Saturday, September 28, 2019

CHAPTER 9.1 लोगों के बारे में अच्छा सोचें

               लोगों के बारे में अच्छा सोचें

   सफलता हासिल करने का यह एक मूलभूत नियम है। हम इसे अपने सदिमाग़ में बिठा लें और इसे हमेशा याद रखें। यह नियम है : सफलता दूसरे लोगों के सहयोग पर निर्भर करती है। आपके और आपके लक्ष्य के बीच एकमात्र बाधा दूसरों का सहयोग है।

         इसे इस तरीके से देखें : किसी अफ़सर को अपने आदेशों के पालन के लिए कर्मचारियों पर निर्भर होना पड़ता है। अगर वे उसके आदेश नहीं मानेंगे, तो कंपनी का प्रेसिडेंट उस अफ़सर को नौकरी से निकाल देगा, जबकि कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। सेल्समैन को अपना सामान बेचने के लिए ग्राहकों पर निर्भर होना पड़ता है। अगर ग्राहक उसका सामान न ख़रीदें, तो सेल्समैन असफल हो जाएगा। इसी तरह, कॉलेज का डीन भी अपने शैक्षणिक कार्यक्रम में सहयोग के लिए अपने प्रोफेसरों पर निर्भर होता है। एक राजनेता अपने चुनाव के लिए मतदाताओं पर निर्भर होता है। एक लेखक अपनी पुस्तकों की बिक्री के लिए पाठकों पर निर्भर होता है। कोई चेन स्टोर मालिक सिर्फ इसलिए चेन स्टोर मालिक बना क्योंकि कर्मचारियों ने उसे लीडर माना और ग्राहकों ने उसकी व्यावसायिक योजना को पसंद किया।

        इतिहास में ऐसे भी समय रहे हैं जब किसी व्यक्ति ने केवल अपनी ताकत के दम पर सत्ता हासिल की है। उस दौर में या तो व्यक्ति “लीडर"के  साथ सहयोग करता था, या फिर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था।

        परंतु यह जान लें कि आजकल या तो कोई व्यक्ति आपको इच्छा से सहयोग देगा या फिर वह आपको बिलकुल भी सहयोग नहीं देगा।

       अब आप यह पूछ सकते हैं, “चलिए यह मान लिया, कि मैं जो सफलता चाहता हूँ, उसे हासिल करने के लिए मुझे दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, परंतु मैं किस तरह इन लोगों को प्रेरित करूँ कि वे मुझे सहयोग दें और मुझे लीडर माने?"

        इसका जवाब एक छोटे से वाक्य में दिया जा सकता है। लोगों के बारे में अच्छा सोचें। जब आप लोगों के बारे में अच्छा सोचेंगे तो वे आपको पसंद करेंगे और आपको सहयोग भी देंगे। यह अध्याय बताता है कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं।

         दिन में हज़ारों बार इस तरह का दृश्य घटित होता है। किसी कमेटी या समूह की बैठक चल रही है। इसका लक्ष्य है किसी प्रमोशन, नई नौकरी, क्लब की सदस्यता, सम्मान के लिए नामों पर विचार जैसे कंपनी के नए प्रेसिडेंट, नए सुपरवाइज़र, नए सेल्स मैनेजर के लिए। समूह के सामने एक नाम रखा जाता है। चेयरमैन पूछता है, "इसके बारे में आपकी क्या राय है?"

        इसके बाद वहाँ बैठे सभी लोग अपनी-अपनी राय देते हैं। कई नामों के बारे में यह राय सकारात्मक होती है जैसे : “वह बढ़िया व्यक्ति है। लोग उसकी तारीफ़ करते हैं। उसका तकनीकी ज्ञान भी अच्छा है।"

      "मिस्टर एफ़.? वह मिलनसार है खुशमिज़ाज व्यक्ति। मुझे यक़ीन है कि यह व्यक्ति हमारे ऑफ़िस में ठीक तरह से फ़िट हो जाएगा।"

         कई नामों पर विचार करते समय हम नकारात्मक वक्तव्य सुन सकते हैं। "मुझे लगता है कि हमें इस व्यक्ति के बारे में अच्छी तरह खोजबीन करनी चाहिए। उसकी लोगों से पटरी नहीं बैठ पाती।"

         "मैं जानता हूँ कि उसका शैक्षणिक और तकनीकी ज्ञान अच्छा है। मुझे उसकी योग्यता पर कोई संदेह नहीं है। परंतु फिर भी मुझे इस बातकी चिंता होती है कि वह हमारी कंपनी में किस तरह फ़िट होगा। लोग न तो उसे पसंद करते हैं, न ही उसकी इज़्ज़त करते हैं।”

         यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है : दस में से नौ बार, “पसंद किए जाने" की बात सबसे पहले कही जाती है। और ज़्यादातर मामलों में "पसंद किए जाने" के तत्व को तकनीकी योग्यता से ज़्यादा महत्व दिया जाता है।

          यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर के चयन में भी यही सिद्धांत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेरे खुद के एकैडमिक अनुभव से मैं जानता हूँ कि नए फैकल्टी मेंबर के लिए नामों पर किस तरह विचार किया जाता है। जब भी नाम आता था, समूह उस पर इस तरह विचार करता था : “क्या वह फ़िट हो पाएगा?" "क्या छात्र उसे पसंद करेंगे?" “क्या वह स्टाफ़ के दूसरे लोगों को साथ लेकर चल सकेगा?"

         ग़लत? अन-एकैडमिक ? नहीं। अगर किसी व्यक्ति को पसंद नहीं किया जाता हो, तो वह अपने छात्रों को प्रभावी ढंग से नहीं पढ़ा सकता।

 
           इस बात को ठीक से समझ लें। किसी आदमी को ऊपर की तरफ़ खींचा नहीं जाता है। इसके बजाय, उसे बस सहारा दिया जाता है। आज के दौर में किसी के पास इतनी फुरसत या इतना धीरज नहीं है कि वह किसी दूसरे को नौकरी की सीढ़ी पर ऊपर खींचे। किसी व्यक्ति को इसलिए चुना जाता है क्योंकि वह बाक़ी सभी लोगों से ऊँचा नज़र आता है।

         हमें ऊपर की सीढ़ी पर चढ़ने के लिए सहारा तब दिया जाता है जब लोगों को यह लगता है कि वे हमें पसंद करते हैं। आप जब भी एक दोस्त बनाते हैं, वह आपको एक इंच ऊपर पहुँचा देता है। और चूँकि आप पसंद किए जाते हैं, इसलिए ऊपर उठाते समय सामने वाले को वज़न भी नहीं लगता।

          सफल लोगों के पास लोकप्रिय बनने की योजना होती है। क्या आपके पास है? जो लोग चोटी पर पहुँचते हैं वे इस बारे में ज़्यादा नहीं बताते कि लोगों के बारे में अच्छा सोचने की उनकी तकनीकें क्या हैं। परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बहुत से महान लोगों के पास लोगों को प्रभावित करने की एक स्पष्ट, निर्धारित, यहाँ तक कि लिखित योजना भी होती है।

          राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन का उदाहरण लें। प्रेसिडेंट बनने के बहुत पहले लिंडन जॉनसन ने सफलता का अपना दस सूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया था। इतिहास गवाह है कि वे इन सूत्रों को अपने जीवन में उतारते
थे और ये सूत्र हैं :

1. नाम याद रखने की आदत डालें। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो सामने वाले को यह लग सकता है कि आपकी उनमें रुचि नहीं है।

2. एक ऐसे आरामदेह व्यक्ति बनें, जिससे आपके साथ होने पर कोई तनाव में न रहे। मज़ाकिया, अनुभवी टाइप के व्यक्ति बनें।

3. अपने दिमाग़ को ठंडा रखने की आदत डालें ताकि कठिन परिस्थितियाँ आपको उत्तेजित या परेशान न करें।

4. बड़बोले न बनें। सामने वाले को यह एहसास न होने दें कि आप खुद को सर्वज्ञानी समझते हैं।

5. दिलचस्प बनने की आदत डालें, ताकि लोग आपके आस-पास रहना चाहें।

6. अपने व्यक्तित्व से “चुभने वाले” तत्वों को बाहर निकाल फेंकें।

7. सच्ची धार्मिक भावना से हर ग़लतफ़हमी दूर करने की पूरी कोशिश करें। अपनी शिकायतों को नाली में बहा दें।

8. लोगों को पसंद करने का अभ्यास करें, और कुछ समय बाद आप सचमुच उन्हें पसंद करने लगेंगे।

9. किसी की उपलब्धियों या सफलता पर बधाई देने का कोई मौक़ा न गँवाएँ, न ही दुःख या निराशा में संवेदना जताने का अवसर खोएँ।

10. लोगों को आध्यात्मिक शक्ति दें और वे आपको पसंद करने लगेंगे।

         इन दस आसान परंतु बेहद प्रभावी “लोगों को पसंद करने" के नियमों की वजह से प्रेसिडेंट जॉनसन को उनके मतदाताओं ने, संसद ने पसंद किया। इन दस नियमों को जीवन में उतारने से प्रेसिडेंट जॉनसन को सहारा देकर ऊपर पहुँचाना ज्यादा आसान हो गया।

       इन नियमों को एक बार फिर से पढ़ें। ध्यान दें कि यहाँ बदला लेने की बात नहीं कही गई है। यहाँ यह भी नहीं कहा गया है कि गलतफहमी दूर करने के लिए आप सामने वाले की पहल का इंतज़ार करें। यहाँ पर इस तरह का विचार भी नहीं है कि मैं ही सब कुछ जानता हूँ और बाकी सब लोग मूर्ख हैं।

          चाहे वे बिज़नेस में हों, कला, विज्ञान या राजनीति में हों, महान लोग बहुत मानवीय, खुशमिज़ाज होते हैं। उनमें ऐसी कला होती है कि लोग उन्हें पसंद करने लगते हैं।

          परंतु, दोस्ती खरीदने की कोशिश न करें क्योंकि दोस्ती बिकाऊ नहीं होती। अगर सच्ची भावना हो, अगर आप सामने वाले को सचमुच पसंद करते हों तो तोहफ़े देना अच्छी बात है। परंतु अगर ऐसा नहीं है, तो तोहफे को अक्सर रिश्वत समझ लिया जाता है।

          पिछले साल, क्रिसमस के कुछ दिन पहले मैं एक मध्यम आकार की ट्रकिंग फ़र्म के प्रेसिडेंट के ऑफ़िस में बैठा था। जब मैं विदा लेने वाला था तो वहाँ पर एक डिलीवरी मैन तोहफ़ा लेकर आया, जो उसे स्थानीय टायर-रिकैपिंग फर्म ने भिजवाया था। तोहफ़े को देखकर मेरे दोस्त का दिमाग ख़राब हो गया और उसने चिढ़कर डिलीवरी मैन से कहा कि वह तोहफे को वापस ले जाए और भेजने वाले को सौंप दे।

         जब डिलीवरी मैन चला गया तो मेरे दोस्त ने मुझसे कहा, “मुझे ग़लत मत समझना। मुझे तोहफ़े लेना और देना दोनों ही पसंद है।"

          फिर उसने मुझे उन तोहफों के बारे में बताया जो उसे उसके दोस्तों ने दिए थे।

        "परंतु,” उसने आगे कहा, “जब तोहफ़ा रिश्वत की तरह दिया जाए, अपना काम निकलवाने के लिए दिया जाए, तो मैं इसे पसंद नहीं करता।" मैंने इस फ़र्म के साथ बिज़नेस करना तीन महीने पहले बंद कर दिया था, क्योंकि उनका काम ठीक नहीं था और मैं उनके कर्मचारियों को भी पसंद नहीं करता था। परंतु उनका सेल्समैन बार-बार हमारे यहाँ चला आता था।

         "मुझे गुस्सा इस बात पर आता है," उसने कहा, “कि पिछले सप्ताह यही सेल्समैन यहाँ पर आया और उसने यह कहने की हिमाकत की, 'हम चाहेंगे कि आप हमें काम दें। मैं सांता से जाकर कहूँगा कि वह आपको इस साल कोई अच्छा सा तोहफ़ा ज़रूर भिजवा दे।' अगर मैंने यह तोहफा वापस नहीं किया होता, तो अगली बार वह सेल्समैन आकर जो पहली बात कहता वह यह होती, 'आपको तोहफ़ा तो पसंद आया, है ना?"

         दोस्ती ख़रीदी नहीं जा सकती। और जब हम इसे ख़रीदने की कोशिश करते हैं, तो हमें दो तरह से नुकसान होता है :

1. हम पैसा गँवाते हैं।

2. हम दुर्भावना पैदा करते हैं।

          दोस्ती करने में पहल करें- सफल लोग यही करते हैं। यह सोचना ज़्यादा आसान और स्वाभाविक है, “सामने वाले को पहल करनी चाहिए।" "उसे मेरे घर पहले आना चाहिए।” “पहले उसे बात शुरू करनी चाहिए।"

        दूसरे लोगों को इस तरह से नज़रअंदाज़ करना बहुत आसान होता है।

        हाँ, यह आसान है और स्वाभाविक है, परंतु लोगों के बारे में अच्छा सोचने का यह सही तरीक़ा नहीं है। अगर आप इस बात का इंतज़ार करेंगे कि दूसरा व्यक्ति दोस्ती की नींव रखे. तो आपके पास कभी ज्यादा दोस्त नहीं होंगे।

         वास्तव में, यही सच्चे लीडर की पहचान है कि वह लोगों से पहचान बढ़ाने में पहल करता है। अगली बार आप जब भी किसी बड़े समूह में खड़े हों, तो इस बात को ध्यान से देखें : वहाँ पर मौजूद सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह होता है, जो अपना परिचय देने में सबसे ज़्यादा सक्रिय होता है।

         वह व्यक्ति सचमुच सफल होगा जो आपके पास आता है, आपसे हाथ मिलाता है और कहता है, “हलो, मैं जैक आर."। इस बात पर थोड़ा विचार करें और आप पाएंगे कि वह व्यक्ति इसलिए सफल होगा क्योंकि वह दोस्ती बनाने के लिए मेहनत कर रहा है।

         लोगों के बारे में अच्छा सोचें। जैसा मेरे एक दोस्त का कहना है, "चाहे मैं उसके लिए महत्वपूर्ण न होऊँ, परंतु वह मेरे लिए महत्वपूर्ण है। इसी कारण मुझे उसे क़रीब से जानना चाहिए।"

          आपने कभी सोचा है कि लोग लिफ्ट का इंतज़ार करते समय पुतलों की तरह क्यों खड़े होते हैं? जब तक कि वे अपने किसी परिचित के साथ न हों, तब तक ज्यादातर लोग अपने आस-पास खड़े लोगों से बात ही नहीं करते। एक दिन मैंने इस बारे में छोटा सा प्रयोग करने का फैसला किया।

           मैंने अपने पास खड़े व्यक्ति से बातचीत शुरू करने का फैसला किया। मैंने 25 बार लगातार ऐसा किया और 25 बार ही मुझे इसके जवाब में सकारात्मक, दोस्ताना जवाब मिला।

         हालाँकि अजनबियों के साथ बात करने को अच्छे मैनर्स में शामिल नहीं किया जाता, परंतु ज्यादातर लोग फिर भी इस बात को पसंद करते हैं। और यह रहा इसका लाभ :

     जब आप किसी अजनबी के बारे में कोई सकारात्मक बात कहते हैं, तो उसका मूड अच्छा हो जाता है। आपको भी अच्छा लगता है। और आपको शांति और खुशी भी मिलती है। हर बार जब भी आप किसी व्यक्ति की तारीफ़ करते हैं, तो आप दरअसल अपने आपको लाभ पहुँचा रहे हैं। यह अपनी कार को जाड़े के दिनों में गर्म करने की तरह है। 

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