Sunday, October 20, 2019

CHAPTER 13.5 सोचें तो लीडर कीतरह

       और हर मामले में, विद्यार्थियों ने अपनी टीचर के उदाहरण से ही सीखा।

        हम इसी तरह का व्यवहार हर दिन वयस्कों के समूह में भी देखते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेनापतियों ने सबसे ज्यादा हौसला उन टुकड़ियों में नहीं पाया जिनके कप्तान “बेफ़िक्र", "निश्चिंत” या “निरुत्साही" थे। सबसे अच्छी टुकड़ियाँ थीं जहाँ कप्तान खुद ऊँचे मानदंडों पर चलता था और उनका पालन करता था। मिलिट्री में ऐसे अफ़सरों को सम्मान नहीं मिलता जिनके मानदंड नीचे होते हैं।

       कॉलेज के विद्यार्थी भी अपने प्रोफेसरों के उदाहरण से ही सीखते हैं। एक प्रोफ़ेसर की क्लास में वे बंक मार देते हैं, नक़ल करते हैं और बिना पढ़े अच्छे नंबर लाने के येन-केन-प्रकारेण प्रयास करते हैं। परंतु दूसरे प्रोफ़ेसर की क्लास में यही विद्यार्थी विषय में दक्षता हासिल करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करने को सहर्ष तैयार रहते हैं।

        बिज़नेस में भी हमें यही देखने को मिलता है। कर्मचारी अपने मालिक के उदाहरण से सीखते हैं। कर्मचारियों के किसी समूह को करीब से देखें। उनकी आदतों, हावभाव, कंपनी के प्रति उनके रवैए, उनकी नैतिकता, उनकेआत्मनियंत्रण पर गौर करें। फिर उनके बॉस के साथ उनके व्यवहार की तुलना करें और आप पाएँगे कि दोनों में काफ़ी समानताएँ हैं।

         हर साल कई कंपनियाँ जो अपनी प्रगति से संतुष्ट नहीं हैं, कुछ परिवर्तन करती हैं। और वे ऐसा किस तरह करती हैं। वे सबसे ऊपर के लोगों को बदलती हैं। कंपनियाँ (और कॉलेज, चर्च, क्लब, यूनियन व सभी तरह के संगठन) ऊपर से नीचे की तरफ़ सफलता से पुनर्गठित होते हैं, न कि नीचे से ऊपर की तरफ़। ऊपर के लोगों की मानसिकता बदल दें और अपने आप नीचे के लोगों की मानसिकता बदल जाएगी।

        इसे याद रखें : जब आप किसी समूह के लीडर बनते हैं, तो उस समूह के लोग तत्काल आपके आदर्श या उदाहरण के हिसाब से चलने लगते हैं। यह पहले कुछ सप्ताहों में साफ़ दिखता है। उनकी सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि वे किस तरह आपकी असलियत जानें, किस तरह यह पता करें कि आप उनसे क्या चाहते हैं। वे आपकी हर गतिविधि को पूरे ध्यान से देखते हैं। वे सोचते हैं, यह व्यक्ति मुझे कितनी ढील देगा? यह काम को किस तरह कराना चाहता है? यह किस चीज़ से खश होता है? अगर मैं यह काम करूँ तो यह क्या कहेगा?

        और जब वे इन सवालों के जवाब जान लेते हैं, तो फिर वे उसी अनुसार काम करने लगते हैं।

        उस आदर्श का ध्यान रखें जो आप प्रस्तुत करते हैं। इस पुराने परंतु हमेशा सच्चे छंद को अपना मार्गदर्शक बनाएँ :

        यह दुनिया
                     किस तरह की दुनिया होती,
       अगर इसमें रहने वाला हर इंसान
                     बिलकुल मेरी तरह होता?

      इस कहावत में अर्थ बढ़ाने के लिए आप दुनिया की जगह कंपनी शब्द फ़िट कर लें और अब यह छंद इस तरह हो गया :

            यह कंपनी
                        किस तरह की कंपनी होती,
             अगर इसमें रहने वाला हर इंसान
                        बिलकुल मेरी तरह होता?

        इसी तरह, आप खुद से पूछे कि अगर हर इंसान आप ही के जैसा हो जाए, तो वह क्लब, समुदाय, स्कूल या चर्च कैसा होगा।

       आप अपने अधीनस्थों से जिस तरह की सोच चाहते हैं, वैसा सोचें। जैसी चर्चा चाहते हैं, वैसी चर्चा करें। जैसे काम चाहते हैं, वैसे काम करें। जैसी जीवनशैली चाहते हैं, वैसी जीवनशैली जिएँ।

लंबे समय तक साथ रहने के बाद अधीनस्थ अपने बॉस की कार्बन कॉपी बन जाते हैं। उच्च कोटि की सफलता के लिए ज़रूरी है कि मास्टर कॉपी डुप्लीकेट करने क़ाबिल होनी चाहिए।

क्या मैं प्रगतिशील चिंतक हूँ?
चेक लिस्ट

A. क्या मैं अपने काम-धंधे के बारे में प्रगतिशील चिंतन करता हूँ?

      1. क्या अपने काम के बारे में मेरा नज़रिया यह रहता है “मैं इसे किस तरह बेहतर तरीके से कर सकता हूँ?"

2. क्या मैं अपने समुदाय को सुधारने के लिए सचमुच प्रयास करता हूँ या फिर मैं सिर्फ आपत्तियाँ उठाता हूँ, आलोचना करता हूँ और शिकायत करता हूँ?

3. क्या मैंने अपने समुदाय में सुधार के लिए कभी किसी चीज़ का बीड़ा उठाया है?

4. क्या मैं अपने पड़ोसियों और बाक़ी लोगों की तारीफ़ करता हूँ?

लीडरशिप नियम नंबर 4 : अपने आपसे बात करने के लिए समय निकालें और अपने चिंतन की प्रबल शक्ति का दोहन करें।

       हमें आम तौर पर यह लगता है कि लीडर्स बेहद व्यस्त लोग होते हैं। और वे सचमुच व्यस्त होते हैं। लीडर्स को काम से घिरे रहना पड़ता है। परंतु जिस बात पर सामान्य तौर पर ध्यान नहीं दिया जाता, वह यह है कि लीडर्स अकेले में भी काफ़ी समय बिताते हैं, और इस खाली समय में वे सोचने के अलावा कुछ नहीं करते हैं।

        महान धार्मिक लीडर्स की जीवनियों को पढ़ें और आप पाएंगे कि सभी ने एकांत में काफ़ी समय चिंतन किया है। मोज़ेस काफ़ी समय एकांत में रहे, कई बार तो बहुत लंबे समय तक। ईसामसीह, बुद्ध, कन्फ्यूशियस, मोहम्मद, गाँधी के बारे में भी यही सच है। इतिहास के हर प्रसिद्ध धार्मिक लीडर ने जीवन की बाधाओं से दूर अपना काफ़ी समय एकांत चिंतन में गुज़ारा है।

        इसी तरह, राजनैतिक लीडर्स जिन्होंने इतिहास पर अपनी अच्छी या बुरी छाप छोड़ी है एकांत में चिंतन किया करते थे। अगर फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट को पोलियो की बीमारी के बाद एकांत नहीं मिला होता तो क्या उनमें कभी असामान्य लीडरशिप की योग्यता विकसित हो पाती, यह एक रोचक प्रश्न है। हैरी ट्रमैन ने भी बचपन और वयस्कता का अधिकांश समय मसूरी फार्म में एकांत में बिताया था।

      अगर हिटलर को जेल में एकांत नसीब नहीं हुआ होता, तो शायद उसे सत्ता भी नहीं मिल पाती। जेल में ही उसे मीन काम्फ लिखने का समय मिला, जिसमें दुनिया को जीतने की ज़बर्दस्त योजना थी और जिसने जर्मनी की पूरी जनता को कुछ समय के लिए अंधा कर दिया था।

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