Monday, October 14, 2019

CHAPTER 13.1 सोचें तो लीडर की तरह

                 सोचें तो लीडर की तरह

      एक बार फिर खुद को याद दिलाएँ कि जब आप सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं, तो आपके ऊपर वाले आपको नहीं खींचते हैं, बल्कि आपके नीचे वाले आपको उठाते हैं यानी कि वे लोग जो आपके साथी हैं या आपके नीचे काम कर रहे हैं।

        किसी भी बड़ी सफलता को हासिल करने के लिए आपको दूसरों के सहयोग की ज़रूरत होती है। और उस सहयोग को हासिल करने के लिए यह ज़रूरी है कि आपमें लीडर बनने की क्षमता हो। सफलता और लीडर बनने की योग्यता - यानी कि, लोगों से वह काम करवाना जो वे बिना आपकी लीडरशिप के न कर पाएँ - साथ-साथ चलती हैं।

       पहले के अध्यायों में सफलता दिलाने वाले जो सिद्धांत समझाए गए हैं, वे आपकी लीडरशिप क्षमता विकसित करने में बहुमूल्य साबित होंगे। यहाँ पर हम चार ख़ास लीडरशिप सिद्धांतों या नियमों को बताना चाहेंगे जो आपको लीडर बनवा सकते हैं, बिज़नेस में, सामाजिक क्लबों में, घर में, हर जगह।

        यह चार लीडरशिप सिद्धांत या नियम हैं :

     1. जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के नज़रिए से चीज़ों को देखें।

      2. सोचें : इस समस्या से निबटने का मानवीय तरीक़ा क्या है?

     3. प्रगति के बारे में सोचें, प्रगति के बारे में विश्वास करें और प्रगति के लिए कोशिश करें।

       4. अपने आपसे बात करने के लिए समय निकालें।

        अगर आप इन नियमों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से सफल होंगे। रोज़मर्रा के जीवन में इन नियमों का पालन करने से आपको वह रहस्यमयी शक्ति मिल जाती है जिसे लीडरशिप कहा जाता है।

   
          आइए देखते हैं कि ऐसा किस तरह होता है।

         लीडरशिप नियम नंबर 1 : जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के नज़रिए से चीज़ों को देखें।

        जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के दृष्टिकोण या नज़रिए से चीज़ों को देखना वह जादुई तरीक़ा है जिससे आप उनसे अपना मनचाहा काम करवा सकते हैं। अगर आप अपने दोस्तों, सहयोगियों, ग्राहकों, कर्मचारियों के नज़रिए से देख सकें, तो आप उनसे जो चाहें, करवा सकते हैं। यह कैसे होता है, इन दो उदाहरणों में देखें।

        टेड बी. एक बड़ी विज्ञापन एजेंसी में टेलीविज़न कॉपीराइटर और डायरेक्टर था। जब एजेंसी को बच्चों के जूते का विज्ञापन लिखवाना था, तो टेड को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वह जूतों का टीवी विज्ञापन तैयार करे।

         विज्ञापन अभियान के एक महीने बाद यह समझ में आ गया कि विज्ञापन से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ था। जूतों की बिक्री में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हुई थी। ज़ाहिर था कि इसका दोष टीवी विज्ञापनों पर मढ़ा जाता, क्योंकि ज़्यादातर शहरों में सिर्फ टीवी पर ही विज्ञापन दिए गए थे।

          टेलीविज़न दर्शकों के सर्वे से पता चला कि लगभग 4 प्रतिशत दर्शकों की राय में यह बेहतरीन विज्ञापन था। इन 4 प्रतिशत दर्शकों का मानना था कि “यह उनके देखे गए सबसे अच्छे विज्ञापनों में से एक था।"

          बाक़ी 96 प्रतिशत या तो इस विज्ञापन के बारे में उदासीन थे, या फिर उन्हें यह विज्ञापन पसंद नहीं आया था। सैकड़ों बातें कही गईं, “यह भी कोई विज्ञापन है? ऐसा लग रहा था जैसे सुबह के 3 बजे न्यू  ऑर्लियन्स बैंड बज रहा हो।" "मेरे बच्चों को आम तौर पर टीवी के विज्ञापन पसंद आते हैं। परंतु जब यह जूते वाला विज्ञापन आता है तो वे बाथरूम चले जाते हैं या फ्रिज खोल लेते हैं।" "मुझे लगता है यह थोड़ा हाई क्लास विज्ञापन है।" "ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति ज्यादा समझदार बनने की कोशिश कर रहा था।"

        जब इन सभी साक्षात्कारों का विश्लेषण किया गया तो एक दिलचस्प बात पता चली। जिन्हें विज्ञापन बेहद पसंद आया था, वे 4 प्रतिशत लोग आय, शिक्षा, रुचियों और क्षमताओं में टेड जैसे ही थे। बाक़ी 96 प्रतिशत उससे भिन्न “सामाजिक-आर्थिक” वर्ग के थे।

        टेड के विज्ञापन, जिनकी लागत लगभग 20000 डॉलर थी, इसलिए असफल हो गए क्योंकि टेड ने सिर्फ अपनी रुचियों के बारे में सोचा था। उसने उसी तरीके से विज्ञापन तैयार किए, जिस तरीके के विज्ञापन वह खुद देखना चाहता था। उसने उस तरीके के विज्ञापन तैयार नहीं किए, जिस तरीके के विज्ञापन बहसंख्यक जनता देखना चाहती है। उसने ऐसे विज्ञापन तैयार किए जो उसे व्यक्तिगत रूप से अच्छे लगते थे, ऐसे नहीं जो ज़्यादातर लोगों को अच्छे लगते हों।

        अगर टेड ने दूसरों के नज़रिए को समझने की कोशिश की होती, अगर उसने आम जनता की मानसिकता को जानने की कोशिश की होती ता परिणाम कुछ और ही होता। उसे खुद से दो सवाल पूछना चाहिए थे, "अगर मैं किसी बच्चे का पिता होता, तो किस तरह का उच्च-शिक्षित और बुद्धिमान युवता। कर मैं अपने बच्चे के लिए यह जूते खरीदता?" “अगर मैं बच्चा होता, तो किस तरह के विज्ञापन को देखकर में अपन कहता कि मुझे यही जूते चाहिए?"

       जोन रिटेलिंग में असफल क्यों हुई? जोन 24 साल की आकर्षक,उच्च-क्षित और बुद्धिमान युवती है। कॉलेज से निकलते ही जोन ने एक डिपार्टमेंट स्टोर में असिस्टेंट बायर की नौकरी कर ली।रेडीमेट कपड़ों के इस दीपरमेन्ट स्टोर में कम कीमत से लेकर मध्यम क़ीमत का सामान मिलता था। जोन की सिफ़ारिशी चिटिठयों में उसकी बहुत तारीफ़ की गई न म महत्वाकांक्षा है. प्रतिभा है. उत्साह है," एक पत्र में लिखा था। "वह निश्चित रूप से काफ़ी सफल होगी।" 

        परंतु जोन "काफ़ी" सफल नहीं हुई। जोन केवल 8 महीने ही वहाँ काम कर पाई और फिर उसने रिटेलिंग छोड़कर दूसरी नौकरी कर ली।

       मैं उसके बॉस को अच्छी तरह जानता था और मैंने उनसे पूछा कि इसका कारण क्या था।

       "जोन बहुत ही बढ़िया लड़की है और उसमें बहुत से अच्छे गुण हैं," उसने कहा। "परंतु उसमें एक बहुत बड़ी कमी भी है।"

       "वह क्या ?" मैंने पूछा।

        "जोन ऐसा सामान खरीदती थी जो उसे पसंद था, परंतु हमारे ज़्यादातर ग्राहकों को पसंद नहीं था। वह अपने पसंद की स्टाइल, कलर, मटेरियल और कीमत वाला सामान चुनती थी। वह हमारे ग्राहकों के नज़रिए से नहीं सोचती थी। एक बार जब मैंने उससे कहा कि शायद यह सामान हमारे लिए ठीक नहीं होगा, तो वह कहने लगी, “नहीं, जनता को यह बहुत पसंद आएगा। मुझे तो यह बहुत पसंद है। मुझे लगता है कि यह खूब बिकेगा।"

        "जोन एक समृद्ध परिवार में पली-बढ़ी थी। उसे बचपन से क्वालिटी की कद्र करना सिखाया गया था। कीमत का उसके लिए कोई खास महत्व नहीं था। जोन गरीब या मध्यवर्गीय लोगों के हिसाब से नहीं सोच पाती थी, जिनके लिए कपड़े ख़रीदते समय कीमत भी महत्वपूर्ण होती है। इसलिए जो माल जोन ने खरीदा, उसे जनता ने पसंद नहीं किया।

         असली बात यह है : दूसरे लोगों से अपना मनचाहा काम करवाने के लिए आपको उनके नज़रिए से देखना पड़ेगा। जब आप उनके नज़रिए से देखते हैं, तो आप यह समझ जाएँगे कि किस तरह उन्हें प्रभावित किया जा सकता है। मेरे बहुत ही सफल सेल्समैन मित्र ने मुझे बताया कि वह प्रस्तुति देने से पहले काफ़ी समय तक यह सोचता है कि ग्राहक उसकी प्रस्तुति को किस तरह से लेंगे, उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी। अपने श्रोताओं का नज़रिया समझने वाला वक्ता ज़्यादा रोचक, ज़्यादा प्रभावशाली सिद्ध होगा। अपने कर्मचारियों का नज़रिया समझने वाला बॉस अपने सुपरवाइज़रों से ज़्यादा अच्छी तरह काम करवा लेगा।

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