Tuesday, October 22, 2019

CHAPTER 13.6 सोचें तो लीडर की तरह


      साम्यवाद के कूटनीतिक रूप से चतुर कई लीडर्स - लेनिन, स्तालिन और कई अन्य - भी काफ़ी समय तक जेल में रहे, ताकि बिना किसी बाहरी चिंता के वे अपनी भावी योजनाएँ बना सकें।

        बड़ी-बडी यूनिवर्सिटीज़ अपने प्रोफ़ेसरों से हर सप्ताह सिर्फ पाँच घंटे लेक्चर दिलवाती हैं ताकि बाक़ी समय प्रोफेसर के पास सोचने का समय हो। 

        कर्ड प्रसिद्ध बिज़नेस हस्तियाँ दिन भर सहयोगियों, सेक्रेट्रियों, टेलीफ़ोनों, और रिपोर्टों की व्यस्तता में घिरे दिखते हैं। परंतु आप उनके जीवन के हर सप्ताह 168 घंटे देखें या हर महीने 720 घंटे देखें, तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे काफ़ी समय एकांत चिंतन में गुज़ारते हैं। 

      मुददे की बात यह है : किसी भी क्षेत्र में सफल व्यक्ति अपने आपसे बात करने के लिए समय निकालता है। एकांत में लीडर्स समस्या के सभी टुकड़ों को इकट्ठा करते हैं, उसका हल खोजते हैं, योजना बनाते हैं और एक वाक्यांश में कहा जाए, तो सुपर-थिंकिंग करते हैं।

      कई लोग अपनी रचनात्मक लीडरशिप की क्षमता का इसलिए दोहन नहीं कर पाते, क्योंकि वे अपने अलावा हर इंसान से बातें कर लेते हैं। आप भी किसी ऐसे ही व्यक्ति को जानते होंगे। यह व्यक्ति कोशिश करता है कि वह कभी अकेला न रहे। वह लोगों से घिरा रहने की लगातार कोशिश करता है। वह अपने ऑफिस में अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर पाता, इसलिए वह दूसरे लोगों के पास जबरन जाता है। शाम को भी वह अकेले समय शायद ही गुज़ारता हो। वह हर घड़ी किसी से बात करने की ज़रूरत महसूस करता है। वह गपशप में काफ़ी समय बर्बाद करता है।

        जब ऐसे व्यक्ति को परिस्थितिवश शारीरिक रूप से अकेले रहना पड़ता है, तो वह ऐसे तरीके ढूँढ लेता है जिनसे वह मानसिक रूप से अकला न रहे। ऐसे समय में वह टेलीविज़न, अख़बार, रेडियो, टेलीफ़ोन किसी और ऐसे ही यंत्र का सहारा लेता है जो उसके चिंतन को ख़त्म
द। वास्तव में वह यह कहता है. “मिस्टर टीवी, मिस्टर अख़बार, मेरे गको भर दो। मैं अपने विचारों का सामना करने से घबराता हूँ।"

        मिस्टर मैं-अकेलापन-बर्दाश्त नहीं कर पाता स्वतंत्र विचार से दूर भागते हैं। वे अपने दिमाग का दरवाज़ा बंद रखते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से वे अपने खुद के विचारों से डरे रहते हैं। जैसे-जैसे समय गुज़रता जाता है, मिस्टर मैं-अकेलापन-बर्दाश्त-नहीं-कर-पाता लगातार उथले होते जाते हैं। वे कई गलत काम भी कर देते हैं। उनमें लक्ष्य की सामर्थ्य या व्यक्तिगत स्थिरता विकसित नहीं हो पाती। वे दुर्भाग्य से उस सुपर-पॉवर के बारे में अनजान रहते हैं जो उनके दिमाग में बेकार ही पड़ा हुआ है।

       मिस्टर मैं अकेलापन-बर्दाश्त नहीं-कर-पाता न बनें। सफल लीडर्स अकेलेपन में ही अपने सुपर-पॉवर का दोहन करते हैं। आप भी ऐसा ही कर सकते हैं।

       आइए देखें कि कैसे।

       एक प्रोफेशनल डेव्लपमेंट प्रोग्राम के हिस्से के रूप में मैंने 13 विद्यार्थियों को दो सप्ताह तक हर दिन एक घंटे तक एकांत में रहने के लिए कहा। विद्यार्थियों से कहा गया कि वे सारी बाधाओं से दर. बिलकल एकांत में किसी भी घटना के बारे में रचनात्मक रूप से सोचें।

       दो सप्ताह बाद, हर विद्यार्थी ने बिना किसी अपवाद के यह बताया कि यह अनुभव बहुत ही व्यावहारिक और सफल रहा। एक व्यक्ति ने बताया कि एकांत के प्रयोग के पहले उसका अपनी कंपनी के एक अधिकारी से मतभेद हो गया था और वह उसके साथ युद्ध करने के मूड में आ गया था, परंतु स्पष्ट चितन के बाद उसने समस्या का स्त्रोत खोज लिया और उसका हल भी। बाक़ी लोगों ने भी बताया कि उन्होंने कई समस्याओं का हल ढूँढ लिया जिनमें नौकरियाँ बदलने, शादी की कठिनाइयाँ, घर खरीदने और बच्चे के लिए अच्छा कॉलेज चुनने की समस्याएँ शामिल थीं।

       हर विद्यार्थी ने उत्साह से बताया कि खुद के बारे में उसकी बेहतर समझ विकसित हुई है- उसने खुद की कमजोरियों और शक्तियों को जान लिया है, जो वह पहले कभी नहीं जान पाया था।

      विद्यार्थियों ने ऐसा कुछ और भी खोज लिया जो बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने पाया कि एकांत में लिए गए निर्णय और निष्कर्ष न जाने क्यों 100 प्रतिशत सही होते हैं। विद्यार्थियों ने पाया कि जब कोहरा छंट जाता है तो 

सही निर्णय बिलकुल स्पष्ट हो जाता है।

         एकांत चिंतन के बहुत लाभ हैं।

        एक दिन मेरी एक सहयोगी ने एक समस्या के बारे में अपना पहले का नजरिया पूरी तरह बदल लिया। मैं यह जानने के लिए उत्सक था कि उसने अपने विचार क्यों बदल लिए। समस्या तो वही थी और समस्या दरअसल एक मूलभूत क़िस्म की समस्या थी, इसलिए मैं इस बदलाव का कारण नहीं समझ पा रहा था। उसका जवाब यह था, 'मैं स्पष्टता से नहीं सोच पा रही थी कि हमें क्या करना चाहिए। इसलिए मैं आज सुबह साढे तीन बजे उठी, एक कप कॉफ़ी पी और सोफे पर 7 बजे तक बैठकर सोचती रही। अब मुझे सारी चीजें साफ़ दिख रही हैं। तो इसीलिए मैंने अपने विचार बदल लिए और दूसरे तरीके को अपनाने का फैसला किया।

       और उसका नया तरीक़ा पूरी तरह सही साबित हुआ।

        हर दिन कुछ समय (कम से कम तीस मिनट) पूरी तरह एकांत में रहने के लिए अलग निकाल लें।

        शायद सुबह का समय बेहतर होता है, क्योंकि उस समय शोरगुल नहीं होता है। या देर शाम का समय भी शायद अच्छा रहेगा।महत्वपूर्ण बात यह है कि आप ऐसा समय चनें जब आपके मस्तिष्क में स्फूर्ति हो और जब बाहरी बाधाएँ कम हों।

        आप इस समय का इस्तेमाल दो तरीकों से कर सकते हैं : किसी दिशा में चिंतन या दिशाहीन चिंतन। किसी दिशा में चिंतन करने के लिए अपना किसी महत्वपर्ण समस्या पर विचार करें। एकांत में समस्या पर निरपेक्ष ढंग से सोचें और इससे आपको सही जवाब मिल जाएगा।

        दिशाहीन चिंतन करने के लिए, आप अपने दिमाग को अपने आप वह चाहे सोचने दें। इन क्षणों में आपका अवचेतन मस्तिष्क आपके मेमोरी बैंक का दोहन करता है जो आपके चेतन मस्तिष्क का पोषण करता है। दिशाहीन चिंतन आत्म-मूल्यांकन करने में बहुत सहायक होता हैं ।यह  आपको बहुत मूलभूत विषयों तक ले जाता है जैसे,"मैं कैसे बेहतर बन सकता हूँ? मेरा अगला कदम क्या होना चाहिए?"

याद रखें, लीडर का मुख्य काम है सोचना। और लीडरशिप की सर्वश्रेष्ठ तैयारी चिंतन है। हर दिन कुछ समय एकांत चिंतन के लिए निकालें और आप सफल चिंतन की राह पर होंगे।

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