Wednesday, September 25, 2019

CHAPTER 8.1 अपने विचारों को अपना दोस्त बनाएँ

                अपने विचारों को अपना
                         दोस्त बनाएँ

क्याआप सामने वाले के विचार पढ़ सकते हैं? किसी के विचार या पढना कोई मुश्किल काम नहीं है। आप इस काम को जितना कठिन समझते हैं, यह दरअसल उससे बहुत आसान है। शायद आपने इस बारे में ठीक से सोचा नहीं है, परंतु यह सच है कि आप हर दिन दूसरों के विचार पढ़ते हैं और आप अपने खुद के विचारों को भी पढ़ते हैं।

        हम ऐसा किस तरह करते हैं ? ऐसा अपने आप होता है और हम रवैए के मूल्यांकन से ऐसा कर पाते हैं।

        आपने वह गाना सुना है, You Don't Need to Know the Language to Say You're In Love (प्यार का इज़हार करने के लिए भाषा जानने की ज़रूरत नहीं होती)। यह प्रसिद्ध गीत बिंग क्रॉसबी ने कुछ साल पहले गाया था। इस साधारण से गाने में मनोविज्ञान की पूरी पुस्तक का निचोड़ है। आपको प्यार का इज़हार करने के लिए भाषा जानने की जरूरत नहीं होती। जिसने भी प्रेम किया है, वह यह बात अच्छी तरह से जानता है।

            और आपको यह बताने के लिए भी भाषा जानने की ज़रूरत नहीं है, "मैं आपको पसंद करता हूँ" या "मैं आपसे नफ़रत करता हूँ" या "मैं मझता हूँ कि आप महत्वपर्ण हैं" या "महत्वहीन हैं" या "मैं आपसे ईर्ष्या करता हूँ।" आपको यह कहने के लिए शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता, “मैं अपने काम को पसंद करता हूँ" या "मैं बोर हो चुका हूँ" या "मैं भूखा हूँ।" लोग इन वाक्यों को बिना आवाज़ किए बोल लेते हैं।

        हम क्या सोच रहे हैं, यह हमारे हावभाव से समझ में आ जाता है। हमारे हावभाव हमारे मस्तिष्क के प्रतिबिंब हैं। वे बताते हैं कि हम क्या सोच रहे हैं।

        आप ऑफ़िस की कुर्सी पर बैठे किसी व्यक्ति के विचार पढ़ सकते हैं। आप उसके हावभाव देखकर समझ सकते हैं कि अपने काम के बारे में उसका दृष्टिकोण क्या है। आप सेल्समैन, विद्यार्थियों, पतियों और पत्नियों के विचार समझ सकते हैं; आप न सिर्फ ऐसा कर सकते हैं, बल्कि आप अक्सर ऐसा करते हैं।

         फ़िल्मों और टीवी सीरियलों के लोकप्रिय अभिनेता दरअसल अभिनय नहीं करते। वे अपनी भूमिकाओं को नहीं निभाते। इसके बजाय वे अपने अस्तित्व को भूल जाते हैं और सचमुच यह कल्पना करने लगते हैं कि वे अभिनय किए जाने वाले पात्र के शरीर में घुस गए हैं। उन्हें यह करना ही पड़ता है। इसके बिना वे नक़ली लगेंगे, उनके अभिनय में जान नहीं आ पाएगी और उनकी लोकप्रियता कम हो जाएगी।

        हमारे दृष्टिकोण न सिर्फ दिख जाते हैं, बल्कि वे "सुनाई" भी दे जाते हैं। कोई सेक्रेटरी जब फ़ोन पर बात करती है और कहती है, “गुड मॉर्निंग, मिस्टर शूमेकर्स ऑफ़िस," तो इन पाँच शब्दों में वह सेक्रेटरी यह जता देती है, “मैं आपको पसंद करती हूँ। मुझे खुशी है कि आपने फ़ोन किया। मुझे लगता है कि आप महत्वपूर्ण हैं। मैं अपने काम को पसंद करती हूँ।" |

          परंतु दूसरी सेक्रेटरी इन्हीं शब्दों के माध्यम से यह बोलती हुई लग सकती है, “आप मुझे परेशान कर रहे हैं। कितना अच्छा होता अगर आपका फ़ोन नहीं आया होता। मैं अपने काम से बोर हो गई हूँ और मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती, जो मुझे परेशान करें।”

          हावभाव से, आवाज़ की टोन से और आवाज़ के उतार-चढ़ाव से हम किसी के भी रवैए को समझ जाते हैं। इसका कारण क्या है ? मनुष्य के इतिहास में बोलने वाली भाषा का जन्म तो हाल ही में हुआ है। अगर हम कालचक्र के हिसाब से देखें, तो परे इतिहास की घडी के मान से मनुष्य ने इसी सुबह बोलना शुरू किया है। भाषा के जन्म से पहले, करोड़ों सालों से इंसान सिर्फ़ आवाज़ और इशारों और हावभाव से अपनी बात कहता आया है।

          करोड़ों सालों तक इंसान दूसरे इंसानों के साथ संप्रेषण के लिए शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता था, बल्कि अपने शरीर, अपने चेहरे के भाव और अपनी आवाज़ का इस्तेमाल करता था। और हम आज भी अपने दृष्टिकोण और अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त करने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। बच्चों के साथ व्यवहार करते समय हमारे पास सीधे शारीरिक स्पर्श के अलावा सिर्फ़ आवाज़, हावभाव और शरीर की गतिविधियाँ ही तो संप्रेषण का माध्यम हैं। और बच्चों में ऐसी छठी इंद्रिय होती है कि वे असली और नक़ली का फ़र्क तत्काल समझ लेते हैं।

          प्रोफ़ेसर अर्विन एच. शेल, जो लीडरशिप में अमेरिका के प्रख्यात विशेषज्ञ हैं, कहते हैं, “सच कहा जाए तो उपलब्धि के लिए सुविधाओं और योग्यता के अलावा किसी और चीज़ की भी ज़रूरत होती है। मेरा यह मानना है कि इस उत्प्रेरक को सिर्फ एक शब्द में बयान किया जा सकता है - रवैया। जब आपका रवैया सही होगा, तभी आप अपनी योग्यताओं का अधिकतम उपयोग कर पाएंगे और आपको उसके अच्छे परिणाम अपने आप मिलेंगे।"

         रवैए से फ़र्क पड़ता है। सही रवैए वाला सेल्समैन अपने लक्ष्य को प्राप्त ही नहीं करता, बल्कि उससे आगे निकल जाता है। सही रवैए वाला विद्यार्थी परीक्षा में फ़र्स्ट डिवीज़न लाता है। सही रवैए वाले दंपति सुखी वैवाहिक जीवन बिताते हैं। सही रवैए से आप लोगों के साथ प्रभावी व्यवहार करते हैं, आप लीडर बन जाते हैं। सही रवैए से आप हर तरह की परिस्थिति में जीत जाते हैं।

          इन तीन रवैयों को विकसित करें। इन्हें अपने हर काम में अपना साथी बनाएँ।

    1. मुझमें उत्साह है का रवैया विकसित करना।

    2. आप महत्वपूर्ण हैं का रवैया विकसित करना।

    3. सेवाभाव का रवैया विकसित करना।

      अब हम देखते हैं कि ऐसा किस तरह किया जा सकता है।

      सालों पहले, जब मैं कॉलेज में था, मैंने अमेरिकी इतिहास की कथा में अपना नाम लिखाया। मुझे क्लास बहुत अच्छी तरह याद है, इसलिए नहीं क्योंकि वहाँ मैंने अमेरिकन इतिहास के बारे में बहुत कुछ सीखा था. बल्कि इसलिए क्योंकि मैंने वहाँ पर सफल जीवन का यह मूलभूत सिद्धांत सीखा था : दूसरों में उत्साह भरने के लिए, पहले खुद में उत्साह भरें।

       इतिहास की कक्षा बहुत बड़ी थी और यह एक बड़े हॉल में लगा करती थी। प्रोफ़ेसर अधेड़ थे और बड़े ज्ञानी थे, परंतु उनके लेक्चर बहुत बोरिंग हुआ करते थे। इतिहास को जीवंत और रोचक विषय के रूप में पढ़ाने के बजाय वे हमें तथ्य और तारीखें गिनाते रहते थे। मुझे यह देखकर हैरानी होती थी कि वे इतने रोचक विषय को इतने बुरे तरीके से कैसे पढ़ा लेते हैं। परंतु वे ऐसा कर लेते थे।

          आप समझ ही सकते हैं कि प्रोफ़ेसर की बोरियत भरी बातों का विद्यार्थियों पर क्या असर होता होगा। वे या तो बातें करते थे या फिर
सो जाते थे। जब माहौल बहुत बिगड़ गया तो प्रोफ़ेसर ने दो पहरेदारों को तैनात कर दिया ताकि विद्यार्थियों को बातें करने और सोने से रोका जा सके।

           कभी-कभार, प्रोफेसर बीच में रुककर अपनी उँगली उठाकर छात्रों से कहते थे, “मैं तुम सबको चेतावनी देता हूँ। मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम लोग बातें करना बंद कर दो और मेरा लेक्चर सुनो।” इससे विद्यार्थियों पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता था, क्योंकि इनमें से कई विद्यार्थी तो हाल ही में युद्ध से लौटे थे और उन्होंने टापुओं और लड़ाकू हवाई जहाज़ों में इतिहास रचा था।

           जब मैं वहाँ बैठकर यह सोच रहा था कि जिस विषय को इतने बढ़िया तरीके से पढ़ाया जा सकता था, उसे यह प्रोफ़ेसर इतने बुरे तरीकेसे क्यों पढ़ा रहे हैं, तो मेरे दिमाग में यह सवाल भी आया, “विद्यार्थी प्रोफ़ेसर की बातों में रुचि क्यों नहीं ले रहे हैं?"

          जवाब तत्काल मिल गया।

          विद्यार्थियों को प्रोफ़ेसर की बातों में कोई रुचि इसलिए नहीं थी, क्योंकि अपने लेक्चर या अपने विषय में प्रोफ़ेसर की ही कोई रुचि नहीं थी। वह इतिहास पढ़ाते-पढ़ाते बोर हो चुके थे और यह साफ़ नज़र आता था। दूसरों को उत्साहित करने के लिए आपको पहले खुद उत्साहित होना पड़ेगा।

    

         सालों तक मैंने इस सिद्धांत को सैकड़ों परिस्थितियों में आज़माया है। हर बार यह सच साबित हुआ है। जिस व्यक्ति में उत्साह नहीं होता, वह दूसरों को उत्साहित नहीं कर सकता। परंतु जो उत्साही होता है, उसके पीछे जल्दी ही बहुत से उत्साहित अनुयायी जमा हो जाते हैं।

           उत्साही सेल्समैन को इस बारे में फ़िक्र नहीं होनी चाहिए कि उसके ग्राहकों में उत्साह की कमी हो सकती है। उत्साही टीचर को उत्साहहीन विद्यार्थियों के बारे में फ़िक्र नहीं करनी पड़ेगी। उत्साहित धर्मोपदेशक उनींदी भीड़ को देखकर कभी दुःखी नहीं होगा।

          उत्साह से चीजें 1100 प्रतिशत बेहतर हो सकती हैं। दो साल पहले एक कंपनी के कर्मचारियों ने रेड क्रॉस में 94.35 डॉलर का दान दिया। इस साल उन्हीं कर्मचारियों ने लगभग 1,100 डॉलर दान में दिए, जो पिछली राशि से 1100 प्रतिशत ज़्यादा थी।

        जिस कप्तान ने 94.35 डॉलर का चंदा लिया था, उसमें उत्साह नहीं था। उसने इस तरह की बातें कहीं, “मुझे लगता है यह एक महत्वपूर्ण संस्था है;" “मेरा इससे कभी सीधा सरोकार नहीं रहा है"; “यह एक बड़ा संगठन है और यह अमीर लोगों से काफ़ी चंदा लेता है इसलिए मुझे नहीं लगता कि आपके योगदान से कोई ख़ास फ़र्क पड़ने वाला है;" "अगर आप दान देना चाहते हों, तो मुझसे संपर्क कर लें।" इस व्यक्ति ने किसी को रेड क्रॉस में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं किया।

          इस साल का चंदा लेने वाला ज़रा अलग क़िस्म का था। उसमें उत्साह था। उसने इतिहास के कई उदाहरण देकर लोगों को बताया कि रेड क्रॉस संकट के समय किस तरह इंसानों की सहायता करती है। उसने बताया कि रेड कॉस हर व्यक्ति के दान के सहारे चलती है। उसने कर्मचारियों को बताया कि वे रेड क्रॉस को उतना ही दान में दें, जितना वे अपने मुसीबत में फँसे पड़ोसी की मदद करने के लिए देंगे। उसने कहा, “देखिए, रेड क्रॉस ने अब तक क्या-क्या किया है!" ध्यान दीजिए, उसने भीख नहीं माँगी। उसने यह नहीं कहा, “मुझे आपमें से हर आदमी से इतने डॉलर चाहिए।" उसने रेड क्रॉस के महत्व के बारे में उत्साह से बताया। इसके बाद उसे सफलता अपने आप मिल गई।

         एक पल के लिए अपने किसी ऐसे क्लब या संगठन के बारे में सोचें जो निस्तेज हो चुका हो। शायद इसे पुनर्जीवित करने के लिए उत्साह की ज़रूरत हो।

          जितना उत्साह होगा, परिणाम उतने ही मिलेंगे।

           उत्साह का मतलब है, “यह कितना बढ़िया है!"

         यहाँ तीन क़दमों का तरीका बताया जा रहा है जो उत्साह की शक्ति को विकसित करने में आपकी मदद करेगा।

         1. गहराई में जाएँ। यह छोटा सा प्रयोग करें। दो ऐसी चीज़ों के बारे में सोचें जिनमें आपकी बिलकुल भी रुचि नहीं है या बहुत कम रुचि है- जैसे ताश के पत्ते, किसी खास किस्म का संगीत, कोई खेल। अब खुद से पूछे, “मैं इन चीजों के बारे में कितना जानता हूँ?" 100 में से 99 मामलों में आपका जवाब होगा, “ज्यादा नहीं।

मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कई सालों तक मुझे आधुनिक चित्रकला में कोई रुचि नहीं थी। मुझे आधुनिक चित्रकला में कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें ही दिखा करती थीं। परंतु तभी मेरे एक चित्रकार दोस्त ने मुझे आधुनिक चित्रकला की जानकारी दी। सचमुच मैं इसमें जितनी गहराई तक गया, मैंने पाया कि यह बहुत दिलचस्प थी।

         इस अभ्यास में उत्साह बढ़ाने की एक और महत्वपूर्ण कुंजी है। उत्साहित होने के लिए, उस चीज़ के बारे में ज्यादा जानें जिसके बारे में आपमें कम उत्साह हो।

           हो सकता है कि आप की भौंरों में ज्यादा रुचि न हो। परंतु अगर आप भौरों का अध्ययन करें, यह पता करें कि वे कितनी भलाई करते है, वे किस तरह दूसरे भौरों के साथ संबंध जोडते हैं. वे किस तरह प्रजनन करते हैं, वे जाड़ों में कहाँ रहते हैं- अगर आप भौंरों के बारे में मिल सकने वाली सारी जानकारी हासिल करेंगे, तो आप पाएँगे कि भौंरों में आपकी दिलचस्पी सचमुच बढ़ गई है।

          मैं इस बात का प्रशिक्षण देता हूँ कि गहराई में जाने की तकनीक से उत्साह किस तरह विकसित किया जा सकता है। प्रशिक्षण देते समय मैं ग्रीनहाउस का उदाहरण देता हूँ। मैं समूह से यूँ ही पूछ लेता हूँ, “क्या आपमें से कोई ग्रीनहाउस बनाने और बेचने में रुचि रखता है ?” मैंने आज तक इसके जवाब में हाँ नहीं सुना। फिर मैं समूह को बताता हूँ कि जैसे-जैसे हमारा जीवनस्तर बढ़ता जा रहा है, लोग अपनी मूलभूत आवश्यकता के बाहर की चीज़ों में ज़्यादा रुचि लेने लगे हैं। अमेरिका की कोई भी महिला अपने घर में संतरे या ऑर्किड के पेड़ लगाकर खुश होगी। मैं बताता हूँ कि अगर लाखों परिवार प्राइवेट स्विमिंग पूल बनवा सकते हैं, तो करोड़ों लोग निश्चित रूप से ग्रीनहाउस भी खरीद सकते हैं क्योंकि ग्रीनहाउस की लागत स्विमिंग पूल की तुलना में बहुत कम होती है। मैं उन्हें बताता हूँ कि अगर आप 50 में से एक परिवार को भी 600 डॉलर का ग्रीनहाउस बेच लेते हैं तो आपका छह सौ मिलियन डॉलर का ग्रीनहाउस का बिज़नेस खड़ा हो जाएगा। और शायद पौधों और बीजों की आपूर्ति करने के लिए आप दो सौ पचास मिलियन डॉलर का उद्योग अलग डाल लेंगे।

          इस अभ्यास के साथ दिक्क़त यह होती है कि दस मिनट पहले तक जो समूह ग्रीनहाउस के बारे में बिलकुल भी रुचि नहीं ले रहा था, अब वह इतनी रुचि लेने लगता है कि अगले विषय पर जाना ही नहीं चाहता!

         दूसरे लोगों में अपना उत्साह बढ़ाने के लिए भी गहराई में जाने की तकनीक का प्रयोग करें। सामने वाले व्यक्ति के बारे में सारी जानकारी इकट्ठी करें- वह क्या करता है, उसका परिवार, उसकी पृष्ठभूमि, उसके विचार और महत्वाकांक्षाएँ- और आप पाएंगे कि उसमें आपकी रुचि और उत्साह बढ़ रहा है। आप और गहराई में जाएँगे तो आपको निश्चित रूप से साझी दिलचस्पी के विषय मिल जाएँगे। और गहराई में जाएँगे तो आपको आखिरकार एक बहुत ही आकर्षक व्यक्ति दिख जाएगा।

          गहराई में जाने की तकनीक नई जगहों के प्रति भी उत्साह पैदा कर सकती है। कई साल पहले मेरे कुछ दोस्तों ने डेट्रॉएट से फ्लोरिडा के एक छोटे कस्बे में जाकर रहने का फैसला किया। उन्होंने अपने घर बेच दिए, अपने बिज़नेस समेट लिए और अपने दोस्तों से अलविदा कहकर वे रवाना हो गए।

         छह हफ्तों बाद वे वापस डेट्रॉइट में दिखे। उनके वापस लौटने का कारण उनके बिज़नेस से संबंधित नहीं था। इसके बजाय उनका कहना था, "हम छोटे कस्बे में रह नहीं पाए। इसके अलावा, हमारे सभी दोस्त डेट्रॉइट में हैं। हमें वापस लौटना ही पड़ा।"

          बाद में इन लोगों के साथ हुई चर्चा में मैंने उनकी वापसी का असली कारण जाना। कारण सिर्फ इतना था कि उन्हें छोटा शहर पसंद नहीं आया था। कुछ दिनों के प्रवास में उन्होंने उस जगह का सतही मुआयना किया- वहाँ का इतिहास, भविष्य की योजनाएँ, वहाँ के लोग। उनका शरीर तो फ्लोरिडा में रह रहा था, परंतु वे अपना दिल डेट्रॉइट में छोड़ गए थे।

          मैंने दर्जनों एक्जीक्यूटिब्ज़, इंजीनियरों और सेल्समैनों से बात की जिन्हें उनकी कंपनी दूसरी जगह भेजना चाहती थी, परंतु वे वहाँ नहीं जाना चाहते थे। “मैं शिकागो (या सैन फ्रांसिस्को या अटलांटा या न्यूयॉर्क या मियामी) जाने का सोच ही नहीं सकता" दिन में कई बार बोला जाता है।

         नई जगह के बारे में उत्साह बढ़ाने का एक तरीक़ा यह है। नए समुदाय की गहराई में जाने का संकल्प करें। इसके बारे में हर जानकारी इकट्ठी करें। लोगों से मिले-जुलें। पहले ही दिन से अपने को वहाँ का निवासी समझें। ऐसा करें, और आप अपने नए माहौल के बारे में उत्साहित हो जाएंगे।

         आज करोड़ों अमेरिकी शेयर बाज़ार में पैसा निवेश कर रहे हैं। परंतु कई करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें स्टॉक मार्केट में कोई रुचि नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें शेयर बाज़ार का कोई ज्ञान नहीं है, यह किस तरह से काम करता है, शेयर के भाव ऊपर-नीचे क्यों आते हैं, और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शेयर बाजार अमेरिकी व्यवसाय का दिन-प्रति-दिन का रोमांस है।

किसी भी चीज़ के बारे में - लोग, जगह, चीज़ - उत्साहित होने के लिए इसकी गहराई में जाएँ।

          गहराई में जाएँ और आपमें अपने आप उत्साह पैदा हो जाएगा। अगली बार जब भी आप कोई ऐसा काम करें जो आप न करना चाहते हो, तो इस सिद्धांत का प्रयोग करें। अगली बार जब आप किसी काम से बोर हो रहे हों, तो इस सिद्धांत का प्रयोग करें। गहराई में जाएँ और आपकी रुचि अपने आप जाग जाएगी।

            2. हर काम दिल से करें। उत्साह या उत्साह की कमी आपके हर काम में दिखती है, आपकी हर बात में प्रकट होती है। दिल से हाथ मिलाएँ। जब आप हाथ मिलाएँ, तो ज़रा कसकर मिलाएँ। अपने हाथ को यह कहने दें, “मुझे आपसे मिलकर खुशी हुई।” “मैं आपसे दुबारा मिलकर खुश हुआ।” कमज़ोर चूहे की तरह हाथ मिलाने से तो अच्छा है कि हाथ ही न मिलाया जाए। इससे लोग यह सोचते हैं, “यह व्यक्ति ज़िंदा नहीं, बल्कि मुर्दा है तभी मुों की तरह हाथ मिला रहा है।" यह देखने की कोशिश करें कि क्या कोई सफल व्यक्ति चूहे की तरह हाथ मिलाता है। आप कोशिश ही करते रह जाएंगे और ऐसा लंबे समय तक देख नहीं पाएंगे।

          दिल से मुस्कराएँ। अपनी आँखों से मुस्कराएँ। कोई भी नक़ली, चिपकी हुई, रबर जैसी मुस्कान पसंद नहीं करता। जब मुस्कराएँ, तो दिखना चाहिए कि आप मुस्करा रहे हैं। अपने थोड़े बहुत दाँत दिखाएँ। हो सकता है कि आपके दाँत आकर्षक न हों, परंतु उससे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता। जब आप मुस्कराते हैं, तो लोग आपके दाँत नहीं देखते। वे एक गर्मजोशी से भरे उत्साही व्यक्तित्व को देखते हैं और उसे पसंद करते हैं।

         दिल से “धन्यवाद" दें। रुटीन “धन्यवाद" का मतलब तो “ग्लिप, ग्लिप” कहने की तरह मशीनी अंदाज़ है। यह सिर्फ एक अभिव्यक्ति है। इससे कुछ भी संप्रेषित नहीं होता। इससे परिणाम हासिल नहीं होते। अपने “धन्यवाद” को इस तरह कहें ताकि सामने वाला यह सुने, “बहुत-बहुत धन्यवाद।"

          दिल से बात करें। डॉ. जेम्स एफ़. बेन्डर, जो मानी हुई हस्ती हैं, अपनी पुस्तक हाऊ टू टॉक वेल (न्यूयॉर्क : मैकग्रॉ-हिल बुक कंपनी, 1949) में लिखते हैं, “क्या आपकी 'गुड मॉर्निंग' सचमुच गुड है ? क्या आपकी 'बधाई' सचमच उत्साह से दी गई है। जब आप कहते हैं, "आप है ?" तो क्या आप सचमुच जानना चाहते हैं ? जब आप अपने शब्दों में भावनाओं के रंग भर देते हैं तो लोग आपकी बातें ध्यान से सुनने लगते हैं और आपको महत्व देने लगते हैं।"

      लोग उस व्यक्ति के पीछे-पीछे जाते हैं जो अपनी कही हुई बातों में यकीन करता है। इसलिए दिल से बातें करें। अपने शब्दों में भावनाओं के रंग भरें। चाहे आप किसी गार्डन क्लब में बोल रहे हों, ग्राहक से बातें कर रहे हों, या अपने बच्चों से- अपने शब्दों में जोश झलकने दें। उत्साह से दिया गया प्रवचन महीनों तक, सालों तक याद रहता है। जबकि उत्साह के बिना दिया गया प्रवचन एक सप्ताह भी याद नहीं रहता।

       और जब आप दिल से बोलते हैं तो आप अपने अंदर भी जोश भर लेते हैं। अभी आजमा कर देख लें। ज़ोर से और जोश से कहें : “आज मैं बहुत खुश हूँ!" यह वाक्य कहने के बाद क्या आप पहले से बेहतर महसूस नहीं कर रहे हैं। अपने आपमें जान फूंकें।

       दिल से बोलें, दिल से काम करें। अपने हर काम, अपनी हर बात से लोगों को यह लगने दें, “इस व्यक्ति में जोश है, हौसला है।” “वह सचमुच यह काम करना चाहता है।” “वह निश्चित रूप से सफल होगा।"

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