Thursday, August 29, 2019

CHAPTER 3.2. डर का इलाज करने और विश्वास हासिल करने के लिए ये दो कदम उठाएँ:

डर का इलाज करने और विश्वास हासिल करने के लिए ये दो कदम उठाएँ:




       1. डर का असली कारण पता करें। यह तय कर लें कि आप वास्तव में किस चीज़ से डर रहे हैं।

      2. फिर कर्म करें। हर तरह का डर किसी न किसी तरह के काम से दूर हो सकता है।

      और याद रखें, झिझकने से आपका डर बढ़ता ही है, कम नहीं होता। इसलिए देर न करें, बल्कि तत्काल काम में जुट जाएँ। फैसला करें।

        आत्मविश्वास के अभाव का कारण होती है ख़राब याददाश्त। आपका दिमाग़ किसी बैंक की तरह होता है। हर दिन आप अपने "दिमाग़ के बैंक" में विचारों को जमा करते जाते हैं। विचारों का यह संग्रह बढ़ता जाता है और आपकी याददाश्त बन जाता है। जब भी आप सोचने बैठते हैं या आपके सामने कोई समस्या आती है तो दरअसल आप अपनी यादों के बैंक से पूछते हैं, "इस बारे में मैं क्या जानता हूँ?"

        आपकी यादों का बैंक पहले से जमा किए हुए विचारों के संग्रह में से आपको आपकी मनचाही जानकारी देता है। आपकी यादें ही वह मूलभूत सप्लायर हैं जो आपको नए विचार के लिए कच्चा माल प्रदान करती हैं।

         आपकी यादों के बैंक का टेलर बहुत ही भरोसेमंद है। वह आपको कभी धोखा नहीं देता। जब आप उसके पास जाकर कहते हैं, "मिस्टर टेलर, मुझे कुछ विचार निकालकर दें जिनसे यह सिद्ध हो कि मैं बाक़ी लोगों जितना योग्य नहीं हूँ," वह कहता है, “बिलकुल, सर। याद करें आपने पहले भी दो बार इस काम को करने की कोशिश की थी, और आप असफल हुए थे? याद करें आपकी छठी कक्षा की टीचर ने कहा था कि आप कोई भी काम ढंग से नहीं कर सकते। याद करें आपने अपने साथी कर्मचारियों को अपने बारे में यह कहते सना था... याद करें..."

         और मिस्टर टेलर एक के बाद एक विचार निकालकर आपको देते हैं जिनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि आप अयोग्य हैं, असमर्थ हैं।

           परंतु अगर आप अपनी यादों के टेलर से यह कहें, “मिस्टर टेलर, मझे एक महत्वपूर्ण फैसला करना है। क्या आप मुझे ऐसे विचार प्रदान करेंगे जिनसे मुझे हौसला मिले?"

          और इसके जवाब में मिस्टर टेलर कहते हैं, “बिलकुल, सर," परंतु इस बार वे आपको पहले से जमा किए हुए ऐसे विचार देते हैं जिनसे यह साबित होता है कि आप सफल हो सकते हैं। “याद करें आपने पहले भी ऐसी परिस्थिति में वह शानदार काम किया था... याद करें मिस्टर स्मिथ को आप पर कितना भरोसा था... याद करें आपके अच्छे दोस्त आपके बारे में यह कहा करते थे... याद करें..." मिस्टर टेलर पूरी तरह सहयोग करेंगे और आपको उसी तरह के विचार निकालने देंगे जिस तरह के विचार आप निकालना चाहते हैं। आखिर, यह आपका बैंक है।

         यहाँ पर दो उपाय दिए जा रहे हैं जिनके प्रयोग से आप अपनी यादों के बैंक का प्रभावी उपयोग कर सकते हैं और अपना आत्मविश्वास जगा सकते हैं।

        1. अपनी यादों के बैंक में केवल सकारात्मक विचार ही जमा करें। इस बात को अच्छी तरह से समझ लें। हर व्यक्ति के जीवन में अप्रिय, मुश्किल, हतोत्साहित करने वाली घटनाएँ होती हैं। परंतु इन घटनाओं के प्रति असफल और सफल लोगों की प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग होती हैं। असफल लोग बुरी घटनाओं को दिल से लगाकर रखते हैं। वे अप्रिय स्थितियों को बार-बार याद करते हैं, ताकि वे उनकी यादों में अच्छी तरह से जम जाएँ। वे अपने दिमाग से उन्हें नहीं निकाल पाते। रात को भी वे जिस घटना के बारे में सोचते हुए सोते हैं, वह दिन में हुई कोई अप्रिय घटना ही होती है।

        दूसरी तरफ़ आत्मविश्वास से पूर्ण, सफल लोग इस तरह की घटनाओं को "भूल जाते हैं।” सफल लोग अपनी यादों के बैंक में केवल सकारात्मक विचार ही रखते हैं।

         आपकी कार किस तरह चलेगी अगर हर सुबह काम पर जाने से पहले आप दो मुट्ठी धूल अपने फ्रैंक केस में डाल दें ? क्या आपका शानदार इंजन बैठ नहीं जाएगा और आप इससे जो कराना चाहते हैं, वह करने से इन्कार नहीं कर देगा? आपके दिमाग में जमा नकारात्मक,
अप्रिय विचार भी आपके दिमाग को इसी तरह से प्रभावित करते हैं। नकारात्मक विचार आपकी मानसिक मोटर को इसी तरह की अनावश्यक टूटफूट का शिकार बनाते हैं। इनसे चिंता, कुंठा और हीनता की भावनाएँ पैदा होती हैं। नकारात्मक विचार आपको सड़क के किनारे खड़ा रखते हैं, जबकि बाक़ी लोग अपनी गाड़ियों पर फर्राटे से आगे बढ़ रहे होते हैं।

         ऐसा करें। उन क्षणों में जब आप अपने विचारों के साथ अकेले हों- जब आप अपनी कार चला रहे हों या अकेले खाना खा रहे हों - सुखद, सकारात्मक घटनाएँ याद करें। अपनी यादों के बैंक में अच्छे विचार डालें। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे आपमें “मैं सचमुच अच्छा हूँ" की भावना जागती है। इससे आपका शरीर भी स्वस्थ रहता है।

        इसका एक बढ़िया तरीका यह है। सोने जाने से पहले, अपनी यादों के बैंक में अच्छे विचारों को डाल दें। अपने जीवन की अच्छी बातों को याद करें। यह सोचें कि आपको कितनी सारी चीज़ों के लिए ऊपर वाले का शुक्रगुज़ार होना चाहिए : आपकी पत्नी या आपका पति, आपके बच्चे, आपके दोस्त, आपका स्वास्थ्य। उन अच्छी चीज़ों को याद करें जो आपने लोगों को आज करते देखा है। अपनी छोटी-छोटी सफलताओं और उपलब्धियों को याद करें। उन कारणों को दुहराएँ कि आपको आज जीवित होने के लिए खुश क्यों होना चाहिए।

          2. अपनी यादों के बैंक से केवल सकारात्मक विचार ही निकालें। कई वर्ष पहले मैं शिकागो में मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की एक फर्म के साथ करीबी रूप से जुड़ा हुआ था। वे कई तरह के मामले सुलझाते थे, परंतु उनमें से ज़्यादातर मामले विवाह संबंधी समस्याओं और मनोवैज्ञानिक कठिनाइयों से संबंधित होते थे।

         एक दिन मैं फ़र्म के मुखिया से उसके प्रोफेशन और उसकी तकनीकों के बारे में बात कर रहा था। मैं यह जानना चाहता था कि वह किस तरह असंतुलित व्यक्ति की मदद करता है। उसने कहा, “क्या आप जानते हैं। कि लोग अगर केवल एक चीज़ कर लें, तो उन्हें मेरी सेवाओं की कभी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"

           "वह क्या ?” मैंने उत्सुकता से पूछा।

          "सिर्फ यही- कि आप अपने नकारात्मक विचारों को नष्ट कर दें, इससे पहले कि वे विचार राक्षस बन जाएँ और आपको नष्ट कर दें।"

         "मैं जिन लोगों की मदद करता हूँ उनमें से ज्यादातर लोग,” उसने कहा, "मानसिक आतंक की दुनिया में रहते हैं। शादी की बहुत सारी कठिनाइयाँ 'हनीमून राक्षस' की वजह से होती हैं। हनीमून उतना संतोषजनक नहीं रहा होगा, जितना एक या दोनों जीवनसाथी चाहते हों। परंतु उस याद को दफ़ना देने के बजाय वे लोग सैकड़ों बार उस पर विचार करते रहते हैं जब तक कि यह उनके वैवाहिक जीवन की एक बहुत बड़ी बाधा नहीं बन जाती। वे मेरे पास पाँच या दस साल बाद आते हैं।

          "आम तौर पर, मेरे ग्राहक यह नहीं जान पाते कि समस्या की जड़ कहाँ है। यह मेरा काम है कि मैं उनकी कठिनाई का विश्लेषण करूँ और उन्हें यह बताऊँ कि उन्होंने राई का पहाड़ बना लिया है।

          "कोई भी व्यक्ति किसी भी अप्रिय घटना को मानसिक राक्षस बना सकता है," मेरे मनोवैज्ञानिक दोस्त ने आगे कहा। "नौकरी की असफलता, असफल रोमांस, बुरा निवेश, टीन-एज बच्चे के व्यवहार से निराशा- ऐसे आम राक्षस हैं जिनकी वजह से मैंने लोगों को परेशान देखा है और मैं इन राक्षसों को मारने में इन लोगों की मदद करता हूँ।"

             यह स्पष्ट है कि अगर हम किसी भी नकारात्मक विचार को बार-बार दोहराएँगे तो इसका मतलब है कि हम इसे खाद-पानी दे रहे हैं। और अगर हम इसे खाद-पानी देंगे, तो यह धीरे-धीरे बड़ा राक्षस बनकर हमारे आत्मविश्वास को नष्ट कर देगा और हमारी सफलता की राह में गंभीर मनोवैज्ञानिक कठिनाइयाँ खड़ी कर देगा।

            कॉस्मोपॉलिटन मैग्ज़ीन में हाल ही में छपे एक लेख "द ड्राइव टुवर्ड सेल्फ़-डेस्ट्रक्शन" में एलिस मल्काहे ने इस तरफ़ इशारा किया कि हर साल 30,000 अमेरिकी आत्महत्या कर लेते हैं और 100,000 लोगआत्महत्या का असफल प्रयास करते हैं। उन्होंने आगे कहा, “इस बात के आश्चर्यजनक प्रमाण मिले हैं कि लाखों-करोड़ों दूसरे लोग धीमे-धीमे, कम स्पष्ट तरीकों से खुद को मार रहे हैं। बाक़ी के लोग शारीरिक आत्महत्या करने के बजाय, आध्यात्मिक आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वे खुद को कई तरह से अपमानित, दंडित कर रहे हैं और कुल मिलाकर अपने आपको छोटा बना रहे हैं।"

          जिस मनोवैज्ञानिक मित्र का मैंने ज़िक्र किया था, उसने मुझे बताया कि किस तरह उसने अपनी एक ऐसी मरीज़ को रोका जो "मानसिक और आध्यात्मिक आत्महत्या करने पर तुली हुई थी। उसने कहा, “इस मरीज़ की उम्र पैंतीस से ऊपर होगी। उसके दो बच्चे थे। सामान्य भाषा में कहा जाए तो उसे गंभीर डिप्रेशन था। अपनी जिंदगी का हर अनुभव उसे दःखद अनुभव ही लगता था। उसका स्कूली जीवन, उसकी शादी, बच्चों का लालन-पालन, जिन जगहों पर वह रही थी- सभी के बारे में उसकी सोच नकारात्मक थी। उसने बताया कि उसे याद नहीं है कि वह कभी सुखी भी रही थी। और चूँकि व्यक्ति अपने अतीत की कूची से ही अपने वर्तमान में रंग भरता है इसलिए उसे वर्तमान जीवन में भी सिर्फ निराशा और अँधेरा ही नज़र आ रहा था।

          “जब मैंने उससे पूछा कि सामने वाली तस्वीर में उसे क्या दिख रहा था, तो उसने कहा, 'ऐसा लगता है जैसे यहाँ आज रात तूफ़ान आने वाला है। यह उस तस्वीर का सबसे निराशाजनक विश्लेषण था।" (यह तस्वीर एक बड़ी ऑइल पेंटिंग है जिसमें सूर्य आसमान में नीचे की तरफ़ है। चित्र बहुत चतुराई से बनाया गया है और इसे सूर्योदय का दृश्य भी समझा जा सकता है और सूर्यास्त का भी। मनोवैज्ञानिक ने कहा कि लोग तस्वीर में जो देखते हैं, उससे उनके व्यक्तित्व के बारे में संकेत मिल जाता है। ज्यादातर लोग कहते हैं कि यह सूर्योदय का दृश्य है जबकि मानसिक रूप से असंतुलित, डिप्रेस्ड व्यक्ति हमेशा इसे सूर्यास्त का दृश्य बताते हैं।)

          “एक मनोवैज्ञानिक के रूप में मैं किसी व्यक्ति की याददाश्त तो नहीं बदल सकता। परंतु अगर मरीज़ सहयोग दे, तो मैं उसे अपने अतीत को अलग तरीके से देखने का नज़रिया सिखा सकता हूँ। मैंने इस महिला को । भी ऐसा ही करना सिखाया। मैंने उसे बताया कि वह अपने अतीत को पूरी तरह निराशावादी रवैए से न देखे और उसमें से खुशी और आनंद के पलों को याद करने की कोशिश करे। छह महीनों के बाद उसकी हालत में थोड़ा सा सुधार हुआ। उस वक़्त मैंने उसे एक ख़ास काम सौंपा। मैंने उससे कहा कि वह हर दिन तीन कारण लिखे जिनके कारण उसे खुश होना चाहिए। हर सप्ताह गुरुवार को मैं उसके लिखे कारणों को देख लेता था। यह सिलसिला तीन माह तक चलता रहा। उसमें काफ़ी सुधार होरहा था। आज वह महिला एक सामान्य जीवन जी रही है। वह सकारात्मक है और वह ज़्यादातर लोगों जितनी ही सुखी है।"

       जब इस महिला ने अपनी यादों के बैंक से नकारात्मक विचार निकालना बंद कर दिया, तो उसकी हालत में सुधार होना शुरू हो गया।

         चाहे मनोवैज्ञानिक समस्या बड़ी हो या छोटी, इलाज हमेशा तभी शुरू होता है जब व्यक्ति अपनी यादों के बैंक से नकारात्मक विचारों को निकालना बंद कर देता है और उनके बजाय सकारात्मक विचार निकालना शुरू कर देता है।

         मानसिक राक्षस न बनाएँ। अपनी यादों के बैंक से अप्रिय विचार निकालना बंद कर दें। जब भी आपको किसी तरह की कोई परिस्थिति याद आए, तो उसके अच्छे हिस्से के बारे में सोचें। बुरे हिस्से को भूल जाएँ। उसे दफना दें। अगर आप यह पाएँ कि आप नकारात्मक पहलू पर ही विचार कर रहे हैं, तो उस घटना से अपने दिमाग को पूरी तरह हटा दें।

         और यहाँ हम आपको एक और महत्वपूर्ण और उत्साहवर्द्धक बात बताना चाहते हैं। आपका मस्तिष्क अप्रिय घटनाओं को भुलाना चाहता है। अगर आप सहयोग करें, तो अप्रिय यादें धीरे-धीरे सिकुड़ती जाती हैं और आपकी यादों के बैंक का टेलर उन्हें बाहर निकालता जाता है।

        डॉ. मैल्विन एस. हैविक एक प्रसिद्ध एड्वर्टाइजमेंट मनोवैज्ञानिक हैं और याद रखने की हमारी योग्यता के बारे में वे कहते हैं, “जब जागने वाली भावना सुखद होती है तो विज्ञापन को याद रखना आसान होता है। जब जागने वाली भावना सुखद नहीं होती, तो पाठक या श्रोता उस विज्ञापन के संदेश को जल्दी ही भूल जाते हैं। अप्रिय घटनाएँ हमारी चाही गई चीज़ों के ख़िलाफ़ होती हैं, इसलिए हम उन्हें याद नहीं रखना चाहते।" 

संक्षेप में, अगर हम उन्हें बार-बार याद न करें तो अप्रिय घटनाओं को भूलना आसान है। अपनी यादों के बैंक से केवल सकारात्मक विचार ही निकालें। बाक़ी को यूँ ही बेकार पड़ा रहने दें। और आपका आत्मविश्वास आसमान छू लेगा। आपको ऐसा लगेगा जैसे आप किला फतह कर सकते हैं। आपको लगेगा आप दुनिया की चोटी पर पहुँच सकते हैं। आप जब भी अपने नकारात्मक, खुद को छोटा करने वाले विचारों को याद करने से इन्कार करते हैं तो आप अपने डर को जीतने की तरफ़ एक बड़ा क़दम आगे बढ़ाते हैं।

          लोग दूसरे लोगों से क्यों डरते हैं ? जब दूसरे लोग हमारे आस-पास होते हैं तो हम इतना आत्म-चेतन क्यों हो जाते हैं ? हमारे संकोच की क्या वजह होती है? हम इस बारे में क्या कर सकते हैं?

         दूसरे लोगों का डर एक बड़ा डर होता है। परंतु इसे जीतने का भी एक तरीक़ा है। अगर आप उसे “सही पहलू" से देखने की आदत डाल लें तो आप लोगों के डर को जीत सकते हैं।

         मेरे एक सफल बिज़नेस मित्र ने मुझे बताया कि किस तरह उसने लोगों के बारे में सही नज़रिया सीखा। उसका उदाहरण सचमुच दिलचस्प है।

         “द्वितीय विश्वयुद्ध में सेना में जाने से पहले मैं हर एक के सामने झिझकता था, हर एक से डरता था। आप सोच भी नहीं सकते मैं उस समय कितना शर्मीला और संकोची हुआ करता था। मुझे लगता था बाक़ी लोग मुझसे बहुत ज़्यादा स्मार्ट हैं। मैं अपनी शारीरिक और
मानसिक कमियों को लेकर चिंता किया करता था। मैं सोचा करता था कि मेरा जन्म ही असफल होने के लिए हुआ है।

        "फिर क़िस्मत से मैं सेना में चला गया और वहाँ जाने के बाद मेरे दिल से लोगों का डर निकल गया। 1942 और 1943 के दौरान जब सेना में लोगों को भर्ती किया जा रहा था, तो मुझे भर्ती केंद्रों पर मेडिकल ऑफ़िसर के रूप में तैनात किया गया। मैंने इन लोगों के परीक्षण म सहयोग किया। मैं इन रंगरूटों को जितना देखता था. मेरे मन से लागा का डर उतना ही कम होता जाता था।

          “सैकड़ों की तादाद में लोग खड़े हुए थे. सभी पूरे कपड़े उतार हुए। थे और सभी लगभग एक-से दिख रहे थे। हाँ. इनमें से कुछ माटयार कुछ दुबले, कुछ लंबे थे और कुछ नाटे. परंत वे सभी परेशान थे, सभी अकेलापन अनुभव कर रहे थे। कुछ समय पहले यही लोग युवा
एक्जीक्यूटिव हुआ करते थे। कुछ समय पहले इनमें से कुछ किसान थे, कछ सेल्समेन थे, कुछ ब्लू कालर कर्मचारी थे, और कुछ यूँ ही सड़कों पर खाक छाना करते थे। कुछ दिन पहले ये लोग अलग-अलग काम किया करते थे। परंतु भर्ती केंद्र पर वे सारे लोग एक-से दिख रहे थे।

         तब मैंने एक महत्वपूर्ण बात सोची। मैंने पाया कि लोग ज़्यादातर मामलों में एक-से होते हैं। लोगों में समानताएँ ज़्यादा होती हैं, और असमानताएँ कम होती हैं। मैंने पाया कि सामने वाला आदमी भी मेरे जैसा ही है। उसे भी अच्छा खाना पसंद है, उसे भी अपने परिवार और
दोस्तों की याद आती है, वह भी तरक्की करना चाहता है, उसके पास भी समस्याएँ हैं और वह भी आराम करना चाहता है। इसलिए, अगर सामने वाला मेरे जैसा ही है, तो उससे डरने की कोई वजह ही नहीं है।"

अब, मैं आपसे पूछता हूँ। क्या यह बात काम की नहीं है? अगर सामने वाला मेरे जैसा ही है, तो उससे डरने की कोई वजह ही नहीं है।

            लोगों को सही नज़रिए से देखने के दो तरीके ये हैं :

          1. सामने वाले व्यक्ति को संतुलित दृष्टि से देखें। लोगों के साथ व्यवहार करते समय इन दो बातों का ध्यान रखें : पहली बात तो यह कि सामने वाला व्यक्ति महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से वह महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है। परंतु यह भी याद रखें कि आप भी महत्वपूर्ण हैं। तो जब आप किसी व्यक्ति से मिलें तो ऐसा सोचें, “हम दो महत्वपूर्ण लोग मिलकर किसी आपसी लाभ या रुचि के विषय पर चर्चा कर रहे हैं।"

         कुछ महीने पहले, एक बिज़नेस एक्जीक्यूटिव ने फोन पर मुझे बताया कि उसने मेरे सुझाए एक युवक को नौकरी पर रख लिया है। "आपको पता है मुझे उसकी किस बात ने प्रभावित किया," मेरे दोस्त न कहा। “कौन सी बात ने?" मैंने पूछा। "मुझे उसका आत्मविश्वास बेहद पसंद आया। ज्यादातर उम्मीदवार तो कमरे में घुसते समय डरे और सहमे या उन्होंने मुझे उस तरह के जवाब दिए जो उनकी राय में मैं सता पाहता था। एक तरीके से ज्यादातर उम्मीदवार भिखारियों की तरह व्यवहार कर रहे थे- उन्हें आप कुछ भी दे सकते थे और उन्हें आपसे किसी ख़ास चीज़ की उम्मीद नहीं थी।

         “परंतु जी. का व्यवहार इन सबसे अलग था। उसने मेरे प्रति सम्मान दिखाया, परंतु इसके साथ ही साथ महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसने अपने प्रति भी सम्मान दिखाया। मैंने उससे जितने सवाल पूछे. उसने भी मुझसे तक़रीबन उतने ही सवाल पूछे। वह कोई चूहा नहीं है। वह असली मर्द है और मैं उसके आत्मविश्वास से बहुत प्रभावित हुआ।"

           आपसी महत्व का रवैया आपको परिस्थिति को देखने का संतुलित रवैया देता है। सामने वाला व्यक्ति आपकी नज़र में आपसे ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं बन पाता।

          हो सकता है सामने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा, बहुत महत्वपूर्ण दिख रहा हो। परंतु याद रखें, है तो वह भी एक इंसान ही। उसके पास भी तो वही रुचियाँ, इच्छाएँ और समस्याएँ होंगी जो आपके पास हैं।

        2. समझने का रवैया विकसित करें। जो लोग आपको नीचा दिखाना चाहते हैं, आपके पर कतरना चाहते हैं, आपकी टाँग खींचना चाहते हैं, आपकी बुराई करना चाहते हैं। ऐसे लोगों की इस दुनिया में कोई कमी नहीं है। अगर आप इनका सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो यह लोग आपके आत्मविश्वास में बड़े-बड़े छेद कर देंगे और आपको ऐसा लगेगा जैसे आप पूरी तरह हार चुके हैं। आपको ऐसे वयस्क हमलावर के विरुद्ध ढाल चाहिए, उस हमलावर के लिए जो अपनी पूरी ताकत से आप पर चढ़ाई करने के लिए कमर कसे बैठा है।

            कुछ महीने पहले मेम्फिस होटल की रिज़र्वेशन डेस्क पर मैंने सीखा कि इस तरह के लोगों का सामना किस तरह से किया जा सकता है। 

           शाम के 5 बजे थे और होटल में नए अतिथियों का रजिस्ट्रेशन किया जा रहा था। मेरे सामने वाले आदमी ने क्लर्क को अपना नाम बताया। क्लर्क ने कहा, “यस सर, आपके लिए एक बढ़िया सिंगल रूम बुक किया हुआ है।"

           "सिंगल,” वह आदमी गुस्से से चिल्लाया, "मैंने तो डबल बेड रूम  का ऑर्डर दिया था।"

           क्लर्क ने विनम्रता से जवाब दिया, “मैं देख लेता हूँ, सर।" उसने अपनी फ़ाइल निकाली और उसमें देखकर कहा, "माफ़ कीजिए, सर। आपके टेलीग्राम में साफ़ लिखा हुआ था कि सिंगल रूम चाहिए। अगर खाली होता तो मैं आपको खुशी-खुशी डबल बेडरूम दे देता परंतु हमारे पास अभी कोई डबल बेडरूम ख़ाली नहीं है।"

           क्रुद्ध ग्राहक चिल्लाया, “भाड़ में जाए कि टेलीग्राम में क्या लिखा है, मुझे तो डबल बेडरूम ही चाहिए।"

           फिर उसने इस लहज़े में बात करना शुरू कर दिया “तुम नहीं जानते मैं कौन हूँ" और उसके बाद वह यहाँ तक आ गया “मैं तुम्हें देख लूँगा। मैं तुम्हें नौकरी से निकलवा दूंगा। मैं तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूंगा।"

शाब्दिक आक्रमण की इस बौछार को विनम्रता से सहन करते हुए क्लर्क ने कहा, “सर, माफ़ कीजिए, हमने आपके निर्देशों का पालन किया है।" 

आख़िरकार ग्राहक जो अब आगबबूला हो चुका था बोला, "चाहे मुझे सबसे बढ़िया कमरा भी मिल जाए, तो भी अब मैं इस होटल में कभी नहीं ठहरूँगा,” और यह कहकर वह होटल से बाहर निकल गया।

          मैं डेस्क पर पहुँचा और मैं सोच रहा था कि क्लर्क इस बदतमीज़ी भरे व्यवहार के कारण विचलित होगा। परंतु मुझे हैरत हुई जब उसने मेरा स्वागत मधुर आवाज़ में “गुड ईवनिंग, सर" कहकर किया। जब वह मेरे रजिस्ट्रेशन की कार्यवाही पूरी कर रहा था, तो मैंने उससे कहा, “मुझे आपका तरीक़ा पसंद आया। आपका अपनी भावनाओं पर ज़बर्दस्त नियंत्रण है।"

         “सर,” क्लर्क ने कहा, “मैं इस तरह के आदमी पर गुस्सा नहीं हो सकता। वह वास्तव में मुझ पर गुस्सा नहीं हो रहा था। मैं तो सिर्फ एक बलि का बकरा था। शायद उस बेचारे को अपनी पत्नी से कोई समस्या होगी, या उसका बिज़नेस चौपट हो रहा होगा या हो सकता है वह हीन भावना से ग्रस्त हो और यह उसके लिए एक सुनहरा अवसर था जब वह अपनी शक्ति सिद्ध कर सके। मैं वह आदमी था जिस पर वह अपने दिल की भड़ास निकाल सकता था।"

क्लर्क ने बाद में यह जोड़ दिया, “अंदर से शायद वह बहुत भला आदमी होगा। ज्यादातर लोग होते हैं।"

            लिफ्ट की तरफ बढ़ते समय मैं उसके शब्दों को दुहरा रहा था "अंदर से शायद वह बहुत भला आदमी होगा। ज़्यादातर लोग होते हैं।"

           जब भी कोई आप पर आक्रमण करे, तो आप इन दो वाक्यों को याद कर लें। अपने गुस्से पर काबू रखें। इस तरह की स्थितियों में जीतने का यही तरीका होता है कि सामने वाले को अपने दिल की भड़ास निकाल लेनेदे और फिर इस घटना को भूल जाएँ।

            कई साल पहले विद्यार्थियों की परीक्षा की कॉपी जाँचते समय एक कॉपी को देखकर मुझे हैरत हुई। इस विद्यार्थी ने पूरे साल समूह चर्चाओं और पिछले टेस्ट्स में यह साबित किया था कि उसमें प्रतिभा थी, जबकि उसकी परीक्षा की कॉपी कुछ और ही कह रही थी। मुझे ऐसा अनुमान था कि वह कक्षा में सबसे ज़्यादा नंबर लाएगा। इसके बजाय उसके नंबर परीक्षा में सबसे कम आ रहे थे। जैसा में इस तरह के मामले में किया करता था, मैंने अपनी सेक्रेटरी से कहा कि वह उस विद्यार्थी को मेरे ऑफिस में एक महत्वपूर्ण विषय पर बात करने के लिए बुलवाए।


           जल्दी ही पॉल डब्ल्यू. वहाँ आया। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी बुरे दौर से गुजर रहा था। उसके बैठने के बाद मैंने उससे कहा, “क्या हुआ, पॉल? तुमने परीक्षा में जिस तरह लिखा है, उस तरह की मुझे तुमसे उम्मीद नहीं थी।"


           पॉल पशोपेश में था। उसने अपने पैरों की तरफ़ देखते हुए जवाब दिया, “सर, जब मैंने देखा कि आपने मुझे नकल करते हुए देख लिया है। तो इसके बाद मेरी हालत ख़राब हो गई। मैं कोई सवाल ठीक से नहीं कर पाया। ईमानदारी से कहूँ तो मैंने ज़िंदगी में पहली बार नक़ल की थी। में अच्छे नंबरों से पास होना चाहता था, इसलिए मैंने सोचा क्यों न। बेईमानी का सहारा ले लूँ ?"


वह बुरी तरह परेशान दिख रहा था। परंतु एक बार जब उसने बोलना शुरू कर दिया, तो फिर वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।"मुझे लगता है अब आप मुझे कॉलेज से निकाल देंगे। यूनिवर्सिटी का नियम तो यही है कि अगर कोई विद्यार्थी किसी भी तरह की बेईमानी करेगा, तो उसे हमेशा के लिए कॉलेज से निष्कासित किया जा सकता है।"


          यहाँ पर पॉल ने यह बताना शुरू कर दिया कि कॉलेज से निकाले जाने के बाद उसके परिवार की इज़्ज़त ख़ाक में मिल जाएगी, उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी और इसके अलावा और भी बहुत सारे बुरे परिणाम होंगे।आख़िरकार मैंने उससे कहा, “अब बस भी करो। शांत बैठ जाओ। मैं तुम्हें कुछ बता दूं। मैंने तुम्हें नक़ल करते हुए नहीं देखा। जब तक तुमने मुझे इसके बारे में नहीं बताया, तब तक मुझे यह अंदाज़ा ही नहीं था कि समस्या यह थी। मुझे दुःख है, पॉल, कि तुमने नक़ल की।”


         फिर मैंने आगे कहा, “पॉल, मुझे बताओ कि तुम अपनी यूनिवर्सिटी के अनुभव से क्या सीखना चाहते हो?"


          अब वह थोड़ा शांत हो चुका था और एक पल रुकने के बाद उसने जवाब दिया, “डॉक्टर, मुझे लगता है कि मेरा असली लक्ष्य तो जीने का तरीक़ा सीखना है, परंतु मुझे लगता है कि मैं अपने लक्ष्य को हासिल करने में बुरी तरह असफल हो चुका हूँ।"


           "हम कई तरीकों से सीखते हैं,” मैंने कहा। “मुझे लगता है तुम इस अनुभव से सफलता का असली सबक सीख सकते हो।" 


        "जब तुमने अपनी पर्ची से नक़ल की, तो तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें कचोटने लगी। इससे तुममें अपराधबोध की भावना जाग गई और तुम्हारा आत्मविश्वास ख़त्म हो गया। जैसा तुमने कहा इसके बाद तुम्हारी हालत ख़राब हो गई।


          “ज्यादातर बार होता यह है, पॉल, कि सही और गलत का मसला हम नैतिक या धार्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं। अब इस बात को समझ लो, मैं यहाँ तुम्हें भाषण नहीं दे रहा हूँ, न ही तुम्हें सही और गलत काम के बारे में कोई प्रवचन देने के मूड में हूँ। परंतु यह ज़रूरी है कि हम इसके व्यावहारिक पहलू पर नज़र डालें। जब तुम कोई ऐसा काम करते हो जो तुम्हारी अंतरात्मा के खिलाफ़ होता है, तो तुममें अपराधबोध आ जाता है और इस अपराधबोध के कारण तुम्हारी सोचने की क्षमता खत्म हो जाती है। आप ठीक तरह से नहीं सोच सकते क्योंकि आपका दिमाग


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