Thursday, October 17, 2019

CHAPTER 13.3 सोचें तो लीडर की तरह

       जब उसे यह पता चला कि उसके स्टाफ़ का एक व्यक्ति अल्पसंख्यक है, तो जॉन ने उसे बुलवाया और उससे कहा कि वह ऐसी व्यवस्था कर देगा कि वह अपने धार्मिक त्यौहारों को मना सके, क्योंकि ऐसे त्यौहारों पर अमूमन छुट्टियाँ नहीं होती थीं।

        जब कोई कर्मचारी या कर्मचारी के परिवार का कोई सदस्य बीमार होता था, तो जॉन को यह याद रहता था। जब नौकरी के बाहर उसके स्टाफ़ का कोई कर्मचारी उपलब्धि हासिल करता था, तो जॉन उसे बधाई देने का समय निकाल लेता था।

      परंतु जॉन की “मानवीय बनने” की फिलॉसफी का सबसे बड़ा सबूत मिला, जब उसने एक कर्मचारी को डिसमिस किया। जॉन के पहले वाले बॉस ने एक कर्मचारी को नियुक्त किया था। उस कर्मचारी की इस तरह के काम में कोई रुचि नहीं थी, न ही योग्यता थी। जॉन ने इस समस्या को बेहतरीन तरीके से सुलझाया। उसने कर्मचारी को ऑफ़िस में बुलाने का पारंपरिक तरीक़ा इस्तेमाल नहीं किया, वह तरीक़ा जिसमें पहले तो उसे बुरी ख़बर सुनाई जाए और बाद में उसे 15 या 30 दिन का समय दिया जाए।

        इसके बजाय, उसने दो अस्वाभाविक काम किए। पहली बात तो यह, कि उसने कर्मचारी को समझाया कि यह कर्मचारी के ही हित में है कि वह यह नौकरी छोड़ दे और कोई ऐसी नौकरी ढूँढ़े जहाँ उसकी योग्यता और रुचि का बेहतर उपयोग हो सकता हो। उसने कर्मचारी के साथ बैठकर एक प्रतिष्ठित रोज़गार परामर्शदाता से सलाह लेने की योजना बनाई। इसके बाद उसने ऐसा कुछ किया जो नियम की किसी पुस्तक में नहीं लिखा था। उसने दूसरी कंपनियों के एक्जीक्यूटिज़ से संपर्क किया जहाँ उस कर्मचारी की योग्यताएँ काम आ सकती थी। उसने इंटरव्यू का इंतज़ाम भी करवा दिया। 18 दिन बाद ही उस कर्मचारी को बहुत ही बढ़िया नौकरी मिल गई।

        डिसमिसल के इस तरीके से मुझे हैरत हुई और मैंने जॉन से पूछा कि उसने इस छोटी सी बात के लिए इतना कष्ट क्यों उठाया। जॉन का जवाब था, "मैंने एक पुरानी कहावत को अपने दिमाग में बिठा लिया है। जो भी किसी व्यक्ति के नीचे काम करता है, वह उसके संरक्षण में होता है। हमें पहले तो उस व्यक्ति को नौकरी पर रखना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि वह इसके लायक नहीं था। परंतु जब हमने उसे नौकरी पर रख ही लिया, तो हमारा यह फ़र्ज़ बनता था कि इसके बदले में हम उसे ढंग की नौकरी तो दिलवाते।

       जॉन ने आगे कहा, “कोई भी किसी व्यक्ति को नौकरी पर रख सकता है। परंतु लीडरशिप का इम्तहान इस बात से होता है कि आप किसी व्यक्ति को नौकरी से किस तरह हटाते हैं। उस कर्मचारी को अच्छी नौकरी दिलवाकर मैंने अपने डिपार्टमेंट के हर व्यक्ति में जॉब सिक्युरिटी की भावना पैदा कर दी है। इस उदाहरण से वे यह जान गए हैं कि जब तक मैं यहाँ पर हूँ वे फुटपाथ पर नहीं आएँगे।"

       इस बारे में कोई ग़लतफ़हमी न पालें। जॉन की “मानवीय बनने" की लीडरशिप के उसे बहुत अच्छे परिणाम मिले। जॉन की पीठ पीछे बुराई कभी नहीं हुई। उसे कर्मचारियों की पूरी वफ़ादारी और सहयोग मिला। उसे अधिकतम जॉब सिक्युरिटी इसलिए मिली क्योंकि उसने अपने अधीनस्थों को अधिकतम जॉब सिक्युरिटी दी।

      15 साल से मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसे मैं बॉब डब्ल्यू. का नाम देना चाहूँगा। बॉब की उम्र पचास-साठ के बीच है। उसने अपने दम पर सफलता हासिल की है। चूंकि उसकी शिक्षा ज्यादा नहीं थी और उसके पास पैसा भी नहीं था, इसलिए उसकी नौकरी 1931 में छूट गई। परंतु वह हमेशा संघर्षशील था, इसलिए उसने चुपचाप बैठे रहने के बजाय अपने गैरेज में एक छोटी सी फ़र्नीचर की दुकान शुरू की। कड़ी मेहनत के बाद उसका बिज़नेस जम गया और आज बॉब आधुनिक फ़र्नीचर निर्माता है और उसके कारखाने में 300 से ज़्यादा कारीगर काम करते हैं।

       आज बॉब मिलियनेअर है। पैसे और भौतिक चीज़ों की चिंता ख़त्म हो गई है। परंतु बॉब दूसरी तरह से भी अमीर है। वह दोस्तों, संतुष्टि और संतोष के लिहाज़ से भी लखपति है।

       बॉब की ढेरों अच्छाइयों में से एक, उनकी लोगों की सहायता करने की ज़बर्दस्त इच्छा है। बॉब मानवतापूर्ण हैं और वे लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा कि वे लोग चाहते हैं। और वे इसके विशेषज्ञ हैं।

        एक दिन मैं और बॉब लोगों की आलोचना करने की शैली के बारे में बात कर रहे थे। आलोचना करने का बॉब का मानवीय तरीक़ा एक अद्भुत फ़ॉर्मूला है। उसने मुझे बताया, “मुझे नहीं लगता कि कोई यह कहेगा कि मैं एक कमज़ोर बॉस हूँ। मैं एक बिज़नेस चलाता हूँ। अगर कुछ ठीक नहीं हो रहा है, तो मुझे उसे ठीक करना ही पड़ता है। परंतु ठीक करने का एक तरीक़ा भी होता है- और तरीका ही महत्वपूर्ण होता है। अगर कर्मचारी ने कोई गलती कर दी है, तो मैं विशेष सावधान रहता हूँ कि उसकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे और उसमें हीन भावना न आ जाए या वह अपमानित महसूस न करे। मैं इन चार आसान क़दमों का इस्तेमाल करता हूँ :

       सबसे पहले, मैं उनसे अकेले में बात करता हूँ।

       दूसरे, मैं उनके अच्छे काम की तारीफ़ करता हूँ।

      तीसरे, मैं उन्हें यह बताता हूँ कि किस क्षेत्र में वे बेहतर काम कर सकते हैं और मैं उन्हें बेहतर काम करने का तरीका बताता हूँ।

      चौथे, मैं एक बार फिर उनकी अच्छी बातों के लिए उनकी तारीफ़ करता हूँ।

       “और चार कदमों का यह फ़ॉर्मूला काम करता है। जब मैं इसका इस्तेमाल करता हूँ तो लोग मुझे धन्यवाद देते हैं। मैं जान गया हूँ कि लोगों को आलोचना सुनने का यही तरीक़ा पसंद आता है। जब वे मेरे ऑफ़िस से बाहर निकलते हैं तो वे इसलिए मेरी बातों का बुरा नहीं मानते क्योंकि मैंने उन्हें याद दिला दिया है कि वे न सिर्फ अच्छे कर्मचारी हैं, बल्कि वे बेहतर कर्मचारी भी बन सकते हैं।

        "लोगों को देखने का मेरा जिंदगी भर का तजुर्बा है और मैं यह जानता हूँ कि मैं उनसे जितना अच्छा व्यवहार करता हूँ, उतनी ही अच्छी चीजें मेरे साथ होती हैं। ईमानदारी से कहा जाए, तो मैं इस बारे में कोई योजना नहीं बनाता। यह अपने आप ही हो जाता है।

      "में आपको एक उदाहरण दूं। कुछ साल पहले, शायद पाँच या छह साल पहले, हमारा एक मज़दूर शराब पीकर काम पर आ गया। जल्दी ही फैक्टरी में होहल्ला मच गया। उसने वॉर्निश का 5 गैलन का ड्रम उठा लिया था. जिसे वह फैक्टरी में इधर-उधर फैलाने पर आमादा था। दसरे मज़दूरों ने उससे ड्रम छुड़ा लिया और उसके सुपरिंटेंडेंट ने उसे बाहर निकाल दिया।

         “मैं बाहर गया और मैंने देखा कि वह बाहर दीवार से टिका बैठा था। मैंने उसे सहारा देकर उठाया, कार में बिठाया और उसे घर लेकर गया। उसकी पत्नी बौखला गई थी। मैंने उसे आश्वस्त किया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। परंतु आप कुछ नहीं समझते हैं,' उसने कहा, 'मिस्टर डब्ल्यू. (यानी कि मैं) यह बर्दाश्त नहीं करेंगे कि कोई नौकरी पर शराब पीकर जाएँ। अब तो जिम की नौकरी निश्चित रूप से छूट जाएगी और अब हम क्या करेंगे।' मैंने उसे बताया कि जिम की नौकरी नहीं छूटेगी। उसने पूछा कि मैं इतने यक़ीन के साथ ऐसा कैसे कह सकता हूँ। मैंने बताया कि मैं यक़ीन के साथ ऐसा इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मैं ही मिस्टर डब्ल्यू. हूँ।

         “यह सुनकर वह लगभग बेहोश हो गई। मैंने उसे बताया कि मैं फैक्टरी में जिम की मदद करने की पूरी कोशिश करूँगा और मैंने आशा की कि घर पर वह जिम का ध्यान रखेगी। मैंने उससे यह भी कहा कि अगली सुबह वह जिम को काम पर भेज दे।

         "फिर फैक्टरी लौटकर मैं जिम के डिपार्टमेंट में गया और जिम के सहकर्मियों से बात की। मैंने उनसे कहा, 'आज जो अप्रिय घटना हुई है, उसे आप भूल जाएँ। जिम कल काम पर लौट आएगा। उसके प्रति सहानुभूति रखें। वह काफ़ी लंबे समय से हमारे साथ है और वह अच्छा कर्मचारी है। हमें उसे एक और मौक़ा देना चाहिए।'

         "जिम वापस आया और उसकी शराबखोरी ने फिर कभी कोई समस्या खड़ी नहीं की। मैं इस घटना को जल्दी ही भूल गया। परंतु जिम नहीं भूला। दो साल पहले लोकल यूनियन के मुख्यालय ने कुछ लोगों को यहाँ भेजा ताकि वे लोकल यूनियन के कॉन्ट्रैक्ट पर चर्चा करें। उनकी माँगें बहुत ज़्यादा थीं। जिम - जो बहुत शांत और नम्र था - अचानक एक लीडर बन गया। उसने अप्रत्याशित फुर्ती दिखाई और उसने फैक्टरी के मज़दूरों को याद दिलाया कि मिस्टर डब्ल्यू. ने हमेशा उनके साथ अच्छा बर्ताव किया है, उनके साथ कभी अन्याय नहीं किया और इसलिए हमें अपने आपसी मामले में बाहर वालों को बीच में लाने की कोई ज़रूरत नहीं है।

         “बाहरी लोग चले गए और हमने हमेशा की तरह अपना कॉन्ट्रैक्ट दोस्ताना माहौल में किया, और इसके लिए जिम ज़िम्मेदार था।"

        "मानवीय" शैली से बेहतर लीडर बनने के दो तरीके हैं। पहला, हर बार जब भी आप लोगों से संबंधित किसी मुश्किल मसले का सामना करें, तो खुद से पूछे, “इससे निबटने का मानवीय तरीका क्या है ?"

         जब आपके अधीनस्थों में असहमति हो या जब कोई कर्मचारी समस्या खड़ी कर रहा हो तो इस प्रश्न पर सोचें।

         बॉब के ग़लतियाँ सुधारने के फ़ॉर्मूले को याद रखें। कटुता को टालें। व्यंग्य से परहेज़ करें। लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश न करें। लोगों को उनकी और दूसरों की नज़रों से न गिराएँ।

        खुद से पूछे, “लोगों के साथ निबटने का मानवीय तरीका क्या है ?" इससे हमेशा लाभ होता है - कई बार जल्दी, कई बार देर से - पर लाभ हमेशा होता है।

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CHAPTER 13.2 सोचें तो लीडर की तरह

       एक क्रेडिट एक्जीक्यूटिव ने मुझे बताया कि इस तकनीक से उसे किस तरह फ़ायदा हुआ।

     “जब मैं इस स्टोर में असिस्टेंट क्रेडिट मैनेजर के बतौर आया तो मुझे वसूली का काम सौंपा गया। यह कपड़ों का स्टोर था। यहाँ पर वसूली के लिए जिस तरह के पत्र लिखे जाते थे, उन्हें देखकर मुझे हैरानी और निराशा हुई। इनकी भाषा कठोर, अपमानजनक और धमकाने वाली थी। मैंने उन्हें पढ़ा और सोचा, 'बंधु, अगर कोई मुझे इस तरह की चिट्ठी लिखे, तो मैं तो गुस्से से आग-बबूला हो जाऊँगा। मैं कभी अपना हिसाब साफ़ नहीं करूँगा।' इसलिए मैं काम में जुट गया और मैंने अलग तरह के पत्र लिखना शुरू कर दिया, उस तरह के पत्र जो अगर मुझे लिखे जाएँ, तो मैं अपना हिसाब साफ़ करने के लिए प्रेरित हो सकूँ। इससे बहुत फ़र्क पड़ा। अपने बिल न चुकाने वाले ग्राहक के नज़रिए से देखने से हमारा वसूली अभियान बेहद सफल हुआ और कुछ ही समय में हमने वसूली का कीर्तिमान बना दिया।"

       बहुत से राजनीतिक उम्मीदवार चुनाव हार जाते हैं क्योंकि वे अपने मतदाताओं के नज़रिए से खुद को देखने में असफल होते हैं। राष्ट्रीय पद के लिए एक राजनीतिक उम्मीदवार, जो किसी भी तरह अपने प्रतिद्वंद्वी से दूसरी किसी बात में पीछे नहीं था, केवल एक कारण से बुरी तरह हार गया। उसने ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल किया था, जो उसके थोड़े से मतदाताओं की समझ में ही आ पाई।

       दूसरी ओर, उसके विरोधी ने मतदाताओं की रुचियों का पूरा ध्यान रखा। जब वह किसानों से बात करता था, तो उनकी भाषा बोलता था। जब वह फ़ैक्टरी के मज़दूरों से बात करता था, तो वह उनकी भाषा में बात करता था। और जब टीवी पर बोलने की बारी आई, तो उसने जिस मतदाता को संबोधित करते हुए अपना भाषण दिया, वह आम मतदाता था, न कि किसी कॉलेज का प्रोफ़ेसर।

      खुद से यह पूछे, “अगर मैं सामने वाले की जगह पर होता तो मैं इसके बारे में क्या सोचता?" इस प्रश्न की मदद से आप ज़्यादा सफल नीति बना सकते हैं।

       किसी को प्रभावित करने के लिए उसके नज़रिए से सोचने का विचार हर स्थिति में सफल होता है। कुछ साल पहले, एक छोटेइलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता ने कभी न उड़ने वाला फ़्यूज़ बनाया। उस निर्माता ने इसकी क़ीमत रखी 1.25 डॉलर और इसके बाद उसने एक विज्ञापन एजेंसी से इसका प्रचार करने को कहा।

        विज्ञापन देने वाली एजेंसी का एक्जीक्यूटिव तत्काल बहुत उत्साहित हो गया। उसकी योजना टीवी, रेडियो और अख़बारों में भारी प्रचार करने की थी। “यह शानदार है," उसने कहा। "हम पहले ही साल में एक करोड़ फ़्यूज़ बेच सकते हैं।" उसके सलाहकारों ने उसे सावधान करने की बहुत कोशिश की, उसे समझाया कि फ़्यूज़ लोकप्रिय सामानों की श्रेणी में नहीं आते हैं, उनकी कोई रोमांटिक अपील नहीं होती है, और लोग जब फ्यूज़ ख़रीदते हैं तो सस्ते से सस्ता फ़्यूज़ ख़रीदना चाहते हैं। सलाहकारों ने यह सलाह दी, “क्यों न इसके बजाय कुछ चुनिंदा पत्रिकाओं में विज्ञापन दिया जाए और इस फ़्यूज़ को ऊँची आमदनी वाले लोगों को बेचा जाए?"

       परंतु उसने सलाहकारों की सलाह को अनसुना कर दिया। देश भर में तूफ़ानी प्रचार अभियान चलाया गया और छह हफ़्तों में ही इसे बंद करना पड़ा क्योंकि इसके “निराशाजनक परिणाम" मिले थे।

        समस्या यह थी : विज्ञापन एजेंसी के एक्जीक्यूटिव ने महँगे फ़्यूज़ को अपनी नज़र से देखा, 75,000 डॉलर हर साल कमाने वाले की नज़र से। वह आम आदमी की नज़र से इस फ्यूज़ को नहीं देख पाया, जिसकी वार्षिक आमदनी 9,000 से 15,000 डॉलर होती है। अगर उसने खुद को उनकी जगह पर रखा होता, तो उसने इस सामान को आम जनता के बजाय उच्च आय वर्ग के लोगों में बेचने का लक्ष्य बनाया होता और तूफ़ानी अभियान में इतना पैसा बर्बाद नहीं किया होता।

         जिन लोगों को आप प्रभावित करना चाहते हों, उनके नज़रिए से देखने की कला विकसित करें। नीचे दिए गए अभ्यासों से आपको ऐसा करने में मदद मिलेगी।

दूसरों के नज़रिए से देखने के सिद्धांत को कैसे अमल में लाएँ:

1. सामने वाले की स्थिति का विचार करें। अपने आपको उसकी जगह रखकर देखें। याद रखें, आपकी और उसकी रुचियों, आमदनी, बुद्धि और पृष्ठभूमि में ज़मीन-आसमान का अंतर हो सकता है।

2. अब खुद से पूछे, “अगर मैं उसकी जगह होता, तो मेरी इस पर क्या प्रतिक्रिया होती?" (चाहे आप उससे कुछ भी करवाना चाहते हों।)

3. अगर आप सामने वाले की जगह होते, तो आपसे वह काम किस तरह करवाया जा सकता था। बस, उसी तरीके का इस्तेमाल करें।

        लीडरशिप नियम नंबर 2 : सोचें : इस समस्या से निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है ?

         लीडरशिप का हर एक का तरीक़ा अलग-अलग होता है। एक तरीक़ा तानाशाह बनने का होता है। तानाशाह सारे फैसले खुद करता है, वह किसी दूसरे से सलाह लेना पसंद नहीं करता। वह अपने अधीनस्थों की बात सुनना इसलिए पसंद नहीं करता, क्योंकि शायद उसे यह डर रहता है कि उसका अधीनस्थ सही हो और उसे बेइज़्ज़ती का सामना न करना पड़े।

         तानाशाह लंबे समय तक नहीं रह पाते। कुछ समय तक तो कर्मचारी वफादारी का नाटक करते हैं, परंतु जल्दी ही असंतोष फैलने लगता है। सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी काम छोड़कर दूसरी कंपनियों में चले जाते हैं और जो कर्मचारी बचे रहते हैं वे तानाशाह के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल लेते हैं। परिणाम यह होता है कि कंपनी का काम-काज प्रभावित होता है और इससे कंपनी के मालिकों की नज़र में तानाशाह की इमेज ख़राब होती है।

      लीडरशिप का दूसरा तरीक़ा ठंडा, मशीनी, मैं-तो-नियम-की-पुस्तक के हिसाब-से-चलता-हूँ वाला तरीका है। इस शैली से काम करने वाला व्यक्ति हर काम 'नियम की पुस्तक' के हिसाब से करता है। वह यह नहीं समझ पाता कि हर नियम या नीति या योजना केवल एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जो सामान्य प्रकरणों के लिए बना है। यह भावी लीडर इंसानों के साथ उसी तरह से व्यवहार करता है जैसे वे इंसान नहीं, मशीन हों। और किसी भी व्यक्ति को जो बात सबसे ज़्यादा बुरी लगती है, वह यह कि उसके साथ मशीन की तरह व्यवहार किया जाए। ठंडा, मशीनी विशेषज्ञ आदर्श बॉस नहीं होता। जो “मशीनें" उसके नीचे काम करती हैं, वे अपनी क्षमता का थोड़ा सा उपयोग ही कर पाती हैं।

        जो लोग लीडरशिप की बुलंदियों को छू लेते हैं, वे तीसरी शैली का प्रयोग करते हैं, “मानवीय बनने” की शैली।

        कुछ साल पहले मैं जॉन एस. के साथ काम करता था। जॉन एक बड़े एल्युमीनियम निर्माता के इंजीनियरिंग डेव्लपमेंट विभाग में एक्जीक्यूटिव थे। जॉन “मानवीय बनने की शैली" में निपुण था और उसे इससे लाभ भी हो रहे थे। दर्जनों छोटे-छोटे तरीकों से जॉन यह बात लोगों तक पहुँचाता था, “आप एक इंसान हैं। मैं आपका सम्मान करता हूँ। में आपकी जितनी भी मदद कर सकता हूँ, करूँगा।"

       जब दूसरे शहर का एक व्यक्ति उसके विभाग में आया, तो जॉन ने काफ़ी परेशानी उठाकर उसके लिए अच्छा सा घर खोजा।

      अपनी सेक्रेटरी और दो अन्य महिला कर्मचारियों के माध्यम से काम करते हुए उसने अपने स्टाफ़ के हर सदस्य के लिए ऑफ़िस बर्थडे पार्टीज़ आयोजित करने की परंपरा डाली। इस छोटे से आयोजन में जो आधे घंटे का समय बर्बाद होता था, वह दरअसल बर्बादी नहीं, बल्कि निवेश था। वफ़ादारी, निष्ठा और क्षमता में निवेश।

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