Friday, September 20, 2019

CHAPTER. 7.1 अपने माहौल को सुधारें : फ़र्स्ट क्लास बनें

                  अपने माहौल को सुधारें :
                        फ़र्स्ट क्लास बनें

     आपका दिमाग एक अद्भुत मशीन है। जब आपका दिमाग एक तरीके से काम करता है, तो यह आपको असाधारण सफलता के रास्ते पर आगे ले जा सकता है। परंतु वही दिमाग जब दूसरे तरीके से काम करता है तो यह आपको पूरी तरह असफल करा सकता है।

           मस्तिष्क पूरी सृष्टि में सबसे नाजुक, सबसे संवेदनशील यंत्र है। आइए देखें कि मस्तिष्क में जो विचार आते हैं वे क्यों आते हैं।

           करोड़ों लोग अपने खान-पान का ध्यान रखते हैं। अमेरिका को कैलोरी गिनने वालों का देश कहा जाता है। हम विटामिन, मिनरल और दूसरे भोज्य पूरकों पर करोड़ों डॉलर खर्च करते हैं और हम सब जानते हैं कि हम ऐसा क्यों करते हैं। पोषण पर हुए शोध से हमने यह जाना है।
कि शरीर को हम जो आहार देते हैं, उसका शरीर पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। शारीरिक स्टैमिना, बीमारी से बचाव, शरीर का आकार, यहाँ तक कि हम कितना लंबा जिएंगे - इन सबका संबंध हमारे खान-पान से होता है।

          शरीर वैसा ही बनता है जैसा भोजन शरीर को खिलाया जाता है। इसी तरह दिमाग वैसा ही बनता है जैसा भोजन दिमाग को खिलाया जाता है। दिमाग का भोजन पैकैटों या डिब्बों में नहीं आता और आप इसे किसी स्टार में नहीं खरीद सकते। आपका माहौल ही आपका दिमागी भोजन है- और इसमें वे अनगिनत चीजें आ जाती हैं जिनसे आपका चेतन और। अवचेतन विचार प्रभावित होता है। हम किस तरह का दिमागी भोजन करते हैं इससे हमारी आदतें, रवैए और व्यक्तित्व निर्धारित होते हैं। हममें से हर एक को कोई न कोई खास क्षमता विरासत में मिली है, जिसका विकास हम कर सकते हैं। परंतु हम उस क्षमता को कितना और किस तरह विकसित कर पाते हैं, यह हमारे दिमागी भोजन पर निर्भर करता है।

          मस्तिष्क पर माहौल का बहुत प्रभाव पड़ता है जिस तरह कि शरीर पर भोजन का पड़ता है।

         आपने कभी सोचा कि अगर आप अमेरिका की जगह किसी दूसरे देश में पैदा हुए होते तो आप किस तरह के इंसान होते? आपको कौन सा खाना पसंद होता? आप कैसे कपड़े पहनना पसंद करते? आपको कौन से मनोरंजन ज्यादा अच्छे लगते? आप किस तरह की नौकरी कर रहे होते? आपका धर्म कौन सा होता?

         आप इन सभी सवालों के जवाब नहीं दे सकते। परंतु एक बात तो तय है, कि अगर आप किसी दूसरे देश में बड़े हुए होते तो आप एक बिलकुल ही अलग तरह के इंसान होते। क्यों? क्योंकि आप एक अलग माहौल में रह रहे होते और आप उससे निश्चित रूप से प्रभावित हुए।
होते। जैसा कहा जाता है, कोई भी इंसान अपने आस-पास के माहौल का प्रॉडक्ट होता है।

          इसे ध्यान से समझ लें। माहौल हमें आकार देता है, हमें सोचने का तरीका देता है। आप एक भी ऐसी आदत नहीं गिना सकते जो आपने दूसरों से न सीखी हो। छोटी-छोटी चीजें जैसे आपकी चाल, खाँसने का तरीक़ा, कप पकड़ने का अंदाज़; आपका संगीत, साहित्य, मनोरंजन, कपड़ों का शौक़ - सभी हमारे माहौल की देन हैं।

          इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आपकी सोच का आकार, आपके लक्ष्य की ऊँचाई, आपका रवैया और आपका समूचा व्यक्तित्व आपके माहौल द्वारा तय किया जाता है।

          अगर आप नकारात्मक लोगों के साथ ज्यादा समय तक रहेंगे तो आपकी सोच नकारात्मक हो जाएगी, छोटे लोगों के साथ निकट संपर्क रहने पर आपमें छोटी आदतें आ जाएँगी। दूसरी ओर, बड़े विचारों वाले लोगों के साथ रहने पर आपकी सोच का स्तर भी ऊँचा हो जाएगा। महत्वाकांक्षी लोगों के निकट संपर्क में रहने पर आपमें भी महत्वांकाक्षा आ जाएगी।

         विशेषज्ञ सहमत हैं कि आप आज जिस तरह के इंसान हैं, आज आपका व्यक्तित्व, या महत्वाकांक्षा, या स्टेटस जैसा भी है, यह आपके मनोवैज्ञानिक माहौल के कारण है। और विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि आप आज से एक, पाँच, दस या बीस साल बाद क्या बनेंगे यह भी पूरी तरह आपके भविष्य के माहौल पर निर्भर करता है।

         आप महीनों और सालों तक बदलते रहेंगे। हम इतना तो जानते ही हैं। परंतु आप किस तरह बदलेंगे यह आपके भावी माहौल पर निर्भर करता है, उस दिमागी भोजन पर निर्भर करता है जो आप अपने आपको खिलाएँगे। आइए देखते हैं कि हम संतुष्टि और समृद्धि के लिए अपने भावी माहौल को किस तरह अपने मनमाफ़िक बना सकते हैं।

          पहला कदम - सफलता के लिए खुद को ढालें। ऊँचे स्तर की सफलता की राह में सबसे पहली बाधा यह भावना है कि महान सफलता हमारी पहुँच के बाहर है। यह रवैया कई, ढेर सारी दमनकारी शक्तियों से उपजता है जो हमारी सोच को औसत स्तर का बनाए रखती हैं।

          इन दमनकारी शक्तियों को समझने के लिए हमें अपने बचपन की तरफ़ नज़र डालनी होगी। बचपन में हम सभी के लक्ष्य काफ़ी ऊँचे हुआ करते हैं। बहुत छोटी उम्र में ही हम अनजान को जीतने की योजनाएँ बनाते हैं, लीडर बनने की, ऊँचे महत्व के पद हासिल करने की, रोमांचक काम करने की, अमीर और प्रसिद्ध बनने की - संक्षेप में, हम चाहते हैं। कि हम पहले नंबर पर हों, सबसे बड़े और सबसे श्रेष्ठ बन जाएँ। और अपने अज्ञान में हम साफ़ रास्ता देख सकते हैं कि हम इन लक्ष्यों को हासिल कर लेंगे।

          परंतु होता क्या है ? इसके पहले कि हम उस उम्र में आएँ जब हम अपने महान लक्ष्यों की तरफ़ आगे कदम बढ़ा सकें, बहुत सी दमनकारी शक्तियाँ हम पर हावी हो जाती हैं।

          हर तरफ़ से हम सुनते हैं, “सपने देखना मूर्खता है," और यह कि हमारे विचार “अव्यावहारिक, मूर्खतापूर्ण, नादानी भरे या बकवास” हैं, कि “सफल होने के लिए आपके पास ढेर सारा पैसा होना चाहिए,” कि "आप सफल तभी हो सकते हैं जब या तो आपकी किस्मत अच्छी हो या फिर आपके बहुत से महत्वपूर्ण दोस्त हों," या आप अभी "ज्यादा बूढ़े" या "ज़्यादा युवा” हैं।

       “आप-आगे नहीं बढ़-सकते-इसलिए-कोशिश-करने-से-कोई-फ़ायदा- नहीं" वाला प्रचार आपके दिमाग पर बमबारी करके उसे ध्वस्त कर देता है और इसका परिणाम यह होता है कि ज्यादातर लोगों को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है:

        पहला समूह। जिन्होंने पूरी तरह घुटने टेक दिए हैं : ज़्यादातर लोग अंदर से यह मान चुके हैं कि उनके पास आवश्यक योग्यता नहीं है। असली सफलता, असली उपलब्धि दूसरों के लिए है जो किसी मायने में आपसे ज़्यादा भाग्यवान या तक़दीर वाले हैं। आप ऐसे लोगों को आसानी से पहचान सकते हैं क्योंकि वे काफ़ी देर तक आपको यह समझाते हैं कि वे अपने जीवन से क्यों संतुष्ट हैं और वे सचमुच कितने “खुश" हैं।

         एक बहुत बुद्धिमान व्यक्ति है जिसकी उम्र 32 साल है। उसने अपने आपको एक सुरक्षित परंतु औसत नौकरी के पिंजरे में कैद कर लिया है, और कुछ समय पहले उसने मुझे घंटों तक यह समझाया कि वह अपने काम से पूरी तरह संतुष्ट है। उसने तर्क दिए, बड़े-बड़े और बड़े अच्छे तर्क दिए, परंतु वह जानता था कि यह हक़ीक़त नहीं है। दरअसल वह चाहता तो यह था कि उसे भी चुनौतीपूर्ण स्थितियाँ मिलें, जिनका सफलतापूर्वक सामना करके वह आगे बढ़ सके और अपनी क्षमताओं को विकसित कर सके। परंतु “दमनकारी शक्तियों की बहुतायत" के कारण उसे इस बात का विश्वास हो चला था कि वह बड़े काम करने के काबिल नहीं है।

         यह समूह वास्तव में उस नौकरी बदलने वाले समूह का ठीक उल्टा है जो अपनी हर नौकरी से असंतुष्ट रहता है और लगातार नौकरियाँ बदलता रहता है। अपने आपको किसी खोल में बंद कर लेना, जिसे एक ऐसी क़ब्र कहा गया है जिसके दोनों सिरे खुले हैं, भी उतना ही बुरा हो सकता है जितना कि बिना लक्ष्य के इधर-उधर भटकना, यह आशा करना कि अवसर कहीं से आकर आपसे टकरा जाएगा।

         दूसरा समूह। वे लोग जिन्होंने आंशिक रूप से समर्पण किया है : दूसरा परंतु कुछ छोटा समूह वयस्क जीवन में जब प्रवेश करता है तो उसे सफलता की काफ़ी आशा होती है। ऐसे लोग अपने आपको तैयार करते हैं। वे मेहनत करते हैं। वे योजना बनाते हैं। परंतु, एक या दो दशक बाद, उनकी प्रेरणा की आग ज़माने की नकारात्मक हवाओं से बुझने लगती है, ऊँचे पदों के लिए प्रतियोगिता करने का उनका उत्साह ठंडा पड़ने लगता है। यह समूह तब फ़ैसला करता है कि महान सफलता उनकी पहुँच के बाहर है।

          वे यह तर्क देते हैं, "हम औसत व्यक्ति से ज़्यादा कमा रहे हैं और हम औसत व्यक्ति से बेहतर जिंदगी गुज़ार रहे हैं। हम हमेशा कोल्हू के बैल की तरह क्यों जुते रहें ?"

          वास्तव में, इस समूह ने भी अपने भीतर कुछ डर बिठा लिए हैं- असफलता का डर, सामाजिक निंदा का डर, असुरक्षा का डर, जो है उसे खो देने का डर। यह लोग संतुष्ट नहीं होते क्योंकि अंदर से वे जानते हैं कि उन्होंने समर्पण कर दिया है। इस समूह में कई प्रतिभाशाली, बुद्धिमान लोग होते हैं जो ज़िंदगी की राह में सिर्फ इसलिए घिसटते हुए चलते हैं क्योंकि वे खड़े होकर दौड़ने से डरते हैं।

        तीसरा समह। वे लोग जिन्होंने कभी समर्पण नहीं किया - यह समूह, जिसमें शायद दो या तीन प्रतिशत लोग ही आते होंगे, अपने दिमाग में निराशा को कभी हावी नहीं होने देता। ऐसा व्यक्ति दमनकारी शक्तियों के सामने समर्पण नहीं करता। वह घुटनों के बल चलने में विश्वास नहीं करता। इसके बजाय, यह लोग सफलता की साँस लेते हैं, सफलता का जीवन जीते हैं। यह समूह सबसे सुखी होता है क्योंकि इसकी उपलब्धियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। ये लोग चोटी के सेल्समैन, एक्जीक्यूटिव, और हर क्षेत्र के लीडर बन जाते हैं। इन्हें अपना जीवन रोमांचक, प्रेरक, बहुमूल्य और महत्वपूर्ण लगता है। यह लोग हर नए दिन का स्वागत करते हैं, दूसरे लोगों के साथ उत्साह से मिलते हैं और हर दिन का पूरी तरह आनंद उठाते हैं।

         हम ईमानदारी से सोचें। हम सभी तीसरे समूह में होना पसंद करेंगे। ऐसे समूह में जिसे हर साल ज्यादा बड़ी सफलताएँ मिलती जाती हैं. ऐसे समूह में जहाँ बड़े काम होते हैं और उनके बड़े परिणाम मिलते हैं।

        इस समूह में आने - और बने रहने - के लिए हमें अपने माहौल के दमनकारी प्रभावों से जूझना होगा। अगर आप यह जानना चाहें कि आपको पहले और दूसरे समूहों के लोग किस तरह पीछे खींचते हैं, तो आप इस उदाहरण का अध्ययन करें।

        मान लीजिए आप अपने “औसत” दोस्तों से पूरी गंभीरता से यह कहें, "किसी न किसी दिन मैं इस कंपनी का वाइस-प्रेसिडेंट बनकर दिखाऊँगा।"

         यह सुनकर उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आपके दोस्त शायद यह सोचेंगे कि आप मज़ाक़ कर रहे हैं। और अगर उन्हें यक़ीन हो जाए कि आप गंभीर हैं, तो शायद वे यह कहेंगे, “नादान आदमी, तुम्हें अभी ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखना है।"

        आपकी पीठ पीछे वे तो यहाँ तक कहेंगे कि आपके दिमाग के पेंच ढीले हो गए हैं या आपका दिमाग खिसक गया है।

         अब हम यह मान लें कि आप अपनी कंपनी के प्रेसिडेंट से यही बात इतनी ही गंभीरता से कहते हैं। उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? चाहे जो हो, एक बात तो पक्की है : वह हँसेगा नहीं। वह आपकी तरफ़ गौर से देखेगा और खुद से पूछेगा, “क्या यह आदमी गंभीर है ?"

       परंतु वह, मैं एक बार फिर दोहरा दूं, हँसेगा नहीं।

        क्योंकि बड़े लोग बड़े विचारों पर हँसा नहीं करते।

         या मान लें आप औसत लोगों से यह कहें कि आपकी योजना 50,000 डॉलर का घर ख़रीदने की है, तो वे आप पर हँस सकते है क्योंकि उन्हें लगेगा कि यह असंभव है। परंतु आप अगर यह योजना। किसी ऐसे व्यक्ति को बताएँ जो 50,000 डॉलर के घर में रह रहा हो,
तो उसे आश्चर्य नहीं होगा। वह जानता है कि यह असंभव नहीं है, क्या वह ऐसा कर चुका है।

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