Tuesday, October 8, 2019

CHAPTER 12.1 लक्ष्य बनाएँ, सफल बनें,

                 लक्ष्य बनाएँ, सफल बनें

इंसान ने जितनी भी तरक़्क़ी की है, लक्ष्य बनाकर की है। हमारे जितने भी आविष्कार हुए हैं, चाहे वे चिकित्सा के क्षेत्र में हों, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हों, या किसी और क्षेत्र में हों, वे सभी इसी कारण संभव हुए हैं क्योंकि उन्हें हासिल करने का लक्ष्य बनाया गया था। बिज़नेस में सफलता भी अक्सर इसीलिए मिलती है क्योंकि उसे हासिल करने का टारगेट बनाया गया था। उपग्रह धरती के चारों तरफ़ अपने आप चक्कर नहीं लगा रहे हैं, बल्कि इसलिए चक्कर लगा रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिकों ने
"अंतरिक्ष को जीतने" का लक्ष्य बनाया था।

        लक्ष्य का मतलब है उद्देश्य। लक्ष्य सपने से ज्यादा होता है, क्योंकि लक्ष्य का मतलब है सपने पर काम करना। लक्ष्य इससे ज़्यादा स्पष्ट होता है, “काश! मैं यह कर सकता!” लक्ष्य बहुत ही स्पष्ट होता है, “मैं इसकी तरफ़ बढ़ रहा हूँ।"

         जब तक लक्ष्य नहीं बनाया जाता, तब तक कुछ भी हासिल नहीं होता, तब तक उसकी तरफ़ क़दम नहीं बढ़ाए जा सकते। लक्ष्यों के बिना व्यक्ति जीवन में इधर-उधर भटकता रहता है। वह लड़खड़ाता रहता है और कभी यह नहीं जान पाता कि वह कहाँ जा रहा है, इसलिए वह कहीं भी नहीं पहुंच पाता।

         लक्ष्य सफलता के लिए उसी तरह ज़रूरी है, जिस तरह जीवन के लिए हवा ज़रूरी है। कोई भी बिना लक्ष्य के सफल नहीं हुआ। कोई भी बिना हवा के जीवित नहीं रहा। इसलिए आप अच्छी तरह अपने लक्ष्य को तय कर लें कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं।

        डेव मॅहोने कभी एडवर्टाइजिंग एजेंसी में 25 डॉलर प्रति सप्ताह की नौकरी किया करते थे, 27 वर्ष की उम्र में वे एजेंसी के वाइस प्रेसिडेंट बन गए और 33 वर्ष की उम्र में वे गुड हयूमर कंपनी के प्रेसिडेंट बन गए। लक्ष्यों के बारे में उनका कहना था, “महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आप कल क्या थे, या आप आज क्या हैं, बल्कि महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आप कल कहाँ पहुँचना चाहते हैं।"

        महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आप कल क्या थे, या आप आज क्या हैं, बल्कि महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आप कल कहाँ पहुँचना चाहते हैं।

         अच्छी कंपनियां अगले 10 से 15 साल के लक्ष्य बनाकर चलती हैं। सफल बिज़नेसमैन को खद से यह सवाल पछना ही पड़ता है. “आज से दस साल बाद हम अपनी कंपनी को कहाँ देखना चाहते हैं ?" फिर वे उसके हिसाब से अपनी योजना बनाते हैं। नई मशीनें लगाई जाती हैं ताकि उत्पादन की क्षमता बढ़ सके, आज की ज़रूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि आज से 5 या 10 साल बाद की ज़रूरत के हिसाब से। ऐसे उत्पादों को विकसित करने के लिए शोध किया जाता है जो दस साल से पहले बाज़ार में नहीं उतर पाएँगे।

         आधुनिक कंपनियाँ भविष्य को क़िस्मत के भरोसे नहीं छोड़तीं। क्या आपको ऐसा करना चाहिए?

         हममें से हर व्यक्ति सफल कंपनियों से यह महत्वपूर्ण सबक़ सीख सकता है। हमें कम से कम 10 साल बाद तक की योजना बना लेनी चाहिए। आप दस साल बाद अपनी जो इमेज बनाना चाहते हैं, आपको सबसे पहले तो अभी वह इमेज सोच लेनी चाहिए। यह एक बेहद महत्वपूर्ण विचार है। कोई कंपनी जो अच्छी तरह भविष्य की योजना नहीं बनाती, वह यूँ ही चलती रहेगी (यह बीच में दीवालिया भी हो सकती है)। इसी तरह जो व्यक्ति लंबे लक्ष्य तय नहीं कर पाता, वह भी ज़िंदगी की भूलभुलैया में यूँ ही भटकता रहेगा। बिना लक्ष्यों के हमारा विकास नहीं होता।

       मैं आपको एक उदाहरण बताना चाहता हूँ कि लंबी दूरी के लक्ष्य से सफलता किस तरह मिलती है। अभी पिछले हफ्ते एक युवक (मैं उसे एफ़. बी. कहना चाहूँगा) अपने करियर की समस्या लेकर मेरे पास आया। एफ़. बी. सभ्य और समझदार दिख रहा था। वह कुँवारा था और उसने चार साल पहले ही अपना कॉलेज पूरा किया था।

          हमने उसके काम-काज, शिक्षा, उसकी योग्यताओं और उसकी सामान्य पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा की। फिर मैंने उससे कहा, "आप मुझसे नौकरी बदलने के बारे में सलाह लेने आए हैं। आप किस तरह की नौकरी चाहते हैं ?"

          उसने कहा, “यही तो मैं आपसे पूछने आया हूँ। मुझे नहीं पता कि मैं क्या करना चाहता हूँ।"

         उसकी समस्या बहुत ही आम समस्या है। परंतु मैंने महसूस किया कि इस व्यक्ति की मदद करने का यह तरीक़ा नहीं है कि मैं इसे कई संभावित नियोक्ताओं से मिलवा दूं। करियर चुनने में गलती करके उससे सीखना कोई अच्छा तरीक़ा नहीं है। चूंकि करियर की संभावनाएँ दर्जनों होती हैं, इसलिए सही नौकरी मिलने के अवसर भी दर्जनों में से एक होते हैं। मैं जानता था कि मुझे एफ़. बी. को यह एहसास कराना होगा कि किसी जगह अपना करियर बनाने से पहले उसे पहले यह जानना पड़ेगा कि उसकी मनचाही जगह कौन सी है।

       इसलिए मैंने कहा, “अब आप एक अलग नज़रिए से अपने करियर प्लान को देखें। क्या आप मुझे बताएँगे कि आज से दस साल बाद आप अपनी कैसी इमेज देखना चाहते हैं?"

       एफ़. बी. ने काफ़ी सोच-विचारकर कहा, “मैं समझता हूँ कि मैं वही चाहता हूँ जो हर व्यक्ति चाहता है : एक अच्छी सी नौकरी जिसमें अच्छी तनख्वाह मिलती हो और एक अच्छा सा घर। सच कहूँ, तो मैंने इसके बारे में ज़्यादा नहीं सोचा।"

        मैंने उसे आश्वस्त किया कि यह बिलकुल स्वाभाविक है। फिर मैंने उसे बताया कि करियर चुनने की उसकी शैली वैसी ही थी जैसे हम किसी एयरलाइन टिकट काउंटर पर जाएँ और कहें, “मुझे एक टिकट दे दीजिए।" टिकट बेचने वाले आपकी कोई मदद नहीं कर सकते जब तक कि आप उन्हें यह न बताएँ कि आप कहाँ जाना चाहते हैं। इसलिए मैंने कहा, “और मैं तब तक नौकरी ढूँढ़ने में आपकी मदद नहीं कर सकता जब तक कि आप मुझे यह न बता दें कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं। आप और सिर्फ आप ही मुझे यह बता सकते हैं कि आपका लक्ष्य क्या है।"

        इससे एफ़. बी. सोचने पर मजबूर हो गया। अगले दो हफ्तों तक हमने अलग-अलग नौकरियों के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करने के बजाय लक्ष्य निर्धारित करने के बारे में विचार किया। एफ़. बी. ने करियर प्लानिंग का सबसे महत्वपूर्ण सबक सीख लिया : शुरू करने से पहले जान लें, आप कहाँ जाना चाहते हैं।

         सफल कंपनियों की तरह, आगे की योजना बनाएँ। एक तरह से आप भी किसी कंपनी की तरह हैं। आपकी योग्यताएँ, आपकी प्रतिभा, आपकी दक्षताएँ आपके “उत्पाद" हैं। आप अपने उत्पादों को विकसित करना चाहते हैं, ताकि आपको उनकी अधिकतम क़ीमत मिल सके। भविष्य की योजना बनाने से ऐसा करना संभव है।

       यहाँ दो क़दम सुझाए जा रहे हैं जो आपकी मदद करेंगे :

       पहले तो अपने भविष्य को तीन खंडों में बाँट दें : काम-धंधा, घर, और समाज। अपने जीवन को खंडों में बाँट देने से आप दुविधा में नहीं पड़ेंगे, आप आंतरिक संघर्ष की समस्या से बच सकेंगे और आप अपने भविष्य की पूरी तस्वीर देख सकेंगे।

       दूसरी बात, अपने आपसे इन सवालों के स्पष्ट, सुनिश्चित जवाब पूछे। मैं अपने जीवन में क्या हासिल करना चाहता हूँ? मैं क्या बनना चाहता हूँ? और किस चीज़ से मुझे संतुष्टि मिलेगी?

     मदद के लिए नीचे दी हुई प्लानिंग गाइड का प्रयोग करें।

आज से 10 साल बाद की मेरी इमेज : 10 साल की प्लानिंग गाइड

A. काम-धंधे का खंड : आज से 10 साल बाद :

     1. मैं कितनी आमदनी हासिल करना चाहता हूँ?

      2. मैं अपने पास कितनी ज़िम्मेदारी चाहता हूँ?

      3. मैं कितनी सत्ता, कितना अधिकार चाहता हूँ?

      4. अपने काम-धंधे से मैं कितनी प्रतिष्ठा चाहता हूँ?

B. घर का खंड : आज से 10 साल बाद :

      1. मैं अपने परिवार को किस तरह का जीवनस्तर देना चाहता हूँ ?

      2. मैं किस तरह के घर में रहना चाहता हूँ ?

      3. मैं किस तरह से छुट्टियाँ बिताना चाहता हूँ?

      4. अपने बच्चों के शुरुआती वयस्क सालों में मैं उनकी कितनी आर्थिक मदद करना चाहता हूँ?

C. सामाजिक खंड : आज से 10 साल बाद :

     1. मेरे पास किस तरह के दोस्त होने चाहिए?

      2. मैं किन सामाजिक समूहों से जुड़ना चाहता हूँ ?

      3. मैं किन संस्थाओं का लीडर बनना चाहता हूँ?

      4. मैं किन सामाजिक समस्याओं को दूर करने की पहल करना चाहता हूँ?

          कुछ साल पहले मेरे पुत्र ने जोर देकर कहा कि मैं उसके साथ मिलकर उसके कुत्ते के पिल्ले के लिए एक डॉगहाउस बनवाऊँ। मेरा पुत्र पीनट नाम के इस पिल्ले से बहुत प्रेम करता था और उसे इस पर नाज़ था। पुत्र का उत्साह देखकर मैं उसके लगातार आग्रह को ठुकरा नहीं
पाया। और इस तरह हम दोनों पीनट का घर बनाने में जुट गए। कारपेन्टरी की हम दोनों की समझ कुल मिलाकर ज़ीरो थी और जो घर बना, वह इस बात का सबूत था।

          कुछ समय बाद मेरा एक अच्छा दोस्त आया और हमारे उस डॉगहाउस को देखने के बाद उसने पूछा, “तुम लोगों ने पेड़ पर यह क्या लटका रखा है? कहीं, यह डॉगहाउस तो नहीं है?" मैंने हाँ में जवाब दिया। फिर उसने हमारी कुछ ग़लतियों की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित किया और अपनी पूरी बात को सारांश में इस तरह कहा, “तुम लोगों ने कोई योजना नहीं बनाई। आजकल कोई बिना ब्लूप्रिंट के डॉगहाउस नहीं बनाता।"

        और कृपया, जब भी आप अपने भविष्य की कल्पना करें, तो बड़ी कल्पना करने से न घबराएँ। आजकल लोगों को उनके सपनों के आकार के हिसाब से तौला जाता है। कोई भी व्यक्ति जितना हासिल करना चाहता है, उससे ज़्यादा हासिल नहीं कर पाता। इसलिए हमेशा अपने भविष्य के सपनों को बड़ा रखें।

        नीचे एक व्यक्ति के जीवन की योजना शब्दशः बताई गई है। इसे पढ़ें। किस तरह उसने अपने भावी "घर" का लक्ष्य बनाया है, यह देखें। जब उसने यह लिखा होगा, तब निश्चित रूप से वह अपने भविष्य के घर को देख रहा होगा।

        “मेरे घर का लक्ष्य गाँव में होगा। घर ‘सदर्न मैनॅर' स्टाइल का होगा, दोमंज़िला, सफ़ेद कॉलम इत्यादि। चारों तरफ़ फ्रेंसिंग होगी और शायद वहाँ पर फ़िशपॉन्ड भी होगा क्योंकि मेरी पत्नी और मुझे मछली पकड़ने का शौक़ है। हम अपने डॉबरमॅन के लिए जो घर बनाएँगे, वह घर के पिछवाड़े बनाएँगे। मैं हमेशा से चाहता हूँ कि मेरे घर में एक लंबा-सा ड्राइववे हो जिसके दोनों तरफ़ पेड़ लगे हों।

         “परंतु मैं जानता हूँ कि मकान और घर में अंतर होता है। ज़रूरी नहीं है कि हर मकान घर भी हो। मैं अपने मकान को घर बनाने की पूरी कोशिश करूँगा, यह ध्यान रखूगा कि यह खाने और सोने की जगह से ज़्यादा कुछ बने। हम अपनी योजना बनाते समय ईश्वर को भी नहीं भूले हैं। हम चर्च की गतिविधियों में एक निश्चित राशि दान में देंगे।

          “आज से दस साल बाद मैं अपने परिवार को दुनिया की सैर पर ले जाना चाहूँगा। इसके पहले कि हमारा परिवार शादी-ब्याह के कारण तितर-बितर हो जाए, मैं ऐसा करना चाहता हूँ। अगर हमारे पास एक साथ पूरी दुनिया की सैर पर जाने का समय नहीं होगा तो हम इसे चार-पाँच अलग-अलग छुट्टियों में बाँट लेंगे और हर साल दुनिया के एक हिस्से की यात्रा करेंगे। स्वाभाविक रूप से मेरे “घर के खंड" की ये सारी योजनाएँ इस बात पर निर्भर करती हैं कि मेरे “काम-धंधे के खंड"। में मझे कैसी सफलता मिलती है, इसलिए अगर मैं यह सब हासिल करना चाहता हूँ तो मुझे सफल होना ही पड़ेगा।"

       यह योजना पाँच साल पहले लिखी गई थी। तब उस व्यक्ति के पास दो छोटे स्टोर्स थे। आज वह पाँच स्टोर्स का मालिक है। और उसने देहात में 17 एकड़ ज़मीन भी ख़रीद ली है, जहाँ वह अपना घर बनाने जा रहा है। वह अपने लक्ष्य की तरफ़ लगातार बढ़ रहा है।

       आपके जीवन के तीनों खंड आपस में जुड़े हुए हैं। हर एक की सफलता किसी न किसी हद तक दूसरे पर निर्भर करती है। परंतु जो खंड बाक़ी सभी खंडों पर सबसे ज़्यादा प्रभाव डालता है, वह है आपका काम-धंधे वाला खंड। हज़ारों साल पहले जिस गुफामानव का घरेलू जीवन सबसे सुखद होता था और जिसे सर्वाधिक सामाजिक सम्मान मिलता था, वह शिकारी के रूप में सबसे सफल हुआ करता था। सामान्य तौर पर, यही बात आज भी सही है। हम अपने परिवारों को जो जीवनस्तर देते हैं और हमें जो सामाजिक सम्मान मिलता है वह काफ़ी हद तक काम-धंधे के खंड में हमारी सफलता के कारण मिलता है।

           कुछ समय पहले 'मैकिन्सी फ़ाउंडेशन फ़ॉर मैनेजमेंट रिसर्च' ने व्यापक सर्वेक्षण करवाया, ताकि यह जाना जा सके कि एक्जीक्यूटिव बनने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी गुण कौन सा है। बिज़नेस, सरकार, विज्ञान और धर्म के लीडर्स से सवाल पूछे गए। हर बार, अलग-अलग तरीकों से इन शोधकर्ताओं को एक ही जवाब मिला : एक्जीक्यूटिव की सबसे महत्वपूर्ण योग्यता उसकी आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा होती है।

        जॉन वानामेकर की सलाह याद रखें, “कोई व्यक्ति जब तक अपने काम में अपने आपको झोंक नहीं देता, तब तक वह महान काम नहीं कर पाता।"

         अगर इसका सही दोहन किया जाए, तो प्रबल इच्छा में अनंत शक्ति है। इच्छा का अनुसरण करने की असफलता, वह न करना जो आप करना चाहते हैं, औसत दर्जे की ज़िंदगी या असफलता का रास्ता है।

       मुझे एक कॉलेज के अख़बार के बेहद प्रतिभाशाली युवा लेखक के साथ हुई चर्चा याद आती है। इस युवक में प्रतिभा थी। अगर किसी व्यक्ति में पत्रकारिता के करियर में सफल होने का माद्दा था, तो वह यही व्यक्ति था। उसके ग्रैजुएशन के कुछ समय पहले मैंने उससे पूछा, “डैन, तम अब क्या करोगे, पत्रकारिता के करियर में जाओगे?" डैन ने मेरी तरफ देखा और कहा, “अरे, नहीं। मुझे लिखना और रिपोर्टिंग करना बहुत पसंद है और मुझे कॉलेज के अख़बार में काम करने में बहुत मज़ा भी आता है। परंतु पत्रकारों की कमाई थोड़ी सी होती है और मैं भूखे नहीं मरना चाहता।"

        इसके बाद मैं पाँच साल तक डैन से नहीं मिला। फिर एक शाम को वह मुझे न्यू ऑर्लियन्स में मिला। डैन किसी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में असिस्टेंट पर्सनेल डायरेक्टर के रूप में काम कर रहा था। और उसने मझे जल्दी ही बता दिया कि वह अपने काम से संतुष्ट नहीं है, “मेरी तनख्वाह तो अच्छी है। मेरी कंपनी भी अच्छी है और जहाँ तक जॉब सिक्युरिटी का सवाल है वह मेरे पास है। परंतु इस काम में मेरा दिल नहीं लगता। अब मैं सोचता हूँ कि काश कॉलेज के बाद मैंने किसी प्रकाशक के यहाँ या किसी अख़बार में काम किया होता।"

         डैन के रवैए से बोरियत और अरुचि साफ़ झलक रही थी। वह हर चीज़ में बुराई देख रहा था। जब तक वह अपनी नौकरी छोड़कर पत्रकारिता में नहीं जाएगा, उसे उसकी मनचाही सफलता हासिल नहीं हो पाएगी। सफलता में पूरे मन से प्रयास की ज़रूरत होती है और आप किसी काम में पूरा मन तभी लगा सकते हैं जब आप उसे पसंद करते हों।

    
          अगर डैन ने अपना मनपसंद काम किया होता, तो वह आज अख़बार की दुनिया में काफ़ी ऊपर होता। और लंबे समय में उसे आज से ज़्यादा पैसा और मानसिक संतोष मिल रहा होता।

अपने नापसंदगी के काम को छोड़कर अपना मनपसंद काम करना वैसा ही है जैसे 10 साल पुरानी कार में 500 हॉर्सपॉवर की मोटर लगा दी जाए।

         हम सभी में इच्छाएँ होती हैं। हम सभी सपने देखते हैं कि हम सचमुच क्या करना चाहते हैं। परंतु हममें से बहुत कम लोग ही वास्तव में अपनी इच्छाओं का कहना मानते हैं। इसके बजाय, हम अपनी इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। सफलता की हत्या करने के लिए हम पाँच तरह के हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। इन हथियारों को नष्ट कर दें, क्योंकि ये हथियार खतरनाक हैं।

       1. खुद को नाक़ाबिल समझना। आपने दर्जनों लोगों को यह कहते सुना होगा, “मैं डॉक्टर (या एक्जीक्यूटिव या कमर्शियल आर्टिस्ट या बिज़नेसमैन) बनना चाहता हूँ, परंतु मैं ऐसा नहीं कर सकता।” “मुझमें इतनी प्रतिभा नहीं है।” “अगर मैंने कोशिश की तो मैं सफल नहीं हो
पाऊँगा।" "मेरे पास शिक्षा और/या अनुभव की कमी है।” कई युवक-युवतियाँ अयोग्यता की छुरी से अपनी इच्छा को मार डालते हैं।

       2. सुरक्षा की बीमारी। जो लोग कहते हैं, “मैं जहाँ हूँ वहीं सुरक्षित हूँ", वे अपने सपनों की हत्या करने में सुरक्षा के हथियार का इस्तेमाल करते हैं।

      3. प्रतियोगिता। “इस क्षेत्र में पहले से ही बहुत सारे लोग हैं," “यहाँ तो लोग एक के ऊपर एक खड़े हुए हैं," जैसे विचार भी इच्छा को तत्काल मार डालते हैं।

      4. माता-पिता के आदेश। मैंने सैकड़ों बच्चों को अपना करियर चुनते समय यह कहते सुना है, “मेरा मन तो दूसरा करियर चुनने का था, परंतु मेरे माता-पिता ने मुझसे यह करियर चुनने के लिए कहा, इसलिए मैंने इसे ही चुन लिया।" ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को जान-बूझकर यह आदेश नहीं देते कि उन्हें क्या करना चाहिए। हर बुद्धिमान माता-पिता अपने बच्चों को ज़िंदगी में सफल देखना चाहते हैं। अगर बच्चा शांति से यह समझाए कि वह दूसरा करियर क्यों चुनना चाहता है, तो माता-पिता उसकी बात सुनेंगे और कोई तनाव पैदा नहीं होगा। क्योंकि बच्चे के करियर के बारे में माता-पिता और बच्चे दोनों का लक्ष्य एक ही है: सफलता।

         5. पारिवारिक ज़िम्मेदारी। “अगर मैंने पाँच साल पहले नौकरी बदली होती, तो अच्छा रहता परंतु अब मेरे पास परिवार है और इसलिए मैं अब कुछ नहीं कर सकता।" यह नज़रिया भी आपकी इच्छाओं की हत्या करने का हथियार है।

        इन हत्या के हथियारों को फेंक दें। याद रखें, पूरी शक्ति हासिल करने का इकलौता तरीक़ा, पूरी ताक़त से लक्ष्य की तरफ़ बढ़े चलने का एकमात्र उपाय यही है कि आप जो करना चाहते हैं, वही करें। इच्छा के सामने समर्पण कर दें और बदले में आपको ऊर्जा, उत्साह, मानसिक स्फूर्ति और बेहतर सेहत भी मिलेगी।

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