Thursday, October 3, 2019

CHAPTER 10.2 काम में जुटने की आदद डालो और समस्या दूर करने का तरीका


       आप इस समस्या को कैसे दूर कर सकते हैं ? यहाँ दो तरीके सुझाए जा रहे हैं जो आपकी इस आदत को दूर कर देंगे:

1. भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का अनुमान लगाएँ। हर नए काम में जोखिम, समस्या और अनिश्चितताएँ होती हैं। मान लें कि आप कार से शिकागो से लॉस एंजेल्स जाना चाहते हैं, और आप तब तक चलना शुरू नहीं करेंगे, जब तक कि आपको इस बात की पूरी गारंटी न मिल जाए कि रास्ते में कोई बाधा नहीं आएगी, आपकी गाड़ी ख़राब नहीं होगी, मौसम ख़राब नहीं होगा, कोई शराबी ड्राइवर आपको तंग नहीं करेगा, और किसी तरह का कोई ख़तरा नहीं होगा, तो क्या होगा? आप कब चलना शुरू करेंगे? कभी नहीं! इसी यात्रा की तैयारी आप इस तरह से भी कर सकते हैं कि आप यात्रा का नक्शा साथ रख लें, अपनी कार को चेक करा लें, और इस तरह पूरी सावधानी बरतें। परंतु आप सारे ख़तरों को न तो भाँप सकते हैं, न ही उन्हें ख़त्म कर सकते हैं।

     2. जब समस्याएँ और बाधाएँ आएँ, तब उनसे निबटें। सफल व्यक्ति की योग्यता इस बात से नहीं जाँची जाती कि वह काम शुरू करने के पहले ही सारी बाधाओं को हटा देता है, बल्कि इस बात से जाँची जाती है कि जब भी उसकी राह में बाधाएँ आती हैं, वह उनसे निबटने के तरीके खोज लेता है। बिज़नेस, शादी, या किसी भी अन्य चीज़ में आप पुलों को तभी पार कर सकते हैं, जबकि आप पुल पर हों।

हम सभी समस्याओं के ख़िलाफ़ बीमा पॉलिसी नहीं खरीद सकते।

         अपने विचारों के बारे में कुछ करने का मन बना लें। पाँच या छह साल पहले एक बहुत ही योग्य प्रोफ़ेसर ने मुझे बताया कि वे एक पुस्तक लिखने की योजना बना रहे हैं। वे कुछ दशक पहले के एक विवादास्पद व्यक्ति की जीवनी लिखना चाहते थे। उनके विचार न सिर्फ रोचक थे. बल्कि शानदार थे। उनमें दम था. लोगों को मंत्रमग्ध करने की क्षमता थी।प्रोफ़ेसर को पता था कि वह क्या कहना चाहते थे और उन्हें अपनी बात किस तरह कहनी चाहिए। इस पुस्तक के पूरा होने पर उन्हें अंदरूनी संतोष तो मिलता ही, साथ ही प्रतिष्ठा और पैसा भी काफ़ी मिलता।

        पिछले साल मैं उसी मित्र से फिर मिला और मैंने अनजाने में उससे यह पूछ लिया कि क्या उसकी पुस्तक पूरी हो गई। (यह मूर्खतापूर्ण सवाल था क्योंकि इससे मैंने उसके पुराने घाव को कुरेद दिया था।)

        नहीं, वह पुस्तक नहीं लिख पाया। कुछ समय तक तो वह यही सोचता रहा कि वह इसका क्या कारण बताए। आखिरकार उसने कहा कि वह बेहद व्यस्त था, उसके पास दूसरी “ज़िम्मेदारियाँ" थीं और इसलिए उसे पुस्तक लिखने की फुरसत ही नहीं मिली।

         वास्तव में प्रोफ़ेसर ने इस विचार को अपने मानसिक क़ब्रिस्तान में गहरे दफ़ना दिया था। उसने अपने दिमाग में नकारात्मक विचारों को बढ़ने दिया था। उसने यह कल्पना कर ली थी कि उसे पुस्तक लिखने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और उसे कई त्याग भी करने होंगे। उसने उन सभी कारणों पर विचार कर लिया था जिनके कारण उसकी योजना असफल हो सकती थी।

        विचार महत्वपूर्ण हैं। हम इस बात को अच्छी तरह समझ लें। अगर हमें कुछ भी बनाना है या सुधारना है तो उसकी पहली शर्त यह है कि हमारे पास विचार हों। सफलता उस व्यक्ति के दरवाज़े पर दस्तक नहीं देती जिसके पास विचार नहीं होते।

       परंतु हम इस बिंदु को अच्छी तरह से समझ लें। केवल विचारों का ही महत्व नहीं होता। विचारों का महत्व तभी होता है जब उन पर अमल किया जाए। अगर आपके मन में यह विचार आता है कि आप अपने बिज़नेस को किस तरह बढ़ाएँ, तो केवल विचार करने भर से आपका बैंक बैलेंस नहीं बढ़ जाता।

       हर दिन हज़ारों लोग अच्छे विचारों को दफनाते रहते हैं क्योंकि उनमें उन पर अमल करने की हिम्मत नहीं होती।

      और इसके बाद, उन विचारों के भूत उन्हें सताने के लिए आ जाते हैं। इन दो विचारों को अपने दिमाग में गहरे बैठ जाने दें। पहली बात तो यह, कि अपने विचारों पर अमल करके उन्हें मूल्यवान बनाएँ। चाहे विचार कितना ही अच्छा हो, यदि आप उस पर अमल नहीं करेंगे तो
आपको ज़रा भी लाभ नहीं होगा।

         दूसरी बात यह है कि अपने विचारों पर अमल करें और मन की शांति हासिल करें। किसी ने एक बार कहा था कि सबसे दुःखद शब्द हैं : काश मैंने ऐसा किया होता! हर दिन आप किसी न किसी को ऐसी बात करते सुनते होंगे, “अगर मैं 1952 में इस बिज़नेस में गया होता, तो आज मैं लाखों में खेल रहा होता।" या "मुझे लगता था कि ऐसा ही होगा। काश मैंने उस वक्त अपने दिल की बात सुनी होती!" अगर अच्छे विचार पर अमल न किया जाए, तो उससे काफ़ी मनोवैज्ञानिक पीड़ा भी होती है। परंतु अगर अच्छे विचार पर अमल किया जाए तो उससे हमें मानसिक शांति मिलती है।

     क्या आपके पास कोई अच्छा विचार है? तो फिर देर किस बात की है, उस पर अमल करें। काम करके डर का इलाज करें औरआत्मविश्वास हासिल करें। यह याद रखने लायक बात है। काम करने से आपका आत्मविश्वास बढ़ता और प्रबल होता है। काम न करने से डर बढ़ता और प्रबल होता है। इसलिए डर को दूर करने के लिए, उस काम को कर दें। अपने डर को बढ़ाने के लिए- इंतज़ार करते रहें, काम को टालते रहें, बाद में करने की सोचें।

        एक बार मैंने एक युवा पैराटूपर इन्स्ट्रक्टर के मुँह से सुना, “कूदने में कोई दिक्कत नहीं है। कुदने के पहले इंतज़ार करते वक्त मुश्किल आती है। जब कूदने का समय आता है तो मैं हमेशा यह कोशिश करता हूँ कि लोगों को ज़्यादा सोचने का मौक़ा न मिले। कई बार ऐसा हुआ है कि किसी प्रशिक्षु ने इस बारे में ज़्यादा सोच लिया कि उसके साथ क्या बुरा हो सकता है और यह सोचकर वह घबरा गया। अगर हम उसे अगली ट्रिप में कूदने के लिए तैयार नहीं कर पाए, तो वह ज़िंदगी में कभी पैराट्रपर नहीं बन सकेगा। आत्मविश्वास उसे तभी मिलेगा जब वह कूद जाएगा। जब तक वह कूदने से बचता रहेगा, उसे टालता रहेगा तब तक वह डरता ही रहेगा।"

          इंतज़ार करना विशेषज्ञों को भी नर्वस कर देता है। टाइम मैग्ज़ीन में लिखा गया था कि एडवर्ड आर. मरो, जो देश के बेहतरीन न्यूज़रीडर हैं, जब टेलीविज़न पर आने वाले होते हैं तो वे काफ़ी नर्वस हो जाते हैं और उन्हें पसीना आने लगता है। परंतु एक बार वे काम में जुट जाते हैं। तो फिर उनका डर काफूर हो जाता है। कई अभिनेता भी इसी तरह की प्रक्रिया से गुज़रते हैं। सभी इस बारे में एकमत हैं कि स्टेज के डर का एक ही इलाज है स्टेज पर उतरना या कर्म करना। जनता के सामने मंच पर आ जाने के बाद डर, चिंता, तनाव सब दूर हो जाता है।

          कर्म से डर दूर हो जाता है। एक बार हम अपने दोस्त के घर गए जहाँ उसका पाँच साल का बच्चा सोने के आधे घंटे बाद ही जाग गया और रोने लगा। बच्चे ने एक डरावनी फिल्म देखी थी और उसे यह डर लग रहा था कि राक्षस आकर उसे उठा ले जाएगा। बच्चे के पिता ने उसे समझाया। उसके समझाने का तरीका सचमुच लाजवाब था। उसने यह नहीं कहा, "फ़िक्र मत करो, बेटे, कोई भी तुम्हें कहीं उठाकर नहीं ले जाएगा। चुपचाप सो जाओ।" इसके बजाय उसने सकारात्मक कार्य किया। उसने बच्चे के सामने सारी खिड़कियों की जाँच की और इससे बच्चे को यह विश्वास हो गया कि सभी खिड़कियाँ अच्छी तरह बंद हैं। इसके बाद उसने बच्चे की प्लास्टिक की बंदूक उसके पास की टेबल पर रख दी और कहा, “बिली, वैसे अगर तुम्हें कोई दिक़्क़त आए, तो यह बंदूक तुम्हारे पास ही रखी है।" अब जाकर छोटे बच्चे को चैन मिला, उसका डर दूर हुआ और चार मिनट बाद ही वह गहरी नींद में सो गया।

         कई डॉक्टर लोगों को हानिरहित निष्क्रिय “दवाइयाँ” इसलिए देते हैं। ताकि उनके मन को संतोष रहे। लोग डॉक्टर से नींद की गोली माँगते हैं, डॉक्टर उन्हें झूठ-मूठ की नींद की गोली पकड़ा देता है। लोगों को गोली निगलने के बाद ऐसा लगता है कि उन्हें अच्छी नींद आती है, हालाँकि गोली में कोई दवाई नहीं थी, इसके बावजूद उन पर इसका मनोवैज्ञानिक असर होता है और उन्हें अपनी तबीयत ज़्यादा अच्छी महसूस होती है।

         यह स्वाभाविक है कि हमें किसी न किसी तरह का डर सताए। इसका सामना करने के आम तरीके कई बार आपको कारगर नहीं लगेंगे। मैं कई सेल्समैनों से मिला हूँ जिन्होंने डर का इलाज करने की कोशिश की है जैसे उन्होंने ग्राहक के घर के चारों तरफ़ तीन चक्कर लगाए हैं या एक कॉफ़ी ज्यादा पी है। परंतु इन चीज़ों से समस्या हल नहीं होती। इस तरह के डर को दूर करने का- हाँ, बल्कि किसी भी तरह के डर को दूर करने का एकमात्र तरीक़ा यह है कि उस काम को कर दिया जाए।

         अगर आपको किसी को फ़ोन करने में डर लगता है, तो आप फ़ोन कर दीजिए और आपका डर ग़ायब हो जाएगा। अगर आप इसे टालते जाएँगे तो आपके लिए फ़ोन करना दिनोंदिन मुश्किल होता जाएगा।

       डॉक्टर के पास चेकअप करवाने के लिए जाने में आपको घबराहट होती है ? जाइए और आपकी चिंता दूर हो जाएगी। हो सकता है कि आपको कोई गंभीर बीमारी न हो. और अगर हो भी, तो कम से कम आपको यह तो पता चल जाएगा कि आप किस हाल में हैं। अगर आप
अपने चेकअप को टालते रहेंगे तो आपका डर बढ़ता जाएगा और एक न एक दिन आप सचमुच इसी डर और चिंता के कारण बीमार पड़ जाएंगे।

         अगर आपको अपने बॉस के साथ किसी समस्या पर चर्चा करने में डर लगता हो, तो चर्चा कर लें और आप पाएंगे कि आपकी चिंताएँ चुटकियों में दूर हो गई हैं।

       आत्मविश्वास जगाएँ। कर्म करके डर को दूर भगाएँ।

     अपने मानसिक इंजन को चालू करें- मशीनी तरीके से

एक युवक लेखक बनना चाहता था, परंतु उसने जो कुछ लिखा था वह सफल लेखन नहीं कहा जा सकता था। इस लेखक ने मेरे सामने यह स्वीकार किया, “मेरी समस्या यह है कि कई बार पूरा दिन या पूरा हफ्ता निकल जाता है और मैं एक पेज भी नहीं लिख पाता।

       उसने कहा, “लेखन रचनात्मक कार्य है। इसके लिए आपको प्रेरणा मिलनी चाहिए। आपका मूड होना चाहिए।"

       यह सच है कि लेखन रचनात्मक होता है, परंतु मैं आपको एक सफल लेखक की बात बताना चाहता हूँ जिसने कहा था कि यही वह "राज़" की बात है जिसके कारण वह इतना सफल लेखन कर पाया।

“मैं 'दिमाग को मजबूर करने वाली' तकनीक का इस्तेमाल करता हूँ। मेरे पास हर काम की डेडलाइन मौजूद होती है और मैं प्रेरणा के आसमान से उतरने का इंतज़ार नहीं कर सकता। मैं मूड के सही होने का इंतज़ार भी नहीं कर सकता। मुझे मूड बनाना पड़ता है। यह रहा मेरा तरीक़ा। मैं अपनी टेबल-कुर्सी पर बैठ जाता हूँ। फिर मैं अपनी पेंसिल उठाकर लिखने बैठ जाता हूँ। जो भी मन में आता है, मैं लिखने लगता हूँ। मैं हाथ चलाता हूँ और कुछ समय बाद मुझे पता ही नहीं चलता कि कब मेरा मस्तिष्क सही दिशा में चला जाता है और मुझे प्रेरणा मिल जाती है और मेरा सचमुच ही लिखने का मूड बन जाता है।"

        “कई बार, जब मैं नहीं लिख रहा होता हूँ तब भी मेरे दिमाग में अचानक ज़ोरदार विचार आ जाते हैं, परंतु ऐसे विचार मेरे लिए बोनस की तरह हैं। ज्यादातर अच्छे विचार मेरे दिमाग़ में तभी आते हैं जब मैं काम करने बैठ जाता हूँ।"

       कर्म होने के पहले कर्म करना पड़ता है। यह प्रकृति का नियम है। कोई भी चीज़ अपने आप शुरू नहीं होती, वे यंत्र भी नहीं जिनका आप रोज़ाना इस्तेमाल करते हैं।

       आपके घर में ऑटोमेटिक एयरकंडीशनर होगा, परंतु आपको अपना मनचाहा तापमान तो चुनना ही पड़ता है (कर्म करना पड़ता है)। आपकी कार अपने आप गियर बदल लेती है, परंतु उससे पहले आपको सही लीवर दबाना पड़ता है। यही सिद्धांत दिमाग के कर्म के बारे में भी सही है। आपको अपने दिमाग को सही गियर में लाना होगा, तभी यह आपके लिए सही काम करेगा।

        एक युवा सेल्स-मैनेजर ने बताया कि वह किस तरह अपने सेल्समैनों को “मशीनी तरीके" से दिन शुरू करने का प्रशिक्षण देता है।

        "हर सेल्समैन जानता है कि घर-घर जाकर सामान बेचने वाले सेल्समैनों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हर सेल्समैन को सुबह की पहली बिक्री से डर लगता है। वह जानता है कि उसका दिन भारी गुज़रेगा, इसलिए वह पहले घर का दरवाज़ा खटखटाने से बचता रहता है। वह दो कप कॉफ़ी ज़्यादा पीता है, वह अड़ोस-पड़ोस में फ़ालतू घूमता रहता है और दर्जनों बेकार काम करता है सिर्फ इसलिए कि वह पहले घर का दरवाज़ा खटखटाने से बच सके।

        “मैं हर नए व्यक्ति को इस तरह सिखाता हूँ। मैं उसे बताता हूँ कि शुरू करने का एक ही तरीक़ा होता है और वह है शुरू करना। काम को टालो मत। उसके बारे में ज्यादा सोचो मत। बस शुरू कर दो। अपनी गाड़ी खड़ी करो। अपना सैंपल केस निकालो। दरवाज़े तक जाओ। घंटी बजाओ। मुस्कराओ। 'गुड मॉर्निंग' कहो। और अपनी बात मशीनी तरीके से ग्राहक के सामने रखो और इसके बारे में न तो ज़्यादा चिंता करो, न ही सोचो। इस तरह दिन शुरू करने से आपकी हिचक दूर हो जाती है। दूसर-तीसरे घर के दरवाजे के सामने पहुँचते-पहँचते आपका दिमाग पेना हो जाएगा और आपकी प्रस्तुतियाँ अपने आप प्रभावी हो जाएंगी।"

         एक व्यक्ति ने कहा था कि जिंदगी की सबसे बड़ी समस्या गर्म बिस्तर से निकलकर ठंडे कमरे में आना थी। और उसकी बात में दम था। आप जितनी देर तक बिस्तर पर पड़े रहेंगे और सोचते रहेंगे कि बाहर निकलना कितना कष्टदायक है, ऐसा करना आपके लिए उतना ही मुश्किल होता जाएगा। इस तरह की सीधी-सादी सी बात में भी, जिसमें आपको अपनी चादर हटाकर अपने पैरों को फ़र्श पर रखना है, आपको डर लगता है।

       संदेश स्पष्ट है। जो लोग दुनिया में कुछ कर गुज़रते हैं वे इस बात का इंतज़ार नहीं करते कि कब उनका मूड सही होगा; बल्कि वे मूड को सही करने की सामर्थ्य रखते हैं।

Share:

0 comments:

Post a Comment

Recommended Business Books

Buy Books

Featured Post

CHAPTER 13.6 सोचें तो लीडर की तरह

      साम्यवाद के कूटनीतिक रूप से चतुर कई लीडर्स - लेनिन, स्तालिन और कई अन्य - भी काफ़ी समय तक जेल में रहे, ताकि बिना किसी बाहरी चिंता क...