Friday, August 2, 2019

CHAPTER 2.1 बहानासाइटिस का इलाज कराएँ

            

              बहानासाइटिस का इलाज कराएँ

              यह असफलता की बीमारी है।

      चूं  कि सफलता का संबंध लोगों से है, इसलिए सफल होने के लिए यह ज़रूरी है कि आप लोगों को अच्छी तरह से समझ लें। अगर आप लोगों को ध्यान से देखेंगे तो आप उनसे यह सीख सकते हैं कि ज़िंदगी में सफल कैसे हुआ जा सकता है। और यह सीखने के बाद आप उसे अपने जीवन में उतार भी सकते हैं। अभी हाल, बिना देरी के।

           लोगों का अध्ययन गहराई से करें और जब आप ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि असफल लोगों को दिमाग की एक भयानक बीमारी होती है। हम इस बीमारी को अपेंडिसाइटिस की तर्ज पर बहानासाइटिस (excusitis) का नाम दे सकते हैं। हर असफल व्यक्ति में यह बीमारी बहुत विकसित अवस्था में पाई जाती है। और ज्यादातर “आम” आदमियों में यह बीमारी थोड़ी-बहुत तो होती ही है।

        आप पाएँगे कि बहानासाइटिस की बीमारी सफल और असफल व्यक्तियों के बीच का सबसे बड़ा अंतर होती है। सफलता की सीढ़ियों पर बिना रुके चढ़ने वाला व्यक्ति बहानासाइटिस का रोगी नहीं होता, जबकि असफलता की ढलान पर लगातार फिसलने वाला व्यक्ति बहानासाइटिस से गंभीर रूप से पीड़ित होता है। अपने आस-पास के लोगों को देखने पर आप पाएँगे कि जो व्यक्ति जितना सफल होता है, वह उतने ही कम बहाने बनाता है।

          परंतु जो व्यक्ति कहीं नहीं पहुंच पाता और उसके पास कहीं पहुंचने की कोई योजना भी नहीं होती, उसके पास बहाने थोक में मौजूद रहते हैं। असफल लोग फ़ौरन से बता देते हैं कि उन्होंने अमुक काम क्यों नहीं किया, या वे उसे क्यों नहीं करते, या वे उसे क्यों नहीं कर सकते, या यह कि वे असफल क्यों हैं।

        सफल लोगों की जिंदगी का अध्ययन करें और आप उन सबमें एक वात पाएंगे असफल लोग जो बहाने बनाते हैं, सफल व्यक्ति भी वही वहाने बना सकता है, परंतु वह बहाने नहीं बनाता।।

        में जितने भी बेहद सफल बिज़नेसमैनों, मिलिट्री ऑफ़िसरों, सेल्समैनों, प्रोफेशनल व्यक्तियों या किसी भी क्षेत्र के अग्रणी लोगों से मिला हैं या जिनके बारे में मैंने सुना है, उनके सामने बहानों की कोई कमी नहीं थी। रूज़वेल्ट अपने बेजान पैरों का बहाना बना सकते थे; टूमैन “शिक्षा की कमी" का बहाना बना सकते थे, कैनेडी यह कह सकते थे "प्रेसिडेन्ट बनते वक्त मेरी उम्र कम थी;" जॉनसन और आइज़नहॉवर हार्ट अटैक के बहाने के पीछे छुप सकते थे।

         किसी भी बीमारी की तरह बहानासाइटिस का अगर वक्त पर सही इलाज नहीं किया जाए तो हालत बिगड़ सकती है। विचारों की इस बीमारी का शिकार व्यक्ति इस तरह से सोचता है : “मेरी हालत उतनी अच्छी नहीं है, जितनी कि होनी चाहिए। अब मैं लोगों के सामने अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए कौन सा बहाना बना सकता हूँ? बुरी सेहत ? शिक्षा का अभाव ? ज़्यादा उम्र ? कम उम्र ? वदक़िस्मती ? व्यक्तिगत विपत्तियाँ ? बुरी पत्नी ? माँ-बाप की गलत परवरिश ?”


     असफलता की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति जब किसी अच्छे बहाने को चुन लेता है, तो फिर वह इसे कसकर जकड़ लेता है। फिर वह इस बहाने के सहारे लोगों को और खुद को यह समझाता है कि वह जीवन में आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा है।


             और हर बार जब यह बीमार व्यक्ति बहाना बनाता है, तो वह बहाना उसके अवचेतन में और गहराई तक चला जाता है। जब हम उनमें दोहराव की खाद डालते हैं तो विचार, चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक,


ज्यादा तेज़ी से फलने-फूलने लगते हैं। शुरुआत में तो बहानासाइटिस का रोगी जानता है कि उसका बहाना कमोबेश झूठ है। परंतु वह जितनीज्या बार अपने बहाने को दोहराता है, उतना ही उसे लगने लगता है। कि यही सच है और यही उसकी असफलता का असली कारण है।


सफलता की राह में अपने चिंतन को सही दिशा में ले जाने के लिए। सबसे पहले तो आपको यह क़दम उठाना पड़ेगा कि आप बहानासाइटिस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवा लें। यह इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि बहानासाइटिस एक ऐसी बीमारी है, जो इंसान को ज़िंदगी भर सफल नहीं होने देती।


बहानासाइटिस की बीमारी कई तरह की होती है, परंतु मोटे तौर पर यह चार प्रकार की होती है : सेहत का बहानासाइटिस, बुद्धि का बहानासाइटिस, उम्र का बहानासाइटिस और क़िस्मत का बहानासाइटिस। आइए हम देखें कि इन सबसे खुद को किस तरह बचा सकते हैं :


    बहानासाइटिस के चार सबसे लोकप्रिय रूप


1.)  “मैं क्या करूं, मेरी तबियत ही ठीक नहीं रहती।” यह सेहत का बहानासाइटिस है। परंतु सेहत का बहानासाइटिस भी कई तरह का होता है। कई लोग बिना किसी बीमारी के उल्लेख के यूँ ही कहते हैं, “मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है। जबकि कई लोग अपनी बीमारी का नाम ज़ोर देकर अंडरलाइन करते हैं और फिर विस्तार से आपको बताते हैं। कि उनके साथ क्या गड़बड़ है।।

            “बुरी” सेहत को लेकर हज़ार बहाने बनाए जा सकते हैं, और उनसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि अपनी बीमारी के कारण ही आदमी वह नहीं कर पा रहा है जो वह करना चाहता है, अपनी बीमारी के कारण ही वह बड़ी ज़िम्मेदारियों का बोझ नहीं ले पा रहा है, इसी कारण वह ज्यादा पैसा नहीं कमा पा रहा है, इसी कारण वह सफल नहीं हो पा रहा है।

लाखों-करोड़ों लोग सेहत के बहानासाइटिस से पीड़ित रहते हैं। परंतु क्या ज़्यादातर मामलों में यह सिर्फ बहाना नहीं होता? ज़रा एक पल के लिए सोचें कि बेहद सफल लोग भी अपनी सेहत का रोना रो सकते थे, परंतु उन्होंने तो ऐसा कभी नहीं किया।

      मेरे डॉक्टर मित्र मुझे बताते हैं कि इस दुनिया में कोई पूरी तरह स्वस्थ नहीं होता है। हर एक के साथ कोई न कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है। कई लोग कुछ हद तक या काफ़ी हद तक सेहत के बहानासाइटिस के सामने घुटने टेक देते हैं, जबकि सफलता चाहने वाले लोग ऐसा नहीं करते।

      मेरे साथ एक ही दिन में दो घटनाएँ हुईं जिनसे मुझे यह सीखने को मिला कि अपनी सेहत के बारे में सही और गलत नज़रिया क्या होता है। क्लीवलैंड में मेरे भाषण के बाद 30 साल का एक आदमी मुझसे अकेले में मिला। उसने कहा कि उसे भाषण तो बहुत बढ़िया लगा, परंतु उसने यह भी कहा, “पर मुझे नहीं लगता कि आपके विचारों से मुझे कोई फ़ायदा हो सकता है।”

        उसने बताया, “मुझे हृदयरोग है और मुझे खुद का ध्यान रखना पड़ता है। इसके बाद उसने मुझे यह भी बताया कि वह चार डॉक्टरों के पास जा चुका है, परंतु डॉक्टर उसके दिल में कोई बीमारी नहीं ढूंढ़ सके। उसने मुझसे पूछा कि ऐसी स्थिति में उसे क्या करना चाहिए।


          मैंने जवाब दिया, “मैं हृदयरोग के बारे में तो ज्यादा नहीं जानता, परंतु एक आम आदमी के रूप में मैं आपको यह बता सकता हूँ कि इन परिस्थितियों में मैं क्या करता। पहली बात तो यह, कि मैं सबसे अच्छे हृदयरोग चिकित्सक के पास जाता और उसकी राय को अंतिम मान लेता। आपने पहले ही चार डॉक्टरों से चेकअप करवा लिया है और उन्हें आपके दिल में कोई खराबी नज़र नहीं आई। तो अब पाँचवें डॉक्टर का फैसला आपको मान लेना चाहिए। हो सकता है कि आपके हृदय में कोई रोग न । हो, और यह सिर्फ आपके मन का वहम हो। परंतु अगर आप इसकी चिंता करेंगे तो एक न एक दिन आपको सचमुच हृदयरोग हो जाएगा। अगर आप बीमारी के बारे में सोचते रहेंगे, उसे खोजते रहेंगे, उसकी चिंता करते। रहेंगे तो अक्सर आप इसी वजह से बीमार पड़ जाएँगे।


       मैं आपको दूसरी सलाह यह देना चाहता हूँ कि आप डॉक्टर शिंड्लर की महान पुस्तक हाऊ टु लिव 365 डेज़ ए इयर पढ़े। डॉ. शिंड्लर इस पुस्तक में बताते हैं कि अस्पताल में जो मरीज़ भर्ती होते हैं उनमें से तीन चौथाई लोगों को दरअसल कोई शारीरिक बीमारी होती ही नहीं है। उनकी बीमारी का असली कारण मानसिक या भावनात्मक होता है। ज़रा सोचिए, हमारे देश के तीन चौथाई लोग सिर्फ इसलिए अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हुए हैं क्योंकि वे अपनी भावनाओं को क़ाबू में नहीं रख पाए। डॉ. शिंडूलर की पुस्तक पढ़े और इसके बाद ‘भावनाओं को मैनेज' करना सीखें।


           “तीसरी बात यह कि मैं तब तक ज़िंदादिल बने रहने का निश्चय करूंगा जब तक कि मैं मर ही न जाऊँ। फिर मैंने इस परेशान आदमी को वही सलाह दी, जो मेरे वकील दोस्त ने मुझे कई साल पहले दी थी। वकील दोस्त को टी.बी. था, परंतु इसके बाद भी वह वकालत करता रहा, अपने परिवार का मुखिया बना रहा, और जीवन का पूरा आनंद लेता रहा। अभी मेरे उस वकील दोस्त की उम्र 78 वर्ष है। उसने अपनी फिलॉसफी बताई : 'मैं तब तक जिंदादिल रहूँगा जब तक कि मैं मर न जाऊँ। मैं जिंदगी और मौत को लेकर फालतू चिंता नहीं करूंगा। जब तक मैं इस धरती पर हूँ तब तक मैं ज़िंदा हूँ। तो मैं अधूरी जिंदगी क्यों जिऊँ ? मौत के बारे में चिंता करने में व्यक्ति जितना समय बर्बाद करता है, उतने समय तक वह वास्तव में मुर्दा ही होता है।”


          मुझे इस बिंदु पर चर्चा ख़त्म करनी पड़ी, क्योंकि मुझे डेट्रॉयट जाने वाला हवाई जहाज़ पकड़ना था। हवाई जहाज़ में दूसरा अजीबोगरीब परंतु सुखद अनुभव हुआ। जब हवाई जहाज़ आसमान में पहुँच गया तो मझे टिक-टिक की आवाज़ सुनाई दी। हैरानी से मैंने अपने पड़ोस में बैठे आदमी की तरफ़ देखा, जिसके पास से वह आवाज़ आ रही थी।


       वह मेरी तरफ़ देखकर मुस्कराया और उसने मुझसे कहा, “डरिए नहीं, मेरे पास कोई बम नहीं है। यह तो मेरा दिल धड़क रहा है।"


   मुझे यह सुनकर हैरानी हुई, इसलिए उसने मुझे पूरी कहानी सुनाई।


      सिर्फ 21 दिन पहले ही उसका ऑपरेशन हुआ था, जिसमें उसके दिल में एक प्लास्टिक वॉल्व फ़िट किया गया था। उसने बताया कि टिकटिक की आवाज़ कई महीनों तक आती रहेगी, जब तक कि नकली वॉल्व पर नया ऊतक नहीं उग आता। मैंने उससे पूछा कि अब वह क्या करने वाला है।


     अरे,” उसने कहा, “मेरी बहुत सी योजनाएँ हैं। मिनेसोटा पहुँचकर में वकालत पढ़ने वाला हूँ। शायद मुझे किसी दिन सरकारी नौकरी भी मिल जाए। डॉक्टरों ने मुझसे कहा है कि मुझे पहले कुछ महीनों तक सावधानी रखनी पड़ेगी, परंतु कुछ महीनों के बाद मेरा दिल बिलकुल ब्रांड न्यू हो जाएगा।”


       तो ये रहे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में दो अलग-अलग नज़रिए। पहला आदमी तो यह जानता भी नहीं था कि उसे कोई बीमारी थी भी या नहीं। इसके बावजूद, वह चिंतित था, परेशान था, हार के रास्ते पर जा रहा था और आगे नहीं बढ़ने के बहाने बना रहा था। दूसरे
आदमी का हाल ही में बहुत बड़ा ऑपरेशन हुआ था, फिर भी वह कुछ नया करने के लिए उत्सुक था, आशावादी था। अपनी सेहत के बारे में दोनों की सोच में कितना बड़ा फ़र्क था!


              सेहत के बहानासाइटिस का मुझे व्यक्तिगत अनुभव भी है। मुझे डायबिटीज़ है। जब मुझे यह बीमारी हुई (कोई 5000 इंजेक्शन पहले), तो डॉक्टर ने मुझे यह हिदायत दी थी, “डायबिटीज़ एक शारीरिक बीमारी है, परंतु अगर इसके बारे में आपका नज़रिया नकारात्मक रहेगा तो आपबहुत परेशान रहेंगे और आपकी बीमारी भी बढ़ सकती है। अगर आप इसके बारे में चिंता करते रहेंगे, तो आपकी जिंदगी नर्क बन सकती है।”


       डायबिटीज़ होने के बाद मैं बहुत से डायबिटीज़ के मरीज़ों के संपर्क में आया। मैं आपको बता दें कि इस बीमारी के बारे में लोगों के कितने विरोधाभासी विचार होते हैं। एक आदमी को यह बीमारी शुरुआती अवस्था में है और वह इसे लेकर बहुत परेशान रहता है। ज़रा सा मौसम बदलता है तो वह घबरा जाता है, मूर्खतापूर्ण रूप से अपने आपको लबादे में छुपा लेता है। उसे इनफेक्शन से इतना डर लगता है, कि वह सर्दी-खाँसी वाले आदमी को देखते ही दूर भाग जाता है। वह डरता है। कि कहीं वह ज्यादा मेहनत न कर ले, इसलिए वह कभी कुछ करता ही नहीं है। उसका ज्यादातर समय और मानसिक ऊर्जा इसी चिंता में बर्बाद होते हैं कि उसके साथ क्या-क्या बुरा हो सकता है। वह दूसरे लोगों को अपनी भयानक बीमारी की सच्ची-झूठी दास्तान सुना-सुनाकर बोर रहता है। दरअसल उसकी असली बीमारी डायबिटीज़ नहीं है। वह तो  सेहत के बहानासाइटिस से पीड़ित है। वह बीमारी को असफलता के बहाने की तरह इस्तेमाल कर रहा है। किसलिए? क्योंकि वह लोगों की सहानुभूति हासिल करना चाहता है।


        दूसरी तरफ़ एक बड़ी प्रकाशन फ़र्म का डिवीज़न मैनेजर है, जो डायबिटीज़ का गंभीर रोगी है। वह ऊपर वाले मरीज़ से 30 गुना ज्यादा इन्सुलिन लेता है। परंतु वह बीमारों की तरह नहीं जीता है। उसे अपने काम में मज़ा आता है और वह जिंदगी का पूरा आनंद लेता है। एक दिन उसने मुझसे कहा, "देखा जाए तो डायबिटीज़ एक समस्या तो है, पर दाढ़ी बनाना भी तो एक समस्या है। और मैं इस बारे में चिंता कर-कर के सचमुच बीमार नहीं पड़ना चाहता। जब मैं इन्सुलिन के इंजेक्शन लेता हूँ। तो मैं अपनी बीमारी को नहीं कोसता हैं, बल्कि उस आदमी को दुआएँ। देता हूँ जिसने इन्सुलिन की खोज की है।"


        मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त 1945 में जब युद्ध से लौटा, तो उसका एक हाथ कटा हुआ था। इसके बावजूद जॉन हमेशा मुस्कराता रहता था, हमेशा दूसरों की मदद करता रहता था। मैं जितने भी आशावादी लोगों को जानता हूँ, जॉन उन सबसे ज्यादा आशावादी था। एक दिन मैंने उससे उसके कटे हुए हाथ के बारे में लंबी चर्चा की।


उसने कहा, “मेरा सिर्फ एक हाथ नहीं है। यह सही बात है, कि दो हाथ हमेशा एक हाथ से अच्छे होते हैं। परंतु पूरे शरीर को बचाने के लिए अगर एक हाथ काटना पड़े, तो यह महँगा सौदा नहीं है। और फिर, मेरी जीवनशक्ति तो अब भी 100 प्रतिशत बची हुई है। मैं इसके लिए कृतज्ञ हूँ।"


        मेरा एक और विकलांग दोस्त एक बेहतरीन गोल्फ़र है। एक दिन मैंने उससे पूछा कि वह सिर्फ एक हाथ से इतना अच्छा कैसे खेल सकता हैं, जबकि दोनों हाथों से खेलने वाले ज्यादातर गोल्फ़र उसके जितना अच्छा नहीं खेल पाते हैं। उसने मेरी बात का ज़ोरदार जवाब दिया, “यह मेरा अनुभव रहा है कि सही रवैया और एक बाँह वाला आदमी, गलत रवैए और दोनों बाँह वाले आदमी को हमेशा हरा सकता है।” सही रवैया और एक बाँह वाला आदमी, गलत रवैए और दोनों बाँह वाले आदमी को हमेशा हरा सकता है। इस बारे में कुछ देर सोचें। यह न सिर्फ गोल्फ़ के मैदान पर सच है, बल्कि यह जिंदगी के हर क्षेत्र में सच है।।

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