Friday, October 4, 2019

CHAPTER 10.3 काम में जुड़ने की यह दो प्रयोग करें।

                           यह दो प्रयोग करें

      1. छोटे परंतु कष्टदायक कामों को करने के लिए मशीनी तरीके का इस्तेमाल करें। उस काम के बुरे पहलुओं के बारे में सोचने के बजाय आप बिना सोचे उस काम को करना शुरू कर दें।

       शायद ज़्यादातर महिलाओं को बर्तन साफ़ करना सबसे कष्टदायक काम लगता होगा। मेरी माँ भी इसका अपवाद नहीं थीं। परंतु उन्होंने इस काम को फुर्ती से निबटाने का मशीनी तरीक़ा ईजाद कर लिया था, ताकि इसके बाद वे अपना मनचाहा काम कर सकें।

        जब वे डायनिंग टेबल से जाती थीं, तो वे मशीनी अंदाज़ में बर्तन इकट्ठे कर लेती थीं और उन्हें साफ़ करना शुरू कर देती थीं। कुछ ही मिनटों में उनका काम ख़त्म हो जाता था। क्या यह तरीका बर्तन "सिंक में जमा करते रहने” और उन्हें देख-देखकर चिंता करने से बेहतर नहीं
 है ?

        आज यह करके देखें : एक ऐसा काम चुन लें जो आपको नापसंद है। फिर, बिना उस बारे में सोचे, या बिना उससे डरे, उस काम को कर दें। नापसंदगी के छोटे-छोटे कामों को करने का यही तरीक़ा सबसे प्रभावी है।

     2. अगला कदम यह है कि आप विचार करने, योजनाएँ बनाने,समस्याएँ सुलझाने और दूसरे दिमागी कामों के लिए भी मशीनी तरीके का इस्तेमाल करें। आप मूड बनने का इंतज़ार करें, इसके बजाय बेहतर यही है कि आप बैठ जाएँ और अपने मूड को बना लें।

       यहाँ एक खास तकनीक दी जा रही है, जो आपकी काफ़ी मदद करेगी। पेंसिल और काग़ज़ का इस्तेमाल करें। पाँच सेंट की छोटी सी पेंसिल दुनिया का सबसे महान एकाग्रता यंत्र है। अगर मुझे एक बहुत शानदार, साउंड प्रफ़ ऑफ़िस और पेंसिल-कागज़ में से किसी एक को चुनना हो, तो मैं यक़ीनन पेंसिल और कागज़ को चुनूँगा। पेंसिल और कागज़ से आप अपने दिमाग को किसी समस्या से बाँध सकते हैं।

        जब आप किसी विचार को कागज़ पर लिखते हैं, तो आपका पूरा ध्यान अपने आप उस विचार पर केंद्रित होता है। ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि आपका दिमाग एक साथ दो काम नहीं कर सकता। एक ही समय पर आपका दिमाग एक विचार को सोचे और दूसरे विचार को लिखे, यह नहीं हो सकता। और जब आप काग़ज़ पर कुछ लिखते हैं, तो आप दरअसल अपने दिमाग पर "लिख" रहे हैं। परीक्षणों से यह साबित हो चुका है कि अगर आप काग़ज़ पर लिखकर कोई चीज़ याद करते हैं, तो वह आपको लंबे समय तक और ज़्यादा अच्छी तरह याद रहती है।

          और एक बार आप एकाग्रता के लिए पेंसिल और काग़ज़ की इस तकनीक में पारंगत हो जाएँ, तो फिर आप शोरगुल के माहौल में भी सोच सकेंगे। जब आप सोचना चाहें, लिखना शुरू कर दें या डायग्राम बनाना शुरू कर दें। अपने मूड को बनाने का यह बेहतरीन तरीक़ा है।

         अब मैं आपको सफलता का जादुई फ़ॉर्मूला बताना चाहता हूँ। कल, अगले सप्ताह, बाद में, और किसी दिन, फिर किसी समय- यह सभी असफलता के शब्द कभी नहीं के पर्यायवाची हैं। बहुत सारे अच्छे सपने कभी सच नहीं हो पाते क्योंकि हम यही कहते रह जाते हैं, “मैं इसे किसी दिन शुरू करूँगा।" जबकि हमें यह कहना चाहिए, “मैं इसे अभी शुरू करता हूँ।"

           एक उदाहरण लें, पैसे बचाने का। हर व्यक्ति मानता है कि पैसे बचाना एक अच्छी बात है। परंतु यह अच्छी बात है, इसका यह मतलब नहीं है कि सभी लोग योजनाबद्ध तरीके से बचत करते हैं और निवेश करते हैं। कई लोगों का बचत करने का इरादा तो होता है परंतु बहुत कम लोग अपने इरादों पर अमल कर पाते हैं।

           एक युवा दंपति ने इस तरह बचत करना शुरू किया। बिल की तनख्वाह 1000 डॉलर थी, परंतु वह और उसकी पत्नी जेनेट हर माह 1000 डॉलर खर्च भी कर डालते थे। दोनों ही बचत करना चाहते थे, परंतु कोई न कोई ऐसा कारण आ जाता था जिससे वे कभी बचत नहीं कर पाए। सालों तक वे सोचते रहे, “जब मेरी तनख्वाह बढ़ेगी, तब हम बचत करना शुरू करेंगे।” “जब हमारी अमुक चीज़ की किस्तें ख़त्म हो जाएँगी, तब हम बचत करना शुरू करेंगे।” “अगले महीने,” “अगले साल।"

        आख़िरकार जेनेट को बचत करने की अपनी असफलता पर गुस्सा आ गया। उसने बिल से कहा, "देखो बिल, हम कभी बचत कर पाएँगे या नहीं।” बिल ने जवाब दिया, “हाँ, हमें करना तो है परंतु हम अभी कर ही क्या सकते हैं ?"

         परंतु इस बार जेनेट करो-या-मरो वाले मूड में थी। "हम सालों से बचत करने की सोच रहे हैं। हम इसलिए नहीं बचा पाते, क्योंकि हमने यह सोच रखा है कि हमसे बचत नहीं होगी। इसके बजाय अब हम यह सोचना शुरू कर दें कि हम बचत कर सकते हैं। मैंने आज एक विज्ञापन देखा जिसमें लिखा है कि अगर हम हर महीने 100 डॉलर भी बचाते हैं, तो 15 सालों में हमारे पास 18000 डॉलर जमा हो जाएँगे, और उसके साथ ही हमें 6600 डॉलर ब्याज भी मिलेगा। विज्ञापन में यह भी लिखा था कि खर्च करने के बाद बचत करना मुश्किल होता है, जबकि बचत करने के बाद तनख्वाह ख़र्च करना आसान होता है। अगर तुम साथ दो, तो मैं चाहती हूँ कि तुम्हारी तनख्वाह का दस प्रतिशत हम शुरू में ही बचत खाते में डाल देंगे। अगर महीने के आखिर में हमें फाके भी करने पड़ें तो मैं उसके लिए तैयार हूँ। बिल, इस तरह अगर हम ठान लें, तो हम बचत कर सकते हैं।"

        बिल और जेनेट को कुछ महीनों तक तो मुश्किल आई, परंतु जल्दी ही उन्होंने अपने नए बजट के हिसाब से आसानी से घर चलाना सीख लिया। अब बचत करने में भी उनको उतना ही मज़ा आता है, जितना उन्हें पहले “ख़र्च करने” में आता था।

       किसी दोस्त को चिट्ठी लिखना चाहते हैं ? अभी लिख दें। आपके पास एक विचार आया है कि आपका बिज़नेस किस तरह बढ़ सकता है? उस विचार को अभी प्रस्तुत कर दें। बेंजामिन फ्रेंकलिन की सलाह याद रख, “कल पर वह काम न टालें, जिसे आप आज कर सकते हैं।"

याद रखें, अभी काम करने का तरीक़ा सफलता का तरीक़ा है, जबकि फिर किसी दिन या फिर कभी काम करने की सोच असफलता का तरीक़ा है।

एक दिन मैं अपनी पुरानी बिज़नेस मित्र से मिलने गया। वह एक कॉन्फ्रेंस से अभी हाल लौटी थी। जब मैंने उसे देखा तो मैंने महसूस किया कि वह किसी बात से परेशान थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह काफ़ी निराश थी। और मेरा अनुमान सही था।

        उसने आते ही कहा, “मैंने आज सुबह मीटिंग की क्योंकि मैं चाहती थी कि कंपनी की पॉलिसी में जो बदलाव प्रस्तावित है, उसके बारे में कुछ मदद मिल सके। परंतु मुझे किस तरह की मदद मिली? मेरे साथ छह लोग मीटिंग में थे और केवल एक ही व्यक्ति ने अपने विचारों का योगदान दिया। दो और लोगों ने कहा, परंतु उन्होंने सिर्फ मेरे शब्दों को दोहरा दिया। ऐसा लग रहा था जैसे मैं पत्थर से सिर फोड़ रही थी। मैं यह नहीं जान पाई कि प्रस्तावित पॉलिसी परिवर्तन के बारे में उन लोगों की क्या राय थी।

        “दरअसल,” उसने आगे कहा, “होना यह चाहिए था कि हर व्यक्ति मुझे यह बताता कि वह क्या सोचता था। आख़िरकार, इससे उन सभी को प्रभावित होना था।"

         मेरी मित्र को मीटिंग में कोई मदद नहीं मिली। परंतु अगर आप मीटिंग ख़त्म होने के बाद हॉल में जाते, तो आपको उन्हीं चुप्पे लोगों के मुँह से इस तरह की टिप्पणियाँ सुनने को मिल जातीं, “मेरी इच्छा तो हुई थी कि मैं कुछ कह दूँ...” “किसी ने यह क्यों नहीं कहा कि...", "मुझे नहीं लगता...” "हमें आगे बढ़ना चाहिए..." अक्सर पत्थर टाइप के यह लोग जो मीटिंग रूम में चुपचाप बैठे रहते हैं, मीटिंग के बाद बहुत बोलते हैं, जब उनके बोलने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब वक्त निकल जाता है, तो वे जागते हैं और सक्रिय होते हैं।

       बिज़नेस मीटिंग में लोग आपकी राय, आपके विचार जानना चाहते हैं। जो व्यक्ति अपनी राय को अपने दिमाग की तिजोरी में ही बंद रखता है, वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता है।

        "बोलने की" आदत डालें। हर बार जब आप बोलने के लिए खड़े होते हैं, आपका आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। अपने रचनात्मक विचारों के साथ आगे आएँ।

        हम सभी जानते हैं कि कॉलेज के विद्यार्थी परीक्षा की तैयारी किस तरह करते हैं। जो नाम के एक विद्यार्थी ने भी एक शाम को बहुत पढ़ने का फैसला किया, क्योंकि अगले दिन उसकी परीक्षा थी। यहाँ यह बताया गया है कि उसके फैसले का क्या हुआ और उसकी शाम किस तरह गुज़री।

        जो शाम को 7 बजे पढ़ने के लिए तैयार था, परंतु उसका डिनर कुछ भारी हो गया था, इसलिए उसने सोचा कि वह कुछ देर टीवी देख ले। कुछ देर करते-करते उसने एक घंटे तक टीवी देखा क्योंकि सीरियल उसे पसंद आ गया था। 8 बजे वह अपनी टेबल पर बैठ गया, लेकिन तत्काल ही उठ गया क्योंकि उसे अचानक याद आ गया कि उसे अपनी गर्लफ्रेंड को फ़ोन करना है। इसमें 40 मिनट लग गए (उसने पूरे दिन उससे बात नहीं की थी)। किसी का फ़ोन आ गया, जिसमें 20 मिनट लग गए। अपनी डेस्क पर आते-आते जो की इच्छा हुई कि वह पिंग पॉन्ग खेल ले। इसमें एक और घंटा बर्बाद हो गया। पिंग पॉन्ग खेलने के बाद उसे पसीना आ गया था, इसलिए वह नहा भी लिया। नहाने के बाद उसे भूख लगी, क्योंकि पिंग पॉन्ग और नहाने के बाद भूख लगना स्वाभाविक था।

       और इस तरह उसकी शाम बर्बाद हो गई। उसके इरादे तो अच्छे थे, परंतु वह इरादों पर अमल नहीं कर पाया। आखिरकार एक बजे रात को उसने अपनी पुस्तक खोली, परंतु उसे इतनी नींद आ रही थी कि वह कछ समझ नहीं पा रहा था। आखिरकार उसने नींद के आगे हार मान ली। अगली सुबह उसने अपने प्रोफेसर को बताया, "मुझे लगता है कि आप मुझे अच्छे नंबर देंगे। मैंने इस परीक्षा के लिए सुबह दो बजे तक पढ़ाई की है।”

        जो कार्य करने में नहीं जुटा क्योंकि उसने कार्य करने की तैयारी में बहुत समय बर्बाद कर दिया। और जो ही “ज्यादा तैयारी" का एकमात्र शिकार नहीं है। जो नाम का सेल्समैन, या एक्जीक्यूटिव, या प्रोफेशनल वर्कर, जोसेफाइन नाम की हाउसवाइफ़ - यह सभी इसी तरह की तैयारी करते हैं। कोई भी महत्वपूर्ण काम शुरू करने से पहले वे इसीलिए गपशप करते हैं, कॉफ़ी पीते हैं, पेंसिल तेज़ करते हैं, पढ़ते हैं, मेज़ साफ़ करते हैं, टीवी देखते हैं और कई ऐसी चीजें करते हैं जिनमें फ़ालतू समय बर्बाद होता है।

       परंतु इस आदत को दूर करने का एक तरीका है। अपने आपसे यह कहें, “मैं अभी शुरू करने की हालत में हूँ। काम टालने से मुझे कोई फायदा नहीं होगा। मैं तैयारी में जितना समय और ऊर्जा बर्बाद करूँगा, उसका इस्तेमाल में काम करने में कर सकता हूँ।"

        मशीन के पुर्जे बनाने वाली कंपनी के एक बॉस ने अपने सेल्स एक्जीक्यूटिव्ज़ से यह कहा, “इस बिज़नेस में हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है जिनके पास दमदार विचार हों और उनमें अपने विचारों पर अमल करने का दम भी हो। हमारी कंपनी का हर काम बेहतर तरीके से हो सकता है, चाहे उत्पादन हो. मार्केटिंग हो या कोई अन्य क्षेत्र हो। मैं यह नहीं कहना चाहता कि हम अभी ख़राब काम कर रहे हैं। हम अच्छा काम कर रहे हैं। परंतु हर सफल कंपनी की तरह, हमें नए सामानों, नए बाज़ारों, नए विचारों और नए उपायों की ज़रूरत है। हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो पहल करें। वही हमारी टीम के कप्तान बनने क़ाबिल हैं।"

         पहल करना कर्म करने का एक खास पहलू है। पहल करने का मतलब है बिना किसी के कहे कोई महत्वपूर्ण काम करना। पहल करने वाला व्यक्ति हर बिज़नेस और प्रोफ़ेशन में अलग दिख जाता है, और उसकी आमदनी भी काफ़ी होती है।

        मुझे एक दवाई बनाने वाली कंपनी का व्यक्ति मिला। वह मार्केटिंग रिसर्च का डायरेक्टर था। उसने मुझे बताया कि वह इस पद पर कैसे पहुँचा। पहल की शक्ति का यह एक अच्छा सबूत है।

       “पाँच साल पहले मेरे मन में एक विचार आया," उसने मुझे बताया। “मैं तब एक मिशनरी सेल्समैन की तरह काम कर रहा था, जो होलसेलर्स से मिला करता था। मैंने यह पाया कि हमारे पास अपने ग्राहकों के बारे में आँकड़ों की कमी थी। मैंने कंपनी के हर व्यक्ति से इस बारे में बात की। मैंने उन्हें बताया कि हमें मार्केट रिसर्च की ज़रूरत है। पहले तो सबने मेरी बात अनसुनी कर दी, क्योंकि मैनेजमेंट को इसका महत्व समझ में नहीं आया।

        "परंतु मुझे पक्का विश्वास था कि हमारी कंपनी में मार्केटिंग रिसर्च होनी चाहिए, इसलिए मैंने पहल करने का फैसला कर लिया। मैंने मैनेजमेंट की अनुमति के बाद 'फैक्ट्स ऑफ़ ड्रग मार्केटिंग' नाम की एक मासिक रिपोर्ट तैयार की। मैंने हर जगह से जानकारी इकट्ठी की। मैं ऐसा हर महीने करता रहा और जल्दी ही मैनेजमेंट और दूसरे सेल्समैनों को यह समझ आ गया कि मैं जो कर रहा हूँ, वह सचमुच महत्वपूर्ण है। इसके बाद वे भी इस काम में दिलचस्पी लेने लगे। अपनी रिसर्च शुरू करने के एक साल बाद मुझे अपनी नियमित नौकरी से हटा दिया गया और मुझसे कहा गया कि मैं सिर्फ अपने विचारों को विकसित करने पर पूरा ध्यान हूँ।

       "बाक़ी बातें तो साधारण तरीके से हुई। आज मेरे पास दो सहयोगी, एक सेक्रेटरी, और तीन गुना ज्यादा तनख्वाह है।"

       लीडर बनने की कला विकसित करने के लिए यहाँ पर दो अभ्यास दिए गए हैं:

     1. संघर्ष करने वाला बनें। जब आप ऐसी कोई बात सोचें जो आपके हिसाब से की जानी चाहिए तो आप तत्काल उस विचार को उठा लें और फिर उसके लिए संघर्ष शुरू कर दें।

       मेरे पड़ोस में ही एक नई कॉलोनी बन रही थी जो लगभग दो तिहाई बन चुकी थी, परंतु इसके बाद उसका विस्तार ठप्प हो गया। कुछ ऐसे परिवार वहाँ रहने आ गए थे जो लापरवाह लोग थे। इससे कई अच्छे परिवारों को उस जगह से अपने मकान बेचकर जाना पड़ा। जैसा अक्सर होता है, परवाह करने वाले लोगों को भी लापरवाह लोगों की सोहबत का असर हुआ और पूरी कॉलानी ही लापरवाह हो गई। परंतु हैरी एल. ऐसा नहीं हुआ। वह माहौल की परवाह करता था और उसने फैसला किया कि वह इसे अच्छी कॉलोनी बनाने के लिए संघर्ष करेगा।

         हैरी ने अपने कुछ दोस्तों से बात की। उसने बताया कि यह कॉलोनी एक बेहतरीन कॉलोनी बन सकती है परंतु इसके लिए प्रयास करने होंगे वरना यह थर्ड क्लास कॉलोनी बनकर रह जाएगी। हैरी के उत्साह और पहल का स्वागत हुआ। जल्दी ही वहाँ पर साफ़-सफ़ाई शुरू हो गई। बगीचे की योजना पर काम शुरू हो गया। वृक्षारोपण अभियान शुरू किया गया। बच्चों के लिए खेल का मैदान बन गया। स्विमिंग पूल भी बन गया लापरवाह परिवार भी उत्साही समर्थक बन गए। पूरी कॉलोनी में एक नई जान आ गई थी। अब वहाँ से निकलने पर दिल खुश हो जाता है। इससे यह पता चलता है कि संघर्ष करने वाला व्यक्ति चाहे, तो नरक को भी स्वर्ग में बदल सकता है।

        क्या आपको ऐसा लगता है कि आपके बिज़नेस में एक नया डिपार्टमेंट बनना चाहिए, या आपकी कंपनी को बाज़ार में एक नया सामान लाना चाहिए या किसी और तरीके से तरक्क़ी करनी चाहिए? अगर आपको ऐसा लगता है, तो उस विचार के लिए संघर्ष करें। क्या आपको लगता है कि आपके चर्च को नई इमारत की ज़रूरत है ? अगर हाँ, तो इसके लिए पहल और संघर्ष करें। क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चों के स्कूल में कंप्यूटर लगने चाहिए? अगर हाँ, तो इसके लिए पहल करें और ऐसा संभव बनाएँ।

        और आप यह बात जान लें : हालाँकि हर संघर्ष शुरुआत में एक व्यक्ति का संघर्ष ही होता है, परंतु अगर विचारों में दम हो, तो जल्दी ही बहुत से लोग आपके समर्थन में खड़े हो जाते हैं। 

        कर्मठ और संघर्षशील व्यक्ति बनें।

      2. स्वयंसेवी बनें। हममें से हर एक के जीवन में ऐसा मौक़ा आया होगा जब हम किसी संस्था में स्वयंसेवा करना चाहते होंगे, परंतु हमने ऐसा नहीं किया। कारण क्या था? डर। यह डर नहीं कि हम काम नहीं कर पाएँगे, बल्कि यह डर कि लोग क्या कहेंगे। यह डर कि लोग हम पर हँसेंगे, हमें जुगाडू कहेंगे, हमें महत्वाकांक्षी समझेंगे - यही डर बहुत से लोगों को आगे बढ़ने से रोकता है।

        यह स्वाभाविक है कि आप लोगों का समर्थन, उनकी तारीफ़ चाहे  परंतु खुद से पूछे, “मैं किन लोगों की तारीफ़ चाहता हूँ : उन लोगों का जो मुझ पर ईर्ष्या के कारण हँसते हैं या उन लोगों की जो कर्मठता से काम करके सफल होते हैं ?" सही विकल्प क्या है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है।

         स्वयसैवी अलग दिख जाता है। उसकी तरफ़ खास तवज्जो दी जा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह स्वयंसेवा करके अपनी विशष योग्यता और महत्वाकांक्षा को सबके सामने ले आता है। निश्चित रूप से स्वयंसेवक को विशेष काम सौंपे जाएंगे।

       आप बिज़नेस, मिलिट्री या अपने समुदाय के जिन लीडर्स को जानते हों, उनके बारे में सोचें। क्या वे कर्मठ लगते हैं या वे निठल्ले लगते हैं? 

      दस में से दसों लीडर कर्मठ होंगे, ऐसे लोग होंगे जो काम पूरा करके दिखाते हैं। वह व्यक्ति जो हाशिए पर खड़ा रहता है, वह व्यक्ति जो दुःखी होता रहता है, वह निठल्ला होता है, जो सिर्फ इसलिए वहीं रह जाता है क्योंकि वह कर्म के मैदान में नहीं उतरता। जो विचार करता है और उस पर अमल करता है, उस कर्मठ व्यक्ति के पीछे कई लोग आ जाते हैं और वह लीडर बन जाता है।

       जो व्यक्ति काम करता है, लोग उस पर विश्वास करते हैं। वे मान लेते हैं कि वह जानता है कि वह क्या कर रहा है।

      मैंने किसी की तारीफ़ इस बात के लिए नहीं सुनी, “वह व्यक्ति किसी को डिस्टर्ब नहीं करता," "वह व्यक्ति काम नहीं करता,” या “जब तक उसे बताया न जाए, वह कुछ नहीं करता।"

       क्या आपने इन बातों के लिए किसी की तारीफ़ होते देखी है ?

      कर्म की आदत को बढ़ावा दें

इन मुख्य बिंदुओं का अभ्यास करें :

1. “कर्मठ" बनें। काम करने वाला बनें। “काम टालने वाला” न बनें।

2. परिस्थितियों के आदर्श होने का इंतज़ार न करें। वे कभी आदर्श नहीं होंगी। भविष्य की बाधाओं और कठिनाइयों की उम्मीद करें और जब वे आएँ, तब आप उन्हें सुलझाने का तरीका खोजें।

3. याद रखें, केवल विचारों से सफलता नहीं मिलती। विचारों का मूल्य तभी है, जब आप उन पर अमल करें।

4. डर भगाने और आत्मविश्वास हासिल करने के लिए कर्म करें। जिस काम से आप डरते हों, वह करें और आपका डर भाग जाएगा।

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