का फैसला कर लिया। ऐसा लगता है जैसे वे सिर्फ इस बात का इंतज़ार कर रहे थे कि मैं आगे बढ़ने में पहल करूँ।



        “अब सब कुछ ठीक चल रहा है। पिछले हफ्ते मेरी बिक्री पिछले साल की तुलना में ज्यादा हुई है और यह स्टोर की औसत बिक्री से भी काफ़ी अच्छी है।



         “ओह, बहरहाल,” उसने कहा, “मैं आपको एक और अच्छी ख़बर सुनाना चाहता हूँ। मुझे दो वैकल्पिक नौकरियों के प्रस्ताव मिले हैं। निश्चित रूप से इससे मैं खुश हूँ परंतु मैंने दोनों को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि यहाँ पर सब कुछ एक बार फिर ठीक-ठाक हो गया है।” 



           जब हम कठिन समस्याओं का सामना करते हैं, तो हम तब तक दलदल में फँसे रहते हैं जब तक कि हम कर्म नहीं करते। आशा से शुरुआत होती है। परंतु जीतने के लिए आशा के साथ-साथ कर्म की भी ज़रूरत होती है।



           कर्म के सिद्धांत पर अमल करें। अगली बार जब भी आपको डर लगे, चाहे डर छोटा हो या बड़ा, अपने आपको सँभालें। फिर इस सवाल का जवाब ढूँढ़ें : किस तरह के काम से मैं अपने डर को जीत सकता हूँ?



         अपने डर का कारण खोज लें। फिर उचित कदम उठाएँ।



          डर और उनके उपचार के कुछ उदाहरण नीचे बताए गए हैं।







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