Monday, September 23, 2019

CHAPTER. 7.3 अपने माहौल को सुधारें : फ़र्स्ट क्लास बनें



           मिल्टन की मनोवैज्ञानिक खुराक जॉन की तुलना में कम संतुलित है। उसके वीकएंड की कोई योजना नहीं होती। मिल्टन आम तौर पर शक्रवारकी रात को “थका हुआ" होता है, परंतु वह अपनी पत्नी से औपचारिकतावश पूछ लेता है, “कुछ करने का इरादा तो नहीं है ?" परंतु योजना वहीं पर ख़त्म हो जाती है। मिल्टन और उसकी पत्नी कभी-कभार ही कहीं आते-जाते हैं। मिल्टन शनिवार की सुबह देर तक सोता है और बाक़ी दिन किसी न किसी तरह के काम में उलझा रहता है। शनिवार की रात को मिल्टन और उसका परिवार सामान्यतः फ़िल्म देखने जाता है या टीवी देखता है ("और करने के लिए है ही क्या?")। मिल्टन रविवार की सुबह का ज़्यादातर हिस्सा बिस्तर में ही गुज़ारता है। रविवार की दोपहर वे लोग बिल और मैरी के यहाँ जाते हैं या फिर मैरी और बिल उनके यहाँ आ जाते हैं। (बिल और मैरी ही ऐसे इकलौते दंपति हैं जिनके यहाँ मिल्टन और उसकी पत्नी नियमित रूप से आते-जाते हैं।)

         मिल्टन का पूरा वीकएंड बोरियत भरा होता है। रविवार की रात तक पूरे परिवार में तनाव-सा छा जाता है। उनमें कोई लड़ाई-झगड़ा तो नहीं होता, परंतु घंटों का मनोवैज्ञानिक युद्ध चलता रहता है।

       मिल्टन का वीकएंड बोझिल, निराशाजनक, बोरियत भरा होता है। मिल्टन को कोई मनोवैज्ञानिक ऊर्जा नहीं मिलती।

        अब इन घरेलू माहौलों का जॉन और मिल्टन पर क्या असर होगा? कुछ सप्ताह में तो शायद इसका असर हमें नज़र नहीं आएगा। लेकिन अगर यही सिलसिला महीनों या सालों तक चलता रहा तो उसका असर साफ़ नज़र आएगा।

        जॉन के माहौल से उसे ताज़गी मिलती है, ऊर्जा मिलती है, नए-नए। विचार मिलते हैं, उसकी सोच व्यापक होती है। वह उस एथलीट की तरह है जो विटामिन की गोलियाँ खा रहा है।

        मिल्टन का माहौल ऐसा है जो उसे मनोवैज्ञानिक रूप से भूखा रख रहा है। उसका सोचने का यंत्र ख़राब हो चुका है। वह उस एथलीट का तरह है जिसे कैंडी और बियर दी जा रही है।

       जॉन और मिल्टन आज एक ही स्तर पर हो सकते हैं, परंतु आग आने वाले सालों में दोनों के बीच का फ़ासला बढ़ता जाएगा और जॉन
मिल्टन की तुलना में काफ़ी आगे निकल जाएगा।

        मजाकिया लोग कहेंगे, "शायद इसलिए कि जॉन में मिल्टन से ज्यादा दम है।"

       परंतु बात यह नहीं है। बात यह है कि इन दोनों के दिमाग को इनके माहौल ने जो मनोवैज्ञानिक खुराक दी है, उसका असर इनकी नौकरियों पर तो होना ही है।

        हर किसान जानता है कि अगर वह खेत में खाद डालेगा तो फ़सल ज्यादा पैदा होगी। अगर हम बेहतर परिणाम पाना चाहते हैं, तो हमारी सोच को भी अतिरिक्त पोषण की ज़रूरत होती है।

       मेरी पत्नी और मैं पिछले महीने एक डिपार्टमेंट स्टोर के मालिक की पार्टी में गए। मेरी पत्नी और मैं उससे बात करने के लिए थोड़ा रुक गए, जबकि बाकी लोग वहाँ से चल दिए। मैंने स्टोर के मालिक से पूछा, “शाम से ही मैं आपसे यह सवाल पूछना चाहता था कि आपने हम लोगों को इस पार्टी में क्यों बुलाया। मैंने उम्मीद की थी कि यहाँ पर आपके प्रोफ़ेशन से संबंधित लोग ही होंगे। परंतु आपके अतिथि तो अलग-अलग व्यवसाय से संबंधित थे। कोई लेखक था, कोई डॉक्टर था, कोई इंजीनियर था, कोई अकांउटेंट था तो कोई टीचर।"

         वह मुस्कराया, "हम अक्सर अपने प्रोफ़ेशन के लोगों को पार्टी देते हैं। परंतु हेलेन और मैं यह भी पसंद करते हैं कि हम ऐसे लोगों से भी मिलें जिनका प्रोफ़ेशन अलग हो। मुझे लगता है कि अगर हम केवल अपने ही व्यवसाय के लोगों से मिलेंगे-जुलेंगे तो हमारी मानसिकता
संकुचित हो जाएगी।

         "इसके अलावा," उसने आगे कहा, “मेरा बिज़नेस लोगों से जुड़ा बिज़नेस है। हर दिन हर प्रोफ़ेशन के हज़ारों लोग मेरे स्टोर में सामान ख़रीदते हैं। दूसरे लोगों के बारे में मैं जितना ज्यादा जानूँगा - उनके विचार, उनकी रुचियाँ, उनका दृष्टिकोण - मुझे उतना ही ज्यादा फायदा होगा क्योंकि मैं उन्हें उसी तरह की सेवा और सामान दे पाऊंगा जो व चाहते हैं।"

      कुछ नियमों का पालन करके आप भी अपने सामाजिक माहौल को फ़र्स्ट क्लास बना सकते हैं:

       1. नए समूहों में आएँ-जाएँ। अपनी सामाजिक गतिविधियों को किसी छोटे समूह में सीमित रखने से बोरियत और असंतुष्टि होती है। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि सफलता के लिए लोगों को समझना ज़रूरी होता है। हर तरह के लोगों के बारे में जानें, उनसे सीखें, उनका अध्ययन करें। केवल एक समूह का अध्ययन करके लोगों के बारे में जानकारी हासिल करने का विचार उसी तरह का है जिस तरह एक छोटी-सी पुस्तक पढ़कर गणितज्ञ बनने का विचार।

       नए दोस्त बनाएँ, नए संगठनों में शामिल हों, अपने सामाजिक दायरे को बढ़ाएँ। इसके अलावा अलग-अलग लोगों से मिलने से आपके जीवन का आनंद बढ़ जाता है और आपकी सोच व्यापक होती है। यह आपके दिमाग के लिए अच्छा भोजन है।

       2. ऐसे दोस्त चुनें जिनके विचार आपसे अलग हों। आज के आधुनिक युग में, संकीर्ण विचारधारा के व्यक्ति का भविष्य बहुत उज्जवल नहीं है। ज़िम्मेदारी और महत्वपूर्ण पद उसी व्यक्ति को मिलते हैं जो दोनों पहलुओं को देख सकता है। अगर आप रिपब्लिकन हैं, तो आपके कुछ दोस्त डेमोक्रेट होने चाहिए और अगर आप डेमोक्रेट हैं तो आपके कुछ दोस्त रिपब्लिकन होने चाहिए। दूसरे धर्म के लोगों से मिलें। अपने विपरीत स्वभाव के लोगों से दोस्ती करें। परंतु इस बात को सुनिश्चित कर लें कि उनकी मानसिकता भी प्रगतिशील हो, उनमें भी सफलता की चाह हो।

        3. ऐसे दोस्त चुनें जो छोटी, महत्वहीन बातों से ऊपर उठ सकते हों। जो लोग आपके विचारों या अपकी चर्चा के बजाय आपके घर के सामान या सजावट में रुचि लेते हैं वे छोटी मानसिकता के लोग होते हैं। अपने मनोवैज्ञानिक माहौल की रक्षा करें। ऐसे दोस्त चुनें जो सकारात्मक चीज़ों में रुचि रखते हों। ऐसे दोस्त चुनें जो आपको सचमुच सफल देखना चाहते हों। ऐसे दोस्त बनाएँ जो आपकी योजनाओं और आदर्शों में उत्साह भर । दें। अगर आप ऐसा नहीं करते, अगर आप घटिया सोच वालों को अपना सबसे पक्का दोस्त बनाते हैं, तो आप भी धीरे-धीरे एक घटिया चिंतक में बदल जाएँगे। हमारे देश में ज़हर का बहुत ध्यान रखा जाता है - शारीरिक ज़हर का।

         हर रेस्तराँ फूड पॉइजनिंग के बारे में सतर्क रहता है। अगर किसी रेस्तराँ में ऐसे एक-दो मामले हो जाएँ तो फिर ग्राहक वहाँ जाना छोड़ देते हैं। हमारे यहाँ सैकड़ों कानून हैं जिनमें जनता को सैकड़ों तरह के शारीरिक जहर से सुरक्षा दी जाती है। हमें ज़हर को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए। हम शारीरिक ज़हर से बचने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। और हमें ऐसा करना भी चाहिए।

       परंतु एक और तरह का ज़हर होता है जो शायद शारीरिक ज़हर से थोड़ा ज्यादा हानिकारक होता है-विचारों का ज़हर - जिसे “गपशप" कहा जाता है। विचारों के ज़हर और शारीरिक ज़हर में दो अंतर होते हैं। वैचारिक ज़हर दिमाग को प्रभावित करता है, शरीर को नहीं और इसके अलावा यह ज़्यादा सूक्ष्म होता है। जिस व्यक्ति को वैचारिक ज़हर दिया जा रहा है, आम तौर पर उसे इस बात का पता ही नहीं चलता।

         वैचारिक ज़हर सूक्ष्म होता है, परंतु इससे “बड़ी" चीजें हो जाती हैं। यह हमारी सोच का आकार घटाता है, क्योंकि हम अपनी सोच को छोटी, महत्वहीन बातों पर केंद्रित करने लगते हैं। यह लोगों के बारे में हमारी सोच को उथला और घटिया कर देता है क्योंकि इसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है और यह हममें अपराधबोध भी पैदा कर देता है जो तब साफ़ दिखाई दे जाता है जब हम उस व्यक्ति के सामने आते हैं जिसके बारे में गपशप की जा रही थी। वैचारिक ज़हर में सही सोच ० प्रतिशत होती है और 100 प्रतिशत गलत सोच होती है।

        और यह बात सही नहीं है कि सिर्फ महिलाएँ ही गपशप में मज़ा लेती हैं। हर दिन बहुत सारे पुरुष गपशप करते नज़र आते हैं, वैचारिक ज़हर के माहौल में रहते नज़र आते हैं। हर दिन हज़ारों गप्पें होती हैं, जिनका विषय होता है "बॉस की वैवाहिक या आर्थिक कठिनाइयाँ", "बिल की बिज़नेस में आगे निकलने की जोड़-तोड़", "जॉन के ट्रांसफ़र की संभावना," "टॉम को प्रमोशन दिए जाने के छुपे हुए कारण", और "उन्होंने उस नए व्यक्ति को क्यों रखा।" गपशप इस तरह से चलती है - "मैंने सुना है... नहीं, क्यों... इससे मुझे हैरानी नहीं हुई... उसके साथ तो यह होना ही था... किसी को बताना नहीं, यह गोपनीय है..." |

        बातचीत हमारे मनोवैज्ञानिक माहौल का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। कुछ चर्चाएँ स्वस्थ होती हैं। इनसे आपको प्रोत्साहन मिलता है। आपको ऐसा लगता है जैसे आप वसंत की कुनकुनी धूप में टहल रहे हों। कुछ चर्चाओं से आपको विजेता होने का एहसास होता है।

       परंतु कई बार चर्चा इस तरह की होती है जैसे आप किसी ज़हरीले. रेडियोएक्टिव बादल से गुज़र रहे हों। इससे आपको बीमारी का एहसास होने लगता है। इससे आप हारा हुआ महसूस करने लगते हैं।

      गपशप लोगों के बारे में नकारात्मक चर्चाएँ हैं और वैचारिक ज़हर का शिकार व्यक्ति यह समझता है कि उसे इसमें मज़ा आ रहा है। वह लोगों के बारे में नकारात्मक बातें सोच-सोचकर एक किस्म का ज़हरीला आनंद लेता है। वह यह समझ ही नहीं पाता कि ऐसा करने से वह सफल लोगों की नज़रों में लगातार छोटा होता जा रहा है और उनका उस पर से भरोसा कम होता जा रहा है।

        एक बार जब मैं और मेरे दोस्त बेंजामिन फ्रैंकलिन के बारे में चर्चा कर रहे थे, तो इसी तरह का वैचारिक ज़हर का शिकार व्यक्ति हमारी चर्चा में शामिल हो गया। जैसे ही मिस्टर किलजॉय को हमारी चर्चा का विषय मालूम चला, उन्होंने फ्रैंकलिन के व्यक्तिगत जीवन के कुछ प्रसंग हमें नकारात्मक रूप से सुनाए। शायद यह सच हो कि फ्रैंकलिन का व्यक्तिगत जीवन पाकसाफ़ नहीं रहा हो। परंतु मुद्दे की बात यह थी कि हम लोग बेंजामिन फ्रैंकलिन के व्यक्तिगत जीवन पर बात नहीं कर रहेथे और मुझे खुशी हुई कि हम लोग अपने किसी परिचित व्यक्ति के बारे में चर्चा नहीं कर रहे थे।

           लोगों के बारे में बोलें ? हाँ, परंतु सकारात्मक पहलू से।

एक बात अच्छे से समझ लें : हर तरह की चर्चा गपशप नहीं होती। कई बार इधर-उधर की चर्चा, हँसी-मज़ाक़, हल्का-फुल्का मनोरंजन ज़रूरी होता है। उससे दिमाग तरोताज़ा होता है, परंतु शर्त यह है कि यह रचनात्मक होना चाहिए। आप इस टेस्ट से यह जान सकते हैं कि आप कितना गपियाते हैं या गप्प में आपकी कितनी रुचि है :

1. क्या मैं दूसरों के बारे में अफ़वाह फैलाता हूँ?

2. क्या मैं दूसरों के बारे में अच्छी बातें कहता हूँ?

3. क्या मुझे स्कैंडल सुनना अच्छा लगता है?

4. क्या मैं केवल तथ्यों के आधार पर ही किसी का मूल्यांकन करता हूँ?

5. क्या मैं दूसरों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता हूँ कि वे मुझे अफ़वाहें सुनाएँ?

6. क्या मैं अपनी चर्चा को इस बात से शुरू करता हूँ, “देखना किसी से कहना नहीं?"

7. क्या मैं गोपनीय जानकारी को पूरी तरह गोपनीय रखता हूँ?

8. क्या मैं दूसरों के बारे में बोलते समय अपराधबोध से ग्रस्त रहता हूँ?

          सही जवाब क्या है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है।

          इस बारे में एक मिनट सोचें : कुल्हाड़ी उठाकर अपने पड़ोसी का फ़र्नीचर तोड़ देने से आपका फ़र्नीचर बेहतर नहीं दिखने लगता। इसी तरह, दूसरे व्यक्ति पर शब्दों की कुल्हाड़ी या हथगोले चलाने से आप बेहतर इंसान नहीं बन जाते।

हमेशा फर्स्ट क्लास बने रहें। अपने हर काम में इस नियम का पालन करें। सामान या सेवाएँ खरीदने में भी। एक बार, फ़र्स्ट क्लास सोच की सफलता साबित करने के लिए मैंने एक ट्रेनी समूह से पूछा कि वे मुझे अपने जीवन की कुछ ऐसी घटनाएँ सुनाएँ जब उन्होंने चवन्नी बचाकर अठन्नी का नुकसान कर लिया हो। यहाँ पर कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं :

        "मैंने फुटपाथ से एक सस्ता-सा सूट खरीद लिया। मैंने सोचा कि यह बढ़िया सौदा था, परंतु सूट ख़राब निकला।"

          "मेरी कार में रिपेयरिंग होनी थी। मैं इसे एक सस्ते से गैरेज में ले गया जो अथाराइज्ड डीलर से 25 डॉलर कम में रिपेयरिंग करने के लिए तैयार हो गया। परंत मेरी कार जल्दी ही फिर से खराब हो गई। अब वह गरेज वाला यह मानने को तैयार नहीं है कि गलती उसकी है।"

"महीनों तक मैंने पैसे बचाने के लिए एक घटिया होटल में खाना खाया। जगह साफ़-सुथरी नहीं थी, खाना भी अच्छा नहीं था और सर्विस- उसे सर्विस कहना ही मूर्खता होगी और ग्राहक भी थर्ड क्लास आते थे। एक दिन मेरा एक दोस्त ज़बरदस्ती मुझे एक बढ़िया रेस्तराँ में ले गया। उसने लंच का ऑर्डर दिया और मैंने भी। मुझे जो मिला उससे मैं हैरान हो गया- बढ़िया खाना, बढ़िया सर्विस, बढ़िया माहौल, और पैसे भी थोड़े से ही ज्यादा लगे। इस घटना से मैंने एक बड़ा सबक सीखा।"

        ऐसे और भी कई प्रसंग सुनाए गए। एक व्यक्ति ने कहा कि उसने "वारगेन" अकाउंट का उपयोग किया था जिसके कारण वह टैक्स के झंझट में फंस गया था। दूसरे व्यक्ति ने बताया कि वह एक सस्ते डॉक्टर के पास चला गया था, जिसने उसे गलत बीमारी बता दी थी। कई और लोगों ने बताया कि किस तरह सस्ते के चक्कर में - घर की सस्ती मरम्मत, सस्ते होटल, और बाक़ी सस्ते सामान में - उन्होंने चोट खाई थी।

         मैंने कई बार लोगों को यह कहते सुना है, “परंतु मैं फ़र्स्ट क्लास सामान कैसे ख़रीद सकता हूँ?" इसका सीधा-सा जवाब है, 'आप इसके अलावा कोई दूसरा सामान किस तरह खरीद सकते हैं?' लंबे समय में अच्छा माल खरीदना हमेशा सस्ता पड़ता है। इसके अलावा ढेर सारी घटिया चीजें होने से यह बेहतर है कि आपके पास कम चीजें हों, पर अच्छी हों। तीन जोड़ी घटिया जूते होने से एक जोड़ी बढ़िया जूते हमेशा
बेहतर हैं।

       लोग क्वालिटी के हिसाब से आपका मूल्यांकन करते हैं, चाहे वे अवचेतन में ऐसा करते हों। क्वालिटी का ध्यान रखें। इससे फायदा होता है। और इसमें ज़्यादा ख़र्च भी नहीं होता। ज्यादातर समय, फर्स्ट क्लास बनने में सेकंड क्लास की तुलना में कम पैसा लगता है। 

सफलता का माहौल कैसे तैयार करें

1. माहौल के प्रति सचेत बनें। जिस तरह अच्छा भोजन शरीर को शक्ति देता है, उसी तरह अच्छे विचार आपके मस्तिष्क को शक्ति देते हैं।

       2. अपने माहौल को अपना सहयोगी बनाएँ, अपना विरोधी नहीं। दमनकारी शक्तियों, नकारात्मक लोगों, आप-ऐसा-नहीं-कर-सकते कहने वाले लोगों को अपना हौसला पस्त न करने दें।

          3. छोटी सोच वाले लोगों के चक्कर में न आएँ। ईर्ष्यालु लोग तो चाहते ही हैं कि आप आगे न बढ़ पाएँ। उन्हें खुश होने का मौक़ा न दें।

          4. सफल लोगों से सलाह लें। आपका भविष्य महत्वपूर्ण है। फोकटिया सलाहकारों से सलाह लेने का जोखिम न लें, क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि असफल लोग ही फोकटिया सलाहकार होते हैं।

           5. बहुत-सी मनोवैज्ञानिक ऊर्जा हासिल करें। नए समूहों में आएँ-जाएँ। करने के लिए नए और प्रेरक काम खोजें।

           6. अपने माहौल से वैचारिक ज़हर को दूर रखें। गपशप से, परनिंदा से बचें। लोगों के बारे में बातें करें, परंतु सकारात्मक पहलू से।

           7. अपने हर काम में फ़र्स्ट क्लास रहें। आप दूसरे किसी तरीके से काम करने का जोखिम नहीं उठा सकते।

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