Thursday, October 17, 2019

CHAPTER 13.2 सोचें तो लीडर की तरह

       एक क्रेडिट एक्जीक्यूटिव ने मुझे बताया कि इस तकनीक से उसे किस तरह फ़ायदा हुआ।

     “जब मैं इस स्टोर में असिस्टेंट क्रेडिट मैनेजर के बतौर आया तो मुझे वसूली का काम सौंपा गया। यह कपड़ों का स्टोर था। यहाँ पर वसूली के लिए जिस तरह के पत्र लिखे जाते थे, उन्हें देखकर मुझे हैरानी और निराशा हुई। इनकी भाषा कठोर, अपमानजनक और धमकाने वाली थी। मैंने उन्हें पढ़ा और सोचा, 'बंधु, अगर कोई मुझे इस तरह की चिट्ठी लिखे, तो मैं तो गुस्से से आग-बबूला हो जाऊँगा। मैं कभी अपना हिसाब साफ़ नहीं करूँगा।' इसलिए मैं काम में जुट गया और मैंने अलग तरह के पत्र लिखना शुरू कर दिया, उस तरह के पत्र जो अगर मुझे लिखे जाएँ, तो मैं अपना हिसाब साफ़ करने के लिए प्रेरित हो सकूँ। इससे बहुत फ़र्क पड़ा। अपने बिल न चुकाने वाले ग्राहक के नज़रिए से देखने से हमारा वसूली अभियान बेहद सफल हुआ और कुछ ही समय में हमने वसूली का कीर्तिमान बना दिया।"

       बहुत से राजनीतिक उम्मीदवार चुनाव हार जाते हैं क्योंकि वे अपने मतदाताओं के नज़रिए से खुद को देखने में असफल होते हैं। राष्ट्रीय पद के लिए एक राजनीतिक उम्मीदवार, जो किसी भी तरह अपने प्रतिद्वंद्वी से दूसरी किसी बात में पीछे नहीं था, केवल एक कारण से बुरी तरह हार गया। उसने ऐसी शब्दावली का इस्तेमाल किया था, जो उसके थोड़े से मतदाताओं की समझ में ही आ पाई।

       दूसरी ओर, उसके विरोधी ने मतदाताओं की रुचियों का पूरा ध्यान रखा। जब वह किसानों से बात करता था, तो उनकी भाषा बोलता था। जब वह फ़ैक्टरी के मज़दूरों से बात करता था, तो वह उनकी भाषा में बात करता था। और जब टीवी पर बोलने की बारी आई, तो उसने जिस मतदाता को संबोधित करते हुए अपना भाषण दिया, वह आम मतदाता था, न कि किसी कॉलेज का प्रोफ़ेसर।

      खुद से यह पूछे, “अगर मैं सामने वाले की जगह पर होता तो मैं इसके बारे में क्या सोचता?" इस प्रश्न की मदद से आप ज़्यादा सफल नीति बना सकते हैं।

       किसी को प्रभावित करने के लिए उसके नज़रिए से सोचने का विचार हर स्थिति में सफल होता है। कुछ साल पहले, एक छोटेइलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता ने कभी न उड़ने वाला फ़्यूज़ बनाया। उस निर्माता ने इसकी क़ीमत रखी 1.25 डॉलर और इसके बाद उसने एक विज्ञापन एजेंसी से इसका प्रचार करने को कहा।

        विज्ञापन देने वाली एजेंसी का एक्जीक्यूटिव तत्काल बहुत उत्साहित हो गया। उसकी योजना टीवी, रेडियो और अख़बारों में भारी प्रचार करने की थी। “यह शानदार है," उसने कहा। "हम पहले ही साल में एक करोड़ फ़्यूज़ बेच सकते हैं।" उसके सलाहकारों ने उसे सावधान करने की बहुत कोशिश की, उसे समझाया कि फ़्यूज़ लोकप्रिय सामानों की श्रेणी में नहीं आते हैं, उनकी कोई रोमांटिक अपील नहीं होती है, और लोग जब फ्यूज़ ख़रीदते हैं तो सस्ते से सस्ता फ़्यूज़ ख़रीदना चाहते हैं। सलाहकारों ने यह सलाह दी, “क्यों न इसके बजाय कुछ चुनिंदा पत्रिकाओं में विज्ञापन दिया जाए और इस फ़्यूज़ को ऊँची आमदनी वाले लोगों को बेचा जाए?"

       परंतु उसने सलाहकारों की सलाह को अनसुना कर दिया। देश भर में तूफ़ानी प्रचार अभियान चलाया गया और छह हफ़्तों में ही इसे बंद करना पड़ा क्योंकि इसके “निराशाजनक परिणाम" मिले थे।

        समस्या यह थी : विज्ञापन एजेंसी के एक्जीक्यूटिव ने महँगे फ़्यूज़ को अपनी नज़र से देखा, 75,000 डॉलर हर साल कमाने वाले की नज़र से। वह आम आदमी की नज़र से इस फ्यूज़ को नहीं देख पाया, जिसकी वार्षिक आमदनी 9,000 से 15,000 डॉलर होती है। अगर उसने खुद को उनकी जगह पर रखा होता, तो उसने इस सामान को आम जनता के बजाय उच्च आय वर्ग के लोगों में बेचने का लक्ष्य बनाया होता और तूफ़ानी अभियान में इतना पैसा बर्बाद नहीं किया होता।

         जिन लोगों को आप प्रभावित करना चाहते हों, उनके नज़रिए से देखने की कला विकसित करें। नीचे दिए गए अभ्यासों से आपको ऐसा करने में मदद मिलेगी।

दूसरों के नज़रिए से देखने के सिद्धांत को कैसे अमल में लाएँ:

1. सामने वाले की स्थिति का विचार करें। अपने आपको उसकी जगह रखकर देखें। याद रखें, आपकी और उसकी रुचियों, आमदनी, बुद्धि और पृष्ठभूमि में ज़मीन-आसमान का अंतर हो सकता है।

2. अब खुद से पूछे, “अगर मैं उसकी जगह होता, तो मेरी इस पर क्या प्रतिक्रिया होती?" (चाहे आप उससे कुछ भी करवाना चाहते हों।)

3. अगर आप सामने वाले की जगह होते, तो आपसे वह काम किस तरह करवाया जा सकता था। बस, उसी तरीके का इस्तेमाल करें।

        लीडरशिप नियम नंबर 2 : सोचें : इस समस्या से निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है ?

         लीडरशिप का हर एक का तरीक़ा अलग-अलग होता है। एक तरीक़ा तानाशाह बनने का होता है। तानाशाह सारे फैसले खुद करता है, वह किसी दूसरे से सलाह लेना पसंद नहीं करता। वह अपने अधीनस्थों की बात सुनना इसलिए पसंद नहीं करता, क्योंकि शायद उसे यह डर रहता है कि उसका अधीनस्थ सही हो और उसे बेइज़्ज़ती का सामना न करना पड़े।

         तानाशाह लंबे समय तक नहीं रह पाते। कुछ समय तक तो कर्मचारी वफादारी का नाटक करते हैं, परंतु जल्दी ही असंतोष फैलने लगता है। सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी काम छोड़कर दूसरी कंपनियों में चले जाते हैं और जो कर्मचारी बचे रहते हैं वे तानाशाह के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल लेते हैं। परिणाम यह होता है कि कंपनी का काम-काज प्रभावित होता है और इससे कंपनी के मालिकों की नज़र में तानाशाह की इमेज ख़राब होती है।

      लीडरशिप का दूसरा तरीक़ा ठंडा, मशीनी, मैं-तो-नियम-की-पुस्तक के हिसाब-से-चलता-हूँ वाला तरीका है। इस शैली से काम करने वाला व्यक्ति हर काम 'नियम की पुस्तक' के हिसाब से करता है। वह यह नहीं समझ पाता कि हर नियम या नीति या योजना केवल एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जो सामान्य प्रकरणों के लिए बना है। यह भावी लीडर इंसानों के साथ उसी तरह से व्यवहार करता है जैसे वे इंसान नहीं, मशीन हों। और किसी भी व्यक्ति को जो बात सबसे ज़्यादा बुरी लगती है, वह यह कि उसके साथ मशीन की तरह व्यवहार किया जाए। ठंडा, मशीनी विशेषज्ञ आदर्श बॉस नहीं होता। जो “मशीनें" उसके नीचे काम करती हैं, वे अपनी क्षमता का थोड़ा सा उपयोग ही कर पाती हैं।

        जो लोग लीडरशिप की बुलंदियों को छू लेते हैं, वे तीसरी शैली का प्रयोग करते हैं, “मानवीय बनने” की शैली।

        कुछ साल पहले मैं जॉन एस. के साथ काम करता था। जॉन एक बड़े एल्युमीनियम निर्माता के इंजीनियरिंग डेव्लपमेंट विभाग में एक्जीक्यूटिव थे। जॉन “मानवीय बनने की शैली" में निपुण था और उसे इससे लाभ भी हो रहे थे। दर्जनों छोटे-छोटे तरीकों से जॉन यह बात लोगों तक पहुँचाता था, “आप एक इंसान हैं। मैं आपका सम्मान करता हूँ। में आपकी जितनी भी मदद कर सकता हूँ, करूँगा।"

       जब दूसरे शहर का एक व्यक्ति उसके विभाग में आया, तो जॉन ने काफ़ी परेशानी उठाकर उसके लिए अच्छा सा घर खोजा।

      अपनी सेक्रेटरी और दो अन्य महिला कर्मचारियों के माध्यम से काम करते हुए उसने अपने स्टाफ़ के हर सदस्य के लिए ऑफ़िस बर्थडे पार्टीज़ आयोजित करने की परंपरा डाली। इस छोटे से आयोजन में जो आधे घंटे का समय बर्बाद होता था, वह दरअसल बर्बादी नहीं, बल्कि निवेश था। वफ़ादारी, निष्ठा और क्षमता में निवेश।

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